सादर अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
हिंदी पखवाड़ा हर वर्ष अनेक संभावनाओं के साथ मनाया जाता है।पखवाड़ा अर्थात पंद्रह दिन का कालखंड। देशभर में सरकारी और गैर-सरकारी कार्यक्रम 1 सितंबर से 15 सितंबर तक हिंदी की दशा और दिशा पर केन्द्रित होते हैं।
आजकल हिंदी को लेकर यह समझना ज़रूरी है कि नई पीढ़ी के लिए हिंदी भाषा मुश्किल होती जा रही है क्योंकि आजकल बच्चों को अँग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा दिए जाने का चलन अति लोकप्रिय हो गया है।भारत में हिंदी भाषा के विस्तार को अँग्रेज़ी की लोकप्रियता बाधित कर रही है।
केवल अँग्रेज़ी की आलोचना से हिंदी भाषा का भला संभव नहीं है बल्कि आवश्यक है चित्त और चेतना में परिवर्तन की।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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हिन्दी पखवाड़ा "हिन्दी का गुणगान"
हिन्दी भाषा के लिए, बदलो अपनी सोच।
बोल-चाल में क्यों हमें, हिंग्लिश रही दबोच।।
निष्ठा से जब तक नहीं, होगा कोई काम।
कैसे तब तक देश का, होगा जग में नाम।।
अपनी भाषा का करो, दुनिया में विस्तार।
हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।३
कि
रोज बढ़ा कर अपना घेरा
धौंस देता है मुझे
और डाँट कर पूछता है
‘कहाँ है तेरा सवेरा?’
और मैं कहता हूँ
‘बुलाऊँ सवेरे को?’
तो फिर ये छोटा करके उस घने घेरे को
अपने पिता पश्चिम को पुकारता है
चीखता है सहायता के लिये
मैं पूरब की ओर मुँह भर करता हूँ
जैसे कोई पता खो गया
एक याद जो भूला है मन,
भटक रहा है जाने कब से
सुख-दुःख में ही झूला है तन !
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नामचीन स्त्रियाँ
उंगलियों पर
गिनी जा सकने वाली
प्रसिद्ध स्त्रियों को
नहीं जानती
पड़ोस की भाभी,चाची,ताई,
बस्ती की चम्पा,सोमवारी
लिट्टीपाड़ा के बीहड़
में रहनेवाली
मंगली,गुरूवारी
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वह नहीं आई | कविता | डॉ शरद सिंह
वह गाय
जो रोज़
मेरे घर के दरवाज़े पर
आ खड़ी होती
करती जुगाली
उम्मीद करती
कुछ छिलके पाने की
एकाध बासी रोटी पाने की
आज वह नहीं आई
यथारीति, गंध बिखेर कर निशि पुष्प
झर गए रात के तृतीय प्रहर में,
उड़ चले हैं जाने कहाँ सभी
रतजगे विहग वृन्द,
हमारे दरमियां
ठहरा हुआ
सा है
निःस्तब्ध,
मुझे तरस आता है कौए पर,
जो अपनी काँव-काँव से
सबके कान फोड़ता है,
पर दूसरों के अंडे
अपने मानकर सेता है.
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हार न मानी कभी
हार न मानी कभी
कितनी भी कठिनाई आई
डट कर सामना किया
मोर्चे से नहीं भागा |
मन पर पूरा नियंत्रण
जाने कब से रखा है
हर कदम पर सफल रहा हूँ
तिथि तक याद नहीं है अब तो |
तो अब सवाल ये है कि कल्पना के बिना इस बर्दाश्त से बाहर वाली दुनिया में दिल लगाए भी तो कैसे लगाए । जहाँ कुछ भी दिल के लायक होता नहीं और जो होता है उसके लायक लेखक होता नहीं है । तो ऐसे में सच्चाई को स्वीकार करते-करते हिम्मत बाबू अब उटपटांग-सा जवाब देने लगें हैं । तो फिर जन्नत-सी आजादी की बड़ी शिद्दत से दरकार होती है जो सिर्फ कल्पनाओं में ही मिल सकती है । एक ऐसी आजादी जिसे किसी से न माँगनी पड़ती है और न ही छीननी पड़ती है । तब तो वह कल्पना के खजाने को खुशी से चुनता है और उसकी महिमा का बखान भी एकदम काल्पनिक अंदाज में करता है ।
भारत एवं पाकिस्तान के बीच हुए चार युद्धों में से सबसे लम्बा चलने वाला यह कारगिल युद्ध ही था जो पचास दिनों तक चला एवं जिसने ५२७ भारतीय सैनिकों की बलि ली। यही सबसे कठिन युद्ध था जिसकी कभी औपचारिक घोषणा भी नहीं की गई लेकिन जिसने भारतीय सेना को अपनी उस भूमि को शत्रु से मुक्त कराने का का लक्ष्य दिया था जो हज़ारों फ़ुट की ऊंचाई पर स्थित थी एवं जहाँ घुसपैठिया बनकर आए शत्रु सुविधाजनक स्थिति में घात लगाए बैठे थे। ऐसी स्थिति में भारतीय वीरों के लिए मरना सरल था, मारना एवं अपनी भूमि पर पुनः अधिकार करना अत्यन्त दुश्कर। लेकिन यह लगभग असंभव-सा कार्य कर दिखाया भारतीय वीरों ने जिनमें से एक था हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मा लेफ़्टिनेंट विक्रम बतरा जिसे युद्धभूमि में ही पदोन्नत करके कैप्टन बनाया गया।
''आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। मैं खाने का मेन्यु वो ही रखुंगी जो पापाजी को पसंद था। आखिर उनकी पसंद का ख्याल रखना मेरा कर्तव्य है।''
मयंक ने ग्यारह ब्राम्हणों को भोज पर बुलाया था। ब्राम्हणों को दक्षिणा में देने के लिए उसने ऑनलाइन पश्मीना शॉले मंगवाई थी। उसका कहना था कि ड्रेस तो सब लोग देते है। ठंड में ये गर्म ऊनी शॉल पंडितों के काम आयेगी। पापा की आत्मा भी ये देख कर खुश होगी कि मैं ने उनके श्राद्ध पर पंडितों को इतनी महंगी शॉले दी है!
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
आपका रचना-चयन निस्संदेह प्रशंसनीय है अनीता जी। यह संकलन किसी सम्मानित हिंदी पत्रिका जैसे ही श्रेष्ठ स्तर का है। अभिनन्दन आपका। और आपने मेरे आलेख को स्थान देने योग्य पाया, यह मेरे लिए भी सम्मान की बात है। कोटिश: आभार आपका।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआदरणीय सर आपका दिल की गहराइयों से बहुत-बहुत धन्यवाद! सच कहूं तो मेरे पास शब्द नहीं है आपका आभार व्यक्त करने के लिए!
हटाएंशेरशाह की समीक्षा करने के लिए आपकी मैं आभारी हूँ! आपका यह लेख देख कर मुझे कितनी खुशी मिली है! यह मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती !🙇🙌❤ 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति सभी अंक एक से बढ़कर एक है! और उनमें से शेरशाह की समीक्षा तो काबिले तारीफ है!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति.आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंकेवल अँग्रेज़ी की आलोचना से हिंदी भाषा का भला संभव नहीं है बल्कि आवश्यक है चित्त और चेतना में परिवर्तन की।
जवाब देंहटाएंकितनी सारयुक्त और महत्वपूर्ण भूमिका है शब्द शब्द आत्मसात करने की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियों को समृद्ध इतिहास की धरोहर हम सौंप सकें।
विविधापूर्ण विषयों से सुसज्जित सभी सूत्र बहुत अच्छे हैं।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए सस्नेह शुक्रिया अनु।
उत्प्रेरित करती हुई भूमिका के साथ विविधवर्णी प्रस्तुति अत्यन्त रोचक है । हिन्दी सदैव समृद्धि को प्राप्त करे हमारी यही अभिलाषा है । हार्दिक शुभकामनाएँ एवं आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता।
जवाब देंहटाएंThanks for my postllllllllllll
जवाब देंहटाएंसुन्दर चयन है। अच्छी रचनाओं की बगिया है यह मंच। 'मेरा श्राध्द कर' देर तक याद रहेगी।
जवाब देंहटाएंचर्चा की सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
देरी से आने के लिए खेद है, अभी-अभी देखा चर्चा मंच का यह सुव्यवस्थित अंक, आभार!
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