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मंगलवार, फ़रवरी 25, 2020

" अतिथि देवो भवः "( चर्चा अंक -3622)

 स्नेहिल अभिवादन 

     आज की प्रस्तुति में हार्दिक स्वागत हैं आपका  

       " अतिथि देवो भवः "      

  "अतिथि को देवता  स्वरूप मानना और दिल से उनका स्वागत -सत्कार करना ,

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही हैं। 

हमें अपने दुःख-दर्द , अपनी परेशानी,अपनी गरीबीउनके सामने कभी भी व्यक्त

 नहीं करनी चाहिए ,ऐसी शिक्षा और संस्कार बचपन से ही हमें दिए गए थे।

हमने उस परम्परा का निबाह भी बाखूबी किया हैं ,

खुद दाल रोटी खा कर अतिथि के आगे पकवान रखे हैं। 

पर दिन बदले ....परिवेश बदला ...संस्कार बदले ....सोच बदली ....मेजबान और मेहमान के रूप बदले और आज....अव्वल तो हमें अतिथियों का आना अच्छा ही नहीं लगता.....

अगर गलती से कोई आने को कह दे तो उस मेहमान के मेहमान नावाजी से ज्यादा 

हम अपनी झूठी शानों -शौकत दिखने में रह जाते हैं ...

वो दिखावा जो कभी कभी बहुत भरी पड़ जाता हैं। 

मेहमान नावाजी  करें......दिल से करें .......उनके आगे अपना दुखड़ा ना रोये ना दिखाए.....

उनसे  अपनी फटी चादर को छुपाने में भी कोई बुराई नहीं हैं ...मगर व्यर्थ का दिखावा....

 वो भी आज के परिवेश.... में भारी पड़ सकता हैं। 

ख़ैर...ये तो अपनी अपनी सोच हैं ,इस विषय पर ज्यादा कुछ कहें बिना ही चलते हैं.. 

आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...

*******      

अतिथि देवो भव:

"तू समझती क्यों नहीं वे  बहुत पैसे वाले लोग हैं अगर दिखावा नहीं करेंगे तो वे 
 अपने बराबर में नहीं बैठाएँगे और देख एक अच्छी-सी लुगड़ी ओढ़ लेना नहीं तो 
कहेगा अपनी पत्नी को ढंग के कपड़े नहीं पहना सकता।"
******

दौरा...एक राष्ट्राध्यक्ष का

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जब देश के अंदर बिना ईट के ही कितने दीवार खड़े है, 
गिनती करना मुश्किल है।
फिर एक ईंट की दीवार खड़ी हो गई तो क्या फर्क पड़ता है।
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Namaste Trump! 

नरेंद्र मोदी को इतना पसंद क्यों करते हैं डोनाल्ड ट्रम्प?

namaste trump donald trump india visit 2020
24 फरवरी 2020 को अमेरिकी राष्ट्रपति श्रीमान डोनाल्ड ट्रम्प का भारत 
आगमन हो रहा है। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के 
मुखिया के इस मिलन समारोह पर पूरी दुनिया की नजर है।
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"लहरें"

मेरी फ़ोटो
लहरों की चंचलता
सीमाओं से बाहर...
वह बाँधना चाहता था
लहरों को … 
मगर अनियन्त्रित लहरें
कहाँ और कब.. 
किसी की सुनती हैं
*******

मंद मार्तण्ड

व्याप्त है, रात का, वो दुरूह पल,
तू ही बता, क्यूँ ये रात, कर रहा है छल!
अब तो, गुम हुई है चाँदनी,
गई, कहाँ वो रौशनी,
मार्तण्ड, मंद क्यूँ हो चला!
विभा, क्यूँ छुपी?
उस विभावरी की गोद में?
******

ज्येष्ठ की तपिश और प्यासी चिड़िया

बढ़ रही अब तपिश धरा पर,
सूख गये हैं सब नदी-नाले
प्यासे हैं पानी को तरसते,
हम अम्बर में उड़ने वाले.....
******
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रणवीर कपूर स्टाइल की दाढ़ी में गजब का हैंडसम लुक था।
 इधर लड़का देखते ही रह गया उसे।
 क्या झक्कास लग रही थी! पांच फीट तीन इंच का कद।
*******

ऐ नींद मेरी !

ऐ प्रिय, नींद मेरी !

बस, यूं ही मगर, पता नहीं क्यों,

कुछ अनिश्चित ही लग रही है मुझे,
आज भी मुलाकात तेरी।
********

फ़ितरत

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थोड़ा फ़लसफ़ा थोड़ी उम्मीद लेकर  
चलो फिर से शुरू हुई करते हैं सफर  
जिसे छोड़ा था हमने तब, जब  
जिंदगी बहुत बेतरतीब हो गई थी  
और दूरी ही महज़ एक राह बची थी  
*********
छोड़कर 

जगजीत का संग 
जब इलाहाबाद आये |
कालिया जी 
इक मोहब्बत का 
फ़साना साथ लाये |
*********
अब चलते -चलते.... 
हम सभी के प्रिय सर ,आदरणीय   डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक”  जी की एक खास उपलब्धि 
पर एक नजर  

 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

       से युं तो आप उनके ब्लाग उच्चारण के माध्यम से अच्छी तरह परिचित हैं. इनके ब्लाग ने
 बहुत ही कम समय मे नई ऊंचाईयों को छुआ है. 
महज चार माह में २२७ कविताओं का प्रकाशन, अपने आप मे एक रिकार्ड है.
*******
आदरणीय सर , हार्दिक प्रसन्ता हुई  ,इस साझात्कार के माध्यम से हमें आपके  सम्पूर्ण जीवन यात्रा की एक झलक देखने को मिली। आपके बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। परमात्मा आपको दीर्घायु करें ,माँ सरस्वती की आप पर कृपा बनी रहें और आपके कलम से निकली बेहतरीन रचनाओं का हम सभी आनंद उठाते रहें। 
अनंत शुभकामनाएं आपको। 
आज का सफर बस यही तक ,अब आज्ञा दे 
आपका दिन मंगलमय हो !!
कामिनी सिन्हा 

23 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. सुंदर भूमिका अतिथि देवो भवः , हमारे पूर्वजों ने यह संस्कार हमें प्राचीन काल से ही दिया है।
    बचपन में मैंने देखा था स्वयं गुड़ की चाय पीकर भी लोग अतिथियों को चीनी की चाय पिलाया करते थे, क्यों कि उसमें उनकी चाह छिपी होती थी।
    और अब एक मजेदार बात बताऊँ आपको कि उसी बनारस में अतिथि सत्कार का हाल यह है कि चाय को लेकर एक कहावत प्रचलित है कि
    पूरा बनारसी है का रे ....!

    दरअसल, अब वहाँ ऐसे भी अनेक दुकानदार हैं कि किसी परिचित ग्राहक आदि को देख उसके स्वागत- सत्कार के लिए चाय की दुकान की तरफ सिर उठाकर आवाज तो यह जोर से लगाते हैं कि चार चाय भेज दो , लेकिन साथ ही हाथ की उँगलियों से कुछ इस तरह का इशारा करते हैं कि चाय मत भेजना...।
    बेचारा ग्राहक चाय की प्रतीक्षा में आधे घंटे तक बैठे-बैठे थक जाता है और फिर यह कह अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर जाता है कि लगता है चाय में विलंब हो रहा है।
    अब तो दिखावे का यह भौतिक युग है। जब अपने ही परिवार में आप आपस में प्रेम नहीं रहा तो फिर इस अर्थयुग में किसी अतिथि के प्रति हम क्या स्नेह प्रदर्शन करेंगे ।
    आपने कभी देखा कि नशेड़ी कितने प्रेम से किसी अच्छे परिवार के युवक को मुफ्त में हेरोइन , शराब और गांजा पिला कर अपने गोल में मिलाते हैं, पर इस अतिथि सत्कार के पीछे उनका स्वार्थ जग जाहिर है।
    अब तो अतिथि भी निर्लज्ज हो गए हैं, तनिक भी अवसर मिला नहीं की आपको राजा से रंग बनाने में उन्हें देर न लगेगा।

    सदैव की तरह आज भी किसी विशेष विषय पर आपकी भूमिका सराहनीय और साथ ही अच्छी रचनाओं का चयन आपने किया है। सभी को प्रणाम।


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    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद शशि जी , सुंदर और विस्तृत प्रतिक्रिया देकर इस चर्चा में शामिल होने के लिए आभार ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  3. आदरणीया कामिनी जी की सशक्त लेखन की तरह आज की प्रस्तुति भी उतनी ही सशक्त है। शुभ प्रभात व बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद पुरुषोत्तम जी ,आपकी सुंदर समीक्षा के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  4. पठनीय लिंकों के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार कामिनी जी।

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    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद सर,इस प्रोत्साहन के लिए दिल से आभार आपका ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  5. बहुत सुन्दर भूमिका और विविधतापूर्ण सूत्र संयोजन । इस उम्दा प्रस्तुति में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार कामिनी जी ।

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    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद मीना जी ,इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार आपका ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. तहे दिल से शुक्रिया अनु जी ,चर्चा को विस्तार देती आपकी इस महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ,स्नेह

      हटाएं
  7. विचारणीय भूमिका "अतिथि देवो भव" यह पंक्तियां अब "अतिथि जल्दी जाओ भव" इसमें परिवर्तित हो चुकी है..!
    अब महंगाई कहे या हमारा आधुनिक होता मन यह दोनों ही बातें किसी भी अतिथि के घर पर आने पर सर पर मंडराने लगती है..।
    जब भी भूमिका में हमारे आसपास के माहौल का जिक्र आता है सच कहती हूं मुझे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि वह चीजें हम से जुड़ी हुई होती है और उन बातों पर अपने विचार रखने का एक बेहतरीन मौका यहां मिल जाता है..।
    सारगर्भित भूमिका के साथ बहुत ही अच्छी रचनाओं का संकलन आपने तैयार किया है आपको बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद

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    1. तहे दिल से शुक्रिया अनु जी ,चर्चा को विस्तार देती आपकी इस महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ,स्नेह

      हटाएं
  8. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीया कामिनी दीदी आप के द्वारा. बेहतरीन पठनीय रचनाओं को चुना गया है. सभी को बधाई.
    आपकी विस्तृत सार्थक भूमिका सोचने पर विवश करती है. मेरी रचना आज की चर्चा में शामिल करने के लिये बहुत सारा आभार.

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    1. दिल से शुक्रिया अनीता जी आपकी स्नेहिल समीक्षा के लिए ,सादर स्नेह

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  9. मैंने अपने ब्लॉग का नाम बोले तो बिंदास से बदलकर बोल दो बिंदास कर दिया है... boldobindaas.blogspot.com
    पुराने नाम से किसी को कोई लिंक नहीं मिल रहा है ....

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  10. बेहद खूबसूरत चर्चा अंक कामिनी जी। भूमिकापूर्ण सुंदर सरस रचनाओं की प्रस्तुति। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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    1. दिल से शुक्रिया सुजाता जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए ,सादर नमन

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