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सोमवार, फ़रवरी 10, 2020

'खंडहर में उग आयी है काई' (चर्चा अंक 3607)

सादर अभिवादन। 
खंडहर में उग आयी है हरी काई 
कोने-कोने में फैले मकड़ी के जाले,
गिरगिट,दादुर,चमगादड़ आ बसे हैं
भित्ति से लिपटीं लताएँ ढूँढ़तीं उजाले। 
-रवीन्द्र सिंह यादव 

शब्द-सृजन-8 का विषय है-
'पराग'
इस विषय पर आप अपनी आगामी शुक्रवार (सायं 5 बजे तक) संपर्क फॉर्म के ज़रिये भेज सकते हैं जिसे हमारे शनिवारीय अंक में प्रकाशित किया जायेगा। 

आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ- 

दोहे

 "साफ करो परिवेश"

 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

*****

बंजारा मन 

 

जाने कहाँ से तुम
मिट्टी के कुल्हड़ में गुड़ अदरक की
गरमागरम चाय ले आये थे
और हम दोनों ने
दूर समंदर की लहरों की बेताब
आवाजाही को देखते देखते
घूँट घूँट एक ही कुल्हड़ से देर तक
उस चाय को पिया था ! 
*****
ज्ञान का दीपक सदा जल रहा 
My photo

 ऋषि-मुनियों की अंतर्दृष्टि से उपजे सृष्टि के अनोखे रहस्यों को उजागर करते महान ग्रन्थ आज भी यहाँ मौजूद हैं. भले ही आक्रांताओं द्वारा पुस्तकालयों को नष्ट कर दिया गया हो, ज्ञान की वह मशाल जो एक बार किसी ज्ञानी के अंतर में जल जाती है, दुनिया के किसी जल से बुझाई नहीं जा सकती. 

*****

पदचाप

 
सृष्टि के कण-कण की चित्रकारी,
धरा-प्रकृति , ब्रह्म जीव की छाप।
हे कवि!तुम प्रतीक हो उजास की,
लिखो निराशा में आशा की पदचाप।
*****

गुम हो जाता है
 तुम्हें देखते ही हर गम
गुम हो जाता है
मिलते ही 'मैं से तुम'
हम हो जाता है

My Photo

 क्यों उदास रहते हो सर्दियों की शामों में
जाने वाला दूर, बहुत दूर चला गया होगा ....

 My photo

हैं अखंड ये देश हमारा
खंडित कभी न होगा
इसे तोड़ने के सपने को
पूरा कभी न कर पाओगे
अपने गुरूर के मद्ध में
अपनी ही बलि चढ़ा जाओगे। 

*****

प्रिय लेखक के अवसान का दुःख ! 

मेरी फ़ोटो 

ऐसे-ऐसे संस्मरण पढ़कर साधक जी घबराने लगे।नवोदित कवि को तो वे निपटा चुके थे पर ये तो उनकी ही तरह प्रतिभा सेलैसथे।उन्होंने अतिरिक्त दुःख से आख़िरी वार किया,‘अपने प्रिय लेखक की याद में हम हर वर्षलेखक उठाओ सम्मानदेंगे।इसके लिए हमारे साहित्यिक-गिरोह के दस सदस्य त्याग करने के लिए तैयार हैं।

साँझ ढले माँ के चौके 
अब धुंआ नहीं होता ,
गागर में सागर क्या 
पनघट कुआँ नहीं होता 
कोई बच्चा अब न 
तितलियों को दौड़ाता है |

*****

खोता बचपन 

आबोहवा अब शुद्ध नहीं

सड़कों पर भीड़ बड़ी

मैदान  खेल के लुप्त हुए
बस्ते का बोझ बढ़ता गया
कैद हो गये चारदीवारी में
न दोस्तों का संग  मिला
बच्चों का ....
बचपन खोता जाता है
बच्चा समय से पहले  ही
बड़ा होता जाता है।

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर, सार्थक , प्रेरणादायी भूमिका एवं प्रस्तुति है आज की , विपरीत परिस्थितियों में भी उजाले के लिए संघर्ष ..यही तो आशावाद है।
    परिस्थितिजन्य कारणों से हृदय में उत्पन्न अंधकार को नष्ट करनेके लिए हमें आशावाद रुपी सूर्य को विकसित करना ही होगा।

    अब देखे न जाति और मजहब की राजनीति , जुमले की सियासत के मध्य कर्म की पूजा दिल्ली की जनता इस चुनाव में करती दिखी..
    क्यों कि उसे ऐसी राजनीति के दूषित एवं अंधकारमय वातावरण में प्रकाश के लिए संघर्ष करता कोई राजनेता नजर आया ..

    अतः हमें सिर्फ स्याह पक्ष ही नहीं, उजाले पक्ष को भी देखना चाहिए ।

    और हाँ, यदि हम कर्मपथ पर हैं , तो इसकी पदचाप स्वतः ही सुनाई पड़ने लगती है,जिसे कर्मफल कहा जाता है।
    इसलिए दिल्ली का चुनाव कई मायने में अहम है।
    एक और कर्म का पुजारी जनता का सेवक और दूसरी और अभिनेता..
    फर्क करना हमें आना चाहिए..।

    सभी को सादर नमन।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर चर्चा अंक।
    आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  3. विविधता पूर्ण रचनाओं से सजा चर्चा मंच ! आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर प्रस्तुति सर ,सभी रचनाकारों को ढेरों शुभकामनाएं ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर और विविधता पूर्ण प्रस्तुति । सभी रचनाकारों को सुन्दर सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर सार्थक सूत्रों का संकलन आज का चर्चा मंच ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  7. भूमिका की चार सारगर्भित पंक्तियों के साथ सराहनीय सूत्रों से सजी आपकी प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी रवींद्र जी।
    सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना सम्मिलित करने का बहुत आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  8. सराहना से परे भूमिका में सजा मुक्तक आदरणीय सर.
    बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति बेहतरीन रचनाएँ. सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    सुंदर लिंकों से सजा आज का अंक और आपकी प्रस्तुति दोनों ही लाजवाब हैं।
    भूमिका में आपने बेहद उम्दा पंक्तियों के संग एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। जब अंधेरा अपने चरम पर होता है उसके बाद ही नया सवेरा आता है इसलिए हमे अँधेरे से हारकर,निराशा में डूबना नही चाहिये। जब नन्हे जुगनू इस अँधेरे के आगे नही झुकते तो हम क्यों झुक जाए?
    बहुत सुंदर,शानदार।
    सभी को सादर नमन। शुभ रात्रि।

    जवाब देंहटाएं

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