सादर अभिवादन।
स्वाभिमान को गिरवी रखता
मिलावट भौतिकता से हारता
मौक़ा मिलते ही हाथ मारता
ऊपर चढ़ने लोगों को रौंदता
इंसान देखो!-
रवीन्द्र सिंह यादव
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंदीदा रचनाएँ-
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स्वाभिमान को गिरवी रखता
मिलावट भौतिकता से हारता
मौक़ा मिलते ही हाथ मारता
ऊपर चढ़ने लोगों को रौंदता
इंसान देखो!-
रवीन्द्र सिंह यादव
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंदीदा रचनाएँ-
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शब्द-सृजन-10 का विषय है-
'नागफनी '
आप इस विषय पर अपनी रचना आगामी शुक्रवार (सायं 5 बजे तक ) तक चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क (Contact Form ) के ज़रिये भेज सकते हैं.
चयनित रचनाएँ आगामी शनिवारीय चर्चा अंक में प्रकाशित की जायेंगीं।
चयनित रचनाएँ आगामी शनिवारीय चर्चा अंक में प्रकाशित की जायेंगीं।
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पल पल हम हैं साथ तुम्हारे *
वरण हमारा कर लेना *परम लक्ष्य संधान करो जब,*
याद हमें भी कर लेना*
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हुआ रूप-दर्शन
जब कृतविद्य तुम मिले
विद्या को दृगों से,मिला लावण्य ज्यों मूर्ति को मोहकर,
-शेफालिका को शुभ हीरक-सुमन-हार,-श्रृंगार
शुचिदृष्टि मूक रस-सृष्टि को।
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इहलौकिक होने लगे, परिजाती मकरंद।
आखर पुखराजी हुए, रचते ग़ज़लें छंद।।
पद पाकर जो नम्र हैं, उन सा कौन महान।
लो अनुभव की खान से, मनु, कंचन सा ज्ञान।।
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बगल वाली सीट का
ये पहला कमाल था...
न चाहते हुए भी
रूह में उठा इक धमाल था।
और प्रेम रसायनों के उत्सर्जन से
समझ, सोच या विवेक जैसे
शब्दों का शुरु हो चुका था
जीवनसे पलायन।
***
भय, संत्रास और आनंद की न जाने
कितनी लंबी आग की नदी उन्होंने पार की होगी.
जिल्दसाज गुमनाम मर गए. किताबों के इतिहास में
जिल्दसाजों का कोई जिक्र नहीं मिलता है.
मैं भी इस निबन्ध में उनका जिक्र नहीं कर पाऊँगा.
मैं सैकड़ों लेखकों और कवियों का नाम
एक साँस में गिना सकता हूँ
लेकिन किसी जिल्दसाज का नाम नहीं याद है?
क्या आप अपने शहर के किसी जिल्दसाज का नाम जानते हैं?
*****
अतलस्पर्शी गहन मौन का
एक महासागर फैला है
तुमसे मुझ तक,मुझसे तुम तक !
दो वीराने द्वीपों-से हम,
अपनी - अपनी सीमाओं में
सिमटे, ठहरे, बद्ध पड़े हैं !
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उनकी आँखों से पैगाम
मिला है
मेरी निगाहों को श्रंगार मिला
है
कहीं धुल न जाए काजल
प्रिया का अक्स उसमें छिपा है |
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....मेरी नेक सलाह है कि ब्लागिंग का जीर्णोद्धार करने को एक “रायता फ़ैलाऊ समिति” बनाई जाये और उसे यह काम सौंप दिया जाये. यदि कोई अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं हो तो ताऊ यह कुर्बानी दे सकता है बशर्ते कोषाध्य्क्ष का पद भी ताऊ को दे दिया जाये.
ताऊ की रायता फ़ैलाऊ क्षमता देखनी हो तो शाहीन बाग का रायता देखिये जिसमें बूंदी, मिक्स फ़्रूट और आलू सहित तमाम तरह के रायते बिखेरे गये हैं और जो आज तक नहीं सिमटा है और अब ताऊ अहमदाबाद में ट्रंप के आगमन के लिये रायता फ़ैलाने के ईवंट में जुटा है.
ध्यान रहे कि रायता फ़ैलाना इतना आसान नहीं है. हर काम के हिसाब से अलग अलग प्रकार का दही और वस्तुएं काम में ली जाती है. आप तो बस बूंदी, आलू और फ़्रूट रायता ही जानते हॊंगे. पर मर्ज के अनुसार लौकी, कद्दू, करेला, बथुआ, गोभी, वेज, नानवेज इत्यादि कई प्रकार के रायते काम में लिये जाते हैं. और ताऊ ने रायता फ़ैलाने में पी.एच.डी. की हुई है.
सभी ब्लागर्स से निवेदन है कि "रायता फ़ैलाऊ समिति" के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष पद के लिये ताऊ को ही वोट करें.
***
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी सोमवार।
--
रवीन्द्र सिंह यादव
यह प्रगतिशील युग है। जिसमें उत्पन्न बुद्धिजीवी अपने ही बुजुर्गों के ज्ञान एवं हितोपदेश का खंडन कर अपना महिमामंडन कर रहे हैं। यही उनका झूठा स्वाभिमान है।
जवाब देंहटाएंसदैव की तरह कुछ हटकर भूमिका एवं प्रस्तुति सादर नमन
बहुत सुन्दर आदरणीय शशि भाई
हटाएंसादर
बहुत सुंदर चर्चा। सभी रचनाएँ बढिया हैं। आप सभी का मेरे ब्लॉग पर स्वागत है।
जवाब देंहटाएंiwillrocknow.com
बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
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सुप्रभात सभी पाठकों को।
ब्लॉग जगत के जीर्णोद्धार हेतु, ताऊ जी की पोस्ट अत्यंत ही सराहनीय व प्रशंसनीय है।
जवाब देंहटाएंवैस, व्याकुल पथिक जी ( अर्थात् शशि जी ) से आज एक अन्य पटल पर कुछ ऐसी चर्चा हुई जिसका पुन उद्धरण करना श्रेयस्कर है।
बिल्कुल, हम सब मिलकर ब्लॉग जगत में एक नई जान अवश्य ही फूंक सकते हैं ।
कदाचित, ब्लॉग लेखकों को फेसबुक या अन्य माध्यमों का सहारा लेना पड़ता है और पाठकगण मी वहीँ अपनी टिपण्णी अंकित कर अपनी जवाबदेहियों से मुक्त हो जाते हैं ।
फलतः, ब्लॉग व ब्लॉगर की रचनाओं को उचित स्थान नही मिल पाता है। कभी-कभी ब्लॉग के कवियों को स्तरहीन तक कहा जाता है। ब्लॉग की समृद्धि हेतु एक सघन सामुहिक प्रयास की आवश्यकता है।
वैसे आदरणीय मयंक जी, आदरणीया अनीता सैनी जी, आदरणीय रवीन्द्र यादव जी, आदरणीया यशोदा जी आदि बहुत से गुणीजन इस कार्य को तल्लीणता से अंजाम दे रहे हैं । आशा है, यह कारवां चलता ही रहेगा और अपनी मंजिल अवश्य पाएगा।
हम तो सिपाही हैं, कारवां जहां होगा हम भी वहीँ होंगे....
शेष ईश्वर की इच्छा।
बहुत बहुत आभार आदरणीय सर
हटाएंसादर
उचित कहा भैया आपने।
हटाएंआभार पथिक जी व अनीता जी।
हटाएंमैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ पुरुषोत्तम सिन्हा जी।
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स|मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
बेहतरीन प्रस्तुति सर ,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ,
जवाब देंहटाएंआदरणीय पुरुषोत्तम जी का कथन विचारणीय हैं ,मैं भी इससे पूरी तरह सहमत हूँ ,बाकी आप गुणीजन जो उचित समझे, सादर नमन
शुक्रिया आदरणीया
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.
सादर
आज पटल की जीवन्तता तथा ब्लॉगर की चिन्ता देखने व समझने लायक रही। मुझे इसमें एक उज्जवल भविष्य का बीज छुपा दिख रहा है। समस्त जनों को शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा अंक। मेरी रचना को शामिल करने हेतु अनिताजी का विशेष आभार।
जवाब देंहटाएं