मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दफ्न हैं अहसास
मृत हैं संवेदनाएं,
घायल इंसानियत
ले रही अंतिम सांस
सड़क के किनारे,
गुज़र जाता बुत सा आदमी
मौन करीब से.
नहीं है अंतर गरीब या अमीर में
संवेदनहीनता की कसौटी पर.
Kashish - My Poetry
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ग़ज़ल
"लोग जब जुट जायेंगे तो काफिला हो जायेगा"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोग जब जुट जायेंगे, तो काफिला हो जायेगा
आम देगा तब मज़ा, जब पिलपिला हो जायेगा...
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*गज़ल *
वक्त से थोडा प्यार कर लेना
आदतों में सुधार कर लेना
बात हो सिर्फ प्यार की जानम
आज शिकवे उधार कर लेना...
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छात्रसंघ जरूरी है
आजकल कई लोग कहने लगे है, छात्रों को राजनीति से दूर रहना चाहिए ,, न जाने क्या सोचते है ये लोग? लेकिन जितना मुझे समझ में आता है, यदि छात्र राजनीति से दूर रहे होते तो,, देश को विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा और सफतलम और सम्माननीय क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद न मिलते, क्यों कि अगर कोई चंद्रशेखर आजाद के बारे में थोड़ा सा भी जानता होगा उसे ये जरूर ज्ञात होगा कि चंद्रशेखर आजाद अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में बहुत सक्रिय थे...
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धर्म: मेरा और पराया
सनातन और जैन धर्म से जुड़े कुछ संगठनों में सक्रिय मेरे कुछ मित्र इन दिनों मुझ पर कुपित और मुझसे नाराज हैं। वे लोग ईदुज्जुहा के मौके पर दी जाने वाली, बकरों की कुर्बानी के विरुद्ध चलाए जाने वाले अभियान में मेरी भागीदारी चाहते थे। मैंने इंकार कर दिया। उनमें से एक ने मुझे हड़काते हुए पूछा - ‘आप बकरों की बलि के समर्थक हैं?’ मैंने कहा कि मैं केवल बकरों की बलि का ही नहीं, ऐसी किसी भी बलि-प्रथा का विरोधी हूँ। ऐसी किसी प्रथा को मैं न तो धर्म के अनुकूल मानता हूँ और न ही सामाज के। यदि कोई धर्म या समाज ऐसा करने की सलाह देता है तो मैं उस धर्म को धर्म नहीं मानता और न ही ऐसे समाज को समाज ही मानता हूँ...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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भूल जाओ आज परेशानियाँ तुम
बन के रह गई ज़िन्दगी
अफ़साना न आया तुमको
कभी प्यार निभाना ..
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi
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पिता
पिता, तुम क्यों गए अचानक,
भला ऐसे भी कोई जाता है?
न कोई इशारा, न कोई चेतावनी,
जैसे उठे और चल दिए.
तुम थोड़ा बीमार ही पड़ते,
तो मैं थोड़ी बातें करता,
थोड़ी माफ़ी मांगता,
तुम्हें बताता कि मैंने कब-कब झूठ बोला था,
कब-कब विश्वास तोड़ा था तुम्हारा...
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वे शायर बड़े मशहूर थे
वे शायर बड़े मशहूर थे, पर बहुत मगरूर थे।
थे इंसानियत के पक्षधर, मगर उससे बहुत ही दूर थे।
एक दिन बैठे थे ऊबे हुये, कुछ नशे में डूबे हुये।
अचानक जाग उठी उनकी संवेदना,
करने लगे आंगन में खड़े कुत्ते की अभ्यर्थना।
किये स्पर्श उसके चरण,
पिताजी आपके बिना मेरा था मरण...
Jayanti Prasad Sharma
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शिकारी और शिकार
बंदरों पर एक वृत्त-चित्र का प्रसारण किया जा रहा था –
ताकतवर नर बन्दर अपना मादा बन्दरों का हरम बनाकर रहता है और किसी अन्य युवा बन्दर को मादा से यौन सम्बन्ध बनाने की अनुमति नहीं है। यदि युवा बन्दर उस मठाधीश को हरा देता है तो वह उस हरम का मालिक हो जाता है। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें -
smt. Ajit Gupta
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उन दिनों की प्रेम कहानी...
ये उन दिनों की कहानी है जब प्यार एसएमएस और इन्टरनेट का मोहताज नहीं हुआ था. तब परदेस में कमाने वाले पतियों की घर संभालने वाली अपनी पत्नियों के साथ बगैर किसी लोचे के “लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप” निभती थी. उस ज़माने में आँखें बाकायदा चार हुआ करती थी. इस गंभीर वाले अनबोले प्यार से इतर हाई स्कूल और कॉलेज वाला प्यार भी खूब प्रचलित हुआ करता था...
Sneha Rahul Choudhary
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माना कि ज़िन्दगी आसाँ...
माना कि ज़िन्दगी आसाँ नहीं होती,
जब जीने की कोई वजह नहीं होती!
अधूरे लम्हों की अधूरी कहानी सी लगती है,
अपनी ही दास्ताँ बेगानी सी लगती है !
माफ़ कर सको तो कर देना उस शक्स को,
वरना ज़िन्दगी हमारी नहीं लगती है !!
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प्रतिक्रिया
(व्यंग्य)
हमेशा की तरह फिर से पड़ोस से आतंकी हमला हुआ और इस आतंकी हमले में हमारे कई वीर सैनिक शहीद हो गए। इस लोमहर्षक घटना पर देश में सभी ने अपने-अपने तरीके से प्रतिक्रिया दी। एक वीर रस के कवि ने इस आतंकी हमले पर त्वरित कार्यवाही की। उसने फटाफट एक आशु कविता का सृजन कर डाला। उसने कविता का आरंभ देश के सत्ता पक्ष को गरियाने और कोसने से किया और समापन शत्रु देश पर बम-गोले बरसाने के साथ किया। तभी उसके पड़ोस के किसी शरारती बच्चे ने उसके घर के बाहर पटाखा फोड़ दिया। पटाखे की आवाज सुन उस वीर रस के कवि ने अपने भय से काँपते हुए मजबूत हृदय पर अपने दोनों हाथ रखे और भागकर अपने घर के कोने में जाकर छुप गया। ...
SUMIT PRATAP SINGH
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वो मेरा ईश्वर नहीं हो सकता
मोर वचन चाहे पड़ जाए फीको
संत वचन पत्थर कर लीको
तुमने ही कहा था न
तो आज तुम ही उस कसौटी के लिए हो जाओ तैयार
बाँध लो कमरबंध कर लो सुरक्षा के सभी अचूक उपाय
इस बार तुम्हें देनी है परीक्षा तो सुनो
मेरा समर्पण वो नहीं जैसा तुम चाहते हो...
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हम ख़ुद बताएं
न तुम कुछ कहोगे न हम कुछ कहेंगे
यहां सिर्फ़ अह् ले-सितम कुछ कहेंगे
जहां तुमको एहसासे-तनहाई होगा
वहां मेरे नक़्शे-क़दम कुछ कहेंगे...
साझा आसमान पर
Suresh Swapnil
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झोपड़ियों में बिखरता बचपन
शहर के तंग गलियों में टूटे हुए सपनों की एक लंबी कहानी है. एक अज़ीब सी कुंठा में लोग जीते हैं.कभी कई दिन भूखा रह जाने की कुंठा तो कभी दिहाड़ी न मिलने की कुंठा, कभी सभ्य समाज की गाली तो कभी दिन भर की कमाई को फूंकने से रोकने के लिए शराबी पति की मार, कभी पति का पत्नी को जुए में हार जाना तो कभी बच्चों का नशे की लत में डूब जाना. ये हालात किसी फिल्म की पटकथा नहीं हैं बल्कि सच्चाई है उन झुग्गी-झोपड़ियों की जहाँ हम जाने से कतराते हैं...
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अपने देश में ' शहीद '
दूसरे देश में ' मार गिराया ' .. . .
बस और कुछ नहीं।
आज युद्ध ही एकमात्र हल रह गया है क्या ?..
और कोई रास्ता नही ! ..
रास्ता तो सचमुच कोई भी नज़र नहीं आता ,
और युद्ध भी समस्या का हल नही होते। ...
हम चाहे कितना भी ज़ोर से चीख-चीख कर कह लें ,
लोगों को उकसाने की कोशिश कर लें कि
बस , ..अब और नही , ..अब युद्ध ही होगा। ..
पर यह समस्या का हल नहीं है ,
स्थाई हल तो बिलकुल भी नही...
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सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा मंच सजा
जवाब देंहटाएंभांति भांति की लिंक्स से
कार्टून भी पीछे नहीं
यही तो विशेष है |
सुन्दर रविवारीय अंक ।
जवाब देंहटाएंआभार गुरुदेव! आपने मेरी रचना को स्थान दिया।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक पसंद आए।
बहुत अच्छी अच्छी सार्थक चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन! मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर!
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