फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, फ़रवरी 05, 2020

"आया ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक - 3602)

चर्चा मंच पर प्रत्येक शनिवार को  
विषय विशेष पर आधारित चर्चा  
"शब्द-सृजन" के अन्तर्गत  
श्रीमती अनीता सैनी द्वारा प्रस्तुत की जायेगी।  
आगामी 
शब्द-सृजन-7 का विषय होगा - 
'पाँखुरी'/ 'पंखुड़ी'
इस विषय पर अपनी रचना का लिंक सोमवार से शुक्रवार 
(शाम 5 बजे तक ) चर्चामंच की प्रस्तुति के 
कॉमेंट बॉक्स में भी प्रकाशित कर सकते हैं। 
-- 
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।  
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक।  
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')  
--

कल चर्चा मंच की चर्चाकार 

चर्चाकार (शुक्रवार) 

चर्चाकार (शुक्रवार)
अनीता लागुरी "अनु" का भी जन्मदिन था 
किन्तु जानकारी न होने के कारण 
शुभकामनाएँ भी न दे पाये।
खैर देर आयद-दुरुस्त आयद।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
अनीता लागुरी "अनु"  के ब्लॉग 
"अनु की दुनिया" की 
कुछ पोस्टों का लिंक प्रस्तुत है- 
--
बिट्टू

बिट्टू!!!
 का  री नादान गुड़ियाँ,
 चल पास आ  मेरे
तेरी धमा चौकड़ी थमती नहीं
तेरे बालों में आ तेल लगा दूँ
 कसकर एक जुड़ा बना दूँ
बींधते है जो नज़र तुझे
 उन ऩजरों  से बचाकर
 माथे में एक काला टीका लगा दूँ... 
--

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

कुछ अनचाहा हुआ था....

दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में
कुछ अनचाहा हुआ  था
चिथड़ों में बांधे उसे कोई छोड़
गया था..! 
उठा अंधेरे  का फ़ाएदा  
बना गुनाहों की गठ्ठरी 
क्योंकर कोई फेंक गया था... 
--

गुरुवार, 29 मार्च 2018

भ्रम के सिक्के 

आज फिर वो एक
भ्रम को पाले उठेगा
उठा के गमछा,कुदाल
पी के सत्तु का घोल
चल देगा सड़क की ओर
और‌ लगेगा ताकने,
उस ओर , जहां आते हैं
लोग मज़दूरों को चुनने... 
--
हाइकु 21.
जेठ मध्याह्न~
गन्ना गट्ठर लादे
पीठ पे नारी। 

22.
मिट्टी की गंध ~
हल्की बरसात में 
छलका आँसू। 

© अनीता सैनी 
--भूख का वह भीषण दौर 

भूख का चल रहा वह भीषण दौर भयावह था,
चीख़ती आवाज़ें अंतरमन की अकेलेपन के नुकीले दाँत, 
वसंत में फूटती मटमैली-सी मन की अभिलाषा, 

 मैं जीवन का सारा सब्र चबा चुकी थी... 
--
आ   गया   बसंत
अल्हड़  मन  पर  छा  गया  बसंत ,
प्रकृति  के  प्रवाह   में
होता    नहीं    कोमा   या   हलंत।

उत्सव   मनाओ  कुदरती  मेलों  में
जिओ    सजीव    बसंत ,
पोस्टर ,कलेंडर ,फिल्मांकन,अंतर्जाल  में
हम  ढूँढ़ते   हैं  आभासी   निर्जीव  बसंत।
@रवीन्द्र  सिंह यादव 

--
--
चुपके से तितली मैं बन जाऊँ
हौले से मन के पंख फैलाऊँपंख फैलाकर मस्त उड़ जाऊँचुपके चुपके चुपके चुपके
चुपके से तितली मैं बन जाऊँ
यूँही बहारों संग बह जाऊँरंगो से अपने सब मन छू जाऊँगमो को भुलाकर फ़िर से उड़ जाऊँचुपके चुपके चुपके चुपके
चुपके से तितली मैं बन जाऊँ... 

My photo

--
एक अधूरी कविता,सोचा कल पूरी करुंगी
अधूरी इसलिए कि भाव और विचार
आए और चले गए , कल ही की तरह
कल का क्या ? आज के बाद
रोज ही आता है और रोज ही जाता है
कल कभी आया नही और

कविता पूरी हुई नही...
मेरी फ़ोटो
--
प्यार क्या है ? " सदियों से ये सवाल सब के दिलो में उठता रहा है और सदियों तक उठता रहेगा। सबने इस सवाल का जबाब ढूढ़ने की पूरी कोशिश भी की हैं। " प्यार" शब्द अपने आप में इतना व्यापक  और विस्तृत  है कि इसकी व्याख्या  करना बड़े बड़ों  के लिए भी काफी मुश्किल रहा है तो मेरे  जैसे छोटे कलमकारों की क्या बिसात  जो इसके बारे में कुछ लिखे .लेकिन फिर भी मैं ये हिमाकत कर रही हूँ। अपने जीवन के अनुभव से जो कुछ भी मैंने जाना और समझा है वही आप सब से साझा कर रही हूँ। .और पढ़िए... 
मेरी फ़ोटो
--
बचपन के रिश्ते एक ही माँ बाप की पैदाइश  एक साथ खेले बड़े हुए  रोटियाँ बांटी ख़ुशियाँ और ग़म बांटा  लड़ाई झगड़े किये  पर हर बार साथ हो लिए  कभी किसी को अपने बीच न आने दिया ... 
Rewa Tibrewal, प्यार  
--
--
बड़े लोग ( दृश्य -1)

    देर रात तक चले देवी जागरण में सम्मिलित भद्रजन भजन कम सेठ धर्मदास के अतिथि सत्कार का कीर्तन अधिक करते दिख रहे थे ..। 

   एक दिन पहले हुये इकलौते बेटे की शादी में उसने दिल खोल कर धन लुटाया था.. मैरिज हॉल और होटलों की लाइटिंग से लेकर कैटरीन तक की व्यवस्था चकाचौंध करने वाली थी.. अतः  तारीफ तो बनती थी.. 

--
हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा... मौका है भारत से सात समंदर पार कनाडा में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के लिये आयोजित समारोह का. अब समारोह है तो मंच भी है. माईक भी लगा है.टीवी के लिये विडियो भी खींचा जा रहा है. मंच पर संचालक, अध्यक्ष, मुख्य अतिथि विराजमान है और साथ ही अन्य समारोहों की तरह दो अन्य प्रभावशाली व्यक्ति भी सुसज्जित हैं. माँ शारदा की तस्वीर मंच पर कोने में लगा दी गई है और सामने दीपक प्रज्ज्वलित होने की बाट जोह रहा है. कार्यक्रम पूर्वनियोजित समय से एक घंटा विलम्ब से प्रारंभ हो चुका है. संचालक महोदय सब आने वालों का जुबानी और मंचासीन लोगों का पुष्पाहार से स्वागत कर चुके हैं... 
--
--
उस दिन कुछ भी हो सकता था,  एक संस्मरण भयंकर और डरावना दृश्य था !आगे-आगे एक इंसान को घसीटते ले जाती गाडी और पीछे कुछ भी कर गुजरने पर उतारू, डंडे-लाठी उठाए चीखते-चिल्लाते-आक्रोषित लोगों का सागर ! लगातार बजते हार्न को सुन दरबान के साथ जैसे ही उन्होंने गेट से बाहर देखा, पलक झपकते ही उन्हें सारा माजरा समझ में आ गया ! उन्होंने तुरंत पूरा गेट खुलवाया और गाडी अंदर आते ही हतबुद्धि दरबान के साथ मिल उसे तुरंत बंद करवा दिया। गाडी को रोकते ही दुबे ने जोर से कहा, माँ जी लोग, जल्दी से कहीं भी जा कर छिप जाइये और इतना कह खुद भागता चला गया, क्योंकि वह जानता था कि यदि कहीं भीड़ के हाथ पड़ गया तो उसका क्या हश्र होगा .... 
गगन शर्मा,   कुछ अलग सा  
--
समझबूझ कर चलना होगा युद्ध के प्रति जहाँ मन में उन्माद जगाया जाता हो. हिंसा के प्रति आकर्षण को वीरता का प्रतीक मान लिया जाता हो, अहंकार का झूठा प्रदर्शन किया जाता हो. ये सभी एक दिशाहीन समाज की निशानियाँ हैं. जहाँ नेतृत्व खोखला है, कोई आदर्श भी सम्मुख नहीं है, अजीब सी रिवायतें और दकियानूसी विचारधारा को प्रश्रय दिया जाता हो, वह समाज दया का पात्र है. भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति और अनमोल साहित्य का अकूत भंडार होते हुए भी जब सत्य और अहिंसा को भुलाकर नफरत की आग को हवा दी जाती हो तो उसे विडंबना ही कहा जा सकता है. हजार दरिया भी मिलकर नफरत की आग को बुझा नहीं सकते, जब समझ का पानी सूख जाता है तो वहां कोई चमत्कार ही अमन की बारिश कर सकता है. जब मंशा सँवारने की होती है तो लोग व्यर्थ पड़े पत्थरों और ठीकरों से भी बगीचे बना लेते हैं लेकिन जहाँ इरादा ही अलगाव का हो तो अमृत भी विष बन जाता है. जब रिश्तों की बुनियाद ही खोखली होती है तो तथाकथित मित्रों को शत्रु बनते देर नहीं लगती. आज आवश्यकता है की आपसी सौहार्द को जगाने के लिए सार्थक संवाद हो, विश्वास कायम करने के लिए भावनाओं की जगह समझदारी को प्राथमिकता दी जाये.  
--
पी.सी.गोदियाल "परचेत", 'परचेत'  
--
संजय कौशिक विज्ञात,  
--
बहुधा, गिनता रहता हूँ, पल-पल,
बस यूँ, चुपचाप!
सूनी राहों पर, वो पदचाप!

लगता है, इस पल तुम आए हो,
यूँ बैठे हो, पास!
सुखद वही, इक एहसास, 
तेरा ही आभास,
और चुप-चुप,
सूनी राहों पर, वो पदचाप... 
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा,  
--
पदचाप 
हर आहट पर निगाहें टिकी रहतीं  दरवाजे पर टकटकी लगी रहती  हलकी सी भी पद चाप पर... 


Asha Lata Saxena, Akanksha  
--
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’, अंदाज़े ग़ाफ़िल  
--
--
अन्त में मेरे जन्मदिन पर 
अपने सभी सहयोगियों, इष्ट-मित्रों,
पाठकों और परिवारीजनों का 
हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ- 
सुख से बीते आज तकमेरे सभी बसन्त।
देने को शुभकामनाआते हैं श्रीमन्त।।
--
दिल से निकली भावनाहै सच्चा उपहार।
जन्मदिवस पर सभी काकरता हूँ आभार।।
-- 
--

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चर्चा और विविध विषयों पर रचना भी..
    मेरी लघुकथा " बड़े लोग" को मंच पर स्थान देने केलिए आपका आभार गुरु जी।

    आज फिर वो एक
    भ्रम को पाले उठेगा
    उठा के गमछा,कुदाल
    पी के सत्तु का घोल
    चल देगा सड़क की ओर..

    अनु जी की यह रचना प्रभावित करने वाली है।सुबह जब में दुर्गा मंदिर से गुजरता हूं तो ऐसे ही मजदूर काम की तलाश में खड़े रहते हैं प्रातः 5 बजे से...ये सभी कसरहट्टी के मजदूर हैं...
    पुनः 9 बजे राजगीर मिलते हैं..चंद पैसों के लिए हर दिन इनकी बोली लगती है। जिस दिन काम मिला उस दिन साढ़े तीन - चार सौ मिलते हैं।
    परंतु मैं इन्हें स्वयं से अच्छा समझता हूँ। पत्रकार हो कर भी जीवन में किसी दिन मैं इतना कभी नहीं कमा सका , क्योंकि हमारी बिरादरी को डाका डालने का अघोषित लाइसेंस जो मिला है।
    भूखे मरो या जुगाड़ करो.. ऐसी हमारी जिंदगी है।
    और उस निम्न- मध्यवर्ग का कोई नहीं सोचता , जिससे प्रतिदिन प्रतिष्ठा पर 12 घंटे काम लिया जाता और मिलता कितना मात्र 5-6 हजार प्रतिमाह।
    उस अध्यापक पर कोई नहीं लिखता जिसके पास तमाम डिग्रियाँ है, पर वेतन है 6-7 हजार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. जो मिला, हर कोई खा गया नग्न करके,
    इस पडाव पे आके अब किस-किस को कोसे हैं,
    आलू सी बनकर रह गई है जिन्दगी,
    अंदर उबला हुआ, बाहर से लिपटे हुए पकोड़े-समोसे हैं । :-)

    आभार आपका चर्चा मे मुझे शामिल करने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर विविध व बेहतरीन रचनाओं का समावेश। हार्दिक शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  7. .. आदरणीय शास्त्री जी, अभी मैं ब्लॉग पर आई और यहां अपनी कविता को सबसे शीर्ष पर देखा. पल भर को आश्चर्यचकित हो गई आप की ओर से चर्चा मंच की ओर से यह मेरी अब तक की सबसे अच्छी साहित्यिक तोहफे कह सकती हूँँ इसे..... चर्चामंच की लोकप्रियता और गुणवत्ता से सभी परिचित है और इस ब्लॉग में चर्चा कारा के रूप में जुड़े रहना यह भी बहुत बड़ी उपलब्धि है एक और बार मैं आपको और अपने सभी चर्चामंच के आदरणीय एवं सहयोगियों को अपनी ओर से दिल से धन्यवाद कहती हूँँ.
    हम सबों लोग का चर्चा मंच का यह सफर य यूँँही साहित्यिक गतिविधियों के साथ बढ़ता रहे, यही दुआ करुंगी और सभी चयनित रचनाएं बहुत अच्छी है हालांकि अभी मैंने पढ़ा नहीं है अभी पढूंगी.।🙏

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन चर्चा अंक सर ,मेरी एक पुरानी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार आपका,सादर नमन
    प्रिये अनु को एक बार फिर से ढेरों शुभकामनाएं,आप स्वस्थ रहें खुश रहें

    जवाब देंहटाएं
  9. विविध सूत्रों से सजी सुन्दर प्रस्तुति ।मेरी पुरानी रचना को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदयतल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर चर्चा। अनु जी के लिये शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय शास्त्री द्वारा। सभी रचनाएँ अपनी विशिष्टताओं के साथ। रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    मेरी रचना चर्चा हेतु शामिल करने एवं शीर्षक के रूप में प्रस्तुत करने हेतु सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी।


    अनु जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। उनकी लेखनी को पैनी धार मिले।

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर। सभी चयनित रचनाएँ बेहद उत्क्रष्ट। रचनाकारों को खूब बधाई। मेरी पुरानी और साधारण सी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    आदरणीया अनु दीदी जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    सभी को सादर प्रणाम 🙏

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत शानदार प्रस्तुति।
    सुंदर लिंक चयन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।