फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, फ़रवरी 12, 2020

"भारत में जनतन्त्र" (चर्चा अंक -3609)

मित्रों!
दिल्ली में लोकतन्त्र का महापर्व सम्पन्न हुआ।
परिणाम भी आ गये, जनता ने अपनी पसन्द का आभास करा दिया।
यही तो लोकतन्त्र की विशेषता है। सारी दुनिया में भारत सबसे न्यारा है।
जहाँ बिना किसी रक्तपात के जनता की पसन्द से सत्ता का हस्तान्तरण हो जाता है।
--
चर्चा मंच पर प्रत्येक शनिवार को  
विषय विशेष पर आधारित चर्चा  
"शब्द-सृजन" के अन्तर्गत  
श्रीमती अनीता सैनी द्वारा प्रस्तुत की जायेगी।  
आगामी शब्द-सृजन-8 का विषय होगा - 
'पराग'
इस विषय पर अपनी रचना का लिंक सोमवार से शुक्रवार 
(शाम 5 बजे तक ) चर्चामंच की प्रस्तुति के 
कॉमेंट बॉक्स में भी प्रकाशित कर सकते हैं। 
-- 
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।  
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')  
--
--
--
...आओ!
राष्ट्रवाद का नगाड़ा बजाएं, 
शून्य से मुद्दों को पैदाकर अखाड़ा बनाएं।  
आओ!
नई पीढ़ी का भविष्य सँवारें,  
कैसे ???????????????????????
परिष्कृत ज्ञान और दक्षता के लिए 
कब तक विदेश के पाँव पखारें ??? 
आओ!
राष्ट्रीय-चरित्र पर मंथन करें, 
कल के लिए आत्मावलोकन करें।   
--
#रवीन्द्र सिंह यादव  
Ravindra Singh Yadav,  
--
स्थायी नहीं 
दुःख का पतझड़ 
जब पड़ेंगी
आशाओं की फुहारें
खिलेगी जिन्दगी... 
--
जब पेड़ों पे पल्लव आए
और भौरों ने सोहर गाए
तब प्रकृति ने उत्सव मनाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

देखो ऋतुराज बसंत है आया
उत्सव उमंग के रंग है लाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया... 
-- 
ये जो कैद है ,
तुम्हारे ख्यालो की,
तुम्हारे अनगिनत स्पर्शो  की...!
मेरे अधरो पर अंकित
तुम्हारे प्रणय निवेदन की
चाहुं भी ,
कहकशो से तुम्हारी,
रुह को मेरी,
आजाद नहीं कर सकती।
बांधी है गांठ
तेरी यादों की मेरे ख्यालों की डोर से। 
Anita Laguri "Anu",  
--

हमारी पीढ़ी की समस्या ये है कि न हम बच्चो को मॉर्डन कल्चर में ढलने से रोक सकते है और न अपने बड़ो को समझा सकते है. हम खुद भी इस कल्चर का हिस्सा होते हुए भी अपने पुराने संस्कार को नहीं छोड़ पाते है. सच तो ये है कि हम दो पाटन के बीच पीस रहे है. अब ऐसी स्थिति में हमारी जिम्मेदारी ये है कि- हम अपने बड़ो के संस्कार और आदर्शो को भी न छोड़े और अपने बच्चो के साथ भी हमकदम भी रहे.... 

मेरी फ़ोटो
--
--
--
--
रुग्ध मन 
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा,  
--
--
--
--
--
गीत  "सरसों पर पीताम्बर छाया"  
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक',  
--
आज के लिए शुभविदा! 
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर
    आज के चर्चा मंच पर मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी पोस्ट में ब्लॉग का यूआरएल लिंक चेंज हो गया है आप थोड़ा सा करेक्शन कर दीजिएगा
    यह पोस्ट मैंने एक्टिव लाइफ पर कि हैं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय शास्त्री जी लिंक तो खुल रहा है पर मेरे दूसरे ब्लॉग का खुल रहा है जिस पर यह पोस्ट की गई है उसका लिंक नहीं है।
      यह पोस्ट करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद एक बार फिर से

      हटाएं
  3. समसामयिक और सटीक भूमिका , साथ में दोहा भी मानों सोने में सुहागा..

    लोकतंत्र का आनंद ही यही है जहांँ शक्तिशाली प्रतिनिधित्वकर्ता भी घुटने के बल जा बैठता है ।
    जिसने अच्छा कर्म किया उसे जनता उपहार के रूप में सत्ता सौंप देती है। जुमलेबाजी से सदैव जनता को गुमराह नहीं किया जा सकता।
    जो भी कुर्सी पर होता है , उसे लोगों की आर्थिक सुरक्षा एवं सुविधा का संरक्षण करना होता है।
    केजरीवाल साहब को उनके कर्म का उपहर मिलना सचमुच सुखद है।
    अभिनेता और नेता का कार्यक्षेत्र बिलकुल अलग-अलग है । भारतीय जनता पार्टी को अब यह बात समझ में आ जानी चाहिए।
    रवींद्र भैया जी की रचना भी सत्य का उद्घोष कर रही है । शेष लिंक्स भी अच्छे हैं। सभी को प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन चर्चा अंक सर ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर चर्चा.मेरी रचना शामिल की.आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. शानदार अंक आदरणीय सर। मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर प्रणाम 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय. मेरी रचना को स्थान देने के लिये सहृदय आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।