मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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कॉफी की तासीर निराली।।
जब तन में आलस जगता हो,
नहीं काम में मन लगता हो,
थर्मस से उडेलकर कप में,
पीना इसकी एक प्याली।
कॉफी की तासीर निराली।।
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बोलना चाहिए इसे अब
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ये ज़रूरी तो नहीं
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श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह‘रेत के रिश्ते’
की अठारहवीं कवितापाण्डुरोग का रोगी
तुम्हारा यह सूरज
न तो फसलें पकाता है
न बादल बनाता है।उजाला तो खैर इसके पास
कभी था ही नहीं।
वह गर्भ, गर्भ ही नहीं था
जिसमें इसका भ्रूण बना,
वह कोख, कोख ही नहीं थी
जिसने इसे जना।एकोऽहम्
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केंद्र बिंदुमें रह
जाते हैं सिर्फ अवसाद भरे दिन, इस
अंधकार से मुक्ति दिलाता है
केवल अपना अंतर्मन, अग्निशिखा
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अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस: मरने से पहले जीना सीख लो!!
आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल--
व्यंग्य - धनुष के बेजोड़ तीरंदाज लतीफ़ घोंघी
मेरे दिल की बात--
स्वप्नों का बाजार सजा हैं
आज रात बहुत कठिनाई से
किसी की चाहत से बड़ा
उसका कोई खरीदार नहीं है |
दुविधा में हूँ जाऊं या न जाऊं
स्वप्नों के उस बाजार में
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सफेद फूल का मौसम
तुम्हें और मुझे
दोनों को पसंद है।
हां
सफेद फूलों का मौसम
उनकी दुनिया
सब है
यहीं
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अब तो भारतीय पारम्परिक जीवन शैली को अपना लें
भारतीय संस्कृति में प्रकृति और नारी को बहुत सम्मान दिया गया है। इसलिए धरती और नदियों को भी माँ कहकर ही बुलाते हैं। समय-समय पर पेड़ों की भी पूजा की जाती है पेड़ों में प्रमुख है:- पीपल,बरगद,आम,महुआ,बाँस, आवला,विल्व,केला नीम,अशोक,पलास,शमी, तुलसी आदि मेरी नज़र से--
प्रकृति को बदलना है, सोच बदलिये
हम ठान लें कि सोशल मीडिया पर महीने में दो पोस्ट प्रकृति संरक्षण या जागरुकता की अवश्य लिखेंगे और महीने में एक बार कुछ दिनों के लिए डीपी पर भी प्रकृति को ही जगह देंगे, क्यों न हम अपनी डीपी पर पीपल, आम, नीम, आंवला या कोई और वृक्ष लगाएं... Editor Blog--
पितृ पक्ष की बेला हो और डॉ.नन्द लाल मेहता 'वागीश ' को साहित्यिक सुमन अर्पित न किये जाए तो श्राद्धपक्ष के कोई मायने नहीं रह जाएंगे।डॉ. नन्दलाल मेहता वागीश का निधन, 80 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
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आज के लिए बस इतना ही...!
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घोंघीजी के बारे में इतनी जानकारियॉं पहली बार, यहीं मिलीं। बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर
आदरणीय शास्त्री जी, प्रणाम !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,सारगर्भित तथा पठनीय अंक।
मेरी रचना को मान और स्थान देने के लिए आपका हार्दिक नमन एवम वंदन ।आपको और सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई ।
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका आदरणीय...। मेरी रचना को शामिल करने के लिए साधुवाद...।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय सर,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार एवं नमन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार मेरी पुस्तक से पाठकों को परिचित करवाने हेतु
जवाब देंहटाएंThanks for the post here
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