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Wednesday, September 29, 2021

"ये ज़रूरी तो नहीं" (चर्चा अंक-4202)

 मित्रों!

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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गीत "कॉफी की चुस्की ले लेना" 

क्षणिक शक्ति को देने वाली।
कॉफी की तासीर निराली।।

जब तन में आलस जगता हो,
नहीं काम में मन लगता हो,
थर्मस से उडेलकर कप में,
पीना इसकी एक प्याली।
कॉफी की तासीर निराली।।

उच्चारण 

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बोलना चाहिए इसे अब 

एक समय पहले अतीत
ताश  के पत्ते खेलता था
 नीम तो कभी
पीपल की छाँव में बैठता था 
न जाने क्यों ?
आजकल नहीं खेलता
 घूरता ही रहता है 
 बटेर-सी आँखों से... 

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सूखती नदी (नदी दिवस) 

उस नदी की चाह में मैं रेत पर चलती रही ।
जो कभी माँ के जमाने में यहाँ बहती रही ।।

जाने कितनी ही कहानी माँ ने मुझको है सुनाई ।
हर कहानी में नदी ही प्रेरणा बनती रही ... 

जिज्ञासा की जिज्ञासा 

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ये ज़रूरी तो नहीं 

"ये ज़रूरी तो नहीं" मेरी110 ग़ज़लनुमा कविताओं का संग्रह है, जिन्हें आप ब्लॉग पर भी पढ़ सकते हैं और ebook के रूप में भी | दोनों के लिंक निम्न हैं - 
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अर्ज़ियाँ 

उस अधूरे बेरंग बिखरे पते पर l
अर्ज़ियाँ डाली इन तन्हाइयों ने ll

आहटें हलकी थी इनके अल्फ़ाज़ों की l 
दस्तक चुप चुप थी इनके हुँकारों की ll

फिरा ले उन्हें डाकिया हर गली गली l
मिला ना ठिकाना उसे किसी गली भी ll  

RAAGDEVRAN 

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गायत्री-गर्भ 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’ 
की अठारहवीं कविता
पाण्डुरोग का रोगी
तुम्हारा यह सूरज
न तो फसलें पकाता है
न बादल बनाता है।
उजाला तो खैर इसके पास
कभी था ही नहीं।
वह गर्भ, गर्भ ही नहीं था
जिसमें इसका भ्रूण बना,
वह कोख, कोख ही नहीं थी
जिसने इसे जना।
एकोऽहम् 

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आत्म दीपो भवः 

केंद्र बिंदु
में रह
जाते हैं सिर्फ अवसाद भरे दिन, इस
अंधकार से मुक्ति दिलाता है
केवल अपना अंतर्मन, 
अग्निशिखा 

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अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस: मरने से पहले जीना सीख लो!! 

आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल 

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व्यंग्य - धनुष के बेजोड़ तीरंदाज लतीफ़ घोंघी 

जिनके व्यंग्य धनुष के नुकीले तीरों ने देश और दुनिया की तमाम तरह की सामाजिक ,आर्थिक विसंगतियों को अपना निशाना बनाया , जिनके व्यंग्य बाण  समय -समय पर  मीठी छुरी की तरह चलकर , हँसी -हँसी में ही लगभग 50 वर्षों तक  भारत के भयानक टाइप भाग्य विधाताओं को घायल करते रहे , हिन्दी व्यंग्य साहित्य के ऐसे बेजोड़  तीरंदाज स्वर्गीय लतीफ़ घोंघी का  आज जन्म दिन है। उन्हें विनम्र नमन । 
मेरे दिल की बात 

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स्वप्नों का बाजार 

स्वप्नों का बाजार सजा हैं

आज रात बहुत कठिनाई से

किसी की चाहत से बड़ा  

उसका कोई खरीदार  नहीं है |

दुविधा में हूँ जाऊं या न जाऊं

स्वप्नों के उस बाजार में 

Akanksha -Asha Lata Saxena 

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तुम्हारे लिए.. 

मैं जानता हूं

सफेद फूल का मौसम

तुम्हें और मुझे

दोनों को पसंद है।

हां

सफेद फूलों का मौसम

उनकी दुनिया

सब है

यहीं 

पुरवाई 

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अब तो भारतीय पारम्परिक जीवन शैली को अपना लें 

  भारतीय संस्कृति में प्रकृति और नारी को बहुत सम्मान दिया गया है। इसलिए धरती और नदियों को भी माँ कहकर ही बुलाते हैं। समय-समय पर पेड़ों की भी पूजा की जाती है पेड़ों में प्रमुख है:- पीपल,बरगद,आम,महुआ,बाँस, आवला,विल्व,केला नीम,अशोक,पलास,शमी, तुलसी आदि मेरी नज़र से 

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प्रकृति को बदलना है, सोच बदलिये 

हम ठान लें कि सोशल मीडिया पर महीने में दो पोस्ट प्रकृति संरक्षण या जागरुकता की अवश्य लिखेंगे और महीने में एक बार कुछ दिनों के लिए डीपी पर भी प्रकृति को ही जगह देंगे, क्यों न हम अपनी डीपी पर पीपल, आम, नीम, आंवला या कोई और वृक्ष लगाएं... Editor Blog 

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पितृ पक्ष की बेला हो और डॉ.नन्द लाल मेहता 'वागीश ' को साहित्यिक सुमन अर्पित न किये जाए तो श्राद्धपक्ष के कोई मायने नहीं रह जाएंगे।डॉ. नन्दलाल मेहता वागीश का निधन, 80 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

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आज के लिए बस इतना ही...!

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9 comments:

  1. घोंघीजी के बारे में इतनी जानकारियॉं पहली बार, यहीं मिलीं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर।
    मुझे स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
    सादर

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  4. आदरणीय शास्त्री जी, प्रणाम !
    बहुत सुंदर,सारगर्भित तथा पठनीय अंक।
    मेरी रचना को मान और स्थान देने के लिए आपका हार्दिक नमन एवम वंदन ।आपको और सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई ।

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  5. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

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  6. जी बहुत आभार आपका आदरणीय...। मेरी रचना को शामिल करने के लिए साधुवाद...।

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  7. बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय सर,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार एवं नमन

    ReplyDelete
  8. हार्दिक आभार मेरी पुस्तक से पाठकों को परिचित करवाने हेतु

    ReplyDelete

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