नमस्कार , हाज़िर हूँ एक बार फिर आज पूरे सप्ताह की बेहतरीन कविताओं से भरे कलश को लेकर ..इसमें कुछ नए ब्लोगर्स भी हैं तो कुछ ब्लोगिंग की दुनिया में बुलंदी को छूते सितारे भी हैं ..मेरा अपना प्रयास रहा है कि आप तक अच्छी प्रविष्टियों को पहुंचा सकूँ …आशा है कि आप संतुष्ट होंगे …चर्चा की सार्थकता आप पर निर्भर है …..ब्लॉग पर जाने के लिए आप चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं ….तो आज प्रारम्भ करते हैं समीर लाल जी की रचना से .. |
समीर लाल जी यह सलाह देते हुए कि अपनी सुरक्षा का इंतजाम आप स्वयं करें ..आज कि कविता में कह रहे हैं कि जिन गलियों में बचपन बिताया है , जिन लोगों का साथ मिला उनको भूलना नामुमकिन है …लेकिन ज़िंदगी में लोक व्यवहार भी निभाने पड़ते हैं … तुझे भूलूँ बता कैसेमैं हूँ इस पार तू उस पार, मगर दिल साथ रहते हैंहमारे देश में यारों, इसी को प्यार कहते हैं मुझे तुम भूलना चाहो तो बेशक भूल जाना पर तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं. न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं ये हैं अहसास के रिश्ते, इसे तुम नाम मत देना जैसे फूल में खुशबू, ये हर इक दिल में रहते हैं |
विश्वगाथा पर पंकज त्रिवेदी जी ने एक नयी पहल करी है ..हर रविवार को अतिथि के रूप में विभिन्न लोगों की रचनाएँ प्रकाशित होंगी … ..वो कविता भी हो सकती हैं और गद्य खंड भी ..इस श्रंखला की सबसे पहली कड़ी ..लौट आओ : रश्मि प्रभावर्षों से संजोया तिनका-तिनका अपनी आँखों से बरसते नेह का बनाया एक अदृश्य घर... तुमने देखा तो होगा बरसते नेह की मजबूत दीवारों को |
![]() मनोज ब्लॉग पर ज्ञान चंद “ मर्मज्ञ” की कविता देश के आज के हालातों का सटीक वर्णन कर रही है .. और समय ठहर गया! जुड़ने की कोशिश में टुकड़े हज़ार हुए, जितने लुटेरे थे यारों के यार हुए, नोच-नोच खाने के ज़ुर्म बार-बार हुए, सोने की चिड़ियां के पंख तार-तार हुए, पथरीले दांतों से उपवन को कुतर गया, और समय ठहर गया | ![]() रचना रविन्द्र पर रचना दीक्षित ज़िंदगी के ग़मों के साथ भी मन में सपनों को संजोये हुए हैं ..एक आशा लिए हुए .. जाने कितनी रातों को छुप छुप कर, हम भी रोये हैं जीवन में हमने भी अपने बबूल से दिन ढोए हैं फूलों का कभी साथ न पाया काँटों में जखम पिरोये हैं |
![]() रोने के लिए हमेशा बची रहे जगहलोग झिझके नहीं गले लगने में और गले लगना इसलिए हो कि रोया जा सके कंधें बचे रहें रो कर थके हुओं के सोने के लिए |
![]() मजाल साहब के ब्लॉग का नाम भी बहुत दिलचस्प है वक्त ही वक्त कमबख्त और वो अपनी हास्य कविता के माध्यम से बता रहे हैं कि कैसे अर्थ का अनर्थ होता है .. हास्य कविता - 'ग़ालिब दरअसल हिन्दू थे !न देखे माहौल, रमज़ान है या ईद, भाई तो था बस, तुकबंदी का मुरीद ! अटका हुआ था बहुत देर से, 'वहाँ पर्वत सिन्धु थे' कुछ न सूझा तो जोड़ दिया, 'ग़ालिब दरअसल हिन्दू थे !' | ![]() कच्चे धागों का पक्का रिश्ताकैसे बनता है कोई रिश्ता ? मन के कच्चे धागों का पक्का रिश्ता खोने-पाने का भय नहीं बंधन की चाह नहीं वो नज़र-अंदाज़ करें तब गुस्सा तो आता है लेकिन गिला जैसी कोई बात नहीं |
![]() शरद कोकास अपने ब्लॉग पर कह रहे हैं कि हम भीख देने के खिलाफ हैं …लेकिन भीख न दे कर आगे बढ़ जाते हैं तो मन में क्या विचार आते हैं ..ज़रा आप भी देखें .. भीख देने से पहले भी कभी कोई इतना सोचता हैहमारे सामने फैले हुए हाथ पर चन्द सिक्के रखने की अपेक्षा हमने रख दी है कोरी सहानुभूति और उसके फटे हुए झोले में डाल दिये हैं कुछ उपदेश क्योंकि हम मूलत: भिक्षावृत्ति के खिलाफ़ हैं |
![]() ऋचा ले कर आई हैं एक खूबसूरत खयाल समय से परे.वक़्त की नाव में बैठ करआओ चलें कुछ दूर समय से परे वहाँ, जहाँ सूरज सदा चमकता है फिर भी तपता नहीं सिर्फ़ बिखेरता है झिलमिल सी रश्मियाँ जो ठंडक पहुंचाती हैं मन को... | ![]() घर बनवाते हुए एक ही रंग में बरसों से लिपी थी काया अभी-अभी तो छुड़ाई है इक पुरानी परत छील कर,जबरियां उतारी गंध चूने की छुअन के सीले चकत्ते सभी खुरच डाले अभी-अभी ही निचोड़ी है याद की किसकन |
![]() नदी की तरह निस्स्वार्थ बहते हैं . वही सहज होते हैं . अपनी मौजों में,अपने ढंग से अपने रंग में लीन , होते हैं संबध. शिरोधार्य हैं पथ -प्रवाह में मिली अविकृत पुष्प-पत्राँजलियाँ , प्रतिदान की अपेक्षा बिना पाए निस्पृह नेह-क्षण, जिन्हें लहराँचल में सँजोए बह जाएगी आगे संबंधों की धारा. |
रोली पाठक किसानों की चिन्ता और परेशानियों को लायी हैं अपनी कविता आत्महत्या.. मेंसूने-सूने नयनकरता चिंतन-मनन बाढ़ की तबाही से उजड़ गया जीवन... डूब गया खलिहान बह गया अनाज कर दिया बाढ़ ने, दाने-दाने को मोहताज.... | ![]() बादल बारिश और तन्हाई बादल, बारिश और तन्हाई, तुम भी होतीं अच्छा होता दिल से ये आवाज़ है आई, तुम भी होतीं अच्छा होता कितने सुनहरे ख्वाब सजाये रंगों के मौसम है बुलाये खुशबू के सावन बरसाए लेकिन बस ये बात ना भाए.. तुम भी होतीं अच्छा होता |
ए खुदा ,तू खैरियत से तो है?तेरे नाम पर इक मस्जिद गिरती है तेरे नाम पर इक मन्दिर बनता है तेरे नाम पर ऐ ज़िन्दगी के दाता मौत का बर्बर खेल चलता है | तू रिश्ते जोड़ता है लोग दिल तोड़ देते हैं तू प्यार सिखाता है लोग नफरत घोल देते हैं | |
![]() जगाना मतकांपते हाथों सेवह साफ़ करता है कांच का गोला कालिख पोंछकर लगाता है जतन से .. लौ टिमटिमाने लगी है .. इस पीली झुंसी रोशनी में उसके माथे पर लकीरें उभरती हैं बाहर जोते खेत की तरह समय ने कितने हल चलाये हैं माथे पर ? पानी की टिपटिप सुनाई देती है बादलों की नालियाँ छप्पर से बह चली हैं | ![]() इतंजारइंतज़ार ....और बस इंतज़ार, कब ख़त्म होगा ये इंतज़ार, क्या तब, जब मैं बिखर जयुंगी, या तब, जब मैं टुकड़े टुकड़े होकर बिखर जायुंगी तब!, |
अजीत गुप्ता जी के गद्य लेखन से बहुत दिनों से परिचय है ….काव्य लेखन से परिचित नहीं थी …और जब परिचय मिला तो बस उनके काव्य लेखन की भी प्रशंसक हो गयी हूँ …आज उनकी कविता बेटियों के नाम है … बिटिया क्या है? मन की धड़कन? मन की खुशबू या फिर हमारा नवीन रूप?तुम ही मेरा रूप हो, तुम ही शेष गीत हो बंसी में संगीत जैसे, मन की शेष प्रीत हो अब तो केवल शब्द हैं, पुस्तिका बनोगी तुम मैं तो पृष्ठ-पृष्ठ हूँ, तुम ही मेरी जिल्द हो| |
![]() दीपाली सांगवान मासूम लम्हे पर अपने मन के भावों को कुछ इस तरह बयाँ कर रही हैं .. विवशतातुम और मैंसागर के दो किनारें हैं जो साथ तो चल सकते हैं मिल नहीं सकते तुम और मैं आसमान के उस चाँद और ध्रुव तारे की तरह हैं जो आसमान की खूबसूरती साथ बढाते हैं पर उनके बीच की दूरी कभी नहीं मिटती | अनीता सक्सेना जी अनुभूति पर वक्त की बात कह रही हैं कि वक्त कैसे घात कर देता है .. आँचल के जुगनू कल चाँद यहाँ भी आया था खामोश ] मगर कुछ कहता सा कुछ तुम्हें सुना कर आया था कुछ मुझे उलाहना देता सा न हवा कहीं ] न कोई बादल सूनी रात अकेली गुमसुम सोच रही थी कहाँ गए मेरे आँचल के सब जुगनू |
![]() एक अबोध शिशु माँ के आँचल में लेता है जब गहरी नींद माँ उसको अपलक निहारती बलाऐं लेती महसूस है करती अपने ममत्व को वो आगाज़ हूँ मैं . वो आगाज़ में पनपा टूटन में बिखरा जज़्बात में डूबा अभिप्राय में जन्मा ‘अहसास’ हूँ मैं !! |
![]() सपनों की कुछ बात बता रहे हैं …उनके मुट्ठी भर सपने आप भी देखें .. आशाओं की धूल से समेटकर उठाये थे हमने मुठ्ठी भर सपने भींचकर रखा था हथेली में इस डर से की कहीं उड़ा ना ले जाये उन्हें जलाने वाली तपती हवा या बहा न ले कहीं | मोनाली जौहरी बीते हुए वक्त कि यादों को एक खत के द्वारा अपने मन के भाव भेज रही हैं ….और इन यादों में एक कसक है ज़िंदगी को दूसरों की मर्ज़ी से जीने की.. यादों को खत जानते हो??? 'जिनको' कल एतराज़ था मेरे और तुम्हारे हमकदम होने पर वो आज भी मुझे अपनी मर्ज़ी से चलाया करते हैं मेरी दुखती रग को जान कर छू जाते हैं... "कितना रोती हो?" कह कर और भी रुलाया करते हैं |
![]() आज वंदना जी एक मिनट का चमत्कार बता रही हैं …जब कोई कह देता है कि ज़रा एक मिनट ..वो एक मिनट कैसा गुज़रता है आप भी जाने .. जब कोई कहता है रुकना ज़रा एक मिनट ! आह - सी निकल जाती है ये एक मिनट कितने सितम ढाता है ज़रा पूछो उससे जो इंतजार के पल बिताता है |
![]() ज़िंदगी के श्वेत पन्नों को न काला कीजियेज़िंदगी के श्वेत पन्नों को न काला कीजिये आस्तिनों में संभलकर सांप पाला कीजिये। चंद शोहरत के लिए ईमान अपना बेचकर - हादसों के साथ खुद को मत उछाला कीजिये। | ![]() मजदूर...मैं हूँ अदना सा मजदूर,शायद इसलिए हूँ मजबूर । गढता हूँ मैं ही कल-आज, फिर भी ठुकराता समाज । मेरे भी है सपने कुछ, है मेरे भी अपने कुछ |
![]() हमारे लोकतन्त्र की तरह भ्रष्ट हो गया हैपहले भी फटते थे बादललेकिन रोज़ नहीं, कभी-कभार पहले भी गिरती थी बिजलियाँ परन्तु साल में एक-दो बार आते थे भूकम्प और भूचाल भी मगर यदा-कदा, वार-त्यौहार |
चुंनिंदा शायरी और कविताएँ..इस ब्लॉग पर आपको मिलेंगी चुने हुए शायरों की शायरी' माँ ' - निदा फाज़ली की बहुचर्चित रचनाबेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ , याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे , आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ | महि पर छितरे मेरे शब्द, जिनके वर्ण भी धूसरित हैं, रहते हैं सदैव आकुल, हो जाने को विलीन, घुल जाने को निस्तेज. |
![]() दिया लेकर, भरी बरसात में, उस पार जाना है ! उधर पानी, इधर है आग, दौनों से निभाना है !! करो कुछ बात गीली सी , ग़ज़ल छेड़ो पढो कविता ! किसी को याद करने का , बहुत अच्छा बहाना है !! |
युग दृष्टि एक नया ब्लॉग है .इस पर पढ़ें आशीष की कविता .कमनीय स्वप्नकौन थी वो प्रेममयी , जो हवा के झोके संग आई जिसकी खुशबू फ़ैल रही है , जैसे नव अमराई क्षीण कटि, बसंत वसना, चंचला सी अंगड़ाई खुली हुई वो स्निग्ध बाहें , दे रही थी आमंत्रण नवयौवन उच्छश्रीन्खल. लहराता आंचल प्रतिक्षण लावण्य पाश से बंधा मै, क्यों छोड़ रहा था हठ प्रण | ![]() नित्यानंद गायन ..ईश्वर से अपनी क्षमता की बात कह रहे हैं .. मेरी ऐसी औकात कहाँमेरी ऐसी औकात कहाँकि मैं बनायुं मंदिर तुम्हारा मुझमे ऐसी ताकत कहाँ कि मैं तोडू मस्जिद तुम्हारा मैं भक्त गरीब तुम्हारा मैं बंदा फकीर तुम्हारा |
![]() हिन्दीकुंज पर अपर्णा भटनागर की एक कविता पढ़ें …जो हिंदी के प्रति दर्द और श्रृद्धा दोनों को ही अभिव्यक्त कर रही है … माइग्रेटरी चिड़िया -इधर हम काफी बदलने लगे हैं - विचारों के खेमे प्रगति नया दौर और वैश्वीकरण ...! हमारी संस्कृति इतिहास समाज , नगर , गाँव ... सब ग्लोबल होने लगा है .. |
![]() शेखर सुमन कह रहे हैं की मौसम बदलता है लेकिन उनके मन का तन्हाईयों का पतझड़ नहीं बदलता पतझड़.बहुत अखरता है तब,जब मन ऊब जाता है. अपनी ही उदासी से, पैरों की बेड़ियाँ और कस जाती हैं | बस कान सुनते हैं दूर से आती पहचानी सी धुनें | | कैलाश सी० शर्मा जी ज़िंदगी से बेज़ार हो कह रहे हैं . अभी मरघट दूर है.....ठहरथोडा सुस्ताले, कब तक ढोता जायेगा, अपने जीवन की लाश अपने कन्धों पर, अभी मरघट दूर है...... |
शिखा वार्ष्णेय अपने सपनों में न जाने कहाँ विचरण कर रहीं थीं कि अचानक रह गयीं हैं हक्की - बक्की सी… और कह उठी हैं … ये क्या हुआ ... रहे बैठे यूँ चुप चुप पलकों को इस कदर भींचे कि थोडा सा भी गर खोला ख्वाब गिरकर खो न जाएँ . |
आज भौतिक युग है …मनुष्य ही नहीं वनस्पतियों की नस्लों में भी मिलावट है …और आज के माहौल में किसी को ज्ञान देना असंभव स महसूस हो रहा है …"संकर नस्लों को अब कैसे, गीता पाठ पढ़ाऊँ मैं?"उड़ा ले गई पश्चिम वाली, आँधी सब लज्जा-आभूषण, गाँवों के अंचल में उभरा, नगरों का चारित्रिक दूषण, पककर हुए कठोर पात्र अब, क्या आकार बनाऊँ मैं? वीराने मरुथल में, कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं? |
आज की चर्चा समाप्त करते हुए आप सभी पाठकों से नम्र निवेदन है कि नए चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करें …आशा करती हूँ आपको चर्चा पसंद आई होगी …आपके सुझावों का सदैव स्वागत है …आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा मनोबल बढती हैं ….आभार ….फिर मिलेंगे ..अगले मंगलवार को ..इसी चर्चा मंच पर …नमस्कार ….संगीता स्वरुप |
भावपूर्ण विस्तृत चर्चा |बधाई
ReplyDeleteआशा
नए ब्लागों से परिचय कराने के लिए आपका आभार। बहुत अच्छे चर्चा............
ReplyDeleteबहिन संगीता स्वरूप जी!
ReplyDeleteआज के चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच में आपका श्रम स्पष्ट झलक रहा है!
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नये चिट्ठो से परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया!
bahut acchi charcha..
ReplyDeleteaabhaar..
बहुत सुन्दर चर्चा लगायी है संगीता जी
ReplyDeleteआभार
आपकी चर्चा की शैली देख कर चमत्कृत और प्रभावित हुआ। कृपया बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteइस मंच पर हमारे ब्लॉग को सम्मान देने के लिए आभार!
चर्चा में नवीनता, मेहनत और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने का उद्देश्य परिलक्षित है।
सभी रचनाओं का संक्षिप्त परिचय बहुत आकर्षक लग रहा है ! पढने के लिए अधीर हूँ ! सुन्दर और सार्थक चर्चा के लिए धन्यवाद एवं आभार !
ReplyDeleteसंगीता जी
ReplyDeleteआपने इस अकिंचन प्रशिक्षु की कविता को चर्चा करने लायक समझा . चर्चा मंच और आपको कोटिशः धन्यवाद .
सुव्यवस्थित चर्चा ,आभार ।
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत अच्छी चर्चा ...
ReplyDeleteनए ब्लॉगर्स से परिचित करवाने के लिए बहुत आभार ..!
चर्चा के बारे में मै इतना कहूँगा की कठिन परिश्रम इसके मूल में है . सार्थक और स्वस्थ चर्चा .
ReplyDeletesundar charcha....
ReplyDeleteakoot parishram se sajayi gayi bagiya suvasit hai!
read many... still to go to few links!!
sundar samanvyay,sangeeta ji!
bahut hi achhi charch rahi....
ReplyDeleteisme shamil karne ke liye dhanyawaad.....
पद्य लेखन दुरूह कार्य है, क्योंकि इसमें विचारों का संकेत है। पाठक को स्वतंत्रता है नए संदर्भों को खोजने की। इसलिए कविता की व्याख्या नित नूतन होती है। संगीता जी ने कविता पर चर्चा करके काव्य विधा को लोगों तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया है। श्रमसाध्य होती है चिठ्ठों पर चर्चा करना। संगीता जी को बधाई।
ReplyDeleteआज की चर्चा मे बहुत ही प्यारी कविताओं के लिंक मिले..............धन्यवाद
ReplyDeleteअति सुन्दर माला .......निर्मल पानेरी
ReplyDeleteआपकी चर्चा की शैली बहुत अच्छी है,आपका श्रम स्पष्ट झलक रहा है!हमारे ब्लॉग को सम्मान देने के लिए आभार!
ReplyDeleteदी नमस्ते
ReplyDeleteआज के चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच में आपका कठिन परिश्रम साफ़ दीखता है
नए ब्लागों से परिचय कराने के लिए आपका आभार.....
बहुत सुन्दर चर्चा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा .. नए ब्लोग्स को पढ़ने का मौका मिलता है और काव्य के प्रति लोगों का प्रेम अभी जीवित है ये देखकर अपार हर्ष होता है. आपका श्रम स्पष्ट झलक रहा है ..
ReplyDeleteशुभकामनाओं के साथ
आभार ! संगीता जी ...
Thnk u for including my poem among such wonderful poems... I found many beautiful blogs... thnks to u... :)
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ReplyDeleteबेहतरीन ,संतुलित व्यवस्थित चर्चा ...एक हफ्ते का श्रम साफ़ झलक रहा है.
ReplyDeleteachchi rachanaon aur blogo se parichaya ka ek sarthak manch. :aabhaar,
ReplyDelete-GyanChand Marmagya
बहुत सुन्दर , सटीक और सार्थक चर्चा……………अभी लिंक्स पढ नही पायी हूँ जैसे ही वक्त मिलता है पढती हूँ………………………मगर देखने मे ही पता चल रहा है कि हर लिंक मे कुछ बात है।
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद संगीताजी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा है !
sarthak charcha........iske through achchhe blog dekhne ko mil jate hain..:)
ReplyDeleteकविताओं भरा कलश सच में अभिभूत कर गया और कविताओं को पढ़ने की प्यास को तृप्त कर गया. शुक्रिया. बुलंदी के सितारों के साथ जो ब्लॉग आसमान के सुंदर नए टिमटिमाते तारों से आपने परिचय करवाया उनकी कवितायें भी बहुत अच्छी लगी. एक प्रिया जी के ब्लॉग में कमेन्ट बॉक्स नहीं मिला सो टिपण्णी नहीं कर पाए...
ReplyDeleteआपकी पूरी निष्ठां से की गयी इस मेहनत को तहे दिल से सलाम.
बहुत विस्तृत चर्चा.
ReplyDeleteरामराम.
आपकी चर्चाएँ बहुत कुछ दे जाती हैं .
ReplyDeleteसंगीता दी, बहुत अच्छी रही आज की चर्चा. मेहनत दिख भी रही है और रंग भी लायी है.नए ब्लागों के परिचय ने प्रभावित किया. मुझे अपनी चर्चा का हिस्सा बनाने के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद इतने अच्छे लिंक्स का.
ReplyDeleteसच कहूं तो एक बुकमार्क करने लायक चर्चा बन पडी है ....चर्चाकार संगीता जी के श्रम को नमन
ReplyDeleteaapki charcha achhi lagi
ReplyDeletedhanyvaad
आभार ! संगीता जी ...
ReplyDeleteमुझे अपनी चर्चा का हिस्सा बनाने के लिए आभार
चर्चा प्रस्तुत करने का तरीका प्रभावी है....मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद...कृपया अन्य पोस्ट्स भी देखे ब्लॉग पर, आशा करता हूँ आप सभी को पसंद आयेंगी...........
ReplyDeletesuvyavasthit charcha ke liye badhai masi jaan... Love u
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर तरीके से आज की चर्चा प्रस्तुत की आपने ! नए-नए एवं बहुत से अच्छे लिकंस पढने को मिले !
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त कवरेज रही. बड़ी मेहनत से तैयार की चर्चा के लिए बधाई.
ReplyDeleteआपके इस प्रयास से मुझे सप्ताह भर की कविताओं का जायका मिल जाता है और चूँकि मैं खास तौर पे कविताओं का हिन् पाठक हूँ...काफी आसानी हो जाती है. अच्छी लगती है आपकी चर्चा. मेरी इस कविता को वंदना जी ने भी जगह दी थी. आपके साथ उनको भी शुक्रिया-
ReplyDeletebahut visttar se ki gai charcha...aabhar
ReplyDeleteब्लॉगर्स के चित्र और उनकी प्रस्तुति दोनो ही मन को मोह लेते हैं । धन्यवाद संगीता जी ।
ReplyDeleteकाफी मेहनत से संकलन तैयार किया है आपने. सार्थक चर्चा के लिए आभार, और blog पर सहीं दिनांक बताने के लिए अलग से शुक्रिया.
ReplyDeleteप्रत्येक link एक अलग window में खोलने की व्यवस्था हो जाए, तो पाठको को ज्यादा सुलभता होगी ...
ReplyDeleteनये चिट्ठो से परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया!
ReplyDeleteनये चिट्ठो से परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया!
ReplyDeleteसभी पाठकों का शुक्रिया ...
ReplyDeleteमजाल साहब ,
अलग विंडो खुलने की व्यवस्था तो नहीं हो सकती , लेकिन आप लिंक पर जा कर राइट क्लिक कर नयी विंडो खोल सकते हैं ...इस तरह की चर्चाओं से लिंक पर जाने के लिए मैं ऐसा ही करती हूँ तो लिंक दुसरे विंडो में खुलता है ...
आभार
मोती चुन चुन लायीं हैं आप !!
ReplyDeleteआदरणीया संगीता स्वरूप जी "चर्चा मंच "को आज पहली बार देखने का अवसर मिला है। इसका कलेवर और कन्टेन्ट ्दोनों बेहतरीन लगे इक नयी विधा को प्लावित और पोषित करने के लिये आप मुबारक बाद के मुस्तहक़ हैं। आपका शत शत अभिनंदन।
ReplyDeleteभावपूर्ण चर्चा--बधाई
ReplyDeleteरचनाओं का उत्कर्ष चयन आपका अथक परिश्रम दर्शाता है.....विभिन्न कवियों की सुन्दर कविताओं से एक जगह परिचय कराने में आपका प्रयास सराहनीय है...बधाई......
ReplyDeleteमेरी कविता को चर्चा के योग्य समझने के लिए धन्यवाद....
संगीता जी
ReplyDeleteआप जिस तरह समग्रता से काव्य मंच सजाती हैं धरोहर बन जाती है
सुन्दर चर्चा..
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