कभी कभी शायद कोई दिन ही ऎसा होता है कि आपने किसी काम को आरम्भ किया, लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी वो काम सिरे नहीं चढने पाता.कल का दिन हमारे लिए शायद कुछ ऎसा ही दिन था….. जाने कौन सा देवी-देवता,पितर हमसे रूष्ट हो गया कि दिन भर मेहनत करके लिखी गई चर्चा एक नहीं दो बार खुद ब खुद डिलीट हो गई…पता नहीं कोई बटन वगैरह गलत दबा बैठे या ओर किसी प्रकार की कोई ओर चूक हो गई---राम जाने.खैर आज जैसे तैसे ये चर्चा तैयार कर पाए…जो कि आप लोगों के सामने प्रस्तुत है…..आप लोग बाँचिए, तब तक हम जरा अपनी कुंडली बाँच लेते हैं :-) |
चलिए चर्चा की शुरूआत करते हैं हिमांशु राय की पोस्ट भगवान की होम डिलीवरी से टी वी में विज्ञापन चल रहा है। एक अभिनेता बाबा जी बना है। कह रहा है कि हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त करने का सीधा सादा रास्ता हाथ आ चुका है। आपने आज तक बहुत से विज्ञापन देखे होंगे पर इस विज्ञापन जैसा न देखा होगा। मुझे काफी दिनों से इस विज्ञापन का इंतजार था। जब सब बिक रहा है तो भगवान न बिकें ऐसा कैसे हो सकता है। हमारे देश में राजनेता धर्म की जैसी मार्केटिंग कर रहे हैं उससे ये तय था कि भगवान पर श्रद्धा बिकेगी। बस दाम का इंतजार था। वो भी लग गया। रू 3000का लाकेट और रू 100 डाकखर्च। भगवान की होम डिलीवरी।रू 3500 दीजिये और सीधे हनुमान जी का रक्षा कवच लगा कर शान से घूमिये। कोई विपत्ति आई तो आपको कुछ नहीं करना है। हनुमान जी को आप एडवांस दे चुके हैं। वो पैसा लेकर दगाबाजी नहीं करेंगे। वो आपकी रक्षा करेंगे। |
लोहे की भैंस-नया अविष्कार----------ललित शर्मा |
भारत की महानता खतरे में----बता रहे हैं विवेक सिँह स्वपनलोक पर मुझे अच्छी तरह पता है कि मेरा भारत महान है। अगर भारत महान न होता तो कितने ही ट्रक वाले अपने ट्रकों के पीछे यूँ ही तो नहीं लिखवा लेते "मेरा भारत महान" । हमें सिखाया गया है कि चूँकि हमारा भारत महान है इसलिए हमें इस पर नाज होना चाहिए। इतना नाज होना चाहिए कि भारत नाजमय हो जाए। |
देसिल बयना पर करण समस्तीपुरी लिखते हैं--खाने को लाई नहीं, मुँह पोछने को मिठाई! |
एक सवाल कि अयोध्या में राम को कहाँ खोजें .. उठा रहे हैं अरविन्द मिश्र |
शिव मिश्र परम आदरणीया ,प्रात:स्मरणीय मुन्नी जी को समझाईश दे रहे हैं कि मुन्नी जी, कोई भी बदनामी आख़िरी नहीं होती. |
अज़ब मुश्किल है—सुलभ सतरंगी अज़ब मुश्किल है दूर मंजिल है रस्ता रोक कर खड़ा क़ातिल है भरोसा करूँ क्या ? दोस्त काबिल है मेरे गुनाहों में तक़दीर शामिल है बार बार फिसलता आवारा एक दिल है | एक-दूजे के लिये..! (पारूल) मन के हेर-फेर में सोच ने फिर एक नया आशियाना बुना मैंने देखा रहकर वहां भी तन्हा मगर तन्हाई ने फिर एक फ़साना बुना! मैंने खुद से भी देर तक बात की बस यूँ ही नहीं ऐसे एक रात की सुबह तलक भी जैसे तैसे रुका फिर ख़्वाबों ने नया ठिकाना बुना! |
बदन---नीरज जोश है इस जिस्म में,जज्बात से सिहरता बदन जंग से हालात हैं,हर रात है पिघलता बदन. आरज़ू-ए-वस्ल वो,खूंखार आज बाकी नहीं साथ हो इक हमसफ़र,तन्हा पड़ा तरसता बदन. कायदा संसार का,इंसान पे लिपटता कफ़न, फ़र्ज़ की आदायगी,है दर-बदर भटकता बदन. | जिन्दगी क्या है ??---पलाश जिन्दगी कभी सवाल कभी जवाब होती है, कभी ये हकीकत कभी ख्वाब होती है । किसी एक पल खुशियाँ बेहिसाब होती है , कभी उम्र भर के गम का सैलाब होती है?? |
इक दूसरे से क्यों हैं खफा आदमी के तौर---रकीम इक दूसरे से क्यों हैं खफा आदमी के तौर लगते नहीं हैं अच्छे किसी को किसी के तौर! जी करता है कि हाथों से आँखें समेट लूँ देखे नहीं जाते हैं मुझसे जिन्दगी के तौर!! गरूर बडप्पन का दोस्तों को हो गया आ गये हैं तौर में अब बेरूखी के तौर!! | ग़ज़ल—सौरभ शेखर वक़्त अपने बही-खाते खोल कर फुर्सत वसूले इस तरह या उस तरहसे ज़िन्दगी कीमत वसूले आसमां,धरती,बगीचे,हवा,पानी का किराया आदमी से सांस लेने की रकम कुदरत वसूले आपको जनतंत्र में दो जून की रोटी मिलेगी मगर बदले मेंसियासत आपकी अस्मत वसूले |
बातों में नमी रखना---शारदा अरोडा हमारी संवेदन-शीलता किस कदर भटक गई है कि आदमी अपने ही बच्चों तक को नहीं बख्शता। कल अखबार में पढ़ा कि एक पिता ने अपने तीन-चार साल के बच्चे को इतना पीटा कि वो मर गया ;सिर्फ इसलिए कि बच्चे ने उसके मोबाइल पर पानी डाल दिया था। मोबाइल शायद बच्चे से ज्यादा जरुरी था !आज भौतिकता नैतिकता से ज्यादा आगे हो गई है ,इसी लिये मानवीय मूल्य गिर गए हैं। बातों में नमी रखना आहों में दुआ रखना तेरे मेरे चलने को इक ऐसा जहाँ रखना |
जय कुमार झा एक सुझाव लेकर आए हैं कि इस देश में राष्ट्रपति के पद को ख़त्म कर राष्ट्रपति भवन को सत्य,ईमानदारी और न्याय क़ी रक्षा का भवन बना दिया जाना चाहिए .... हमारे नजर में तो इस देश में राष्ट्रपति पे होने वाला खर्च वर्तमान में राष्ट्रपति के पद पर बैठे व्यक्ति की गतिविधियों और देश हित में किये गये उनके प्रयास के मद्दे नजर व्यर्थ ही नजर आता है.इसलिए हमारे ख्याल से इस पद को समाप्त कर राष्ट्रपति भवन को पूरे देश के जनता द्वारा डाक से भेजे गये मतों द्वारा चुने गये एक सर्वोच्च लोकायुक्त के कार्यालय के रूप में बना दिया जाना चाहिए.जिसे सत्य और न्याय की रक्षा के लिए असीमित शक्ति प्रदान की जाय. |
आप जानना नहीं चाहेंगें कि इस सृष्टि का रचयिता कौन ?ईश्वर या…?(प्रस्तुति डा. राधेश्याम शुक्ल) यह संपूर्ण सृष्टि, यह विश्व ब्रह्मांड क्या है? यह कैसे बना? उसका निर्माता कौन है ? उसने इसे क्यों बनाया?जैसे प्रश्न अनादिकाल से मानव मस्तिष्क में उठते आ रहे हैं,लेकिन इनका अंतिम उत्तर अब तक नहीं मिल सका है। तमाम वैज्ञानिकों,दार्शनिकों व तत्ववेत्ताओं ने अपने-अपने ढंग से इनका उत्तर देने का प्रयत्न किया है,किंतु कोई भी उत्तर संदेहों से परे नहीं है। अपनी सारी बौद्धिक क्षमता इस्तेमाल करने के बाद भी सृष्टि का रहस्य जानने में असमर्थ मनुष्य ने एक ऐसे अज्ञात लेकिन सर्वशक्तिमान व्यक्ति की कल्पना की, जो कुछ भी कर सकता है। इस संपूर्ण ब्रह्मांड जैसे कितने भी ब्रह्मांड बना सकता है और नष्ट कर सकता है।
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कार्टून : पाकिस्तानियों का कॉम्पिटिशन अब इनसे हैं | कार्टून:- कम्युनिस्टों की ये है सबसे बड़ी उपलब्धि... |
चिट्ठा परिवार में सम्मिलित हुए कुछ नवीन चिट्ठे |
चिट्ठा:-The real voice चिट्ठाकार:-श्रद्धा मंडलोई पोस्ट:-कम उम्र में बडे बोझ के भार से दब जाती हैं बेटियां चार साल की उम्र में उसके सिर पर घडा रखने की जिम्मेदारी आ जाती है। छह साल की होते ही अपने छोटे भाई-बहनों और चूल्हा-चोका संभालने की जिम्मेदारी और इसके दो साल बाद उसकी पढाई छूट जाती है। वह बच्ची की उम्र में आधी मां बन जाती है। बालिक होने के पहले ही उसने आधी जिंदगी जी ली है। कुछ ही समय बाद माता-पिता के लिए बेटी सयानी हो जाएगी और अब उसकी डोली उठने की तैयारी होने लगती है। |
चिट्ठा:- phatkar चिट्ठाकार:-प्रदीप बलरोडिया पोस्ट:-जूते का जलवा जूते का व्यक्ति के जीवन में सदियों से विशेष महत्व है !जूता जहाँ पहने के काम आता है !राम वनवास के दौरान भरत को राम के खडाऊ के सहारे ही राज चलाया था!आज कल जूता खूब चर्चा में है और अपने जलवे से व्यक्ति को सोचने पर मजबूर करता है!जो काम किसी बड़े आन्दोलन से व अधिकारियो से फरियाद करने पर भी नहीं हो सका वो जूते ने कर दिखाया! |
चिट्ठा:- meri kahani mere shabd चिट्ठाकार:-नितेश मिश्रा पोस्ट:-ज़िंदगी के किस मोड़ पर खड़े है आज जीवन के उस मोड़ पर खड़े है हर आस को छोड कर खड़े है ना हम अपनो से लड़ पाए ना दूसरों से सफलता की होड़ में सब छोड कर खड़े है |
चिट्ठा:- naya_junoon चिट्ठकार:-गाजी नन्दलाल पोस्ट:--------बेनाम |
चिट्ठा:- Life Part 2. . .! चिट्ठाकार:- नवनीत गोस्वामी पोस्ट--------बेनाम कल रात का था आलम कुछ ऐसा ! नैना बरसे , बादल भी बरसा !! बात जो निकली जुबां से एक पल में ! असर दिखा उसका इक अरसा ! |
बहुत उम्दा चर्चा ..काफी नए लिंक्स मिले ...नए चिट्ठों को शामिल किया ..अच्छा लगा ..
जवाब देंहटाएंइतनी सारी समस्याओं के बावज़ूद भी आपने इतने लिंक दे दिए! आपके डेडिकेशन को सलाम!
जवाब देंहटाएंआंच पर संबंध विस्तर हो गए हैं, “मनोज” पर, अरुण राय की कविता “गीली चीनी” की समीक्षा,...!
बहुत सुन्दर चर्चा लगाई है………………काफ़ी लिंक्स मिल गये…………………वैसे बहुत मुश्किल होती है जब चर्चा खराब हो जाती है………………आपके होसले की तो तारीफ़ करनी पडेगी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा है!
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आपका श्रम स्तुत्य है!
बहुत उपयोगी चर्चा रही, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा लगाई है…
जवाब देंहटाएंबहुत जोरदार चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह झंडू बाम जैसी ही कड़क है ये चर्चा :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा,
जवाब देंहटाएंचर्चाकार बनने की बधाई तो हम दे ही नहीं पाए थे।
बधाई स्वीकार क्ररें।
itni mehnat ki gayi charcha ke liye badhayi.
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