नमस्कार ,आज फिर मैं कुछ काव्य प्रसून इस काव्यांजलि में भर कर लायी हूँ …कुछ पुष्प अपनी सुगंध का परिचय दे रहे हैं तो कुछ अपने रंग का ..आशा है आप सभी अपनी अपनी पसंद के अनुसार कुछ पुष्पों का रसास्वादन ज़रूर करेंगे …आज की चर्चा मैं श्री कन्हैया लाल नंदन जी की स्मृति में उनको ही समर्पित करती हूँ … इसी लिए आज आपको सबसे पहले उस ब्लॉग पर ले चलती हूँ जहाँ प्रभात रंजन जी ने उनकी कुछ कविताएँ भाव भीनी श्रृद्धांजलि के रूप में प्रस्तुत की हैं … |
प्रभात रंजन जी ने अपने ब्लॉग जानकी पुल पर कन्हैया लाल नंदन जी की स्मृति में कुछ उनकी कविताएँ प्रस्तुत की हैं …आइये आज हम भी इन कविताओं के माध्यम से नंदन जी को श्रृद्धांजलि अर्पित करें .. (१) घोषणापत्र किसी नागवार गुज़रती चीज पर मेरा तड़प कर चौंक जाना, उबल कर फट पड़ना या दर्द से छटपटाना कमज़ोरी नहीं है मैं जिंदा हूं इसका घोषणापत्र है (२) बोगनबेलिया ओ पिया आग लगाए बोगनबेलिया! पूनम के आसमान में बादल छाया, मन का जैसे सारा दर्द छितराया, सिहर-सिहर उठता है जिया मेरा, (३) जीवन-क्रम: तीन चित्र रेशमी कंगूरों पर नर्म धूप सोयी। मौसम ने नस-नस में नागफनी बोयी! |
आज के चर्चा मंच पर इस सप्ताह की सबसे ज्यादा मेरी पसंद की रचना आपके सम्मुख है … वाणी गीत द्वारा लिखी कविता स्त्रियाँ होती हैं ........ऐसी भी, वैसी भी. दो भाग में कही गयी है …स्त्रियों की मन:स्थिति का , या उनके क्रिया कलापों का सूक्ष्म विश्लेषण किया है …ऐसी भी और वैसी भी के माध्यम से तुलना भी की है .. स्त्रियाँ रचती हैं सिर्फ़ गीत होती हैं भावुक नही रखती कदम यथार्थ के कठोर धरातल पर इन पंक्तियों में एक सार्वभौमिक सत्य को कहा है कि हर स्त्री का मन भावुक होता है .. बस तुमने ही नहीं जाना है उनका होना जैसे खुशबू ,हवा और धूप वाणी जी ने बहुत सुन्दर उपमा देते हुए कहा है कि हवा , धूप , खुशबू जैसे घर को हर सीलन और बदबू से बचाती है उसी तरह स्त्रियां भी क्लेश , कपट आदि से घर को बचाने का काम करती हैं . पुरुष दर्प की बात कहने से भी नहीं चुकी हैं …जिसके कारण स्त्रियों के महत्त्व को पुरुष स्वीकार भी नहीं कर पाते . जानते भी कैसे... हथेली तुम्हारी तो बंद थी पुरुषोचित दर्प से तो फिर मुट्ठी में कब कैद हुई है खुशबू , हवा और धूप.... अगली कड़ी में वाणी जी ने कहा है कि आज भी स्त्रियों में सीता और द्रोपदी जैसे चरित्र मिलते हैं .. जीवन -पथ गमन में सिर्फ पति की अनुगामिनी ************************ अपमान के घूंट पीकर जलती अग्निशिखा -सी लेकिन फिर भी सिर झुका कर सब कुछ सहने को तैयार नहीं होती हैं .. अब नही देती हैं वे कोई अग्निपरीक्षा... ************** किन्तु अब नहीं करती हैं वे पाँच पतियों का वरण कुंती या युधिष्ठिर की इच्छा से बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती इस रचना के लिए वाणी जी को साधुवाद .. स्त्रियाँ ऐसी भी होती हैं स्त्रियाँ वैसी भी होती हैं बस तुमने नहीं जाना है स्त्रियों का होना जैसे खुशबू, हवा और धूप |
एम० वर्मा जी प्रवाह पर बिखरे हुए एहसास को समेटते हुए अपने मन की संवेदनाओं को लाये हैं .. बिखरे हुए एहसास ..सरसों सरीखे - अतिसूक्ष्म कुछ एहसास बिखर गये थे उस दिन तुम्हारी देहरी के इर्द-गिर्द | रंजना (रंजू भाटिया ) आज एक सच रख रही हैं सामने .. मन के बादल गर फट गए तो कैसी तबाही होगी …उसका नज़ारा ज़रा देखते जाइये सुना है लेह जैसे मरुस्थल में भी बादल फट कर खूब तबाही मचा गए हैं जहाँ कहते थे कभी वह बरसते भी नहीं ठीक उसी तरह जैसे मेरे मन में छाए घने बादल |
राकेश जैन जी का ब्लॉग है कविता मंजरी ….जब गीता पढ़ कर लोगों की सोच नहीं बदली है तो कैसे बदलेगी यही चिन्ता व्यक्त की है उन्होंने अपनी रचना में … जब बदला नहीं समाज जब बदला नहीं समाज,राम की चरित कथाओं से / बदलेगा फिर बोलो कैसे गीतों,कविताओं से / / जो गिरवी रखकर कलम ,जोड़ते दौलत से यारी/ वे खाक करेंगे आम आदमी की पहरेदारी / / जब तक शब्दों के साथ कर्म का योग नहीं होता/ थोथे शब्दों का तब तक कुछ उपयोग नहीं होता/ |
अशोक व्यास जी अपनी कविता में बता रहे हैं कि मात्र बैठ कर सोचने से बदलाव नहीं हो सकता …उसके लिए प्रयास करना होगा तभी पूरी होगी बदलाव की आशा नहीं चलेगा बैठे बैठे किसी बदलाव की आशा करने का शगल पसीना बहाओ अगर चाहते हो समस्याओं का हल | अंजना ( गुड़िया) जी रंग बिरंगी एकता ब्लॉग पर एक ऐसी कविता लायी हैं जिसे पढ़ कर एक बार ज़रूर मुँह से निकलेगा …ओह ….मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है .. ऐ इंसानियत, तुझे मेरी परवाह ही नहीं!रोती भी नहीं, चिल्लाती भी नहीं, जानती है, कोई सुनेगा ही नहीं सर पर छत, पेट भर खाना, आदत भी नहीं, कोई आस भी नहीं |
प्रतिभा सक्सेना जी की लेखनी मुझे अपने आकर्षण में हमेशा बाँध लेती है …उनकी रचनाएँ इतनी सशक्त होती हैं कि उनको आप तक न पहुंचाऊं तो कुछ कमी सी लगती है …आप उनकी लेखनी का चमत्कार देखिये ..श्यामला में .. ईषत् श्यामवर्णी, उदित हुईं तुम दिव्यता से ओत-प्रोत अतीन्द्रिय विभा से दीप्त मेरे आगे प्रत्यक्ष . मैं ,अनिमिष-अभिभूत- दृष्टि की स्निग्ध किरणों से अभिमंत्रित, आविष्ट . कानों में मृदु-स्वर- 'क्या माँगती है, बोल ?' * |
रोली पाठक देश के किसानो की व्यथा को अपनी कविता में उतार कर लायी हैं …..संवेदनशील मन से लिखी संवेदनशील रचना आत्महत्या...सूने-सूने नयनकरता चिंतन-मनन बाढ़ की तबाही से उजड़ गया जीवन... डूब गया खलिहान बह गया अनाज कर दिया बाढ़ ने, दाने-दाने को मोहताज. | निर्झर नीर शहर की बात करते हैं ..अपने मन की गिरह की बात कर रहे हैं ..गज़ल बहुत खूबसूरत है…आपकी नज़र से बची हो तो ज़रूर पढियेगा .. गले लगा तो जराना कर तर्क-ए-वफ़ा कांटे पे जरा तोलूँगाखरा है कौन यहाँ सारे भरम खोलूँगा ! सूली पे चढ़ा दो या सर कलम कर दो सच कड़वा ही सही मैं तो सच ही बोलूँगा |
शारदा अरोरा जी एक गीत गज़ल कह रही हैं इतना चुप हो जाऊँइतना चुप हो जाऊँ कि बुत हो जाऊँ तराशे गए हैं अक्स भी मैं भी सो जाऊँ सर्द आहों से पलट जमाने की हवा हो जाऊँ | ऋतु सिंह ऋतु... और एक आधा सच » पर शिव के दर्शन करा रही हैं शिवोहमएक मुनि की एक कुटी में, स्वर गुंजित, अक्षत चन्दन से, तिलक सुशोभित भौं मध्य में, शिव-त्रिशूल, भंगम, भभूत से ||…. |
राम मंदिर कब बन पायेगा [दीपक भारतदीप..की एक हास्य कविता ]एक राम भक्त ने दूसरे से कहा |
सोनल रस्तोगी जी इस बार कुछ शरारत के मूड में लग रही हैं …खुद ही कह रही हैं कि बेचैन करने में एक अलग सा मज़ा है …. चलो मैं बे-वफ़ा हो जाती हूँइतनी नजदीकी अच्छी नहीं चलो कुछ खफा हो जाती हूँ अपना ही मज़ा है बेचैन करने का चलो मैं बे-वफ़ा हो जाती हूँ तेरे सामने आऊं भी नहीं तुझे महसूस हर लम्हा रहूँ मांगे तू भी साथ मेरा शिद्दत से चलो मैं खुदा सी हो जाती हूँ | वंदना सिंह दुआ मांग रही हैं कि काश कुछ ऐसा हो … काश ! के जिन्दगी से आगे हम एक कदम बढ़ाये खुद को खुद से ले चले कहीं दूर जहाँ अहम् कि बेडिया मासूम सी ख्वाहिशो को कभी जकड ना पायें .. |
डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर कुछ मेरी कलम से पर भाव बोध लाये हैं ..आत्म बोध का भी ज्ञान कराती रचना का आप भी रसास्वादन करें मैं भाव-बोध में यूं अकेला चलता गया, एक दरिया साथ मेरे आत्म-बोध का बहता गया। रास्तों के मोड़ पर चाहा नहीं रुकना कभी, वो सामने आकर मेरे सफर को यूं ही बाधित करता गया |
विवेक रंजन जी फूल ,सुगंध और साया रोपना चाह रहे हैं एक मीठे नीम के साथ .. हमारे मंदिर और मस्जिद को ..रोपना है मीठी नीम अब हमें | रचनाकार पर पढ़िए विजय वर्मा की कविता अहम के बीज किस तरह अहम पोषित और पल्लवित होता है यह इस रचना को पढ़ कर पता चलता है .. अहं के बीज बोये थे मैंने , दोस्तों ने भी मिथ्या-प्रशंसा के उर्वरक डाले थे. कैसे-कैसे भ्रम मैंने मन में पाले थे |
राजीव जी अपनी कविता से एक सशक्त सन्देश दे रहे हैं नारियों को ……जो अब तक सहा है उसे अब नहीं सहना …ऐतिहासिक उदाहरणों को देते हुए एक सार्थक सन्देश …अब और नहीं ... आजतक जो हुआ उसे भूल जाना एक डरावना अतीत समझकर, बनना ही होगा तो बनना रांझे की हीर, बनकर शीरी खोज लेना अपना फरहाद जो रहेगा सदा तेरे साथ हमदम,हम-कदम बनकर । |
उत्तम कुमार जी का ब्लॉग है .. Truth Or Dare….. इनकी कुछ रचनाएँ पढ़ीं , सभी सच के बहुत करीब लगीं …आज की कविता जीवन की सच्चाई को बता रही है … हरे और सूखे पत्तेपेड़ के निचे गिरे हुए पत्तों पे झुककरहसतें हैं हरे पत्ते, सुखे पत्तों को देखकर शायद उन्हें पता नहीं उस दिन का अंदाज नहीं कर पाते हैं उस क्षण का एक दिन निचे गिरेंगे वो भी सुखकर हसतें हैं हरे पत्ते, सुखे पत्तों को देखकर | सुधीर शर्मा का ब्लॉग है डाकिया चिट्ठियां ज़िन्दगी के पते पर...…लाये हैं रूह को तापने आओ आ जाओ किसी रोज़ मेरे आँगन में... अपने चेहरे के उजालों की तीलियाँ लेकर लौट आयीं हैं यहाँ सर्द हवाएं फिर से आओ आ जाओ किसी रोज़ मेरे आँगन में... |
बना रहे बनारस पर पढ़ें दीपंकर जी की रचनापुनरुत्थानफिर एक बार उठता हूँ मैं अपने शोणित के रूदन से विवशता गढ़ती है मेरी फूली हुई साँसें रोमकूपों से उठती हुई थकन की लकीरें लिखती हैं कुछ गीत मेरी पेशानी पर पकते हैं कुछ स्वप्न मेरी आँखों में |
आशीष जी ने एक गज़ल पोस्ट की है अपने ब्लॉग AAWARA SAJDE » पर ..गज़ल पसंद आई क्या बात है …आप भी पढ़ें किताबों के पन्नों को पलट कर सोचता हूँकिताबों के पन्नों को पलट कर सोचता हूँयूँ पलट जाये ज़िन्दगी तो क्या बात है ख्वाबों में रोज़ मिलते हैं जो हकीक़त में आए तो क्या बात है | "तुम बादल की तरह , छा जाओ अगर ..... मै बरसना चाहूंगी , रिमझिम- रिमझिम..... तुम्हारी धूप के सिर्फ एक टुकड़े के लिए , रहता है ये भीगा मौसम गुमसुम-गुमसुम......... |
.साधना वैद जी कह रही हैं ... * हमारी भी सुनो *मैं राम, |
अनुपमा पाठक की लेखनी बहुत कुछ ऐसा लिखती रही है जो सोचने पर मजबूर कर देती है आज उनकी लेखनी कहाँ रमी हुयी है आइये देखते हैं .. लेखनी है रमी... आज लिख डालो!आँखों की सकलनमी... आज लिख डालो! आसमानी सपने छोड़ दूब जिसको है समर्पित चरणों के नीचे वो ठोस जमीं... आज लिख डालो! | वंदना गुप्ता सप्तरंगी पर हुस्न और इश्क का संवाद लायी है इस कविता में .. मिलन को आतुर पंछीआ ख्यालों की गुफ्तगू तुझे सुनाऊँ एक वादे की शाख पर ठहरी मोहब्बत तुझे दिखाऊँ हुस्न और इश्क की बेपनाह मोहब्बत के नगमे तुझे सुनाऊँ |
मनोज जी की यादों ने करवट ली है और बहुत कोमल से एहसास बाहर निकल आये हैं .. .कुछ यादों में अटकी अटकी ..और यादों को भटकाती सी नज़्म को पढ़िए उनके ब्लॉग मनोज पर . खामोशियाँ कहाँ ले जाती हैं …आप भी जानिए .. |
आशा ढौंडियाल जी का ब्लॉग है वैचारिकी …जिस पर वो कुछ बता रही हैं .. चुपके से ..धूप का इक उजला सा टुकड़ाआंगन में उतरा चुपके से आँख का आंसू मोती बनके गालो पर ढलका चुपके से फूलों की खुशबु ले हवा चली, चली मगर बिलकुल चुपके से भवरो ने भी रस की गागर छलकायी लेकिन चुपके से | सांझ शायद खुद की ही तलाश में अपना ब्लॉग लायी हैं In search of Saanjh…. और इस पर पेश है एक निहायत खूबसूरत गज़ल .. हिना हथेलियों पे कुछ कलियाँ सजा गयी है हिना खिलेंगी या के बस बहला के आ गयी है हिना हमने पूछी जो खबर आज उनके आने की ऐसा लगता है जैसे हिचकिचा गयी है हिना |
रावेंद्र रवि जी रवि मन पर एक बहुत सुन्दर नवगीत लाए हैं …प्रकृति के सौंदर्य को परिभाषित करते हुए उनकी रचना पढ़िए |
चर्चा के समापन की ओर बढाते हुए डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी शहर की भीड़ भाड़ को कम करने का एक सार्थक उपाय बता रहे हैं … "छोड़ नगर का मोह"छोड़ नगर का मोह,आओ चलें गाँव की ओर! मन से त्यागें ऊहापोह, आओ चलें गाँव की ओर! ताल-तलैय्या, नदिया-नाले, गाय चराये बनकर ग्वाले, जगायें अपनापन व्यामोह, आओ चलें गाँव की ओर |
चर्चा का समापन करते हुए यह काव्यांजलि आप सभी पाठकों को समर्पित …इसके सभी पुष्प आपको सम्मोहित करेंगे इसी आशा में आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ …पिछली बार एक पाठक का कहना था कि कोई ऐसी व्यवस्था हो कि लिंक दूसरी विंडो में खुले …तो एक बात बताना चाहूंगी …..यदि आप चित्र पर क्लिक करेंगे तो लिंक दूसरी विंडो में अपने आप खुल जायेगा …यहाँ हर चित्र में लिंक लगा हुआ है …आप प्रयोग कर देख सकते हैं …. आपकी प्रतिक्रिया सदैव हमारा मनोबल बढ़ाती है …आपके सुझावों का स्वागत है ….शुक्रिया ….फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को ….नमस्कार |
अत्यंत आकर्षक चर्चाओं से सजा काव्य मंच. प्रस्तुतिकरण का अपना अलग आकर्षण. बेहतरीन संकलन प्रस्तुत किया है आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा |बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
इस मंच से कवि / कविताओं को बहुत प्रोत्साहन मिलता है ...न सिर्फ जाने -माने अपितु नए रचनाकारों को भी ...
जवाब देंहटाएंअपनी कविता के प्रस्तुतीकरण के लिए आपका दिल से बहुत आभार ...!
एक साथ इतनी सारी अच्छी अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिली ...आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंwell selected poems and articles.
जवाब देंहटाएंgrr8 work
sangeet aji ko badhai
आज सुबह सुबह बहुत सी कवितायेँ पढ़ी और तुम्हारी प्रस्तुति की प्रशंसा किये बगैर नहीं रह सकती. कितने परिश्रम से ये परोपकार करती हो. इसके लिए हम सदैव ऋणी रहेंगे .
जवाब देंहटाएंइसा प्रयास के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
संगीता जी आपका बहुत धन्यवाद की आपने मेरे अनजाने से सृजन को एक मंच दिया..
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह एक ही जगह पर इतनी सारी बेहतरीन रचनाये पढ़ कर मन प्रफुलित हो गया..
आपका संकलन बहुत अच्छा लगा..
आज की चर्चा के लिए सिर्फ बढ़िया लिख देने से काम चलने वाला नही है!
जवाब देंहटाएं--
इसमें तो हमारी बहन संगीता स्वरूप की हफ्ते भर की मेहनत परिलक्षित हो रही है!
--
आपके श्रम को सलाम करता हूँ!
--
वाकई आज की चर्चा बेहतरीन है!
आज की चर्चा के लिए सिर्फ बढ़िया लिख देने से काम चलने वाला नही है!
जवाब देंहटाएं--
इसमें तो हमारी बहन संगीता स्वरूप की हफ्ते भर की मेहनत परिलक्षित हो रही है!
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आपके श्रम को सलाम करता हूँ!
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वाकई आज की चर्चा बेहतरीन है!
चर्चामंच साप्ताहिक कवीतामंच में मेरी कविता प्रकाशित करणे के लिये आपका अभारी .. इससे एक नयी प्रेरणा मिलती है बहुत हि अच्छा प्रयास... thanks
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर एक ही जगह इतनी सारी रचनाएँ पढने को मिलती है जैसे किसी मेले मैं हर रंग और हर भाव एक ही जगह मिल जाता है ...ये मंच भी साहित्य का मेला है,....और इस मेले मैं संगीता जी ने मेरे शब्दों को आपके बीच लाकर मुझे अनुग्रहित किया है इसके लिए मैं चर्चा मंच संगीता जी और आप सभी का बहुत आभारी हूँ .
जवाब देंहटाएंsundar charcha...
जवाब देंहटाएंcharchamanch par aapke chune gaye kavyapushpon ka parichay to aadyopant padh gayi... shaam ko class se laut kar sari rachnayen padhungi!
mujhe bhi shamil kiya,dhanyavad!
regards,
चयन और प्रस्तुतीकरण दोनों लाजवाब -आपकी लगन और श्रम का परिचायक. एक सुझाव देना चाहती हूँ यदि उचित लगे तो -एक ही रचनाकार को लगातार चुनेंगी तो औरों के साथ न्याय नहीं हो पाएगा .व्लाग-लोक इतना विशाल है प्रतिनिधित्व भी अधिक से अधिक का हो औऱ विविधता का आनंद भी मिले .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक लिंक्स और खूबसूरत काव्यमंच ! 'सुधीनामा' को इसमें सम्मिलित करने के लिये आपकी आभारी हूँ ! बेहतरीन चर्चा के लिये बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआकर्षक पोस्टों से सजी सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंहमारी ख़ामोशियों को चर्चा-ए-आम करने के लिए शुक्रगुज़ार हूं।
शानदार चर्चा , बहुत अच्छे लिंक्स मिले , आपके कठिन श्रम को साधुवाद.
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छे लिंक्स मिल गए आज ..बहुत आभार.बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंअत्यंत आकर्षक चर्चाओं से सजा काव्य मंच. प्रस्तुतिकरण का अपना अलग आकर्षण. बेहतरीन संकलन प्रस्तुत किया है आपने.एक साथ इतनी सारी अच्छी अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिली, धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत से की गयी सार्थक चर्चा………………सुन्दर काव्य मंच सजाया है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गुलदस्ते सा सजा दिया आपने ब्लॉग चर्चा को...
जवाब देंहटाएंआपके श्रम के लिए आपका बहुत बहुत आभार..बेहतरीन लिंक दिए हैं आपने...
चर्चा मंच अच्छा सजाया है , वर्मा जी और रंजू जी की रचनाएँ खुली ही नहीं . सबको एक साथ पढना मुमकिन भी नहीं है , इसलिए काफी कुछ छूटे जा रहा है .
जवाब देंहटाएंcharchaa mein sthaan dene ke liye dhanyawaad, Kitni mehnat se aap ye kaavya manch sajaati hai
जवाब देंहटाएंBadhaai ho aapko
काव्यमयी चर्चा के लिए संगीता जी को बधाई॥
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का आभार ...आप सबकी प्रतिक्रिया हौसला बढ़ाने में सहायक होती है ..
जवाब देंहटाएं@@ प्रतिभा जी ,
आपका सुझाव वाजिब है ...कोशिश रहती है कि आप सबके बीच नए रचनाकारों को ला सकूँ ...लेकिन अच्छी और नयी रचनाएँ भी शामिल किये बिना नहीं रहा जाता ...आगे और प्रयास रहेगा ...इस बार भी आपको कुछ तो बिलकुल नए लोगों से परिचय हुआ होगा ..:):)
@@ शारदा जी ,
मैंने वो दोनों ब्लोग्स खोलने का प्रयास किया ..यहाँ लिंक्स खुल रहे हैं ..आप उनकी फोटोपर क्लिक करें ...
आज के मंच पर केवल साधना वैद जी के चित्र से लिंक नहीं खुल पायेगा ..इसी लिए उनके ब्लॉग का लिंक नीचे दिया हुआ है ..
आप फिर से प्रयास कीजियेगा .
आभार
बहुत ही सुन्दर रहा आज का चर्चा मंच, माध्यम बना उन रचनाओं का जिन तक पहुंचना नहीं हो पाया था, आभार के साथ बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रही आज कि चर्चा नये विषयों को लेकर नए लिनक्स पढने को मिले |
जवाब देंहटाएंआभार
दी नमस्ते
जवाब देंहटाएंयूँ तो मेरा आना आज कल इधर नहीं होता किन्तु आज आना हुआ और इत्तफाक से मंगल बार भी तो आया तो बहुत कुछ ले के जा रहा हूँ
ये नहीं कहूँगा की सब कुछ पढ़ लिया पर जितना भी पाया अद्भुत है मुझे भी जितना मोका मिलेगा मैं भी अपना सहयोग जरूर दूंगा
अपने लेखन से खुद को, हिंदी ब्लोगिंग को, सब को .....
आपके इस महँ परिश्रम को कोटि कोटि प्रणाम
बहुत बढ़िया चर्चा! संगीता जी, शुक्रिया मेरी कविता अपने संकलन में शामिल करने के लिए और आपके प्रोत्साहन के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
दीपांकर की कविता को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंभरपूर लिंक है यहाँ ।
जवाब देंहटाएंसारे लिंक्स बहुत अच्छे हैं. और जो नए ब्लोगर्स को आप यहाँ ला कर उनका उत्साहवर्धन करती हैं वो कबीले तारीफ है. और वाणी जी की रचना पर आपकी मेहनत सराहनीय है.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
संकलित रचनायें बहुत ही ख़ूबसूरत हैं संगीता जी.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग 'आवारा सजदे' को पढने और चयन करने के किये बहुत बहुत शुक्रिया.
भविष्य में भी आपके प्रोत्साहन की आशा करता हूँ.
sangita ji..pehli baar itni sari khubsurat rachnaon se guzrne ka mauka mila....apke prayas se
जवाब देंहटाएंse,alag-alag phool ek hi darakht par dekhne ko mile...sadhuwad
वाकई में सुगन्धित पुष्प चुने हैं आपने जिससे आज खिन्न मन भी प्रफुल्लित हो गया ! आपका धन्यवाद
जवाब देंहटाएंSANKLAN KEE PRASTUTI SHAANDAR RAHEE PARKHEE HEE PARAKH SAKTE HAI SIDDH KAR DIYA AAPNE......
जवाब देंहटाएंSUJHAV HAI SABHEE KE LINK BHEE MIL JAE TO FOLLOW LIYA JA SAKTA HAI........
BADHAI.......
AABHAR BHEE.......
:)
बेहतरीन चर्चा..सभी लिंक्स पर जाना बाकी है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा..सभी लिंक्स पर जाना बाकी है.
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का आभार ...
जवाब देंहटाएंसरिता जी ,
शुक्रिया ,
आप चर्चा मंच पर आयीं , बहुत अच्छा लगा ...हर रचना के साथ लिंक्स लगे हुए हैं ..जो अलग रंग से दिखाए गए हैं ..
या फिर आप हर रचना पर जो पिक्चर लगी है उस पर क्लिक करें ...लिंक खुल जायेगा ...
आभार
आज तो बहुत ही बेहतरीन चर्चा रही एक से बढ़ कर बढ़िया पोस्ट की जानकारी...सुंदर चिट्ठा चर्चा के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआपकी मेहनत साफ़-साफ़ दिख रही है.
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को शामिल करने पर हमारा साधुवाद स्वीकारें.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
बहुत अच्छी चर्चा. काफी सारे लिंक मिले. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी चर्चा कि दुबारा आना पड़ा सारे लिंक कवर करने के लिए।
जवाब देंहटाएंसंगीतमय चर्चा, चारो ओर संगीत लहर बिखेर रही हैं आप।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति .......
जवाब देंहटाएंपढ़िए और मुस्कुराइए :-
जब रोहन पंहुचा संता के घर ...
sunder lagi aaj ki charcha kai accchi rachnaye padhne ko mili ...thanks :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, बहुत अच्छी चर्चा !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका बहुत मेहनत से की गयी चर्चा है यह
जवाब देंहटाएंye to kamaal ki jagah hai....bohot acchi cheezein padhne ko mili....jinhe main yahan ke alawa kahin se nahin dhoond pati....great job
जवाब देंहटाएंश्रम परिलक्षित हो रहा है चर्चा में..
जवाब देंहटाएंdhanyawad is sunder manch se parichaya karawane ke liye,mai to dinbhar office ke prapanch,din me lunch,filon ke bunch aur bachhon ke liye toffee 'munch' me hi vyasta rahata tha..bahoot achha hai yah prayas .please mere prayasho me trutiya bhi batayen.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी ..लगता है कि अब चिट्ठा चर्चा को होम पेज बनाना ही पड़ेगा ,..तकनीकी सलाह चाहूंगा कि और कैसे ज्मात होता है कि कहाँ कौन क्या प्रकाशित कर रहा है ...मुझे तो पता ही नही था कि आप लोग इतना अच्छा संकलन और उस पर टिप्पणियो का नियमित ब्लाग चला रहे हैं ..पुनः आभार
जवाब देंहटाएं