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रविवार, सितंबर 19, 2021

"खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (चर्चा अंक-4192)

सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है 

(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर की रचना से)

आज गणपति वापस अपने घर जा रहें है... 

बस,ग्यारह दिनों के लिए ही आते हैं हमारे पास...

क्या हम सदा के लिए उन्हें अपने घरों में स्थान नहीं दे पाते ?

कैसे दे पाएंगे ?

गणपति तो बुद्धि-विवेक के देवता है...

मात-पिता के अनन्य भक्त है... 

उनके हृदय में बिना भेद-भाव सबके लिए करुणा है... 

और हमने तो इन सभी बातों से अपना नाता ही तोड़ लिया है.... 

तो कैसे रख पाएंगे उन्हें हमेशा अपने घर में ? 

वो स्थान बनाया ही नहीं हमने जहाँ वो रह सकें...... 

ग्यारह दिन संभाल लेते हैं वही काफी है.... 

खैर,विनती है गणपति से कि-जाते-जाते वो हमें थोड़ी सद्बुद्धि तो देकर जाए 

ताकि, कम से कम अपना घर तो अपने रहने लायक रख सकें हम...

इसी प्रार्थना के साथ चलते हैं,आज की कुछ खास रचनाओं की ओर ....

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 नवगीत "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


क्वार का आया महीना,
हो गया निर्मल गगन,
ताप सूरज का घटा,
बहने लगी शीतल पवन,
देवपूजन के लिए,
सजने लगी हैं थालियाँ।
धान के बिरुओं ने,
पहनी हैं नवेली बालियाँ।।


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"चाँद"
कभी गाढ़ी नहीं छनी

इन आँखों की नींद से

बहाना होता है 

इनके पास जागने का

कभी थकान का 

तो कभी काम का

खुली छत पर..

तब भी तुम आया करते थे

हॉस्टल के अनुशासित

 वार्डन सरीखे

और आज भी..---------
मौन की साधना

प्रायश्चित तो हुआ मौन जब तोड़ा
उड़ा गगन तक वेग जिह्वा का घोड़ा

उड़े ज्वाल विकराल अग्नि अंबर तक पहुँची
जला दिए नक्षत्र चंद्रिका की भी भृकुटी

पड़ी हुई सब गाँठ हुई जब जलकर स्वाहा
कर बोला शष्टांग मनुज का मन फिर आहा

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दासता है

इक दिवस की नहीं प्यासी हिन्दी 

आंग्ल की है नहीं न्यासी हिन्दी 

हँसते, रोते हैं कभी हम उदास होते हैं

सांस हिन्दी है, सदा इसके पास होते हैं।------------

कांच का ताजमहल - -कांच के गुम्बदों में कहीं उतरा होगा
किसी नील चंद्र का प्रतिबिम्ब,
हर किसी को कहाँ मिलता
है सपनों का ताजमहल,
अदृश्य स्तम्भों
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सफलता की ओर
साहस के बिना भी कुछ न होगा

प्रयत्न पूरी शिद्दत से करना होगा

इस शिक्षा पर यदि चलोगे तभी सफल होगे

जिन्दगी की कठिन परीक्षा में |

सफलता तुम्हारे कदम चूमेंगी

समाज तुम्हें देगा सम्मान  
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और सूखे पत्ते बचे रह गये ।

पेड़ के पत्तों के झुरमुट से ,

किरणें  सूर्य की झांकी ,

पिघलने लगी थी ,

पत्तों पर जमी बर्फ ,

पर रिश्ते बर्फ से जमे रह गये ।

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मौन स्तब्ध

मैं मौन स्तब्ध नथनी से जो टकरा गया जब l
ज़िक्र अल्फ़ाज़ों में उसका ही ठहर गया तब ll 

बारिश रहमत मोहब्बत की लगी बरसने तब l
पायल उसकी मुस्करा दिल तार छू गयी जब ll

अजनबी आँखों से छलका गयी ऐसा मीठा ज़हर l
रोम रोम तर गया उस मदहोश मधुशाला मयस्सर ll

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एक व्यक्ति की नहीं पूरे समाज की जीवनी है मारीना- वीरेंद्र यादव

‘मारीना’ को पढ़ते हुए पाठक सिर्फ मारीना की जीवन यात्रा में ही शामिल नहीं होते बल्कि वो लेखिका प्रतिभा की विकास यात्रा को भी देख पाते हैं. सचमुच यह किताब हिंदी के पाठकों के लिए प्रतिभा का बड़ा योगदान है. इस काम की खासियत यह है कि यह पूरी तरह से मौलिक काम है. यह किताब एक व्यक्ति का जीवन भर नहीं है, यह एक सामाजिक जीवनी है.
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मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है
वो उंमुक्तता से झुमता है
बशर्ते कि
उसे संयमित अनुपात में
वो सब मिले
जो जरुरी है 
उसके विकास के लिये

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इन दिनों पुरे देश में गजानन की धूम मची है। घर-घर में गणपति पधारे है। बड़ी श्रद्धा से उनका श्रृंगार कर भक्तिभाव से उनकी पूजा-अर्चना  की जा रही है। भक्तिभाव का रंग चहुँ ओर छाया हुआ है। सभी को पूर्ण  विश्वास है कि-गणपति हमारे घर पधारे है तो हमारे घर की सारी दुःख-दरिद्रता अपने साथ लेकर जायेगे,हम सबका कल्याण करेंगे,हमारे घर में खुशियों का आगमन होगा। ---------------आप सभी को अनंत चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनायें गणपति बप्पा हम सभी पर अपनी कृपादृष्टि बनाये रखें 

आज का सफर यही तक 

आपका दिन मंगलमय हो 

कामिनी सिन्हा 





मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है
वो उंमुक्तता से झुमता है
बशर्ते कि
उसे संयमित अनुपात में
वो सब मिलेशीर्षक -" तुम्हें गीतों में ढालूँगा सावन को आने दो....." 


 








जो जरुरी है 
उसके विकास के लिये
जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरु


10 टिप्‍पणियां:

  1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात🙏🙏🙏🙏 सभी आदरणीय सर और मैम को
    बहुत ही उम्दा प्रस्तुति!
    सभी अंक काबिले तारीफ है!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद कामिनी जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय कामिनी मेम सादर शुभप्रभात ,

    मेरी इस प्रविष्टि् को चर्चा रविवार (19-9-21) को "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (चर्चा अंक-4192) पर शामिल करने के लिए बहुत आभार एवं सादर धन्यवाद ।
    सभी सम्मिलित रचनाएं बेहतरीन, सभी आदरणीय को बहुत बधाइयां एवं शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर और बेहतरीन सूत्रों से सजी प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आप सभी को तहेदिल से शुक्रिया एवं नयन

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार कामिनी जी,सुंदर तथा सारगर्भित रचनाओं का संकलन मन मोह गया । आपके श्रम को मेरा सादर नमन एवम वंदन ।

    जवाब देंहटाएं
  8. कामिनी जी वाह बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ लिखी है आपने। धन्यवाद।   Zee Talwara

    जवाब देंहटाएं

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