आज जबकि न्यायपालिका की ओर से रामजन्मभूमी-बाबरी मस्जिद विवाद का निर्णय आने जा रहा है.सभी इंतजार में हैं फैसले की. क्या होगा फैसला,किस के पक्ष में जाएगा---मालूम नही.कोई नहीं जानता,लेकिन वो तो अब कुछ देर में सामने आ ही जाने वाला है.अब फैसला चाहे मन्दिर के पक्ष में जाए कि मस्जिद के पक्ष में.....लेकिन इस वास्तविकता को भी भला कब तक छिपाया जा सकता कि ये मामला आज सिर्फ मन्दिर-मस्जिद तक सीमित नहीं रह गया है,बल्कि वोट बैंकों की राजनीति के चलते,'हिन्दू-मुस्लिम शक्ति परीक्षण' के मुकाम तक पहुँचा दिया जा चुका है. यह किसी भी न्यायालय के वश की बात नहीं है कि वो इस समस्या का कोई सकारात्मक निराकरण कर सके.न्यायालय तो ज्यादा-से-ज्यादा सिर्फ यह फैसला दे सकता है कि मन्दिर को तोडकर मस्जिद बनाई गई थी,या नहीं.इसलिए इस भ्रान्ती में न रहना ठीक है,और न ही रखना कि न्यायालय इस विवाद को सुलझा सकते हैं.हिन्दू और मुस्लिम के बीच की तकरारों और दरारों का मामला कानून और न्यायालयों के द्वारा निबटारे का मामला नहीं है. इतना हमें समय रहते समझ लेना चाहिए कि सच्चाईयों और वास्तविकताओं से मुँह चुराना या इन पर पर्दे तानना समस्या का कोई हल नहीं होता.दरअसल झगडा न तो रामजन्मभूमी का है और न ही बाबरी मस्जिद का....ये तो सिर्फ ऊपरी सतह मात्र है,जिसके नीचे हिन्दु-मुस्लिम शक्ति परीक्षण की मानसिकता के ज्वार बुदबुदा रहे हैं.आज एकमात्र जरूरत है तो सिर्फ इस मानसिकता को बदलने की......वर्ना तो अभी आगे चलकर ओर न जाने कौन कौन से मन्दिरों और मस्जिदों के विवाद सामने आने बाकी है..... बहरहाल,अब शुरू करते हैं आज की ये चर्चा…..जिसमें आप लोगों के सामने प्रस्तुत हैं—कुछ चुनिन्दा ब्लाग पोस्टस के लिंक्स……जिसमें नया-पुराना, अनगढ-सुघड, अटपटा और चटपटा सभी कुछ आप के सामने रख दिया गया हैं. आप लोग पढिए, आनन्द लीजिए और मन करे तो टिप्पणी कीजिए, न मन करे तो भी कोई बात नहीं, आखिर कोई जोर जबरदस्ती थोडे ही है :) |
हिन्दी की हिन्दी अंग्रेज़ी की अंग्रेज़ी—चौं रे चम्पू! हिन्दी पखवारे में हिन्दी की कित्ती हिन्दी करी तैनैं?—चचा मज़ाक मत बनाओ। हिन्दी की हिन्दी से क्या मतलब है? माना कि आजकल अंग्रेज़ी की अंग्रेज़ी हो रही है, लेकिन अंग्रेज़ी की हिन्दी भी हो रही है और हिन्दी की अंग्रेज़ी भी हो रही है। कम्प्यूटर ने भाषाओं के विकास के रास्ते खोल दिए हैं। किसी नीची निगाह से न देखना हिन्दी को! —तौ का हिन्दी को स्वर्ण काल आय गयौ? —व्यंग्य मत करो चचा! सब कुछ तो जानते हो। लेकिन मान जाओ कि स्वर्ण काल भले ही न आया हो पर यदि हम चाहें तो हिन्दी का भविष्य स्वर्णिम बना सकते हैं. |
तोताराम और सरकारी नाकपहले राजा लोग नाक के लिए लड़ते थे। कभी अपनी नाक बचाने के लिए तो कभी दूसरे की नाक काटने के लिए। इस चक्कर में ज़्यादातर दोनों की ही नाक कट जाती थी। मुगलों के आने के बाद अधिकतर राजाओं ने तो अपनी नाक बचाने के लिए उसे छोटा करवा लिया। महाराणा प्रताप, शिवाजी, छत्रसाल, दुर्गादास, और अमर सिंह जैसों ने अपनी नाक के लिए सर कटवाना ज्यादा ठीक समझा। इसके बाद जब अंग्रेज़ आए तो सभी राजाओं और नवाबों ने अपनी नाक को सुरक्षित रखने के लिए उसे अंग्रेजों के पास ही जमा करवा दिया। जब अपने दरबार में जाना होता या अपनी प्रजा पर रोब ज़माना होता तो लॉकर में से निकल कर ले आते थे और काम करने के बाद फिर लॉकर में जमा कर आते थे।
नारा ही देश को महान बनाता है..सत्तर और अस्सी के दशक के सरकारी नारों को पढ़कर बड़े हुए। उस समय समझ कम थी। अब याद आता है तो बातें थोड़ी-थोड़ी समझ में आती हैं। ट्रक, बस, रेलवे स्टेशन और स्कूल की दीवारों पर लिखा गया नारा,'अनुशासन ही देश को महान बनाता है' सबसे ज्यादा दिखाई देता था। भविष्य में इतिहासकार जब इस नारे के बारे में खोज करेंगे तो इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि 'एक समय ऐसा भी आया था जब अचानक पूरे देश में अनुशासन की कमी पड़ गई थी। अब गेंहूँ की कमी होती तो अमेरिका से गेहूं का आयात कर लेते (सोवियत रूस के मना करने के बावजूद), जैसा कि पहले से होता आया था। लेकिन अनुशासन कोई गेहूं तो है नहीं।'इतिहासकार जब इस बात की खोज करेंगे कि अनुशासन की पुनर्स्थापना कैसे की गई तो शायद कुछ ऐसी रिपोर्ट आये:----- |
बोलो जी अब तुम क्या खाओगेज़माना बेशक आज बहुत आगे बढ़ चूका हो,मगर स्त्रियों के बारे में पुरुषों के द्वारा कुछ जुमले आज भी बेहद प्रचलित हैं,जिनमें से एक है स्त्रियों की बुद्धि उसके घुटने में होना...”क्या तुम्हारी बुद्धि घुटने में है”ऐसी बातें आज भी हम आये दिन,बल्कि रोज ही सुनते हैं....और स्त्रियाँ भी इसे सुनती हुई ऐसी "जुमला-प्रूफ"हो गयीं हैं कि उन्हें जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता इस जुमले से.. |
अनेकानेक बाधाओं से मुक्ति मात्र सिर्फ एक उपाय से........ कर्म करना एक तरह से मानव जीवन की विवशता ही है,क्यों कि किए गए कर्मों से ही प्रारब्ध का निर्माण होता है.भाग्य पूर्व के संचित कर्मों तथा वर्तमान जीवन के किए गए कर्मों के मिश्रण का ही रहस्यमयी अंश है.इसलिए अधिकतर लोग अपने-अपने क्षेत्रों में सफलता के चरम को छूने के लिए निरन्तर संघर्षशील रहते हैं,लेकिन इनमें से बहुत कम ही अपने सपनों को हकीकत में बदल पाते हैं, क्यों कि प्रकृ्ति केवल योग्य "प्रारब्ध" का ही स्वागत करती है |
सहिष्णुता की समृद्ध परंपरा रही है भारत मेंकल दोपहर साढ़े तीन बजे अयोध्या विवाद का पटाक्षेप हो जायेगा,कम से कोर्ट के स्तर पर तो यह मामला निपट जायेगा। सरकार ने इस मुद्दे पर विभिन्न संगठनों से शांति की अपील की है। भारत की जनता सहिष्णु है और सभी दूसरे मतावलंबियों की धार्मिक आस्था का भी आदर रखती है इसके बावजूद आवेश के क्षणों में गलतियां भी हो सकती हैं। अयोध्या पर चाहे जो फैसला आये,इस पर हमारी प्रतिक्रिया भारत की गौरवशाली सामासिक संस्कृति के दायरे में होनी चाहिये।
वतन है...हिंदोस्तां हमारा!सीटी बजते ही हम प्रेशर-कुकर नहीं खोल लेते हैं। सीटी के नीचे से थोड़ी-थोड़ी भाप निकाल कर उसे ठंडा करते हैं और फिर ढक्कन खोलते हैं। अयोध्या का फैसला यकायक आ जाने से कुछ भी हो सकता था। इसलिए कि तब तक हम तय कर पाने की हालत में ही नहीं होते कि इस फैसले पर किस तरह खुश या दु:खी होना है...होना भी है या नहीं। आज भी आमजन तो इसी पशोपेश में रहता है और उसका बेजा फायदा जहरीले दिमाग उठा लेते हैं।
परछाईयों के देश से....कभी कभी लगता है कि हम एक दूसरे से नहीं वरन एक दूसरे के "आईडिया"से ज्यादा प्यार करते है जिन्हें हम सब में मौजूद कल्पना और सृजनशीलता साथ मिलकर अनूठे रंगो से सजा हमारे सम्मुख परोस देती है किसी स्वादिष्ट छप्पन भोग सा,जिसका स्वाद यथार्थ से साक्षात्कार के बावजूद मन के किसी कोने में शेष रहता है किसी "नास्टेल्जिया"की तरह. जहां किसी तरह के "कन्फ़लिक्ट"की गुंजाईश ही नहीं जहां अपने उन "आईडियाज"को अपने मन मुताबिक " चेंज" "अरेंज" या "री अरेंज" करने की बेहिच् आजादी है. |
किस्सा नखलऊवा का…नखलऊवा की कहानी में मैंने अपनी ओर से कोई मिलावट नहीं की है.ये ऐसे ही मिली थी मुझे मय नमक-मिर्च और बैसवारे के आमों से बने अमचूर पड़े अचार की तरह,चटपटी और जायकेदार.इसका महत्त्व इस बात में नहीं कि ये बनी कैसे?इस बात में है कि हमारे सामने परोसी कैसे गयी? ये कहानी सच्ची है.उतनी ही सच्ची जितनी कि ये बात कि लखनऊ के गाँवों में बहुत से लोग अब भी उसे ‘नखलऊ’ कहते हैं |
हम सांप से ज्यादा जहरीले हो गए हैंस्वार्थ के दांत कितने नुकीले हो गए हैंहम सांप से ज्यादा जहरीले हो गए हैं। हर कोई समझने में करने लगा है भूल- क्योंकि हमारे आवरण चमकीले हो गए हैं। वह तो उगलता है जहर डंसने के बाद - हम उगल-उगलकर जहर पीले हो गए हैं। |
विस्मयसृष्टि की जननी बनकरहै सृष्टा का भेस धरा वृहत वसुंधरा से बढ़कर रचयिता ने शरण स्वर्ग भरा । माँ कहलाई महिमा पाई ममता दुलार लुटाती हो देवों ने भी स्तुति गाई हर रिश्ते से गुरुतर हो । |
तुझे समझना सरल नहीं हैरहता नयनों का भाव,एकसा सदा, ना होता परिवर्तन मुस्कान में, और ना कोई हलचल, भाव भंगिमा में, लगती है ऐसी, जैसे हो मूरत एलोरा की |
पदार्थ की पूजा ....पदार्थ की पूजा करके, थके पछताते-से हैं लोग.विज्ञान की राह में भटके, शरमाते-से हैं लोग. साथ कोई है नहीं, सब जी रहे हैं जुदा-जुदा ! टूटकर बिखरे हुये, मनकों के दाने-से हैं लोग. भावनाओं-से रहित, लोग जैसे हैं मशीन ! या पड़े रस्ते में खाली पैमाने-से हैं लोग. |
अयोध्या की गुजारिशना मुझे मन्दिर की हसरत,ना मुझे मस्जिद की ख्वाइश। बाँट ना बस हिन्द को अब, मेरी इतनी सी गुजारिश॥ |
हम तुम दोनों साथ थेगंध सुवासित केश रूपसी गीले पुलकित गात थेमौसम नें आवाज लगाई हर देहरी हर द्वार से नेह लदी लहरें लहरआयी आँचल के हर तार से निशिगंधा के फूल खिले थे कुछ कहने को अधर हिले थे असीमता बाहों में आकर सिमटी कुछ मनुहार से नदिया तीरे बंसी के स्वर गूंजे सारी रात थे हम तुम दोनों साथ थे |
जीवनजीवन एक सुनहरा अवसर !मन अपना ब्रह्म सा फैले ज्यों बूंद बने सागर अपार नव कलिका से फुल्ल कुसुम क्षुद्र बीज बने वृक्ष विशाल I |
खड़ा कबीरा अलख जगाता---इधर-उधर लड़ने से पहले,खुद अपने से लड़कर देखकिसी परिंदे जैसा पहले,पर फैलाकर उड़कर देख नफरत की दीवार ढहा कर,प्यार की खेती-बारी कर, हरियाली फिर चैनो-अमन की,वतन में अपने मुड़कर देख ! टूटी हुई पतंग-जिन्दगी,बेमकसद क्यों ढोता है ? उड़ेगा फिर से आसमान में, एक बार तो जुड़कर देख !! |
तभी तो पुत्र कहाऊंगा !!मेरे तन को अपने तन सेमेरे मन को अपने मन से वर्द्धित करती धन को धन से मेरे जीवन को जीवन से! सुरसा तूं षटरस देती है अन्नादिक से सुध लेती है जीवन जीवन भर सेती है फिर अन्त मुक्ति फल देती है! |
जीवन का गणितजब मै जीवन केजोड़, घटाने और गुणा, भाग के प्रश्नों को, हल नहीं कर पाता हूँ ! तब मै, मृत्यु के प्रश्न, पर आता हूँ ! | बिन खिलौने के फिर से जो घर जाएगा...तेरे आने से घर ये निखर जाएगा मेरा बिगड़ा मुकद्दर संवर जाएगा हमने महफ़िल सजाई है तेरे लिये तू न आया तो दिल को अखर जाएगा प्यार का पाठ मैंने लिखा है मगर तुम अगर देख लो रस से भर जाएगा |
बेसब्री का आलम! | कार्टून:अयोध्या वाला आईडिया दिल्ली में नहीं चलेगा !! |
Technorati टैग्स: {टैग-समूह}चर्चा मंच,पं.डी.के.शर्मा "वत्स"
खूब सजाई है यह चर्चा आपने पंडित जी ....भाई वाह .....आनंद आ गया !
जवाब देंहटाएंbahut hia cchi charcha..sabhi links ssarthak hain..
जवाब देंहटाएंकार्टून, सुन्दर तस्वीरें, बेहतरीन रचनाएं और उम्दा आलेखों के लिंक्स.... सब तो है इस चर्चा में..
जवाब देंहटाएंगद्य पद्य और कार्टून का एक समग्र संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा.
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक चर्चा सजाई है बधाई |मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत अच्छी प्रस्तुति। भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
जवाब देंहटाएंमध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल, मनोज कुमार,द्वारा राजभाषा पर पधारें
उत्तम चर्चा पंडित जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा !
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा और लिंक्स देने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंवाह वाह्………………बहुत सुन्दर चर्चा मंच सजाया है…………बिल्कुल हट कर लिंक्स लगाये हैं…………………आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा...
जवाब देंहटाएंबड़े अच्छे लिंक दिए हैं आपने...
आभार !!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंचक्रव्यूह से आगे, आंच पर अनुपमा पाठक की कविता की समीक्षा, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
अच्छे लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंनमस्कार....
जवाब देंहटाएंलो जी, अब दो दिन भी कट गए :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा...श्रम ज़ाहिर हो रहा है.
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