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गुरुवार, अगस्त 12, 2021

धरती पर पानी ही पानी (चर्चा अंक 4154)

सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है। 

न बरसे 

तो आफ़त 

बरस जाय 

तो आफ़त 

धरती पर 

पानी ही पानी 

सजग रहो 

वर्षा के बाबत। 

आइए अब पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-

अकेलेपन

और ओढ़ लेता है वह,

चादर काली रात की।

उधर उस ओर उषा भी

मल देती है सिंदूर

 क्षितिज के आनन पर।

*****

खेत खलिहान के देवों की...

*****

असमाप्त कविता - -

*****वक्त यही अब बोल रहा है

साँझ सुरमयी हो जीवन की

तो सूरज सा तपता जा

भव कष्टों से जीव मुक्त हो

दुष्कर सत्पथ पे बढ़ता जा

कर अनुवर्तन उन कदमों का

जिनका जीवन मोल रहा है

कर ले जो भी करना चाहे

वक्त यही अब बोल रहा है

*****

अवसर सबको ही मिले, यही विचारो आज।
आगे बढ़ना नीति में, उन्नत सकल समाज।।
उन्नत सकल समाज, मिले वंचित को सुविधा।
भारत में सब एक, करें क्यों इसमें दुविधा।।
होंगें तभी स्वतंत्र, नहीं हो कोई अंतर।
चलो समय के साथ, दिला दो सबको अवसर।।
*****

15 अगस्त को हम आज़ादी के 75वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं? ऐसे में आप सबसे, ख़ास तौर पर युवाओं से मेरे तीन सवाल हैं?

1. आपके लिए आज़ादी के मायने क्या हैं?
2. आपको देश में एक चीज़ बदलने का मौका दिया जाए तो क्या बदलना चाहेंगे?
3. 1947 से अब तक आपकी नज़र में विकास का कौन सा सबसे बड़ा काम हुआ है?
*****

हमारा घर--21

"दिया मैं वहाँ स्कूल में जाकर पता करता हूँ।हम सब सर्दियों में तो आगरा, मथुरा घूमकर आए ? फिर से सब जाएंगे तो बच्चे और घर के लोगों को क्या बहाना सुनाएंगे ?।मेरा क्या, मैं तो कम्पनी के काम में बार-बार बाहर जाता रहता हूँ।न बच्चे पूछेंगे और न घरवाले..!"

"ठीक है रमन..आज मंगलवार है।ज्योत्सना मैम सोमवार को वापस आ रही हैं।वो तुम्हें पहचानती है।तुम उनके आने के बाद ही जाना..!"दिया बोली।

"हम्म सही कहा,यही ठीक रहेगा..!" 

*****

ज्वलंत समस्या दिवस ...

" इसीलिए तो दीदी हम .. कभी भी किसी समस्या पर लिखते ही नहीं। हमेशा प्राकृतिक सुन्दरता को लेकर शब्द-चित्र बनाते हैं। अरे दीदी, आप ठीक ही कह रही हैं, कि समस्या को दूर करने के लिए सरकार तो हैं ही ना ! फिर भगवान भी तो हैं ही ना दीदी ! बुजुर्गों की बात को आज कल हम नए फैशन में भुलते जा रहे हैं, कि - होइए वही जो राम रचि राखा। है कि नहीं ? "- यह शालिनी श्रीवास्तव जी बोल रही है। बोलते-बोलते कई दफ़ा उनकी जीभ, उनके होठों पर पुते 'लिपस्टिक' की परतों को मानों किसी राजमिस्त्री की "करनी" की तरह स्पर्श कर-कर के उसे अपनी जगह पर जमे रहने के आश्वासन देने का काम कर रही है।
*****

साधु,संत औ गृहस्थ

तोहरे तट आवै

आपन सुख-दुःख

तोहरे लहर से सुनावै

तोहईं से अन-धन ,वन

खेत औ किसानी ।

*****

व्यवहारिक गणित क्या है

रोजमर्रा की जिंदगी में संख्याओं, स्थानों की दूरी और मापन का ज्ञान गणित के द्वारा ही किया

 जाता है. अतः व्यवहारिक रूप से गणित विषय का ज्ञान सबके लिए आवश्यक है. इसके बिना

 मनुष्य सभ्य जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता. गणित शिक्षण का सभी के लिए व्यापक

 महत्व है. गणित छात्रों में आत्मनिर्भरता, दृढ़ता और आत्मविश्वास उत्पन्न करता है. गणित के

 नियम और सूझबूझ जिंदगी भर काम आने वाली चीजें हैं.
*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव 



7 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! नमन संग आभार आपका .. मंच के पाठकवृंद तक मेरी बतकही पहुँचाने के लिए .. साथ ही दो दिन लगातार आपके द्वारा मेरी बतकही को चुनने (चुनिंदा का तो पता नहीं) से आज "हैट ट्रिक" की इक उम्मीद भी जगाने के लिए ..
    आज की भी भूमिका क़ुदरती क़हर की ओर इशारा करती हुई है .. ऊपर से अथाह वर्षा, नीचे 'ग्लोबल वार्मिंग' से पिघलते 'ग्लेशियर' के परिणामस्वरूप सागर का बढ़ता जलस्तर, वर्षा के जल जमाव के कारण राह चलते मुसाफ़िर का बड़े नाले के 'मेन होल' में, उन तथाकथित हनुमान जी के पाताल लोक में समाने की तरह, समाने का डर, बाढ़ से जान-माल के साथ-साथ कृषि और कृषक दोनों के नुक़सान का सफ़र .. इन दिनों पानी के साथ-साथ, कई-कई घाटियाँ और पहाड़ियाँ भी अपने चट्टानों को मलबे के ढेर के रूप में किसी बच्चे की फिसलन सीढ़ियों (slippery stairs/ससरौआ) वाले खेल की तरह नीचे सरका कर जानलेवा परेशानियों को मुफ़्त में मुहैया करवा रही हैं .. शायद ...

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  2. जी, बहुत आभार इस सुंदर और सार्थक प्रस्तुति का।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर,सामयिक तथा पठनीय अंक। शुभकामनाएं एवम बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. न बरसे तो आफ़त बरस जाय तो आफ़त
    सटीक और सामयिक भूमिका एवं उत्कृष्ट लिंकों से सजी शानदार चर्चा प्रस्तुति में मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आदरणीय रविन्द्र जी !
    सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर संकलन, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

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  6. मेरा तकनीकी ज्ञान शून्‍यवत है। इसीलिए चाहने के बावजूद बहुत-कुछ नहीं कर पाता। और तो और, (2007 से ब्‍लॉग जगत में होने के बावजूद) अन्‍य ब्‍लागों पर जाने का रास्‍ता तलाश नहीं कर पाता। ब्‍लॉगवाणी थी तब कई ब्‍लॉग पढने को मिल जाते थे। अब मुझ जैसों के लिए कठिनाई बढ गई है।

    आप सबका यह प्रयास जब-जब भी देख पाता हूँ,तब-तब हर बार, आपका परिश्रम और समर्पण-भाव मुझे विस्मित कर देता है। आप सब प्रणम्‍य हैं।

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