सादर अभिवादन।
शनिवारीय चर्चा अंक में आपका स्वागत है।
शब्द-सृजन-7 के लिये विषय था 'पाँखुरी'/'पँखुड़ी' अर्थात फूल का सर्वाधिक आकर्षक,सुंदर एवं नाज़ुक भाग जिसके पर्याय हैं पाँख, दल, पुष्प-दल, कुसुम-दल, सुमन-पाँख, पँखुरी आदि। रंग, बनावट और ख़ुशबू के साथ तितली,भँवरे आदि कीट-पतंगे फूलों की पँखुड़ियों से आकर्षित होते हैं फलस्वरूप फूलों में परागण जैसी महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया सम्पन्न होती है। प्रकृति के सौंदर्य को नयनाभिराम बनाने में पँखुड़ियाँ अपना विशिष्ट योगदान अर्पित करतीं हैं। भले ही इनका जीवन अल्पकालिक है लेकिन जीवन के प्रति रागात्मकता और सौंदर्यबोध पैदा करने में इनका नहीं कोई सानी। कवि-मन को कल्पनाओं के ऐसे लोक में विचरण करातीं हैं पँखुड़ियाँ कि सृजन के आयाम पाठक / श्रोता को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
-रवीन्द्र सिंह यादव
चर्चामंच पर नई चर्चाकार आँचल पाण्डेय जी का हार्दिक स्वागत है। आँचल जी के लेखन की भावगत एवं शिल्पगत विशिष्टताएँ हम सभी को प्रभावित करतीं हैं। बधाई एवं शुभकामनाएँ।
चर्चामंच पर नई चर्चाकार आँचल पाण्डेय जी का हार्दिक स्वागत है। आँचल जी के लेखन की भावगत एवं शिल्पगत विशिष्टताएँ हम सभी को प्रभावित करतीं हैं। बधाई एवं शुभकामनाएँ।
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आइए पढ़ते हैं इस विषय पर सृजित कुछ रचनाएँ-
दोहे "पंखुड़ियों के रंग" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पंखुड़ी
पुष्पों की पंखुड़ियों के आलिंगन में
मकरंद का पान करने के लिए
बंधक होना भी स्वीकार किया
पंखुडियों की बाहों में दुबक
रहा बंद तब तक
जब कली फूल बन गई
तभी बंधन मुक्त हो पाया
जब मकरंद से मन भरा
अलग हो चल दिया
*****
फिर तोड़ा किसीने प्यार से ,
सहलाया हाथो से ,नर्म गालों से ,
दे डाला हमें प्यार की सौगातों में ।
काँटो में भी महफूज़ थे हम।
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हर पल हरसिंगार सी झरती
यादों की सुकुमार पाँखुरियों में
अतीत की मीठी मधुर
स्मृतियों की खुशबू को
ढूँढती रहती हूँ ,
अध्यात्म की दृष्टि से "
पाँखुरी " ऐसा आवरण है जो परागकण का संरक्षण करता है और नवजीवन प्रदान करता
है। उसका यह समर्पण व्यर्थ नहीं जाता।
इन्हीं से उत्पन्न नये पुष्पों को देख वह गुनगुनाता है-
इन्हीं से उत्पन्न नये पुष्पों को देख वह गुनगुनाता है-
रहें न रहें हम महका करेंगे
बन के कली बन के सबा
बाग-ए-वफा में..।
बन के कली बन के सबा
बाग-ए-वफा में..।
व्याकुल पथिक
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सिर्फ एहसास हैं ये...
दिमाग ने कहा -"अनसुना कर दो इस दस्तक को " पर दिल के कदम पता नहीं कब आगे बढ़ गए और उसने कुण्डी खोल दी। डायरी रुपी दरवाजे की कुण्डी खोलते ही चंद गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखर कर मेरे कदमों पर आ गिरें ।तन मन सिहर उठा -उफ़ ,ये क्या हो गया ,ये पवित्र फूल मेरे पाँव को छू गया ,ये कैसा गुनाह हो गया। मैंने झट से उन पंखुड़ियों को समेट माथे से लगाया ,और फिर उसे डायरी के पन्नो में समेट कर बंद कर देना चाहा। पर एक बार जब अतीत का दरवाजा खुल जाता हैं फिर उसे बंद करना ............नहीं हो पाया मुझसे भी।
पंखुड़ी-सा स्मृति-वृंद
मरु-से मन में फिरती मरीचि-सी,
विहगावली-सा डोलता सुन्दर संसार है,
सूने आँगन में लहरायी बल्लरियों-सी,
गुज़रते समय ने किया उपहास है,
लौकिक वेदना का मरहम गोद प्रकृति की,
मूक व्यथा का बिखरा मुक्ता-हार है।
विषय आधारित एक और सुंदर अंक , पाँखुरी के माध्यम से हम मनुष्य भी अपने जीवन पर गंभीरता से चिंतन- मंथन कर सकते हैं , ताकि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हम अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति से अभिशाप को वरदान बना सकते हैं और अपनी एक पहचान भी...
जवाब देंहटाएंमंच पर श्रेष्ठ रचनाओं के मध्य मेरे लेख को भी स्थान देने केलिए आपका आभार रवीन्द्र भाई साहब। सभी को प्रणाम।
बेहतरीन रचनाओं से सजाया है
जवाब देंहटाएंआज का शब्द सृजन-7,
आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
विषय आधारित सृजन अलग-अलग कवियों की भाव अभिव्यक्ति की सृजनात्मकता को एक प्रांगण के नीचे एकत्रित कर देता है.. रोमांच अनुभव हो जाता है एक ही शब्द पर कई तरह के भिन्न-भिन्न रचनाएं विचार पढ़ने को मिलती है..।
जवाब देंहटाएंपर भूमिका में पंखुड़ी शब्द की व्याख्या आपने इतनी खूबसूरत तरीके से की है कि मुझे दोबारा पढ़ना पढ़ रहा है.. पंखुड़ी शब्द को हम अपने जीवन में कई रूपों में चरितार्थ कर सकते हैं.. बेहतरीन भूमिका एवं सभी चयनित रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई 🙏
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स|मेरी रचना शब्द -सृजन में शामिल करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र जी |
विविध प्रकार की पाँखुरियों की भीनी भीनी सुगंध बिखेरता बहुत ही सुन्दर अंक रवीन्द्र जी ! मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंशानदार भूमिका के साथ शब्द सृजन का लाज़बाब अंक ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से धन्यवाद सर ,
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को ढेरों शुभकामनाएं एवं नमस्कार
आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंपंखुड़ियों की खूबसूरती से सजा आज का ये अंक जितना मनभावन है उतनी ही सुंदर आपकी भूमिका है। सभी रचनाएँ उम्दा हैं। सभी को हार्दिक बधाई।
बहुत खूबसूरत संकलन रवींद्र जी
जवाब देंहटाएंपँखुड़ी पर रचीं गयीं बेहतरीन रचनाएँ. मनमोहक प्रस्तुति. पँखुड़ी पर प्रकाश डालती बहुत सुंदर एवं ज्ञानवर्धन करती भूमिका. रंग-बिरंगी पँखुड़ियों से सजा आज का सुंदर चर्चामंच.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना सम्मिलित करने के लिये सादर आभार.
चर्चाकार के रूप में प्रिय आँचल का चर्चामंच से जुड़ने पर हार्दिक स्वागत एवं बधाई. नई टीम नई ऊर्जा के साथ.
हार्दिक आभार आदरणीया मैम। हम प्रयास करेंगे कभी आप सबको निराश ना करें। सादर प्रणाम 🙏
हटाएंचर्चामंच में नई चर्चा कारा के रूप में हम सबों की प्रिय आंचल का चर्चा मंच की ओर से बहुत-बहुत स्वागत... अनीता जी की ही तरह मेरा भी यही कहना है कि एक नए ऊर्जावान टीम की तरह हम सभी काम करेंगे और चर्चा मंच की प्रसिद्धि को और आगे ले जाएंगे..🍫🙏
जवाब देंहटाएंबिल्कुल आदरणीया दीदी जी...एक ऊर्जावान टीम की तरह हम सब मंच को नए नए आयाम तक ले जायेंगे। आपका हार्दिक आभार। सादर प्रणाम 🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र सर आपका हार्दिक आभार ' चर्चामंच ' पर हमारा स्वागत करने हेतु।
जवाब देंहटाएंख्याति प्राप्त 'चर्चामंच' जो आज स्वयं ब्लॉग जगत में चर्चा का विषय है। जिसके सभी आदरणीय चर्चाकार बड़े ही कर्मनिष्ठ भाव से साहित्य सेवा में लगे हुए हैं और मंच को नए आयाम तक लिए जा रहे हैं। ऐसे मंच से जुड़ना और आप सभी चर्चाकारों का सानिध्य प्राप्त करना तो मेरे लिए बड़े ही हर्ष और गर्व का विषय है। आदरणीय शास्त्री सर,आदरणीय रवीन्द्र सर, आदरणीया अनीता मैम, आदरणीया कामिनी मैम,आदरणीय दिलबाग सर,आदरणीया मीना मैम,आदरणीया अनु दीदी आप सभी को सादर प्रणाम करती हूँ। आप सभी की बेहद शुक्रगुज़ार हूँ जो आप सब ने हम पर भरोसा कर हमे यह अवसर दिया कि हम भी मंच की सेवा में,इसे और आगे बढ़ाने में अपना भी योगदान दे सकें। हम मंच के सुधि पाठकों को भी शुक्रिया अदा करते हैं जो आप सबने हमे इतना नेह आशीष दिया।
हम सदा प्रयासरत रहेंगे कि आप सभी को कभी निराश ना करें और आपकी उम्मीदों पर खरी उतरें और निःस्वार्थ भाव से अपना कर्म करें। और जैसा आदरणीया अनु दीदी जी ने और आदरणीया अनीता मैम ने कहा बिल्कुल एक ऊर्जावान टीम की तरह हम सब 'चर्चामंच' को नई उंचाईयों तक ले जायेंगे।
आप सभी का पुनः हार्दिक आभार,सादर प्रणाम,शुभ रात्रि।
कहते हैं बिखर जाती है देर सबेर पँखुरियाँ ,पर वाह कमाल है यहाँ तो पँखुरियों से सुंदर गुलदस्ता सज रहा है, बहुत ही उम्दा/शानदार संकलन,
जवाब देंहटाएंसभी लिंक आकर्षक, पठनीय, सुंदर,,सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स आकर्षक और ज्ञान वर्धक |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |