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बुधवार, मई 18, 2022

"मौसम नैनीताल का" (चर्चा अंक-4434)

 चर्चा मंच के पाठकों को सादर अभिवादन।

बुधवार की चर्चा में देखिए!

मेरी पसन्द के कुछ लिंक!

--

बालगीत "मौसम नैनीताल का" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

गरमी में ठण्डक पहुँचाता, 
मौसम नैनीताल का! 
मस्त नज़ारा मन बहलाता, 
माल-रोड के माल का!!  
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नौका का आनन्द निराला, 
क्षण में घन छा जाता काला, 
शीतल पवन ठिठुरता सा तन, 
याद दिलाता शॉल का! 

उच्चारण 

--

बुद्ध 


निर्विकार के उठते हिलकोरे 

पग-पग पर करते प्रबुद्ध 

उर बहती प्रीत सरित कहे 

ममता के पदचाप में बुद्ध।

गूँगी गुड़िया 

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महीने की एक बकवास की कसम को कभी दो कर के भी तोड़ दिया जाता है 

सब के पास होती है अपनी कविता
सब ही कवि होते हैँ
कुछ लिख लेते हैँ
कुछ बस सोच लेते हैँ कविता 

उलूक टाइम्स 

--

बुद्ध ने क्या दिया 

फेसबुक पर एक भाई ने पूछा कि गौतम बुद्ध ने देश को दिया क्या है? तो मैं अल्पबुद्धि व्यक्ति कुछ लिखने का साहस कर रहा हूँ। कुछ अनुचित लिखा हो तो क्षमा करें।
बन्धु वर्तमान में ऐसे विवादों की आवश्यकता नहीं है। गौतम बुद्ध भारतीय वाङमय में ऐसे विचारक हैं जिन्होंने समाज को एक नवीन मानवतावादी दर्शन प्रदान किया जो सत्य, प्रेम और अहिंसा पर आधारित था। वह महात्मा अगस्त्य(शैव मत के प्रचारक) के पश्चात ऐसे दूसरे विद्वान थे जिन्होंने भारतीय मनीषा को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित कर पाने में और बड़े बड़े राजा महाराजाओं को अपने सिद्धांतों से अभिभूत करने में सफलता पाई थी।  गौतम बुद्ध ने जिस मध्यम मार्ग को अपनाने की बात कही है वह ऐसा मार्ग है जिसकी उपेक्षा करने के कारण हम असंख्य सुविधाओं से युक्त होने पर भी विषादग्रस्त हैं। 

मेरी दुनिया 

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परिवार 

मनाने लगे 

परिवार दिवस 

अजब युग 


यह तो जुड़ा

अभिन्न रूप से ही

हमारे साथ  

Sudhinama 

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सदमा! 

वो मेरी बहुत

घनिष्ठ और आत्मीय 

अचानक एक दिन खो बैठी

अपने जीवन साथी को।

अवाक् और हतप्रभ खामोश हो गई।

जब पहुँची उसके सामने तो

सदमे में घिरी 

उदास और बेपरवाह सी बैठी थी। 

hindigen 

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पीला 

पीला रंग पहले पसन्द नहीं था मुझे 

पीला जैसे-

झुलसाती जेठ की धूप

बीमार थकी आँखें

तीखी सी पीड़ा 

जलाता ताप तन-मन का

सब पीला- पीला…! 

ताना बाना 

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जीवन की राहों को कुछ आसान करूँ 

 

--

मकान बनाने का खेल 

बनाती है वह

अपनी तरह की एक 

बहुमंजिला अट्टालिका,

खड़ा करती है लकड़ी के 

टुकड़ों से बिम, 

डालती है कूड़ा करक्कट की छत  

अडिग शब्दों का पहरा 

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पुराने दिनों की सोंधी महक 

ऐसी स्थिति आज नहीं दिखती. आज छतों पर सोने का, टहलने का जैसे रिवाज ही नहीं रह गया. सुबह हों या शाम या फिर रात, छतों पर टहलते लोग, शरारत करते बच्चे दिखाई ही नहीं पड़ते. लाइट आये या न आये, लोग घरों में ही घुसे रहना पसंद करने लगे हैं. बच्चों के पास स्कूल के काम उन दिनों भी हुआ करते थे मगर आज के जैसा बोझ नहीं हुआ करता था. 

रायटोक्रेट कुमारेन्द्र 

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नीम का पेड़ 

क्लास रूम के पीछे लगा नीम का पेड़
कितना सुंदर आँगन है
कितने ही पक्षियों का
पेड़ की डालियों पर अपना अपना कोना थामे
बैठे थे कई कबूतर 

शेफालिका उवाच 

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राहुल भट्ट की बेवा को बधाई 

(आज से लगभग 35 साल पहले, इस कविता की रचना, देश में बढ़ती हुई आतंकवादी घटनाओं को रोक पाने में असमर्थ सरकार से दुखी हो कर की गयी थी.
पहले यह कविता किसी और की बेवा के लिए लिखी गयी थी और आज इसे राहुल भट्ट के बेवा के लिए कहा जा रहा है.

सवाल यह उठता है कि इतने अर्से बाद भी यह कविता आज भी प्रासंगिक क्यों है.)

अरे मृतक की बेवा तुझको, इस अवसर पर लाख बधाई !

अखबारों में चित्र छपेंगे, पत्रों से घर भर जाएगा,
मंत्री स्वयम् सांत्वना देने, आज तिहारे घर आएगा.

तिरछी नज़र 

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जे सी जोशी स्मृति शब्द साधक सम्मान 2020-21 की हुई घोषणा 

जे सी जोशी स्मृति शब्द साधक शिखर सम्मान 2020-21 की हुई घोषणा

अलग अलग श्रेणियों में यह सम्मान निम्न विभूतियों को दिए जाने की घोषणा की गई है: 

एक बुक जर्नल 

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मेरी सौ सौतानियाँ 

 

तर्ज: नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूँढूँ रे सांवरिया

साजन को घेरे रहती हैं, मेरी सौ सौतनियाँ । 

 सौतानियाँ देख देख मैं जल भुन जाऊँ, सुलगूँ बन अगिनियाँ ॥ 
जिज्ञासा के गीत 

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अंतिम रचना 

हर रात में लिखती हूँ 
तुम्हारे पीठ पर
मेरे एकांकी जीवन की व्यथा 
सदियाँ गुजर गई 
और गुजरती रहेंगे  

कावेरी 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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11 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। हमारी पोस्ट को चर्चा में शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. पठनीय रचनाओं के सूत्र सुझाती मनोयोग से सजाई गयी सुंदर चर्चा !

    जवाब देंहटाएं
  3. वैविध्य रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक के लिए आपका बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी ।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदयतल से धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना शामिल करने का बहुत शुक्रिया! वैविध्यपूर्ण रचनाओं से सजा अंक बेहद आकर्षक प्रतीत हो रहा है…इत्मिनान से पढ़ती हूँ…सभी रचनाकारों व आपको बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर संकलन।
    'बुद्ध 'को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सभी को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. स्तुत्य रचनाकारों के लिंक देती हुई पोस्ट

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. डॉ विभा नायक18 मई 2022 को 10:02 pm बजे

    सुंदर संचयन। मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. विलम्ब से प्रतिक्रिया देने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ शास्त्री जी ! मेरी रचना इस अंक के लिए चुनी गयी है इसकी सूचना मेरे ब्लॉग पर नहीं थी इसलिए देख नहीं सकी ! आज अचानक इस पर दृष्टि पड़ गयी तो देखा कि इस चर्चा में मेरी रचना भी सम्मिलित है ! आपका हृदय से बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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