मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हिन्दी दिवस और हिन्दी
हिन्दी दिवस भी हमारे देश में साल में एक बार किसी त्यौहार की तरह ही मनाया जाने लगा है ठीक उसी तरह जैसे हम होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस मनाते हैं ! यह ‘दिवस’ मनाने का चलन भी खूब निकला है ! बस साल के पूरे ३६५ दिनों में एक दिन, असली हों या नकली, हिन्दी के मान सम्मान की ढेर सारी बातें कर लो, अच्छे-अच्छे लेख, कवितायें, कहानियाँ लिख कर अपनी कर्तव्यपरायणता और दायित्व बोध का भरपूर प्रदर्शन कर लो और फिर बाकी ३६४ दिन निश्चिन्त होकर मुँह ढक कर गहरी नींद में सो जाओ अगले हिन्दी दिवस के आने तक...
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गीत
"स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तुकबन्दी से फलता उपवन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
शब्दों को मन में उपजाओ
फिर इनसे कुछ वाक्य बनो
सन्देशों से खिलता गुलशन
स्वर व्यञ्जन ही तो है जीवन...
स्वर व्यञ्जन ही तो है जीवन...
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कोशिशें जारी रहनी चाहिए -
देश में बहुत सी भाषाएँ बोली और लिखी जाती है। ..शिक्षा का माध्यम हिंदी , अंग्रेजी के साथ ये प्रान्त विशेष में बोली जाने वाली भाषाएँ भी है। भाषा लिखित हो या मौखिक , .. हमारी अभिव्यक्ति का ही माध्यम है। कोई भी भाषा अच्छी या बुरी नही होती। .हाँ , व्याकरण की दृष्टि से कुछ भाषाएँ समृद्ध ज़रूर है। हमारे मन में सभी भाषाओँ के लिए आदर की भावना होनी चाहिए...
हिन्दी खिलेगी
(हिन्दी दिवस पर 9 हाइकु)
1.
मन की बात
कह पाएँ सबसे
हिन्दी के साथ।
2.
हिन्दी रूठी है
अंग्रेज़ी मातृभाषा
बन ऐंठी है।
3.
सपना दिखा
हिन्दी अब भी रोती
आज़ादी बाद...
डॉ. जेन्नी शबनम
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एक दिन ग्यारहवीं कक्षा में
हिन्दी के पीरियड का ..
यह लघुकथा उच्च कक्षाओं में भी हिन्दी की स्थिति बताने के लिये काफी है .कहीं छात्र पढ़ना नही चाहते और कहीं शिक्षक पढ़ाना नही चाहते या जानते . किसी एक को उत्तरदायी नही कहा जा सकता . ऐसे में हिन्दी दिवस मनाने का आडम्बर छोड़कर जरूरत है विद्यालयों में प्रारम्भ से ही हिन्दी अध्यापन की जड़ें मजबूत करने की .क्योंकि विद्यालय ही वह संस्था है जहाँ भाषा सीखने का औपचारिक आरम्भ होता है...
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
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गज़लोपनिषद......
शुद्ध हिन्दी गज़ल...
डा श्याम गुप्त ..
एक हाथ में गीता हो और एक में त्रिशूल |
यह कर्म-धर्म ही सनातन नियम है अनुकूल |
संभूति च असम्भूति च यस्तदवेदोभय सह ,
सार और असार संग संग नहीं कुछ प्रतिकूल...
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बहुत सुन्दर शुक्रवारीय चर्चा अंक प्रस्तुति । आभार 'उलूक' के सूत्र 'शब्द दिन और शब्द अच्छे जब एक साथ प्रयोग किये जा रहे होते हैं' को भी स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सूत्रों से सजी आज की चर्चा ! मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत-बहुत आभार आपका !
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ ..' कोशिशें जारी रहनी चाहिए; को दूसरे दिन भी ' चर्चा मंच ' में स्थान देने के लिए ....बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंजब तक हिन्दी के प्रति समर्पित साहित्यकार अनवरत कार्य करते रहेंगे, तबतक हिन्दी विश्व पटल पर आती रहेगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंरूपचन्द्र जी, सुन्दर लिन्कस के चयन के लिए बधाई और मेरे आलेख को जगह देने के लिए धन्यवाद
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