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शुक्रवार, अगस्त 20, 2021

"जड़ें मिट्‌टी में लगती हैं" (चर्चा अंक- 4162)

सादर अभिवादन ! 

शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी प्रबुद्धजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन ! आज की चर्चा की शुरूआत सम्पूर्ण सिंह जी कालरा 'गुलज़ार' की पुस्तक 'रात पश्मीने की'  में संग्रहित  'आँसू' के अंश से-


तुम्हारी आँख से आँसू का गिरना था

 कि दिल में दर्द भर आया, 

ज़रा से बीज से कोंपल निकल आई

जड़ें मिट्‌टी में लगती हैं, 

जड़ों में पानी रहता है!!

--

 आइए अब बढ़ते हैं आज की चर्चा के सूत्रों की ओर-

गीतिका "रिवाज़-रीत बन गये"

फूल हो गये ज़ुदा, शूल मीत बन गये

भाव हो गये ख़ुदा, बोल गीत बन गये


काफ़िला बना नहीं, पथ कभी मिला नहीं

वर्तमान थे कभी, अब अतीत बन गये


देह थी नवल-नवल, पंक में खिला कमल

तोतली ज़ुबान की, बातचीत बन गये

***

देशभक्ति एक रंग है

आज जवान के सीने पर एक और मैडल।”

मूँछ पर ताव देते हुए रितेश अपनी पत्नी प्रिया से फोन पर कहता है।

”बधाई हो...।”

प्रिया ख़ुशी और बेचैनी के तराज़ू में तुलते हुए स्वयं को खोजती है कि वह कौनसे

 तराज़ू में है ?

”अरे! हम तो हम हैं, हम थोड़े किसी कम हैं।”

***

अनकहा सच

मुझे सच में  गौरव हुआ प्राप्त   

या पीछे से धक्का दिया गया

एक प्रमाण पत्र के लिए

जो था यथेष्ट मेरे लिये  |

***

बैरी सावन बीतत जाये

चेहरा अंचरा बीच छिपा के 

जाने ढूंढें कौन पिया के 

नैना रो रो नीर बहाये 

बैरी सावन बीतत जाये

***

इक अकुलाहट प्राणों में

इक बेचैनी सी हर पल

मन में सुगबुग करती हो,

इस रीते अंतर्मन का

कुछ खालीपन भरती हो !

***

एक सांकेतिक गीत-वह राम विजय ही पाएगा

रावण कितना

बलशाली हो

हर युग में मारा जाएगा ।

जिसका

चरित्र उज्ज्वल होगा

वह स्वयं राम हो जाएगा ।

***

क्या सावन है

सुआ हरा हरा

आसमान भी हरा हरा

तलैया हरी हरी

निमिया हरी हरी 

दृश्य लुभावन है 

क्या सावन है ?

***

विज्ञान की दो धारी तलवार है खतरनाक!

एक दिन एक खुला आसमान 

धूमिल- सा , बेरंग, बेनूर 

और उदास हो जाएगा!! 

कोई पंछी उड़ता हुआ, 

नजर नहीं आएगा!!

***

बिखरता जीवन

आज नहीं तो कल नींद आ ही जायेगी 

ये रोते बिलखते लोगों की चीखें 

उनकी साँसों को खा ही जायेंगी 

कब तक लड़ेगे ये खाली हाथ 

बात तो गुलामी तक आ ही जायेगी

***

सपने ऐसे ही तो होते हैं

सपनों के रंग

उम्र के आखिर पढ़ाव पर 

मटमैले भूरे हो जाते हैं

तब 

आंखों में 

यही सपने

गहरे समा चुके होते हैं

***

हमारा घर--29

जूही रोहित को समय पर ऑफिस पहुँचने को कहकर अपने कार्य में व्यस्त हो गई। रोहित भी अपने डैड के हॉस्पिटल चला गया। ग्यारह बजने वाले थे तो जूही ने मान्यता को अपने केबिन में बुलाकर कहा।

"मान्यता मुझे एक बहुत जरूरी काम से जाना है। ठीक साढ़े ग्यारह बजे मैं निकल जाऊँगी तो उसके बाद आप और शीतल देख लेना,ओके.…!"

***

अपना व अपनों का ख्याल रखें…,

आपका दिन मंगलमय हो...

फिर मिलेंगे 🙏

"मीना भारद्वाज"




       


13 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    उम्दा अंक आज का |आभार सहित धन्यवाद मीना जी मेरी रचना को स्थान देने क लिए आज |

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात, भावपूर्ण भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं के लिंक्स से सजा चर्चा मंच, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!लाज़वाब संकलन।
    भूमिका में सम्पूर्ण सिंह जी की पंक्तियाँ गागर में सागर मन में उतर गयी।
    आभार सराहनीय संकलन हेतु।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. दिल की गहराइयों से आभार आदरणीया मीना दी मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु।
    समय मिलते ही सभी रचनाएँ पढूँगी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी पुरानी रचना को चर्चा में लेने के लिए
    आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीया मीना जी!

    जवाब देंहटाएं
  6. मीना जी क्षमाप्रार्थी हूं जो पूरा दिन बीतने के बाद अब देख पाया हूं...। अभी सभी रचनाएं देखने के बाद प्रतिक्रिया लिखूंगा...। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर लिंक्स संयोजन। मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद मीना जी ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रस्तुति बहुत सुंदर है।
    सभी लिंक बेहतरीन,पठनीय सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर सारगर्भित तथा पठनीय सूत्रों का अनूठा संकलन, आपके श्रम को मेरा हार्दिक नमन, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..

    जवाब देंहटाएं
  11. धन्यवाद मैम मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  12. हार्दिक आभार आपका आदरणीय मीना जी।सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं

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