मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए बिना किसी भूमिका के
मेरी पसन्द के कुछ लिंक-
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मेरा भारत महान है तो सपना विदेश का क्यों?
आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल--
ताकती परवाज़े भरती
चील को..
बोझिल,तन्द्रिल दृग पटल मूंद
लेटकर…,
धूप खाती रजाईयों पर
शून्य की गहराईयों में
उतरना चाहती हूँ
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बन उजाला, चाँदनी भी
इस धरा की और धाया
वृक्ष हँसते कुसुम बरसा
कभी देते सघन छाया
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सारे जग की खुशी तुम्हारे घर आकर मुस्कायेगी
यह रचना १९७० के दशक की है | जब सारे देश में परिवार नियोजन की योजना अपने चरम पर थी |
गीत
सारे जग की खुशी तुम्हारे घर आकर मुस्कायेगी |
जीवन की बगिया के माली ,
एक गुलाब लगाओ |
महके सारी धरती जिससे ,
ऐसा फूल खिलाओ |
सारे जग की गंध तुम्हारी गली गली महकाएगी |
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ई सी जी, इंजैक्शन, ऑक्सीजन…
नीम बेहोशियों, हवासों की गुमशुदगी में
उल्टियाँ, घुटन, बेचैनी, दहशत, लाचारी
हाड़ कंपाती ठिठुरन भरी सुरंग से गुजरती रूह
डॉक्टर की कड़क एडवाइज, नसीहतों के बीच
अचानक आना तुम्हारा और
किसी फरिश्ते की तरह दो बार सिर सहला जाना…
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रुई सी कोमल दूध सी धवल
बहुत ही नाजुक टेडीवीअर सी
स्वेत फर की चादर ओढ़े दीखतीं |
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ब्रेकथ्रू-इंफेक्शन और वैक्सीन को लेकर उठे नए सवाल
जिज्ञासा--
हम नादान हैं कुछ भी सुना देते हैं-
हम नादान हैं कुछ भी सुना देते हैं इल्म वाले इसे तूफान बना देते हैंpalolife श्रीसाहित्य--
बुक हॉल: जुलाई-अगस्त 2021 में संग्रह में जुड़ी किताबें
दुई बात--
कुहासे में तैरतेहुए तितलियों
के झुण्ड,
सब
कुछ हैं ख़ूबसूरत, फिर भी न जाने
क्या चाहता है तुम्हारे अंदर
का वन्य आदमी, तुम
देना नहीं चाहते
हो समरूप अग्निशिखा
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ज़रूर नाम किसी शख्स ने लिया होता
किसी हसीन के जूड़े में सज रहा होता.खिला गुलाब कहीं पास जो पड़ा होता. किसी की याद में फिर झूमता उठा होता,किसी के प्रेम का प्याला जो गर पिया होता.
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अरी ! तू अबला कैसे ?
चीर मेघ और भेद गगन को अंतरिक्ष तक पहुँची,
अतल सिंधु की गहराई से चुन लाई तू मोती ।
मरुभूमि में जलधारा ला,हरियाली फैलायी,
बिन पैरों के चढ़ी विश्व की सबसे ऊँची छोटी ।।
तू सृष्टि को धारण करती, सृष्टि धारित तुझसे...
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‘थाली के साथ फ्री एक थाली’ और आपकी बैंक रक़म ख़ाली सोशल मीडिया पर ऐसे विज्ञापनों वाली ऑफर्स से सावधान, मेरठ की टीचर को ऐसी ही ऑफर ने 53 हज़ार रुपए का चूना लगाया देशनामा
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दैनिक ट्रिब्यून संपादकीय पन्ना लेटर्स तो एडिटर 7 सितम्बर २०२१ - उलटवांसी के तहत 'गालियों का दर्शन' ' व्यंग्य आलोकपुरानिक कबीरा खडा़ बाज़ार में
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ग़ज़ल "दिल को बेईमान न कर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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आज के लिए बस इतना ही...!
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‘थाली के साथ फ्री एक थाली’ और ‘ब्रेक थ्रू-इंफेक्शन और वेक्सीन को लेकर उठे सवाल’ र्प्याप्त सूचनापरक और जनोपयोगी हैं।
जवाब देंहटाएंगजल, ‘दिल को बेईमान कर’ मन को भाई। इतनी कि फेस बुक पर साझा की।
बहुत सुन्दर और सार्थक सूत्रों से सजी प्रस्तुति । बेहतरीन और लाजवाब सूत्रों के मध्म मेरे सृजन को स्थान देने के लिए सादर आभार सर ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,प्रणाम !
सभी लिंक्स पर जाकर रचनाएँ पढ़ आई,बहुत सुंदर और मन को छूती रचनाओं का चयन किया है आपने । मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपको मेरा सादर धन्यवाद, आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा नमन और आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बढ़िया |मनेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
'मनेरी' के स्थान पर 'मेरी' पढ़ा जाए |
हटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंखिलखिलाती नदी बहती
जवाब देंहटाएंप्रेम उसकी खबर लाया
मीत बनते प्रीत सजती
गोद में शिशु मुस्कुराया -बढ़िया साहित्यिक तेवर प्रतीक लिए आला गीत।
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजल-जंगल से ही जीवन है
जवाब देंहटाएंदोहन और कटान न कर
जो जनता को आहत करदे
ऐसे कभी बयान न कर
जिससे हो नुकसान वतन का
ज़ारी वो फ़रमान न कर
नहीं सलामत “रूप” रहेगा
सूरत पर अभिमान न कर.
बेहतरीन ग़ज़ल कही है ज़नाब ने ,न जावेद रहेगा न जावेदाँ (रूह )रहेगी बस बाकी सबकुछ फ़ानी है ,ये काया ,जो फ़ानी है इससे भी कुछ काम तो कर ,ऊंचा अपना नाम तो कर।
जावेद फ़ारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है -दाइमी ,बे -इंतहा ,अनंत ,सदा बने रहने वाला ,शाश्वत ,नित्य
जिस्म अपने फ़ानी हैं जान अपनी फ़ानी है ,फ़ानी है ये दुनिया भी ,
फिर भी फ़ानी दुनिया में जावेदाँ तो मैं भी हूँ ,जावेदाँ तो तुम भी हो।
हयात-ए-जावेदाँ हम क्या करेंगे
जहाँ तुम हो वहाँ हम क्या करेंगे
फ़ानी पर शेर
veeruji05.blogspot.com
जवाब दें
भैया अशोक इन आंसुओं को मत रोक -कहते थे मेरे दादा ,रोज़नामचा है गुज़िस्तान कल का उन ज़िंदादिल इंसानों का जिनका लिखा कहा हमारे अंदर बस जाता है ,'हम ' वही हो जाते हैं। ख़्वाब सा बुनता है ये संस्मरण अशोक चक्रधर साहब का।
जवाब देंहटाएंkabirakhadabazarmein.blogspot.com
किसी और के रंग में
जवाब देंहटाएंरंगने के लिए
जरूरी होता है
अपने रंग को छोड़ना ।
यही तो प्रेम की पराकाष्ठा है -
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
बहुत श्रम से संकलित किए गये पठनीय सूत्रों से सजी चर्चा ! आभार मुझे भी इसमें स्थान देने हेतु
जवाब देंहटाएंना खुद से खफा हो ए दोस्त
जवाब देंहटाएंप्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
खिलखिलाती नदी बहती
जवाब देंहटाएंप्रेम उसकी खबर लाया
मीत बनते प्रीत सजती
गोद में शिशु मुस्कुराया -बढ़िया साहित्यिक तेवर प्रतीक लिए आला गीत।
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
भैया अशोक इन आंसुओं को मत रोक -कहते थे मेरे दादा ,रोज़नामचा है गुज़िस्तान कल का उन ज़िंदादिल इंसानों का जिनका लिखा कहा हमारे अंदर बस जाता है ,'हम ' वही हो जाते हैं। ख़्वाब सा बुनता है ये संस्मरण अशोक चक्रधर साहब का।
किसी और के रंग में
रंगने के लिए
जरूरी होता है
अपने रंग को छोड़ना ।
यही तो प्रेम की पराकाष्ठा है -
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
ख़फा हूँ खुद से ही
ना जाने क्यों..
ना खुद से खफा हो ए दोस्त -
ना खुद से खफा हो ए दोस्त
प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
ना खुद से खफा हो ए दोस्त
प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
बढ़िया शैर कही है :
जवाब देंहटाएंहर एक हाल में तन के खड़ा हुआ होता,
खुद अपने आप से मिलता कभी लड़ा होता.-नासवा जी ने।
तुम्हारी उदासियों से देखो
जवाब देंहटाएंकैसी उड़ गई है
ओस की बूंदों की जान - प्रयोग सुंदर
सच कहती हो तुम
खुशियां कितनी नाजुक होती हैं
तुम्हारी तरह
उदासियों को कर दो
स्थगित
सुंदर लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। मेरी पोस्ट को अंक में शामिल करने हेतु आभार।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचनाओं और लेख से सजी सराहनीय प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंAM
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
आदरणीय शास्त्री जी,प्रणाम !
सभी लिंक्स पर जाकर रचनाएँ पढ़ीं और कमेन्ट भी किया जिसके कारण विलम्ब हुआ !त सुंदर और मन को छूती रचनाओं का चयन किया है आपने । मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपको धन्यवाद !