मित्रों
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दोहे "ओ जालिम-गुस्ताख"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शोलों के ऊपर अभी, चढ़ी हुई है राख।
भारत का कश्मीर है, भारत का लद्दाख।।
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भूल गये इतिहास को, याद नहीं भूगोल।
बिल्ले भी अब शेर की, रहे बोलियाँ बोल...
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सात फेरे....!!!
सात फेरो का साथ मेरा तुम्हारा,
सातो वचन याद थे हम दोनों को,
तुम साथ-साथ चल भी रहे थे,
राहे एक थी हमारी,मंजिल के करीब भी थे हम...
कैसे तुम इतने निर्मोही हो गये,
छोड़ कर मझधार में साथ,
छोड़ कर चले गये...
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प्रेम की सूई दिखायी देती नहीं
हर व्यक्ति के पास इतना ज्ञान आ गया है कि वह ज्ञान देने के लिये लोग ढूंढ रहा है, बस जैसे ही अपने लोग मिले कि ज्ञान की पोटली खुलने लगती है और बचपन मासूम सा बनकर कोने में जा खड़ा होता है। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें -
smt. Ajit Gupta
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बहुत सुन्दर गुरुवारीय चर्चा अंक ।
जवाब देंहटाएंsundar charcha....meri rachna ko yahan sthan dene kay liye shukriya
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा प्रस्तुत पाठ्य सामाग्री को पझ कर !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा प्रस्तुत पाठ्य सामाग्री को पझ कर !
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