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बुधवार, जुलाई 02, 2014

मँहगा होता तेल, कार ना चले हमारी; चर्चा मंच 1662

बनी मौत महबूब, तेल में खून मिलाया-

रविकर 

मारामारी मचा के, खले खलीफा खूब । 
लगे लाश पर ठहाके, अहंकार में डूब ।

अहंकार में डूब, देश इक नया बनाया। 
बनी मौत महबूब, तेल में खून मिलाया

पर भारत बेचैन, चला चाबुक सरकारी ।
मँहगा होता तेल, कार ना चले हमारी।  

अच्छे दिन की जल्दी मची है…

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

ओ मासूम ज़िन्दगी। ....!!

Anupama Tripathi 


कहीं चाल अश्लील, कहीं कह छोटे कपड़े-भारतीय नारी
पड़े हुवे हैं जन्म से, मेरे पीछे लोग । मरने भी देते नहीं, देह रहे नित भोग । 
देह रहे नित भोग, सुता भगिनी माँ नानी । कामुकता का रोगहमेशा गलत बयानी । 
कोई देता टोक, कैद कर कोई अकड़े । कहीं चाल अश्लील, कहीं कह छोटे कपड़े ॥
श्यामल सुमन

10 टिप्‍पणियां:

  1. हृदय से आभार रविकर जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर लिया ........अन्य सभी लिंक्स भी उत्कृष्ट ...!!

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा और कार्टून |
    बढ़िया लिंक्स |

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुतिकरण,आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन लिंक्‍स संयोजन एवं प्रस्‍तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ................आभार!

    जवाब देंहटाएं

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