सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
( शीर्षक और भुमिका आदरणीय संदीप जी की रचना से)
आओ बुन आते हैं
नदी और किनारों के बीच
गहरी होती दरारों को
जहां
टूटन से टूट सकता है
रिश्ता
और
भरोसा।
आओ नदी तक हो आएं
-----
"नदी भी मर रही है और आदमियत भी"
विचारणीय विषय
मगर सोचने का समय किसके पास...
आज भी नहीं विचार किया तो यकिनन... देर ही नहीं....बहुत देर हो जायेगी...
अति महत्वपूर्ण विषय पर चिंतन करती आदरणीय संदीप जी की बेहतरीन रचना..
चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...
******
"दोहा छन्द" आलेख (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तेरह-ग्यारह से बना, दोहा छन्द प्रसिद्ध।
माता जी की कृपा से, करलो इसको सिद्ध।।
चार चरण-दो पंक्तियाँ, करती गहरी मार।
कह देती संक्षेप में, जीवन का सब सार।।
समझौता होता नहीं, गणनाओं के साथ।
उचित शब्द रखकर करो, दोहाछन्द सनाथ।।
******
नदी का मौन, आदमियत की मृत्यु है
आओ
नदी के किनारों तक
टहल आते हैं
अरसा हो गया
सुने हुए
नदी और किनारों के बीच
बातचीत को।
आओ पूछ आते हैं
किनारों से नदी की तासीर
*****
रगरि रगरि धोवे गोड़ कहारिन,
अरे नाउन आई बोलाइ, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।
दूर देस सखि रंग मंगायंव,
मेहंदी मंगायंव मारवाड़, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।
काजल की कोठरी
में पहुंच काजल की
कालिख से कैसे बचेंगे |
कितना भी बच कर चलेंगे
काला रंग काजल का
लग ही जाएगा |
*****
क्यूँ बँट रहे हैं लोग..
जर जोरु जमीन के खातिर बँट रहे हैं लोग
जाति धर्म समुदाय के नाम पे कट रहे हैं लोग
इन्सानियत और अपनेपन को भुला चुके हैं
धीरे-धीरे परिवार मे तभी घट रहे हैं लोग
*****
स्नेह का रिश्ता
रिश्ते की अहमियत स्नेह से ही है । अपने और पराए की पहचान सुख-दुख में स्नेह से ही होती है। स्नेह ना हो तो अपना भी पराया। स्नेह हो तो पराया अपना। मनीषियों ने भी स्नेह को ही सर्वोत्तम रिश्ता माना है।
अस्नेही भाई दुर्योधन ने द्रोपदी का चीरहरण किया। और स्नेही कृष्ण भाई से बढ़कर हुए।
स्नेह ही है जो एक पप्पी (कुत्ता) को परिवार का सदस्य बना देता है।
*****
आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे
आप का दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा