सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश श्री बालकवि बैरागी के गीत संग्रह ‘ललकार’ ’ से -
खेत मेरे! लहलहाना धान से भरपूर तुम
वक्त की आई चुनौती लो करो मंजूर तुम
देश भूखा रह न जाये
हम जरूरी काम पर हैं
आज हम सब लाम पर हैं.....
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
--
उच्चारण: दोहे "अपने वीर जवान"
मातृभूमि पर हो रहे, जो सैनिक बलिदान।
माँ के सच्चे पूत हैं, अपने वीर जवान।४।
--
सिपाहियों का गीत
खेत मेरे! लहलहाना धान से भरपूर तुम
वक्त की आई चुनौती लो करो मंजूर तुम
देश भूखा रह न जाये
हम जरूरी काम पर हैं
आज हम सब लाम पर हैं....
--
मंथन कराती है
मौन की गहराइयों में
मन डूबता-उतराता है
और इसी के साथ
एक-एक बंद ताले
साकार और सजीव हो ...
मांग उठते हैं हिसाब
अपनी-अपनी गुमशुदा कुंजी का…
--
शहर
खेत बिक रहें है इमारते बन रही हैं यहाँ
अँधी रफ़्तार से भागता जा रहा है शहर।
चकाचौंध भरी जिन्दगी लुभाती है यहाँ
युवाओं को सब्जबाग़ दिखाता है शहर।
--
धुएं की ज़द में - -
चोर दरवाज़ा कहीं न था, हर तरफ गुंथी
हुई थी जालीदार झालर, तुम्हारे
सामने मेरा आत्म समर्पण
के अलावा कोई उपाय
न था, वो कोई
प्रेम था या
तृषाग्नि
अब
सोचने से क्या फ़ायदा,
--
तूूफ़ान की पोटली
सागर की लहरें तेज थी
स्तब्ध शरीर शांत था ।
पैरों तले रेत खिसकती
सीने में उठता तूफान था ।
एड़िया जमाई खड़ी रही
सब कुछ ना इतना आसान है!!!
बस!
--
गिर गई हजार बिजलीयां सितम की
वस उनकी एक वेरूखी से ,
फिर आज भी क्यों दिल झुम उठता है
जब मुस्कुराती है वो अपनी खुशी में ।
मन की हदबन्दी, ख़ुद की मैंने
जिस्म की हदबन्दी, ज़माने ने सिखाई
कुल मिलाकर हासिल - अकेलापन
परिणाम - जीवन की हदबन्दी
जो तब टूटेगी जब साँसें टूटेगी
और टूट जाएँगे वे तमाम हद
जो जन्म के साथ हमारी जात को
पूरी निगरानी के साथ
तोहफ़े में मिलते हैं
--
बदले में बिन कुछ चाहे ,जैसे तत्पर सागर।।
सागर रत्नों की खान, नहीं कोई अभिमान।
धरती झुलस रही हो ,तरनि उगले आग।।
तब पवन संदेशा देय, समाज सेवी सागर।
--
बारुदों की गंध में
जब
रेत पर
खींचे जा रहे हैं
शव
और
चीरे जा रहे हैं
मानवीयता के
अनुबंध।
--
सिद्धाश्रम को आध्यात्मिक चेतना, दिव्यता के केंद्र और महान ऋषियों की वैराग्य भूमि का आधार माना जाता है। सिद्धाश्रम को एक बहुत ही दुर्लभ दिव्य स्थान माना जाता है। लेकिन साधना प्रक्रिया के माध्यम से कठिन साधना और साधना पथ पर चलकर इस दुर्लभ और पवित्र स्थान में प्रवेश करने के लिए दिव्य शक्ति प्राप्त करना संभव होगा।
--
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
आज की चर्चा के लिए मेरी ब्लॉग पोस्ट से शीर्षक लेकर आपने मेरे ब्लॉग को जो मान दिया है उसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंमेरे साथ कठिनाई यह है कि 2007 से ब्लॉग पर बने रहने के बाद भी, तकनीकी-ज्ञान के मामले में मैं अब भी शून्यवत ही हूँ। मैं चाहकर भी अन्य ब्लॉग नहीं पढ़ पाता। पहले ब्लॉगवाणी के जरिये ढेरों ब्लॉग पढ़ने को मिल जाते थे।
‘चर्चा मंच’ पर जब-जब भी आ पाता हूँ, तब-तब हर बार आप सबकी मेहनत देखकर चकित रह जाता हूँ। कितनी मेहनत कर रहे हैं आप सब! आज, जबकि फेस बुक ने ब्लॉग को लील लिया है, आप सब महानुभाव ब्लॉग की बाहें थामे उसे मजबूती से खड़ा रखे हुए हैं।
मैं आप सबको सादर प्रणाम करता हूँ।
अनीता जी बहुत बहुत आभारी हूँ... आपने मेरी रचना को जो मान दिया...।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक सूत्रों से सजी प्रस्तुति अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और लाजवाब सूत्रों के मध्म मेरे सृजन को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार ।
सुन्दर और पठनीय सूत्र।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आप का बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअनीता सैनी जी आपका आभार।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक सुंदर रचनाओं का संकलन ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी। सादर।
सुंदर रचनाओं का बेहतरीन संकलन । बहुत शुभकामनाएं अनीता जी ।
जवाब देंहटाएं