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बुधवार, अप्रैल 06, 2022

"अट्टहास करता बाजार" (चर्चा अंक-4392)

 स्नेहिल अभिवादन!

प्रस्तुत है बुधवार की चर्चा।

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गीत "भय-आतंक मिटाना है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

तन, मन, धन से हमको, 
भारत माँ का कर्ज चुकाना है।
फिर से अपने भारत को, 

जग का आचार्य बनाना है।।
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"भू का अभिनव शृंगार लिए, 

नूतन सम्वत्सर आया है" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

फिर से उपवन के सुमनों में
देखो यौवन मुस्काया है।
उपहार हमें कुछ देने को,
नूतन सम्वत्सर आया है।।

उच्चारण 

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यही सनातन धर्म सिखाता कृष्ण की गीता को चाहे सबने न भी पढ़ा हो पर केवल परमात्मा  का नाम ही सत्य है, इससे कौन अनभिज्ञ है। भारत की इस संस्कृति का हमें सम्मान करना है और इसकी गूंज सारे विश्व तक पहुँचे इसलिए इसका पालन और विस्तार करना है।  डायरी के पन्नों से 

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प्रार्थना के मेरे उद्गार सुन लो शारदे 

प्रार्थना के मेरे उद्गार, सुन लो शारदे ।
खोल दो आज मन के द्वार, सुन लो शारदे ।।

यहाँ से दूर उस जग तक, सदा दौड़ी मैं जड़ता संग,

मिले न शब्द शाश्वत, शिल्प, सुर न ताल सुन लो शारदे ।।

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चलो री सखी देवी मनाइ लेइ (लोकगीत) 

आइ गए चैत नवरात 
चलो री सखी देवी मनाइ लेइ

देवी से माँग लेई बिद्या बुद्धि
मन का माँग लेइ तनिक सुद्धि
माँग लेइ रोजी रोजगार 
बलक नौकरिया भी माँग लेइ।। 

जिज्ञासा के गीत 

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“मेघ“ 

अम्बर में घिर आए घन

पछुआ चलती सनन सनन और

मेघों ने छेड़ा जीवन राग

पुष्पों में खिल आए पराग

हर्षित धरती का हर कण

 पछुआ चलती सनन सनन

मंथन 

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भाग्य  भाग्य का सितारा

न जाने कब चमकेगा

कितने योग आए राशी में

सितारों में चमक दिखलाते |

 सच की परिक्षा में

एक भी सफल न हुआ 

Akanksha -asha.blog spot.com 

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मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार राजीव कुमार भृगु का गीत मेरी पीड़ा तुम क्या जानो 

कितने दर-दर में भटकी हूँ।

छोड़ा है जबसे दर तेरा,

बीच भँवर में मैं अटकी हूँ। 

साहित्यिक मुरादाबाद 

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जो शून्य बना छाया जग में 

जग जैसा है बस वैसा है 

निज मन को क्यों हम मलिन करें, 

जो पल-पल रूप बदलता हो 

उसे माया समझ नमन करें !

मन पाए विश्राम जहाँ 

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एक थी कावेरी पागल से अस्त-व्यस्त बालों वाली कावेरी बचपन से जवानी तक और उसके आगे भी बोझ होने का बोझ उठाते रही । बांझ चाची के पास छोड़ दिया तो बचपन उस धरती पर  गुजरा कावेरी का  जिस धरती पर कभी बीज अंकुरित नहीं हुआ था । चाची से तो ममता नहीं मिली पर हां जीवन का गणित जरूर सीख लिया । जिस दिन डांट पड़ती उस दिन उसके बाल नहीं बनते और नन्हे हाथों से कावेरी अपने बाल सवारती  स्कुल पहुंचने में देरी होती अगर गणित के अध्यापक कक्षा में होते तो खूब धुलाई होती । वैसे भी कावेरी को गणित और गणित का मास्टर दोनों यमराज से लगते ।  जबरदस्ती पहले बैंच पर बिठाया जाता और जिस दिन बोर्ड के तरफ उसकी सवारी गणित के अध्यापक  कक्षा में निकालते उस दिन बच्चे खूब हंसते और शर्म से गडी गडी कावेरी बगीजे के आम के नीचे बैठकर खूब रोती वो सीखना चाहती थी पर सिखाएगा कौन यह सवाल था  कावेरी 

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माँ चन्द्रघण्टा 

नवरातों त्योहार में,दिवस तीसरा ख़ास है ।
चंद्र घंट को पूज के ,लगी मोक्ष की आस है।।

सौम्य रूप में शाम्भवी,माँ दुर्गा अवतार हैं।
घण्टा शोभित शीश पर ,अर्ध चंद्र आकार है ।।

सिंह सवारी मातु की,अस्त्र शस्त्र दस हाथ में।
दर्श अलौकिक जानिए ,दिव्य शक्तियाँ साथ में।।

काव्य कूची 

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अंधेर-नगरी के चौपट्ट राजा के राज्यारोहण से पूर्व की कथा 

वत्स ! अब तू अंधेर-नगरी के राजनीतिक दलदल में कूद पड़. मेरी ओर से तेरी शिक्षा पूर्ण हो चुकी है !

महा-घाघ ने अपने हाथ जोड़ कर गुरुघंटाल से कहा 

गुरु जी ! आपकी चरण-धूलि तो ले लूं और यह भी सुनिश्चित कर लूं कि यह महा-घाघ विद्या आप किसी और को न दे पाएं !

इतना कहकर महा-घाघ ने गुरुघंटाल को उनके पैर से उठा करउन्हें ज़मीन पर पटक दिया और फिर उनका गला दबाउनको अपना अंतिम प्रणाम करवह अंधेर-नगरी जीतने के लिए चल पड़ा. 

तिरछी नज़र 

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किताबों की दुनिया   आज ज़नाब रियाज़ ख़ैराबादी साहब की ग़ज़लों की वही किताब  'शब-ए-ग़म की सहर नहीं होती' जिसका अजय नेगी साहब ने लिप्यंतरण और सम्पादन किया है हमारे सामने खुली हुई है :


कमबख़्त जब क़ुबूल न हो कोई क्या करे 
मुद्दत हुई कि हाथ दुआ से उठा लिया 

दिल लाख पाक साफ़ है दामन का क्या करूंँ
जा जा के मयकदे में ये धब्बा लगा लिया  

नीरज 

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आपका मोबाईल लेने का अधिकार पुलिस के पास नहीं है कल्पतरू 

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एक घर की तलाश ! 

"हाँ , लेकिन जिस्म में बहते हुए लहू में जो संस्कार बह रहे हैं , उनको मैं नहीं छोड़ने देना चाहता।  तुम रोजे रहो तुम्हारी मर्जी , लेकिन तुम नवरात्रि रहोगी तो मैं अपनी जीत समझूंगा।" 
 रेवा पूरे घर में घूम घूम कर देख आयी और इतने सलीके से लगा और किसी बहुत अपने को पाकर उसे लगा की उसके एक घर की तलाश आज पूरी हुई है। 

कथा-सागर रेखा श्रीवास्तव

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नज़्म "हम देखेंगे" फैज़ अहमद फैज़ साहब  भावसार सहित देखें इस नज़्म का पूरा तर्ज़ुमा हिंदी में : 

लाज़िम है कि हम भी देखेंगे 
वो दिन कि जिस का वादा है 
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है 
(हम देखेंगे 
तय है कि हम भी देखेंगे, 
वो दिन (क़यामत का दिन, प्रलय का दिन) वो दिन कि जिसका वायदा सृष्टि निर्माण के वक्त किया गया था जो हम सबके भाग्य की लकीर आदिकालीन तख्ती पे जो "होना " लिखा जा चुका है ,उस दिन का होना हम देखेंगे  कि जिसका वादा है जैसा कि लौहे-अज़ल / आदि काल रूपी तख़्ती पर लिखा हुआ है।   कबीरा खडा़ बाज़ार में 

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गौरेया तुम्हारे लिए... मेरा आत्मग्लानि भरा खत.. 

कैसे कहूं... तुमसे बतियाना चाहता था गौरेया। यह आत्मग्लानि है और मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था... ओ री प्यारी गौरेया कैसे कहूँ कि मैं तुमसे बतियाना चाहता था...। जानता हूँ 40 का तापमान तुम्हारे लिए नहीं है... किसी के लिए भी नहीं है... लेकिन तुम्हारे लिए तो यह  जानलेवा है 

Editor Blog 

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एक दिन गिर जाएंगे सूखे पत्तों से 

सूखती धरा 
पलायनवादी विचारधारा
आग में झुलसती प्रकृति
धरा के सीने से
पानी खींचते लोग
पानी पर चढ़कर 
अट्टहास करता बाजार।

पुरवाई 

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खुद हम

रोज़ नए किरदार निभाते हैं ,

कुछ रंगीन ,कुछ श्वेत -श्याम रूप में

होते खुद हम

कुछ अभिनय हमारा बखूबी दिल चुरा जाता सबका ,

कुछ में होते हैं फ़ेल हम

Roshi पीलीभीत

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गमक उठे हैं साल वन 

ढाक-साल सब खिल गए, मन मोहे कचनार।

वन प्रांतर सुरभित हुए, वसुधा ज्यों गुलनार।।

गमक उठे हैं साल वन, झरते सरई फूल।

रंग-गंध आदिम लिए, मौसम है अनुकूल।। 

शीराज़ा [Shiraza] 

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मनुष्य से पहले: C से Cell 

पिछली पोस्ट में हमने अबायोजेन्सिस की बात की। इस पोस्ट में हम एक कदम आगे बढ़ेंगे। अगर हम जीवित चीजों को देखते हैं तो पाते हैं कि हर जीवित चीज कोशिका (cell) से बनी हुई है। जीव या तो एक कोशिकीय (single celled) होते हैं या बहुकोशकीय  (multicellular )होते हैं। बहुकोशिकीय जीव कई तरह के कोशिकाओं से बनते हैं। यानि धरती पर आए जीवन की बात करें तो कोशिका का उत्पन्न होना जीवन के उत्तपन होने के अगली इकाई है।  

दुई बात 

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नीले परिन्दे - इब्ने सफी 

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 132 | प्रकाशक: हार्पर कॉलिन्स | शृंखला: इमरान | अनुवाद: चौधरी ज़िया इमाम

पुस्तक लिंक: अमेज़न

एक बुक जर्नल 

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पुस्तक समीक्षा : इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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11 टिप्‍पणियां:

  1. विविधता से परिपूर्ण सुन्दर सार्थक व श्रमसाध्य प्रस्तुति । आज की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी ।

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  2. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद शास्त्री जी आज के अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए |

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  3. सुप्रभात, पढ़ने के लिए शानदार और ढेर सारी सामग्री लेकर आया है आज का अंक, बहुत ही श्रम से संकलित चर्चा मंच में मुझे भी स्थान देने के लिए हृदय से आभार शास्त्री जी !

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  4. आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी...। मेरी रचनाओं को सम्मान देने के लिए साधुवाद।

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  5. बहुत ही ज्ञावर्धक परिचर्चा, सभी सहभागियों को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ🌷🌷🙏🙏

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  6. बेहतरीन और श्रमसाध्य चर्चा अंक आदरणीय सर,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन

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  7. आदरणीय शास्त्री जी, सादर प्रणाम !
    श्रमसाध्य प्रस्तुति और सुंदर सराहनीय तथा सामयिक संकलन ।
    मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आपको नमन करती हूं। बहुत बहुत आभार ।
    सभी रचनाकारों को बधाई ।

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  8. आदरणीय भाई साहब,
    सादर नमस्ते
    साहित्यिक मुरादाबाद में प्रस्तुत राजीव कुमार भृगु जी का गीत को साझा करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत आभार ।

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  9. बहुत ही सुंदर संकलन।
    कुछ पढ़ी कुछ छूट गई....।
    सभी को हार्दिक बधाई।
    सादर

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  10. चर्चाअंक में पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।

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  11. बहुत अच्छी चर्चा। सुंदर, पठनीय लिंक्स। मेरी रचनना शामिल करने के लिए धन्यवाद।

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