सादर अभिवादन।
चर्चामंच की सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
-- झोपड़ी में ख़ुद को ढक लेता निरीह ग़रीब
सरकार ढक देती है झोपड़ी दीवार उठाकर,
ताकि सवाल पूछ न ले कोई विदेशी मेहमान,
अपनी जिज्ञासु पारखी नज़र उठाकर।
-रवीन्द्र सिंह यादव
-- आइए पढ़ते हैं आज मेरी पसंदीदा कुछ रचनाएँ-
--
शब्द-सृजन-9 का विषय है-
'मेहंदी' / 'हिना'
आप इस विषय पर अपनी रचना आगामी शुक्रवार (सायं 5 बजे तक ) तक चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क (Contact Form ) के ज़रिये भेज सकते हैं.
चयनित रचनाएँ आगामी शनिवारीय चर्चा अंक में प्रकाशित की जायेंगीं।
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-- झोपड़ी में ख़ुद को ढक लेता निरीह ग़रीब
सरकार ढक देती है झोपड़ी दीवार उठाकर,
ताकि सवाल पूछ न ले कोई विदेशी मेहमान,
अपनी जिज्ञासु पारखी नज़र उठाकर।
-रवीन्द्र सिंह यादव
-- आइए पढ़ते हैं आज मेरी पसंदीदा कुछ रचनाएँ-
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शब्द-सृजन-9 का विषय है-
'मेहंदी' / 'हिना'
आप इस विषय पर अपनी रचना आगामी शुक्रवार (सायं 5 बजे तक ) तक चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क (Contact Form ) के ज़रिये भेज सकते हैं.
चयनित रचनाएँ आगामी शनिवारीय चर्चा अंक में प्रकाशित की जायेंगीं।
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रात तो बीत चुकी है,
बस सूरज नहीं निकला है,
वह लड़ रहा होगा,
निकलने की कोशिश कर रहा होगा.
**
विरह वेदना
बिंदी माथे पर सजा ,कर सोलह श्रृंगार ।
पिया तुम्हारी राह अब ,अखियां रही निहार ।।
बिस्तर पर की सिलवटें,बोलें पूरी बात ।
साजन हैं परदेश में ,मिला बड़ा आघात ।
**
खुशी के आँसू
प्रिया के पापा आलोक आज उसके लिए कोई लड़का देखकर आए थे।
अरे गुंजन...!कहाँ हो.?पापा माँ बाजार गई है..! अभी आती ही होंगी..!
किसके साथ..? क्यो..? सुधाकर ने प्रिया से सवालों की झड़ी लगा दी।
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बस सूरज नहीं निकला है,
वह लड़ रहा होगा,
निकलने की कोशिश कर रहा होगा.
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विरह वेदना
बिंदी माथे पर सजा ,कर सोलह श्रृंगार ।
पिया तुम्हारी राह अब ,अखियां रही निहार ।।
बिस्तर पर की सिलवटें,बोलें पूरी बात ।
साजन हैं परदेश में ,मिला बड़ा आघात ।
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खुशी के आँसू
प्रिया के पापा आलोक आज उसके लिए कोई लड़का देखकर आए थे।
अरे गुंजन...!कहाँ हो.?पापा माँ बाजार गई है..! अभी आती ही होंगी..!
किसके साथ..? क्यो..? सुधाकर ने प्रिया से सवालों की झड़ी लगा दी।
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जन्म लिया जब छत्रपति ने बजने लगी थी
रणभेरी लाल महल में गूंज उठी थी राजे की किलकारी
चहक उठी तब भारत भूमि,
छंट गई रात अँधेरी जीजाऊ ने तब भड़काई स्वराज की चिनगारी
नसों में खौलते लहू का,
ज्वार लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
रवीन्द्र सिंह यादव
विवशता में ही नहीं सम्मान के लिए भी अतिथियों से अपनी निर्धनता छुपाना स्वाभिमानी मनुष्य का स्वभाव रहा है । यही कार्य सरकार भी इनके समझ करती है ।
जवाब देंहटाएंपरंतु सदैव स्मरण रखना चाहिए की हम इसे अपनी आदत न बना ले । हमारी इस स्थिति में परिवर्तन दिखना चाहिए । जिसके लिए हमें ईमानदारी से कठोर परिश्रम करना चाहिए। इन परिस्थितियों से संघर्ष करना चाहिए।
देश की स्वतंत्रता के बाद से ही गरीबी ने राजनेताओं को सत्ता प्राप्त करने के लिए एक बड़ा मुद्दा दे दिया है
कभी हमसे गरीबी हटाने के नाम पर वोट लिया गया तो कभी अच्छे दिन आने वाले हैं के नाम पर... परिणाम जगजाहिर है।
हाँ, वर्तमान में दिल्ली में जो केजरीवाल साहब की सरकार है , उसने गरीबों का काम करके वोट लिया , गरीबी छिपाकर नहीं ।
आज की भूमिका और सभी रचनाएँ भी सुंदर सार्थक संदेश दे रही हैं, सभी को प्रणाम।
समझ नहीं समक्ष
हटाएंपठनीय लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल की.आभार.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
बहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. बहुत ही सुन्दर रचनाएँ. सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन चर्च अंक सर ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं से सजा शानदार चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका....।
इतनी सारी विविधतापूर्ण रचनाएँ जो पठन और मनन का संतोष दे गईं !!! मेरी रचना को चर्चामंच पर स्थान देने हेतु सादर आभार रवींद्र जी।
जवाब देंहटाएंविचारणीय भूमिका रविंद्र जी.. यह कैसी मंदबुद्धि सरकार है जो गरीबी को खत्म करने की बजाय गरीबी को ईटों की दीवार चढ़ाकर ढक रही है...
जवाब देंहटाएंइन इस दीवार को उठाने की वजह कुछ गरीबों के घर को ही ईटों की दीवार से बना दिया जाता तो शायद ज्यादा बेहतर होता बहुत ही सोचने वाली बात आपने डाली है..
हमेशा की तरह सभी चयनित लिंक बहुत ही अच्छे हैं.. सुंदर एवं सार्थक चर्चा रहे आज की धन्यवाद
सुन्दर अंक आ आदरणीय भाई रवीन्द्र जी | सुंदर लिंकों के साथ बहुत कुछ कहती छोटी सी भूमिका बहुत प्रभावी है | सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएं