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बुधवार, जनवरी 21, 2015

काल-रात्रि सिर पर खड़ी, करती खड़े सवाल; चर्चा मंच 1665


नहीं शाम में देर है, फिर भी करे बवाल ।
काल-रात्रि सिर पर खड़ी, करती खड़े सवाल।   

करती खड़े सवाल, होय हरबार सवेरा।
लगा रहा रे जीव, युगों से जग का फेरा ।

इन्तजार दे छोड़, लगो अब इंतजाम में ।
होगा काम-तमाम, देर अब नहीं शाम में ।।

Neeraj Kumar Neer 



shikha kaushik 



alok chantia 



प्रवीण पाण्डेय 


ऋता शेखर मधु 
vandana gupta
--
हसरतो का कटा फटा जामा पहनें 
आँखों में तल्ख जाम छुपाये हुए
ज़िन्दगी की लम्बी रेस में दौड़ते हुए 
ये नन्हे घोड़े ... 
जिनके दूध के दांत नहीं टूटे 
अफ़सोस... मेरे मुल्क के बच्चे हैं !!
Lekhika 'Pari M Shlok' 

टेसू चिन्तित हो रहा, सरसों हुई उदास। 
सरदी में कैसे उगे, जीवन में उल्लास।।... 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर सूत्र ... आभार काव्यसुधा को शामिल करने ....

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया लिंक्स-सह चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर सूत्रों से सजी चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  4. बसन्त की तरह रंग-बिरंगी सार्थक चर्चा।
    --
    आपका आभार आदरणीय रविकर जी।

    जवाब देंहटाएं

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