मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत
"खिल उठे फिर से बगीचे में सुमन"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
खिल उठे फिर से बगीचे में सुमन।
छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।।
उष्ण मौसम का गिरा कुछ आज पारा,
हो गयी सामान्य अब नदियों की धारा,
नीर से, आओ करें हम आचमन...
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आदत नवाबी की और सफर रेल का
अब वे सुबह 6 बजे से ही चाय वाले की बाट जोहने लगे कि चाय वाला साहब के लिये ट्रे सजाकर चाय लाएगा। मैं लगातार यात्रा और काम के कारण थकी हुई थी तो नींद पूरी कर लेना चाहती थी, इसलिये जब उदयपुर आने लगा तब मेरी आँख खुली। मेरे जगते ही उन्होंने पूछा कि यहाँ चाय नहीं आती। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें -
smt. Ajit Gupta
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ताना बाना
कुछ प्रश्न हैं
जो मन को बार बार परेशां करते हैं ......
कागज़ कलम उठाती हूँ लिखती भी हूँ
पर दूसरे ही पल मिटा देती हूँ .....
लगता है जो लिखा है सीधे सरल शब्दों मे
वो कविता कहलाने लायक नहीं .....
सुना है कविता जटिल शब्दों का मायाजाल है
कई अर्थ छुपे शब्दों से ही ये बुने जा सकते हैं ......
तभी वो कविता की श्रेणी मे आते हैं.....
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मच्छर तंत्र
(व्यंग्य)
पिछले दिनों अपना पड़ोसी देश मलेरिया मुक्त घोषित कर दिया गया है। जैसे हर नेक पड़ोसी के दिल में अपने पड़ोसी की अच्छी खबर को सुनकर आग लगती है वैसे ही इस खबर को सुनकर हमारा भी कलेजा धधकने लगा है। देशवासी सोच रहे हैं कि एक छोटा सा देश इतना बड़ा काम कर गया और हमारा इतना बड़ा देश ये छोटा सा काम क्यों नहीं कर पाया? असल में देश तो अपना भी मलेरिया अथवा अन्य मच्छर जनित रोगों से अब तक मुक्त हो जाता लेकिन हमारे देश के सफेदपोश मच्छरों ने ऐसा होने ही नहीं दिया...
SUMIT PRATAP SINGH
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मच्छर का कारोबार
यह दौर मच्छरों का दौर है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार डेंगू और चिकनगुनिया पर अपने अस्पष्ट रुख और लापरवाही भरे रवैये के कारण घिर चुकी है और खासी लानत-मलामत के बाद भी चिकनगुनिया का प्रकोप कम नहीं हो रहा। चुनाव की तैयारियों में जुटे और फिर लंबी ज़ुबान का इलाज करा रहे
केजरीवाल की गैर-मौजूदगी में उनके मंत्रियों ने लापरवाही भरा
और अड़ियल रवैया अख्तियार किया और टीवी चैनलों पर पर्याप्त छीछालेदर झेली।
लेकिन सवाल है कि राज्यों और केन्द्र के अरबों के बजट के बाद भी मच्छर को हरा नहीं सके...
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जाने कहाँ खो गया !
वक्त के थपेड़ों संग,न जाने कहाँ खो गया,बचपन में मिला था जो खजाना मुझको।नन्हें हाथों कोचारपाई के पायों पर मारकरबजाया करता था जिन्हें शौक से ,चांदी की वो एक जोड़ी धागुली,मेरे नामकरण पर, जो दे गए थे,मेरे नाना मुझको।वक्त के थपेड़ों संग,न जाने कहाँ खो गया,बचपन में मिला था जो खजाना मुझको...
अंधड़ ! पर
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
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हनक यानी उन्माद
उत्तर प्रदेश और बिहार में 'हनक' शब्द बहुत प्रचलित है। मध्यप्रदेश में इसका बर्ताव नहीं के बराबर है। बाकी बिहार के अरवल से हरियाणा के पलवल तक इसका प्रसार है। 'हनक' का प्रयोग इन इलाकों में आमतौर पर ठसक, हेकड़ी, गर्व, अकड़, अभिमान, दर्प या मद का भाव है। मूल रूप से यह अरबी ज़बान का शब्द है और फ़ारसी के रास्ते हिन्दी में आया है। यह सेमिटिक धातु हा-नून-क़ाफ़ ح نِ ق से बना है जिसमें तेज़ी, तमक, तर्रारी, तैश, रुआब के साथ-साथ रोष, दुश्मनी, उग्रता, आगबबूला या प्रतिशोध जैसे आशय भी हैं...
शब्दों का सफर पर अजित वडनेरकर
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----- ॥ दोहा-पद॥ -----
लघुवत वट बिय भीत ते उपजत बिटप बिसाल ।
बिनहि बिचार करौ धर्म पातक करौ सँभाल ॥ १ ...
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मौन के गलियारों में गूँजती
खामोश चीत्कारों में निरुद्ध
अनकही वेदना की
इस प्रतिध्वनि से
विक्षुब्ध हूँ मैं !
तुम्हारे कंठ में
चिरकाल से बसी
इस घुटी हुई सिसकी के
आवेग की तीव्रता से
स्तब्ध हूँ मैं...
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वहां महफिल बहुत है...
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रवा (सूजी) इडली बनाइए,
तीन अलग-अलग तरीको से!
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नमक
बहुत काम की चीज़ हूँ मैं,
थोड़ा सा खर्च होता हूँ,
पर स्वाद बढ़ा देता हूँ,
भारी हूँ सब मसालों पर.
घुल-मिल जाता हूँ आसानी से...
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राजनीति
मिर्जा को शिकायत है कि
हम राजनीति पर नहीं लिखते!
मैं पूछता हूँ-
राजनीति में लिखने लायक
शेष बचा ही क्या है...
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय अंक हमेशा की तरह ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिनक्स लिए चर्चा
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