मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
--
ग़ज़ल
“रूप” को मोम के पुतले घड़ी भर में बदलते हैं "
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जहाँ अरमान पलते हैं
वहीं पर दीप जलते हैं
जहाँ बरसात होती है
वहीं पत्थर फिसलते हैं
लगी हो आग जब दिल में
तो शोले ही निकलते हैं...
--
उन्मुक्त जहान - -
रेशमी कोषों में बंद तितलियों को उड़ान मिले,
हर कोई है यहाँ स्वप्नील राहों का मुसाफ़िर,
मुट्ठी में बंद जुगनुओं को खुला आसमान मिले...
अग्निशिखा : पर
Shantanu Sanyal
--
--
--
भाग्य उसका
बर्फ में दफन हुआ था
भाग्य ने उसे बचाया
पर साँसें थी गिनती की
उसकी जिन्दगी की ...
--
संतुलित कहानी---
डा श्याम गुप्त....
संतुलित कहानी, कथा की एक विशेष धारा है | इन कहानियों में मूलतः सामाजिक सरोकारों से युक्त कथाएं होती है जिनमें सरोकारों को इस प्रकार संतुलित रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि उनके किसी कथ्य या तथ्यांकन, चित्र, बिम्व या वर्णन का समाज व व्यक्ति के मन-मष्तिष्क पर कोई विपरीत अनिष्टकारी प्रभाव न पड़े अपितु कथ्यांकन में भावों व विचारों का एक संतुलन रहे...
--
पेकेज के बँधुआ मजदूर
चार साल की वन्या हर रविवार की शाम बहुत परेशान कर देती है। कर क्या देती है, वस्तुतः वह खुद परेशान हो जाती है। रविवार की शाम उसका एक भी संगी-साथी मुहल्ले में नजर नहीं आता। सारे बच्चे अपने माता-पिता के साथ कहीं न कहीं घूमने निकल जाते हैं...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
--
--
--
--
anuj post
रहीम...
रहिमन कभउँ न फांदिये छत ऊपर दीवार
हल छूटे जो जन गिरें फूटै और कपार...
अनुज कुमार गौतम
--
--
--
कुछ वर्षों से ग्रामीण क्षेत्रों में भी सामाजिक शांति में विघ्न होने लग गया है, कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होने लगी है। विश्वविद्यालयों में जातिवाद व सामाजिक गुटबाजी फैलती जा रही है। आज विश्वविद्यालयों में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ जाने से इन संस्थाओं को व्यापार व राजनीति का केन्द्र बना दिया है।
अब हालात यह है की, शांति बनाये रखने के लिए चौबीसों घंटे पुलिस बल विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों में तैनात करना पड़ता है। प्रतिभावान छात्र असहाय अनुभव करते हैं और चुनावों में हिस्सा लेना पसन्द नहीं करते वे चुनावों से दूर ही रहना पसन्द करते हैं...
--
खामोश है,
शहर की हवा;
धुंए का गुबार सा उठा है;
कोनो-कोनो में.
सायरन की आवाज
चीख़-चीख़ कर रुक जाती है.
सड़क और गलियों में
आज सन्नाटे का डेरा है...
शहर की हवा;
धुंए का गुबार सा उठा है;
कोनो-कोनो में.
सायरन की आवाज
चीख़-चीख़ कर रुक जाती है.
सड़क और गलियों में
आज सन्नाटे का डेरा है...
--
क्या कहे गणेश जी !
बिठा तो दिया है
चौक चौराहे पर
आपको हे गणराज !
अब देखिये
नजारा...
Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."
--
ऐ दिल है मुश्किल !!
अपनी ख़ामोशी से आकर
मेरी ख़ामोशी सिल
कहते नहीं बनता अब
ऐ दिल है मुश्किल ...
Rhythm of words...
अपनी ख़ामोशी से आकर
मेरी ख़ामोशी सिल
कहते नहीं बनता अब
ऐ दिल है मुश्किल ...
Rhythm of words...
--
तुम्हें ही करना है
हर रस्ता अपनी मंज़िल तक जाता है
मंज़िल की पहचान तुम्हें ही करना है !
लाख प्रलोभन बिखरे हों हर ओर मगर
सही लक्ष्य संधान तुम्हें ही करना है...
--
मन से उपजे गीत
(मधुशाला छंद)
ह्रदय प्राण मन और शब्द-लय , एक ताल में जब आते
तब ही बनते छंद सुहाने, जो सबका मन हर्षाते
तुकबंदी है टूटी टहनी, पुष्प खिला क्या पाएगी
मन से उपजे गीत-छंद ही, सबका मन हैं छू पाते ||
तब ही बनते छंद सुहाने, जो सबका मन हर्षाते
तुकबंदी है टूटी टहनी, पुष्प खिला क्या पाएगी
मन से उपजे गीत-छंद ही, सबका मन हैं छू पाते ||
अरुण कुमार निगम
(mitanigoth2.blogspot.com)
--
--
अब कविता नहीं कुछ और लिखूँगा
मन में इरादा है,
अपने आप से भी वादा है
कि अब कविता नहीं कुछ और लिखूँगा
मजदूर की हथेलियों की रेखाएँ लिखूँगा
अँगुलियों का एक- एक पोर लिखूँगा
कविता नहीं कुछ और लिखूँगा...
Vikram Pratap Singh Sachan
--
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर शुक्रवारीय अंक ।
जवाब देंहटाएंthank yu sir for sharing!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत रोचक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंमेरे छन्द को चर्चामंच में स्थान देने हेतु आभार। सुन्दर चर्चा ।
जवाब देंहटाएं