मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बालकविता
"हँसता-गाता बचपन"
हँसता-खिलता जैसा,
इन प्यारे सुमनों का मन है।
गुब्बारों सा नाजुक,
सारे बच्चों का जीवन है।।
नन्हें-मुन्नों के मन को,
मत ठेस कभी पहुँचाना।
नित्यप्रति कोमल पौधों पर,
स्नेह-सुधा बरसाना...
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अधपकी दाल
...ऐसा नहीं है कि परीक्षा व्यर्थ है .
परीक्षा आवश्यक भी है और महत्त्वपूर्ण भी पर पाठ्यक्रम के सही अध्ययन- अध्यापन के बाद .बेहतर हो कि वह समय पढ़ने-पढ़ाने में खर्च हो . परीक्षा की बजाय अध्ययन अध्यापन की सार्थकता पर बल दिया जाए . शिक्षक की योग्यता व पढ़ाने के तरीकों को देखा जाए और देखा जाए कि शिक्षक के दिये ज्ञान को छात्र कितना ग्रहण कर पा रहा है . जब पढ़ाई सुचारु होगी तो परीक्षा में सफलता तो स्वतः ही मिलेगी . ..
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
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भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा,
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा
कोई ख़्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है , साजिश है
उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा...
कोई ख़्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है , साजिश है
उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा...
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एक दिन दुनिया वाले भी खबर लेते हैं
हर आदमी किसी न किसी के काम का जरूर होता है
लेकिन...
वे छुपाते हैं राज-ए-कारनामे दुनिया वालों से
जो हरदम दुनिया वालों की नजरों में रहते हैं
माना कि वे रखते हैं दुनिया वालों पर नज़र
पर एक दिन दुनिया वाले भी उनकी खबर लेते हैं
(कच्चे-चिट्ठों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है...
जो हरदम दुनिया वालों की नजरों में रहते हैं
माना कि वे रखते हैं दुनिया वालों पर नज़र
पर एक दिन दुनिया वाले भी उनकी खबर लेते हैं
(कच्चे-चिट्ठों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है...
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दिल्ली और बारिश
क्या आप दिल्ली में रहते है ? हम तो खैर नहीं है फिलहाल वहा। तो फिर आपको दिल्ली की बारिश रुलाई या आपने रास्तो पर पटे पानी के सैलाब को स्विमिंग रोड समझ उसको पार करते समय इंग्लिश चैनल पर विजय की खुशफहमी का अहसास किया, अगर नहीं है तो उसे कोसने की जगह नगरपालिका का शुक्रया अदा करे और इसका आनंद ले...
Kaushal Lal
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शबनम...
रात चाँदनी में पिघलकर
यूँ मिटी शबनम
सहर को ये ख़बर नहीं थी
कब मिटी शबनम !
दर्द की मिट्टी का घर
फूलों से सँवरा
दर्द को ढ़कती रही पर
दर्द बनी शबनम...
डॉ. जेन्नी शबनम
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ये इश्क नहीं तो क्या है ?
ये रात का पीलापन
जब तेरी देहरी पर उतरता है
मेरी रूह का ज़र्रा ज़र्रा सज़दे में रुका रहता है
खामोश परछाइयों के खामोश शहरों पर
सोये पहरेदारों से गुफ्तगू बता तो ज़रा ,
ये इश्क नहीं तो क्या है...
vandana gupta
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चला गया
उम्र अभी वो नहीं कि सब हमे बाबा कहें
तुम यूँ अलग हुए कि नूर ही चला गया
अब किस किस को सुनाएँ अपनी व्यथा...
कलम कवि की पर
Rajeev Sharma
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बढ़िया शुक्रवारीय चर्चा । आभार 'उलूक' के सूत्र 'मरे घर के मरे लोगों की खबर भी होती है मरी मरी पढ़कर मत बहकाकर' को स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा, मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा, मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा लिंक्स ........आभार
जवाब देंहटाएंलगभग सभी रचनाएं अच्छी लगीं . मुझे शामिल करने के लिये धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंलगभग सभी रचनाएं अच्छी लगीं . मुझे शामिल करने के लिये धन्यवाद .
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