मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत:
संस्कृत भारत की सभ्यता और संस्कृति के मूल को करती है परिभाषित--
हे! मानस के दीप कलश
तुम आज धरा पर फिर आओ।
नवयुग की रामायण रचकर
मानवता के प्राण बचाओं।।
--
बदलाव लघुकथा बदलाव पवित्रा अग्रवाल पुरानी कामवाली अपनी बेटी लक्ष्मी के साथ छोटी बेटी की शादी का कार्ड देने आई थी. करीब 15 वर्ष बाद मैंने उनको देखा था। लक्ष्मी को सलवार सूट पहने देखा तो पुरानी बात याद आ गई. मैंने उसे सलवार सूट देना चाहा था तो बोली-' अम्मा यहाँ तो इसे संडास साफ करने वाली पहनती हैं.’ 'अरे मैं भी तो पहनती हूँ तो क्या मैं ...
--
भुलक्कड़ पति से घर का सामान मंगाने के लिए महिला ने निकाला ये तोड़ पति को घर की ज़रूरत (Grocery) का सामान लाने के लिए कहा जाए और वो कुछ का कुछ ले आए या कुछ लाना ही भूल जाए. ऐसी स्थिति का सामना अक्सर महिलाओं को करना पड़ता है. इस समस्या का समाधान एक TikToker महिला ने निकाला है. सोशल मीडिया यूजर मेलिंडा ने अपने भुलक्कड़ पति के लिए ऐसी ग्रोसरी लिस्ट तैयार की जिसमें सामान का नाम लिखने की जगह उनकी तस्वीरें पेस्ट कर दीं. इंटरनेट पर इस महिला को जीनियस बताया जा रहा है.
--
कविता :"यह मौसम है बहुत बेगाना " यह मौसम है बहुत बेगाना | जब चाहिए तब हो जाता अनजाना , गर्मी में हाल है बेकार | सर्दी में लोग करते है आराम , बरसात का मौसम है प्यारा | यही होता है एक मात्र सहारा , मौसम है बहुत बेगाना |
--
फ़ैज़ाबाद का इतिहास - अब्दुल हलीम 'शरर' की 'गुज़िश्ता लखनऊ' से | Faizabad History in Hindi
--
हज़ार-हज़ार रूपों में वही तो मिलता है
हमें प्रतिभिज्ञा भर करनी है
फिर उर को मंदिर बना
उसकी प्रतिष्ठा कर लेनी है
यूँ तो हर प्राणी का वही आधार है
किंतु अनजाना ही रह जाता
बस चलता जीवन व्यापार है
--
घनीभूत चेतना हमारी सम्भावना है. हमारे चारों ओर जो प्रकाश बिखरा है, यदि उसे केंद्रित किया जाये तो अग्नि पैदा हो जाती है. चेतना का सागर हमारे चारों ओर लहर रहा है. ध्यान के अभ्यास के द्वारा उसे घनीभूत कर दें तो भीतर नए जगत का निर्माण हो जाता है. चैतन्य की अनुभूति ऐसे ही क्षणों में होती है, वह आनंद घन है, रसपूर्ण है, प्रतिपल नूतन है. वह सहज और सरल है. उसी से जीवन का प्राकट्य हुआ है.--
दखल प्रकाशन लेकर आया है पाठकों के लिए आकर्षक योजना
इन योजनाओं के अंतर्गत पुस्तकों के दो सेट आकर्षक दामों में पाठकों को मुहैया करवाये जा रहे हैं।
पहली योजना के अंतर्गत 850 रुपये मूल्य की पाँच किताबें 350 रुपये में पाठकों को मुहैया करवाई जा रही है। साथ ही यह किताबें पाठकों को मुफ़्त में डिलीवर की जाएंगी। इन पुस्तकों में तीन कहानी संग्रह और दो उपन्यास शामिल हैं।
इस योजना में निम्न पुस्तकों को पाठकों को दिया जा रहा है:
- नमक और अन्य कहानियाँ - रज़िया सज्जाद ज़हीर (कहानी संकलन)
- खिलंदड़ ठाट - विजय गौड़ (कहानी संकलन)
- स्याह सफेद और स्लेटी भी - रणवीर सिंह चौहान (उपन्यास)
- आवाजों वाली गली - कविता (कहानी संकलन)
- दमिता - रूद्राणी शर्मा (उपन्यास, असमिया से अनूदित)
--
कृष्ण कहाँ है!
जन्म दिवस तो नंद लाल का
हम हर वर्ष मनाते है।
पर वो निष्ठुर यशोदानंदन
कहाँ धरा पर आते हैं।
भार बढ़ा है अब धरणी का
पाप कर्म इतराते हैं।
--
--
मन से सोचा
दिल से दोहराया
इतना प्यारा
फिर भी न अपना
--
--
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दोनों पद्धतियों, हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत में एकल वाद्य-वादन का उतना ही महत्वपूर्ण स्थान है जितना एकल गायन का । सदियों पहले शास्त्रीय संगीत में वाद्यों की संख्या सीमित थी । बाद की शताब्दियों में नए-नए वाद्ययंत्रों का निर्माण होता गया--
गीत "नाम है आचमन, जाम ढलने लगे"
करते-करते भजन, स्वार्थ छलने लगे।
करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
आज के लिए बस इतना ही...!
--
बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय।
जवाब देंहटाएंसादर
शुभ प्रभात ! बहुत श्रम से अनेक विविधतापूर्ण रचनाओं के लिंक्स से सजाया गया है आज का चर्चा मंच, बहुत बहुत आभार शास्त्री जी मुझे भी शामिल करने हेतु।
जवाब देंहटाएंउम्दा अंक आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और श्रमसाध्य प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा... मेरी प्रविष्टि को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार...
जवाब देंहटाएंश्रम साध्य ख़ोज, बहुत आकर्षक लिंक, अभिनव चर्चा।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक बेहतरीन।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर।
कृष्ण को टेरती ये रचना गोपीनन्दन राधावल्लभ माधव को आज की सामाजिक राजनीतिक दुर्दशा से वाकिफ करवाती है।जितना खींचों चीयर यहां अब दामन ये चिल्लाते हैं कृष्ण कहाँ अब आते हैं जब दुर्योधन इतराते हैं.लीलाधर कितने स्वघोषित पल पल लीला दिखलाते हैं आँख मींचकर नैतिकता -नैतिकता सब चिलाते चिल्लाते हैं.
जवाब देंहटाएंयथार्थ को प्रतिबिंबित ध्वनित मुखरित अनुगूंजित करती रचना प्रज्ञा कुसुम कुठारी की सबको आइना थमाती है।
राम की पितृ व्यथा का मार्मिक चित्रण श्रद्धा सुमन पर अनिताजी की कलम से।
हे! मानस के दीप कलश
तुम आज धरा पर फिर आओ।
नवयुग की रामायण रचकर
मानवता के प्राण बचाओं।।
कामिनी सिन्हा का आवाहन राम सबका आवाहन है। वैसे तो हैं कितने राम ,सबके अपने अपने राम ,कहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम मेरे तेरे सबके राम। बेहद की सार्थक निर्मल रचना पतित पावनी सुरसरि सी।
घनीभूत चेतना हमारी सम्भावना है. हमारे चारों ओर जो प्रकाश बिखरा है, यदि उसे केंद्रित किया जाये तो अग्नि पैदा हो जाती है. चेतना का सागर हमारे चारों ओर लहर रहा है. ध्यान के अभ्यास के द्वारा उसे घनीभूत कर दें तो भीतर नए जगत का निर्माण हो जाता है. चैतन्य की अनुभूति ऐसे ही क्षणों में होती है, वह आनंद घन है, रसपूर्ण है, प्रतिपल नूतन है. वह सहज और सरल है. उसी से जीवन का प्राकट्य हुआ है.
आध्यात्मिक चिंतन मनन के तहत अनिता जी के अप्रतिम विचार सदैव की भाँती भले लगे। 'जीवन में जब ध्यान हटेगा 'पर
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा की रचना 'कोई, क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
कितना, टूटा क्या!
वो वृक्ष घना था, या इक वन था,
सावन था, या इक घन था,
विस्तृत जीवन का, लघु आंगन था,
विस्मित करता, वो हर क्षण था!
अतीत को कुरेद दबे पाँव निकल जाती है।
बेहतरीन गीत शस्त्रीजी रूप चंद मयंक का -
नाम है आचमन, जाम ढलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।।
शीत में है तपन, हिम पिघलने लगे।
करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। स्वभाव छोड़ रही है हर चीज़ अपना क्लाइमेट चेंज सा।
सराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद वीरेंद्र जी,बहुत ही सुंदर प्रतिक्रिया दी है आपने
हटाएंगहन शोधपरक आलेख है :शाश्वत शिल्प पर दरअसल संगीत की आत्मा एक है जो सभी वाद्यों में मुखरित होती है। संगीत की एक सार्वत्रिक व्याख्या है प्रेम -योग सांख्य भाव सम्मोहन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और श्रमसाध्य प्रस्तुति आदरणीय सर,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपको
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय अंक । आपके श्रमसाध्य कार्य को हार्दिक नमन ।
जवाब देंहटाएंअच्छा संयोजन ।
जवाब देंहटाएंआभार ।