सादर अभिवादन !
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी प्रबुद्धजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !
आज की चर्चा का शीर्षक श्री उदय प्रताप सिंह जी की लेखनी से निसृत ग़ज़ल 'बैसाखी पर चलते लोग' से हैं ।
"इन ढालों के दुर्गम पथ पर देखे रोज़ फिसलते लोग
फिर कैसे शिखरों पर पहुंचे बैसाखी पर चलते लोग
प्यारी नदियों की आहों पर हृदय तुम्हारा पिघल गया
सच कहता हूँ मित्र हिमालय,जग में नहीं पिघलते
लोग"
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आपके अवलोकनार्थ पेश आज के चयनित सूत्र -
नील आँगन खेलते हैं
ऋक्ष अंबक टिमटिमाते
क्षीर की मंदाकिनी में
स्नान करके झिलमिलाते
चन्द्र भभका आग जैसे
चाँदनी दिखती पिघलती।।
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बहुत लोगों को डराकर रखने वाला भी बहुत लोगों से डरता है
बेडौल लोहे को हथौड़े से पीट-पीटकर सीधा करना पड़ता है
शेर की मांद में घुसने वाला ही उसका बच्चा पकड़ सकता है
बूढ़ा भेड़िया जोर की चीख-पुकार सुन कभी नहीं डरता है
शेर के दांत टूट जाने पर भी वह गरजना नहीं भूलता है
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उस रोज
घने कोहरे में
भोर की बेला में
सूरज से पहले
तुम से मिलने
आयी थी मैं
लैम्पपोस्ट के नीचे
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जहाँ भावनाऐं
हाथी के दांत से भी
बेशकीमती हो गई हों
वहाँ वक्त के फटेहाली पर
यकीन कर लेना चाहिए
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भरोसे आपके बढ़ते,विधाता साथ तुम रहना।
जला मन दीप सुखकारी,बने विश्वास ही गहना।
हटे दुख की तभी बदली,खिलेगी धूप आशा की।
घनी काली निशा में भी,नहीं पीड़ा पड़े सहना।
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बहुत हुई जब मन के मन की
तो तन को गुस्सा आया
खोली में छुपकर बैठा मन
तन जब मन पर गरमाया
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बेड़ियों में जकड़ती अफगानी नारी !
बेड़ियों में जकड़ती अफगानी नारी ,
तमाशबीन बनी है ये दुनिया सारी ।
बंदिशें पर बंदिशें लगनी है जारी ,
पिंजरा बनता जा रहा बड़ा और भारी ।
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शबरी, जिसने पूरा जीवन प्रभु के इंतजार में गुजार दिया
शबरी धाम दक्षिण-पश्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा गांव से 33 किलोमीटर और सापुतारा नगर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर सुबीर गांव के पास स्थित है। माना जाता है कि शबरी धाम वही जगह है जहां शबरी और श्री राम की भेंट हुई थी। शबरी धाम अब एक धार्मिक पर्यटन स्थल का रूप लेता जा रहा है।
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सफलता के लिए बहुत कुछ त्यागा जा सकता है लेकिन सफलता को किसी के भी लिए दांव पर नहीं लगाया जा सकता क्योंकि (सफल व्यक्तियों के लिए) वह सबसे अधिक मूल्यवान होती है। गोपियों को तो किसी भौतिक सफलता की अभिलाषा नहीं थी ।
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राखी बाँधने के बाद देवेश, अनुभा के भाई-साहब और बच्चों की महफिल जमी थी। बाहर जम कर बारिश हो रही थी। अनुभा गरम करारी पकौड़ी लेकर जैसे ही कमरे में दाखिल हुई सब उसे देखते ही किसी बात पर खिलखिला कर हंसने लगे।
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"अनु, सब बच्चे पैदा होते हैं तो मासूम होते हैं, कच्चे घड़े के माफिक होते हैं। उन्हें संस्कार उन लोगों से मिलते हैं, जो उनकी परवरिश करते हैं। यह बच्चा भी वैसा ही है। इसे संस्कार हम देंगे तो इसकी ज़िन्दगी सँवर जायगी।
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मलाई पनीर सिर्फ़ पांच मिनट में!
मलाई पनीर सिर्फ़ पांच मिनट में! मतलब अब अचानक मेहमान आने पर सोचना नहीं पडेगा कि ऐसा क्या बनाये जिससे मेहमान खुश हो जाए और ज्यादा मेहनत भी न करनी पड़े!!
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पहाड़ों की तलहटी में खोली गाँव था. सब प्रकार का पहाड़ी अनाज यहाँ होता था. गाँव समृद्ध भी नहीं था परन्तु अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी का मुंह भी उसे नहीं ताकना पड़ता था. गाँव की दूर दूर तक फैली फसलों की रखवाली के लिए गाँव वालों ने जगुल्या रखा था.
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अपना व अपनों का ख्याल रखें…,
आपका दिन मंगलमय हो...
फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"
रचनाओं की विविधता एवं उत्तम गुणवत्ता इस संकलन की पहचान है। इसके लिए आप अभिनन्दन की पात्र हैं मीना जी। मेरी रचना को आपने स्थान देने के योग्य पाया, आभारी हूं आपका।
जवाब देंहटाएंभावनाओं और संभावनाओं से पूरित पठनीय सूत्र। आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी!
परिश्रम के साथ सजाई गयी सार्थक चर्चा!
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, मीना दी।
जवाब देंहटाएंरचनाओं का सुंदर गुलदस्ता,... बहुत बहुत आभार मीना भारद्वाज जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंमेरी कहानी को इस सुन्दर मंच पर स्थान देने के लिए आभार आ. मीना जी! अच्छी प्रस्तुतियों के लिए सभी रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर भूमिका के साथ सराहनीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमुझे भी स्थान देने हेतु दिल से आभार आदरणीय मीना दी।
सभी को हार्दिक बधाई।
सादर
एक से बढ़कर एक रचनाओं के लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति ...मेरी रचना को भी चर्चा का हिस्सा बनाने हेतु तहेदिल से धन्यवाद मीना जी!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई।एवं शुभकामनाएं।
आदरणीय भारद्वाज मेम
जवाब देंहटाएंमेरी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (03-09-2021) को "बैसाखी पर चलते लोग" (चर्चा अंक- 4176) पर चर्चा करने एवं चर्चा में आमंत्रित करने हेतु सादर धन्यवाद ।
सभी रचनाएं बहुत उम्दा है । सभी आदरणीय को बहुत बधाइयां एवं शुभकामनाएं ।
हृदयग्राहिणी प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी।
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका ,उदय प्रताप सिंह जी के शानदार बंध के साथ इतने प्यारे सुंदर लिंक पढ़वाने के लिए बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को इस सुंदर यज्ञ में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बेहतरीन चर्चा अंक, इस श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए आप बधाई की पात्र है मीना जी,देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूं,सादर नमन सभी को
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्रों का संकलन,एक से बढ़कर एक रचनाएँ । अति व्यस्तता की वजह से देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।सादर नमन आपको मीना जी ।
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम मेरी रचना को शामिल करने का शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंशिक्षक कवियों की रचना को शामिल कर सम्मान देना अच्छा लगा!
आपणों मारवाड़ बहुत सुन्दर शिक्षा देती कहानी!
धरा पर धारा…सुन्दर प्रकृति रचना!
सीमाओं का ज्ञान देती कविता सीमा!
गुरु का वंदन करती सुन्दर कुँडलियाँ !
शिक्षक- दोहा छन्द बहुत खूब !
मझदार मंच सुन्दर अभिव्यक्ति!
सभी रचनाएं बहुत सुन्दर…सभी रचनाकारों को बधाई !