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रविवार, फ़रवरी 09, 2020

'हिन्दी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या" ( चर्चा अंक-3606 )

स्नेहाभिवादन 🙏🙏
बसन्तोत्सव.. ऋतुराज का स्वागत ..शीत ऋतु को अलविदा ..।
 मधुमास में प्रकृति के साथ प्राणी 
जगत भी खिल उठता है ।  खेत-खलिहानों में अन्न 
का भंडारण किसानों की आँखों में सतरंगी आभा भर देता है । होली के रंग व गुलाल के संग सुखद आगत के स्वप्न के साथ मानव मन मयूर सा नृत्य करता है । इन्हीं दिनों में शिक्षार्थियों के इम्तिहान उनके पूरे वर्ष का लेखा-जोखा लेने उनकी शाला के द्वार पर आ खड़े होते हैं । 
हम सभी इस दौर से गुजरे हैं ...देश की विभिन्न प्रान्तों के शिक्षा विभागों द्वारा इन्हीं दिनों अधिकांश विद्यालयों में वार्षिक परीक्षा  का आयोजन होता है जिसके लिए असंख्य नौनिहाल सुखद भविष्य के लिए ज्ञान- साधना करते हुए अपने आप को परीक्षा की कसौटी के लिए तैयार करते हैं । राष्ट्र के भावी कर्णधारों के उज्जवल भविष्य की शुभेच्छाओं के साथ  पेश है आज की प्रस्तुति-

जीवन में अँधियारा, लेकिन सपनों में उजियाला है।
आभासी दुनिया में होता, मन कितना मतवाला है।।
--
चहक-महक होती बसन्त सी, नहीं दिखाई देती है,
आहट नहीं मगर फिर भी, पदचाप सुनाई देती है,

सोलह बसंत बीते,
 बाँधे चंचलता का साथ,   
आज सुनी ख़ुशियों की, 
प्रफुल्लित पदचाप,  
घर-आँगन में बिखरी यादें,  
महकाती बसंत बयार, 
 छौना मेरा यौवन की, 
दहलीज़ छूने को तैयार ।

हाल बेहाल था ,
बेबसी का क़दम - ताल था ,
तर हुआ आँसुओं - डूब रुमाल था ,

आप उद्घोष करते रहे ,
किन्तु वे 
पंख आकर कतरते रहे !

ललाट भी विशाल है,गले भुजंग नाग है।
तरंग शीश गंग की,त्रिनेत्र लाल आग है।।

किरीट चंद्र शोभता,शुभा सती समीप है।
गणेश भी बसे वहाँ,जले जहाँ प्रदीप है।।

देखकर उसकी  जिजीविषा
मन आतुर हो उठा भरने को उसे आगोश में
पर हर बार दब जाता था रुदन उसका
लहरों के संग तीव्र शोर में

"आज़ादी के सत्तर बरस गुज़र गये परन्तु यह गाँव आज भी किसी उजाले की प्रतीक्षा में है।" 
"ना जाने वो रात कब आयेगी, जब हर मड़ई और मिट्टी के कच्चे घरों में आशा का वह टिमटिमाटा पीला लाटू  नाचेगा!" 

हसीन ख्वाबों के बिस्तर से उठा गया कोई 
हवा के नर्म झोंकों सा दीवाना बना गया कोई!

 लबों पर मुस्कराहट सलीके से सजा गया कोई 
 सुनहरी  किरणों से अंचल मेरा भर गया कोई!

एक मैं हूँ,
जो कभी गाता हूँ,
तो दरवाज़े-खिड़कियाँ 
बंद कर लेता हूँ,
एक वह चिड़िया है,
जो कहीं से 
उड़ती हुई आती है,
मेरी खिड़की के पास 
मुक्त कंठ से गाती है.

" साहित्य जनता की चित्तवृत्तियों का द्योतक होता है"यह कथन आ.रामचंद्र शुक्ल का है। साहित्य में हित का भाव भी निहित है"हितेन सह सहितम् तस्य भाव साहित्यम्"अर्थात जिसमें हित का भाव निहित हो ,वह साहित्य है ,तो जो भी लिख रहा है,उसके लेखन का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य है।इस उद्देश्य की पूर्ति में भाषा का अहित कदापि नहीं होना चाहिए।भाषा मनुष्य के परस्पर भाव-विनिमय का साधन है।इसका अपना इतिहास है।

व्यक्त‍ि साधारण हो या संत, उसमें ये एक आम सी प्रवृत्त‍ि होती है क‍ि जो वह स्वयं है, वैसा द‍िखना नहीं चाहता और जो वह नहीं है उसी का प्रचार व प्रसार करने में पूरे का पूरा जीवन खपा देता है। और इसी व‍िरोधाभास में वह अपना जीवन तो जी ही नहीं पाता, कुछ अनुच‍ित करने से भी बाज नहीं आता।
कबीर दास ने इसी प्रवृत्ति पर कहा था-
नद‍िया व‍िच मीन प्यासी रे, मोह‍ि सुन सुन आवत हांसी रे।

पता नहीं कैसे यह बात चली और एक बहस शुरू हो गयी, पारले बिस्कुट के रैपर पर छपी बच्ची की पहचान को ले कर ! अधिकतर गूगल ज्ञानियों का दावा था कि यह फोटो सुधा कृष्णमूर्ति जी के पिताजी द्वारा खींची गयी, बचपन की फोटो है, जब वह चार साल की थीं !  कई इसे नीरू देशपांडे की तथा कुछ गुंजन गंडानिया की बता रहे थे। अक्सर कई चीजों को ले कर क्षण भर के लिए ऐसी जिज्ञासाएं उठती रहती हैं और कुछ देर बाद ही वह भूला भी दी जाती हैं ! पर इस बार सोचा कि गहरे पानी पैठ ही लिया जाए।

★★★★★
 आपका दिन मंगलमय हो…
फिर मिलेंगे🙏
मीना भारद्वाज

17 टिप्‍पणियां:

  1. मीना दी, आपको पुनः चर्चाकार के रूप में देखकर प्रसन्नता हो रही है।
    सराहनीय भूमिका एवं श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप पूर्व की तरह ही यहाँ भी उपस्थित हैं।
    एक बात तो यह है ही कि मंच के सभी चर्चाकार एक दूसरे के सहयोगी की भूमिका में खड़े हैं और मंच को नई ऊर्जा देने केलिए साथी हाथ बढ़ाना का अलख जगाय हुए हैं ।वे अपना उत्तरदायित्व बखूबी समझ रहे हैं।
    और सत्य तो यही है कि यह हमारा उत्तरदायित्व ही सबसे बड़ा सुधारक होता है। हम जब भी राह भटकते हैं, तब यह जिम्मेदारी ही हमारा पथ- प्रदर्शन करती है।
    मंच पर इसकी झलक दिखने लगी है। मंच रचनाकारों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है । इस आपसी एकजुटता को देख मुझे भी हर्ष होता है। इस विशाल परिवार के साथ जुड़ने का और मंच पर अपने विचार रखने का अवसर मिलता है। साथ ही मैं जो कुछ लिखता हूँ, आप सभी की कृपा से मंच पर उसे स्थान मिल जाता है, यह भी मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है।

    【 पंखुड़ी पर लिखी मेरी रचना इसी मंच के कारण सार्थक हुई है, अन्यथा मेरे बकवास को कौन पसंद करता है ? 】

    आपने जैसा की भूमिका में ही ऋतुराज बसंत की महानता का वर्णन कर दिया है।
    तो यही उल्लास यहाँ चर्चा मंच पर भी है, मानों यह उसका बसंतकाल है।
    सभी चर्चाकार इस मंच के प्रति अपनी निष्ठा, अपनी प्रतिभा और सहयोग की परीक्षा देने में व्यस्त दिख रहे हैं।
    मंच को जिन सुंदर रचनाओं से अपने सजाया है, वे सराहनीय है। इसी के साथ सभी को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. सनातन सँस्कृति का उद्घोष है 'निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहिं कपट छल छिद्र न भावा'...।

    परंतु जब उसमें पाखंड एवं आडम्बर की बहुलता से भारतीय समाज में आपसी वैमनस्यता का भाव भी प्रबल हो गया , तो सन्त कवियों ने इसके विरुद्ध एक वैचारिक आंदोलन शुरू किया । इन्हीं सन्त कवियों में कबीरदास के गुरुभाई रैदासजी भी शामिल थे ।

    उन्होंने -" मन चंगा तो कठौती में गंगा "
    का उद्घोष कर आंतरिक शुचिता की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट किया।

    कटौती के माध्यम से उन्होंनेअंतर्जगत की यात्रा का सन्देश दिया।
    आज ऐसे संत शिरोमणि की जयंती है। हमारे काशी में गुरु महाराज का भव्य उपासना स्थल है, परंतु विडंबना यह है कि ऐसे महापुरुषों को भी हम राजनीति से जोड़ देते हैं ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शशि भाई आपकी ज्ञानवर्धक समीक्षात्मक प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धक होने के साथ मार्गदर्शक होती है । सादर
      आभार 🙏🙏

      हटाएं
  3. बहुत सुन्दर और व्यवस्थित चर्चा।
    आपका आभार मीना भारद्वाज जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी मनमोहक भूमिका ने तो मन मोह लिया...👌
    कितनी खूबसूरती से बसंत का स्वागत..खेत खलिहान.. इम्तिहान ..होली ग़ुलाल सब कुछ समेट दिया आपने..सार्थक भूमिका के साथ साथ सुंदर लिंक्स का चयन
    "कुछ अलग सा में पारले जी गर्ल की वास्तविक से परिचित हुई जो वाकई में मजेदार रहा..
    मेरी रचना को भी मान देने के लिए आभार आपका..💐
    शशि जी की तरह ही में भी एक बात कहना चाहूँगी..
    चर्चामंच की सबसे बड़ी ताकत है मिलजुलकर कर काम करने की भावना..team sprit
    अच्छा लगता है जब किशी कारणवश प्रस्तुति बनाये जाने में असमर्थ होते है तो ..कोई न कोई साथी योगदान के लिए आगे आ जाता है..आँचल का परिवार मे जुड़ना भी सुखद रहा..!
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको भूमिका के साथ प्रस्तुति अच्छी लगी... बेहद सुखद अनुभूति है मेरे लिए अनु जी ।

      हटाएं
  5. चर्चा में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीया मीना जी ,सादर नमस्कार
    आपकी बेहतरीन भूमिका ने दिल जीत लिया ,ये महीना वाकई परिवर्तन का महीना होता हैं ,
    मौसम में परिवर्तन ,सेहत में परिवर्तन ,विद्यार्थी जीवन में परिवर्तन।
    चर्चामंच पर भी ये परिवर्तन ,एक सुखद एहसास करा रहा हैं ,आप के साथ साथ
    प्रिये आँचल की उपस्थिति इस मंच पर और ज्यादा रौनक ला रही हैं।
    इस मंच की उम्र में सबसे छोटी पर अनुभव में बहुत बड़ी सदस्य आँचल को हार्दिक बधाई एवं स्नेह
    और आज की बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएं मीना जी

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    उत्तर
    1. आपका स्नेह सदा मेरे लिए सुखद और अभिभूत करने वाला होता है कामिनी जी । हृदय से आभार ।

      हटाएं
    2. हार्दिक आभार आदरणीया मैम। आपका आशीष बना रहे 🙏
      सादर प्रणाम।

      हटाएं
  7. मेरी रचना को शामिल करने के लिए ह्रदय तल से धन्य वाद!

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  8. आदरणीया मैम सादर प्रणाम 🙏
    बसंती छटा के संग आपकी सुंदर प्रस्तुति और सभी चयनित रचनाओं से सजा आज का ये अंक लाजवाब रहा। परिवर्तन तो समय का नियम है जो प्रकृति हो या जीवन सब पर लागू है। इधर बसंत का आगमन जहाँ सुखद अनुभव देता है तो वही परीक्षा के चलते बच्चों से लेकर बड़ों तक का खाने-पीने,सोने-जागने का नियम बदल जाता है। होना भी चाहिये आखिर बच्चों के साथ साथ देश के उज्ज्वल भविष्य का सवाल है। जैसे ये आगे बढ़ेंगे वैसे देश बढ़ेगा। किंतु अभिभावकों को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे जाने अंजाने अपनी अपेक्षाओं का बोझ बच्चों पर ना डाल दे। वैसे ही परीक्षा को लेकर बच्चों की चिंता कम नही होती। उचित तो यह रहेगा कि अभिभावक बच्चों की सहायता करें,उनका तनाव दूर करें,उन्हें निराश ना होने दे और उन्हें विश्वास दिलाए कि सब उत्तम होगा और जो भी होगा उसमें आप उनके साथ हैं। बस उन्हें मेहनत और लगन से पढ़ना है और कर्म करना है। ये बहुत आवश्यक है क्योंकि आजकल बच्चे एक दो नम्बर को लेकर भी इतना परेशान हो जाते हैं कि फिर बात उनके स्वास्थ पर और कभी कभी जान पर बन आती है। वैसे हमारे घर में भी परीक्षा के चलते मौसम बदला है। भाई बहनों की परीक्षाएँ भी आने वाली हैं ना। तो सभी बच्चों को ढेर सारी शुभकामनाएँ।
    और जाते जाते एक बात और...आज के पार्ले जी मेरे लिए आकर्षण का विषय रहा। मुझे बड़ा प्रिय रहा है बचपन से अभी तक। भोजन मिले ना मिले ये सदा मिलना चाहिए 😀
    पार्ले जी ' जी माने जीनियस '😀...मुँह में पानी आ गया। तो हम जाते हैं पार्ले जी खाने....सादर प्रणाम 🙏

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  9. सारगर्भित भूमिका के साथ सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया मीना दीदी. मेरी रचना को मान देने के लिये तहे दिल से आभार.
    सादर स्नेह

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  10. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान दिया, उसके लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी 🌹

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  11. बहुत सुंदर प्रस्तुति. सामयिक भूमिका सटीक चिंतन. बेहतरीन रचनाओं से सुसज्जित पठनीय अंक. सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    आदरणीया मीना जी को सुंदर प्रस्तुतीकरण के लिये बधाई.

    जवाब देंहटाएं

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