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मंगलवार, फ़रवरी 11, 2020

"प्रेमदिवस नजदीक" (चर्चा अंक -3608)

स्नेहिल अभिवादन 

" वेलेन्टाइन- डे " के मौसम का खुमार छाया हैं ,

युवावर्ग ही नहीं किशोरावस्था के बच्चें भी पूरी तरह मदमस्त हुए पड़ें हैं।

आज के युवा पीढ़ी के लिए प्यार का रूप रंग बदल चूका हैं। प्यार स्वछंद हो चूका हैं।

इस परिवर्तित रूप को प्यार तो नहीं कह सकतें मगर आज की पीढ़ी खास तौर पर

  किशोरावस्था के बच्चें  खोखलें आकर्षण को प्यार समझ कई बार 

गलत और खतरनाक कदम उठा लेते हैं और खुद के साथ साथ

 अपने परिवार को भी मुसीबत में डाल देते हैं। 

पश्चिमी सभ्यता की मादकता वातावरण में घुल -मिल रही हैं।

 समाज की  हवाएं बदल रही हैं ,ऐसे वक़्त में हम हवाओं को रोक तो नहीं पाएँगे 

परन्तु खुद के मानसिकता में थोड़ा बदलाव कर हवाओँ के रुख को मोड़ तो जरूर सकते है  ताकि ये हवाएं आँधी बन हमारे बच्चों को उड़ाकर ना ले जा सकें। अब वक़्त आ गया हैं कि - 

जैसे हम बच्चों को बालवस्था से ही हर छोटी -बड़ी, सही -गलत ,पाप -पुण्य की बातें समझाते है ,वैसे ही किशोरावस्था में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण को स्वभाविक मान उसके भी 

सही -गलत पहलुओं  को निःसकोच समझाए तो शायद बच्चे वो गलतियां  ना करें

 जिसकी वज़ह से उनकी और उनके परिवार का भविष्य और 

जीवन दोनों दाव पर लग जाता हैं। "

हमें अपने बच्चो की  हिम्मत बनना हैं  कमजोरी नहीं ,सिर्फ उनकाअभिभावक ही नहीं उनका दोस्त भी बनना हैं ताकि हम उन्हें  भटकाव से बचा सके....

वर्तमान प्रेमदिवस पर शास्त्री सर की लिखी चंद पंक्तियॉँ....

जैसे-जैसे आ रहा, प्रेमदिवस नज़दीक।
वैसे-वैसे हो रहा, मौसम भी रमणीक।।
जोड़ों पर चढ़ने लगा, प्रेमदिवस का रंग।
रीत पुरानी है वही, मगर नये हैं ढंग
।।
कर्कश सुर में गा रहे, भौंडे-भौंडे गीत।
नये साज के शोर में, बदल गया संगीत।।

आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-

  दोहे

 "प्रेमदिवस नजदीक" 

 (डॉ.रूप चन्द्र शास्त्री 'मयंक')

            ********          
नासमझी के कारण कम उम्र में भटकाव की एक मार्मिक दास्तान 

मेरे विषय को विस्तार देती अभिलाषा चौहान जी की एक लघु कथा 

अनजान

  My photo

देखिए !मुझे आपसे यही कहना है कि आप इसके साथ हर कदम पर खड़ी रहें।इसकी मनोदशा को समझें, कोशिश करें कि 
वह उस दर्द या तकलीफ को जल्दी भूल जाए और फिर से अपनी जिंदगी की शुरूआत कर सके।
यह उस दर्द से जितनी जल्दी अनजान हो जाए, वही इसके लिए बेहतर है।
********* 
   एक सवाल ??? 
     

क्या, हम बच्चो के साथ दोस्ताना व्यवहार रखकर और उन से इन सारी बातों पर खुल के 
चर्चा -परिचर्चा कर दोस्ती -आकर्षण और प्यार के बीच के 
फर्क को अच्छे से नहीं समझा सकते ?
*********
निश्छल ,निस्वार्थ और रूहानी प्रेम के  मर्म को दर्शाती
सखी रेणु की एक पुरानी रचना

   तुम्हे समर्पित सब गीत मेरे--

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अनुराग बन्ध में सिमटी मैं 
यूँ ही पल- पल जीना  चाहूं ,
सपन- वपन कर डगर पे साथी -
संग तुम्हारे चलना चाहूं ;
 *********
My photo
है स्पर्श का सुख भी क्षणभंगुर
पर मौन दुआएँ, अमर रहेंगी।
******
*************
   "गंगा"

मेरी फ़ोटो
"गंगा है अम्मा‎ , विदा लेने आई थी ।”  
-- कहाँ जा रही है ? बाहर निकलते  हुए उन्होंने पूछा।
-- वापस पहाड़ पर अम्मा‎ ! 
--क्यों ….?
--यहाँ उसका अस्तित्व खो रहा है अम्मा ।
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           नारी मनुष्य-योनि की वह सर्वश्रेष्ठ रचना है जो सृजन की समस्त कोमल भावनाओं का
 स्त्रोत है। उसके उर से प्रवाहित ममता की धारा और मानवीयता की 
मंजुल-लहरें उसकी कुक्षी को सिंचित करती हैं
 और उसमें अंकुरित होता सृजन का बीज-तत्व उसके समस्त भाव-संस्कारों का वहन करता हुआ 
मानव-संस्कृति और सभ्यता के तत्वों को उत्तरोत्तर संपुष्ट करता है
******

        आंसुओं का भी सम्मान करूँगी,
    व्यर्थ किसी के लिए बहाकर
   उसके होने की गरिमा को 
खत्म नहीं करूँगी ।
**********
और अब चलते चलते एक सुंदर बासंती गीत 

    पवन बसंत डोल रही


आज का सफर यही तक 
फिर मिलते हैं 
आप का दिन मंगलमय हो। 
कामिनी सिन्हा 

19 टिप्‍पणियां:



  1. जी कामिनी जी, आजकी भूमिका विचारणीय है,इस पाश्चात्य संस्कृति से युवाओं से भी अधिक प्रभावित किशोर हैं।
    परंतु मैं उन्हें उतना दोषी नहीं मानता , जितना की उनके अभिभावक ।
    जरा विचार करें, क्यों बसंत ऋतु में माँँ सरस्वती का आवाहन किया जाता है । बच्चों को परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त रखा जाता रहा है । इसलिए मुझे विश्वास है कि हमारे मनीषियों का ज्ञान, विज्ञान और मनोविज्ञान तीनों ही प्रबल रहा है।
    वैसे मदन उत्सव तो हमारी संस्कृति में भी है , परंतु पति-पत्नी के प्रेम प्रदर्शन का पर्व है।

    काम ' का साहचर्य तब तक उत्सव मनाने योग्य है , जब तक वह मर्यादा में रहता है , उसे भगवान की विभूति माना जाता है। लेकिन जब वह मर्यादा छोड़ देता है तो आत्मघाती बन जाता है , शिव का तीसरा नेत्र (विवेक) उसे भस्म कर देता है।

    अधिकांश रचनाएँ विषय आधारित है और जो नहीं है वह भी श्रेष्ठ है।

    सभी को सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका कथन सही हैं शशि जी ,सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ,सादर नमन

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर भूमिका के साथ सुघड़ और व्यवस्थित प्रस्तुति । सभी लिंक्स विभिन्न पुष्पों से सजे पुष्पगुच्छ जैसे..आभार प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए । सादर..,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बस सीखने की कोशिश कर रही हूँ ,सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार मीना जी ,सादर नमन

      हटाएं
  3. बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा
    आापका आभार कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया गगन जी ,सादर नमन

      हटाएं
  5. विस्तृत भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुतीकरण. बेहतरीन रचनाएँ. सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया कामिनी दीदी. बहुत विस्तार से लिखी है आपने सामयिक विषय पर विचारणीय भूमिका.
    सभी रचनाकारों को बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रिय कामिनी, चर्चामंच पर अपनी कविता के चयन से हर्षमिश्रित आश्चर्य हुआ। आपकी प्रस्तुति बहुत सधी हुई एवं विषयानुरूप है। सभी चयनित रचनाएँ बहुत सुंदर हैं। मैं हृदयपूर्वक आपका एवं चर्चामंच का आभार व्यक्त करती हूँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद मीना जी ,आपकी रचनाएँ बेहद हृदयस्पर्शी होती हैं ,मेरा मनोबल बढ़ने हेतु सादर आभार आपका

      हटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रिय कामिनी , एक बार फिर सुंदर सार्थक भूमिका के साथ तुमने विषय के विस्तार में अपना शब्दकौशल दिखाया है |भूमिका में तुम्हारे विचार और आदरणीय मयंक सर जी की ये पंक्तियाँ एक दुसरे की पूरक हैं ---
    जैसे-जैसे आ रहा, प्रेमदिवस नज़दीक।
    वैसे-वैसे हो रहा, मौसम भी रमणीक।।
    जोड़ों पर चढ़ने लगा, प्रेमदिवस का रंग।
    रीत पुरानी है वही, मगर नये हैं ढंग।।
    कर्कश सुर में गा रहे, भौंडे-भौंडे गीत।
    नये साज के शोर में, बदल गया संगीत।
    सच में प्रेम के रूप में कई तरह तमाशे देखकर बहुत आश्चर्य होता ही |प्रेम के रूहानी पक्ष के अलावा सभी कुछ है इस नए प्रेम में |आज माँ बाप के दायित्व बहुत बढ़ गये है | बच्चों के अपरिपक्व प्रेम से अक्सर आज के अभिभावक नित नयी समस्याओं का सामना कर रहे हैं जिनमें ज्यादातर परिवार का सम्मान और बच्चों का जीवन दाव पर लग जाते हैं |आज के अंक में अपनी पुरानी रचना को देखकर बहुत अच्छा लगा | चर्चा मंच और तुम्हें बहुत बहुत आभार | हर रचना विशेष है सभी रचनाकारों को मेरी शुभकामनाएं | प्रिय मीना बहन की अत्यंत सुंदर और भावों से भरी रचना की ये पंक्तियाँ मन को स्पर्श कर निकल गयी --
    ये भाव निरामय, निर्मल-से
    कोमलता में हैं मलमल-से
    मन के दूषण भी हर लेंगे
    ये पावन हैं गंगाजल-से !
    मत रिक्त कभी करना इनको
    ये मंगल कलश भरे रखना !
    ये मंगल कलश भरे रखना !!!
    ना तुम होगे, ना मैं हूँगी,
    उत्सव की प्रथाएँ अमर रहेंगी ।

    यही है निर्मल प्रेम की सही परिभाषा , जहाँ सिर्फ दुआएं हैं और कुछ नहीं -----
    सुंदर सार्थक प्रस्तुति के लिए तुम्हें बहुत बहुत शुभकामनाएं|

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    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद सखी , मेरे विषय को विस्तार देती तुम्हारी इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,स्नेह

      हटाएं
  10. सुंदर अंक, बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।

    जवाब देंहटाएं

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