आज मंगलवार को साप्ताहिक काव्य मंच से संगीता स्वरुप का नमस्कार …..ब्लॉग जगत के सागर से कुछ सीपियाँ लायी हूँ ….आप हर सीप को जांचें – परखें …कुछ मोती तो मिल ही जायेंगे …इसी उम्मीद से शुरू करती हूँ आज का काव्य मंच …सबसे पहले हमारे दो विशेष रचनाकारों से परिचय …परिचित तो आप हैं ही पर मेरे नज़रिए से मिलिए …. |
![]() माँ, पत्नी और बेटी----पृथ्वी गोल घुमती है ठीक मेरे जीवन की तरह पृथ्वी की दो धुरियाँ हैं उत्तर और दक्षिण मेरी भी दो धुरियाँ हैं माँ और पत्नी लोग बसंत पर लिखते हैं , आपने पतझड़ पर लिखा है - उल्लासोपरांत पतझड़ का मौसम आपके लिएपतझड़ का मौसम वृक्ष पर एक भी पत्ता नहीं यह मौसम पहले भी आता था अब फिर लौटा कोयल की कूक बुलबुल के नगमे खो गए हैं होली पर भी बता रहे हैं कि कब समझना कि होली आ गयी है तभी समझना यार आ गयी है मस्तानी होलीजब टेसू जब पलास के रंगों की सजे रंगोलीजब चौपाल में बजे नगाड़े और हँसे हमजोली जब कोयलिया ने भी अपनी तान सुरीली खोली तभी समझना यार आ गयी है मस्तानी होली श्रमिकों के हालातों को भी इन्होनें कलमबद्ध किया है कितना वह मजबूर था--दुनिया बनाई देखो उसने कितना वह मजबूर था एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था चंहु ओर हरियाली की देखो एक चादर सी फैली है यही देखने खातिर उसने भूख धूप भी झेली है अपने लहू से सींचा धरा को वह भी बड़ा मगरूर था एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था जन्माष्टमी पर विशेष कविता --कितना है मुस्किल घरों से निकलनापनघट जाऊँ कैसे,छेड़े मोहे कान्हा पानी नहीं है,जरुरी है लाना पनघट जाऊँ कैसे,छेड़े मोहे कान्हा कितना है मुस्किल घरों से निकलना पानी भरी गगरी को सिर पे रखके चलना फ़ोड़े न गगरी,बचाना ओ बचाना पनघट जाऊँ कैसे,छेड़े मोहे कान्हा |
![]() कविता रावत जी के लेखन से बहुत लोग परिचित हैं ..इनका लेखन जहाँ समसामयिक विषयों पर होता है वहीं प्रकृति पर भी बहुत सधा हुआ लिखती हैं …फिर वो मौसम के बारे में हो या पहाड के विषय में … वो वसंत की चितचोर डाली....कुछ शर्माती कुछ सकुचाती आती बाहर जब वो नहाकर मन ही मन कुछ कहती उलझे बालों को सुलझाकर जीवन के दर्शन पर भी खूब कहा है .. संगति का प्रभावउच्च विचार जिनके साथ रहते हैं वे कभी अकेले नहीं रहते हैं दर्द पर भी खूब लेखनी चली है ……..आम लोगों की ज़िंदगी को भी लिखा है … एक जैसे पंखों वाले पंछी एक साथ उड़ा करते हैं हंस-हंस के साथ और बाज को बाज के साथ देखा जाता है अकेला आदमी या तो दरिंदा या फिर फ़रिश्ता होता है मजदूर : सबके करीब सबसे दूरमजदूर!सबके करीब सबसे दूर कितने मजबूर! कभी बन कर कोल्हू के बैल घूमते रहे गोल-गोल ख्वाबों में रही हरी-भरी घास बंधी रही आस और असमंजस की स्थिति में प्रश्न पूछती कविता जी … कौन हो तुम!कौन हो तुम! पहले पहल प्यार करने वाली शीत लहर सी सप्तरंगी सपनों का ताना-बाना बुनती चमकती चपला सी शरद की चांदनी सी गुलाब की पंखुड़ियों सी काँटों की तीखी चुभन से बेखबर मरू में हिमकणों को तराशती कौन हो तुम! |
उम्मीद करती हूँ कि आपको मेरा नजरिया पसंद आया होगा …..अब सप्ताह की चुनी हुई कविताएँ …ब्लॉग तक पहुँचने के लिए चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं ..देखना है कि आपको इन मोतियों में चमक मिलती है या फीके रह जाते हैं …तो पेश है रंग बिरंगी सीपियाँ … |
![]() डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी का मन कसक रहा है हर बार की तरह हिंदी दिवस मनाया जायेगा ..और अंग्रेज़ी में भाषण पिलाया जायेगा …उनकी इस वेदना को आप भी जानिए और समझिए “ओह! माह सितम्बर”इस बार भी होंगे हिन्दी-दिवस के बड़े-बड़े आयोजन किन्तु सफल नही होगा सच्चे साधकों का प्रयोजन |
![]() दीपक मशाल हर ओर से शायद निराश हो कर यह पूछ रहे हैं कि- कब तक साथ निभाओगे तुम-अब तो रब भी रूठ गया है अन्दर सब कुछ टूट गया है इक रीता कमरा छूट गया है कोई अपना लूट गया है सबने तो ठुकरा डाला है कब मुझको ठुकराओगे तुम कब तक साथ... | ![]() अनीता वशिष्ठ बहुत संवेदनशील मन रखती हैं … और यह बात आप जान पाएंगे उनकी कविता पढ़ कर .. निरक्षर हाथों का जोडारोज देखती हूंएक निरक्षर हाथों का जोडा दिल्ली की हर रेड लाइट पर बेच रहा होता है साक्षरता का पहला ‘अक्षर’ इस जोडे को शायद जमा घटा का ज्ञान नहीं किंतु एक रुपय की कीमत भली भांती ज्ञात है |
![]() सिद्धार्थ सिन्हा जी ( ब्लॉग पर यही फोटो लगाया हुआ है ) एक संवेदनशील रचना लाये हैं …पिता की जामुन के पेड़ से किस प्रकार तुलना कर रहे हैं ..आप स्वयं पढ़िए .. जामुन का पेड़बहुत पहले जामुन का जो पौधा लगाया था पिता ने अब वो मुकामल पेड़ बन गया है घना,छायादार,फलदार बिलकुल पिता की तरह |
![]() रिसाव.रिश्तो का अथाह दरिया रिस रहा, अफ़सोस कुछ भी नज़र नहीं आ रहा । धीरे-धीरे दरिया भी खाली हो जाता है , शेष बेकार रह जाता है । |
शेफाली पांडे जी की एक बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति … सच के करीब है …आप भी पढ़िए तेरी याद ...तेरी याद .....आज भी जब तेरी याद मुझको गले से लगाती है मैं बैचैन हो जाती हूँ | इधर - उधर टकराकर खुद को चोट लगा लेती हूँ | कभी गर्म कढ़ाई के तेल के छींटों से हाथ जला लेती हूँ | ![]() अदम्य-धरती तल में उगी घासयों ही अनायास , पलती रही धरती के क्रोड़ में, मटीले आँचल में . हाथ-पाँव फैलाती आसपास . मौसमी फूल नहीं हूँ कि,यत्न से रोपी जाऊँ ,पोसी जाऊँ! |
![]() साधना वैद जी स्वयं में आत्मविश्वास लिए बिना किसी के साथ की इच्छा के कह रही हैं खुद बढ़ी जाती हूँ मैंपर मुझे अब कोई भी विप्लव डरा सकता नहीं, कोई भी तूफ़ान मेरा सर झुका सकता नहीं, मैं धधकती आग हूँ सब कुछ जलाने के लिए, कोई भी आवेश अब तिल भर हिला सकता नहीं ! |
![]() तन्हा चाँद निहारा करती हूँतेरे प्यार की चाहत में ये दिये जलाया करती हूँ.खामोश सितारों में ये तन्हा चाँद निहारा करती हूँ. आकाश में ज्यूँ बदली लुका-छिपी सी करती हो नर्म बाहों के ख़यालों में यूँ ही सिमटा करती हूँ. |
![]() भूख न जाने भूख क्यों बनाई ईश्वर ने? और पेट क्यों दिया इंसान को? क्या चला जाता ईश्वर का, अगर उसने हमें ऐसी त्वचा दी होती, जो सूर्य की रोशनी से, सीधे ऊर्जा प्राप्त कर सके, मुफ़्त की ऊर्जा; | 'अपने अपने हिस्से का ग़म'अपने अपने दुखड़ों कीहै पोटली सबके दामन में अपने अपने हिस्से का ग़म यहाँ हर किसी को सहना है अपने अपने झूठ की गठरी है हर एक के काँधे पर अपने अपने सच का सबको राज़ छुपाये रखना है |
![]() महेंद्र आर्य शिक्षक दिवस पर विशेष अनुवाद लाए हैं ….[ अठारहवीं सदी के अंग्रेजी भाषा के एक प्रसिद्ध कवि ओलिवर गोल्डस्मिथ की एक मशहूर कविता थी - विलेज स्कूल मास्टर . उसी कविता को थोड़े भारतीय परिपेक्ष्य में प्रस्तुत कर रह हूँ , हिंदी में . कविता के नीचे प्रस्तुत है मूल अंग्रेजी की कविता भी . पढ़ कर प्रतिक्रिया जरूर देवें . ] मास्टरजीएक कच्चे मकान में बसा गाँव का वो स्कूल जिसके अहाते में लगे थे रंग बिरंगे फूल पढ़ते थे गाँव के बच्चे यहाँ आकर हर रोज खेल कूद मस्ती और खूब मौज |
मेरा मन मेरी बात नहीं सुनता हैमेरा मन मेरी बात नहीं सुनता हैजो गलियाँ पीछे छूट चुकीं, जिनमें अपनी पहचान नहीं, अपने उगने के बढ़ने के, फलने के और पनपने के, हैं बाक़ी जहाँ निशान नहीं, यह उन गलियों में लौट लौट कर अपना सिर क्यों धुनता है? मेरा मन मेरी बात नहीं सुनता है। | ![]() सुमन मीत जी अतीत को पलों के रत्नजडित आभूषणों से सज्जित कर रही हैं .. ज़ख्मबन्द हैं चौखट के उस पारअतीत की कोठरी में पलों के रत्न जड़ित आभूषण एक दबी सी आहट सुनाती एक दीर्घ गूंज |
सुनीता शानू जी की एक व्यंग कविता पढ़िए ..जिसमें वो आज कल फलों और सब्जियों में लगने वाले इंजेक्शन से क्या परिवर्तन आते हैं ,बता रही हैं ….. आप भी जानिए एक व्यंग्य कविता ( करामाती इंजेक्शन )होटल के एक कमरे में प्यारे लाल ठहरे अभी आये भी नही थे उन्हे खर्राटे गहरे कि इतने में आवाज सुनी किसी के रोने की किसी के सिससने की किसी के दर्द से कलपने की साँप के फ़ुफ़कारने की फ़िर- |
![]() धर्म सिंह जी एक संवेदनशील कविता के माध्यम से बता रहे हैं कि उन्हें भी गाँव की बहुत याद आ रही है ..और वादा कर रहे हैं कि- पर अबकी मैं जरूर आऊंगा .हर साल की तरह इस साल भी खूब फूला होगा बुरांश डाडों में ........., खूब खिली होगी फ्योंली विठा पाखों पर ......... ॥ पर साल मैंने कहा था जब डाडों में बुरांश फूलेगा तो मैं घर आऊंगा । | ![]() अना जी कुछ अपनी ज़िंदगी की बात करती हुई कह रही हैं .. रात का सूनापनरात का सूनापनमेरी जिन्दगी को सताएदिन का उजाला भीमेरे मन को भरमायेक्यों इस जिन्दगी मेंसूनापन पसर गया |
![]() मनोज कुमार जी अपने ब्लॉग मनोज पर बहुत रूमानी सी नज्में लाये हैं …. नज़्म का हर लफ्ज़ जैसे प्रेम मय हो उठा हो … हर निशाँ जैसे मन पर अंकित हो गया हो ….आप भी देखें ज़रा -- गीली मिट्टी पर पैरों के निशानकाश!मेरी ख़ामोशी का गीत सुन लेतीं तुम एक बार ... शब्द बन नज़्म बहे यह ज़रूरी तो नहीं |
![]() राजवंत राज जी ने ज़िंदगी के फलसफे को कैसे सहेजा है आप भी देखें … सन्दूकचीजिन्दगी के बहुत सारे फलसफों कोअंगूठियों की तरह अँगुलियों में पहनती हूँ , वक्त बे वक्त उनकी जगहों में रद्दोबदल करती हूँ मगर मुझे मनमुआफिक नतीजा नही मिलता | इसी जद्दो जहद में मेरी सन्दूकची में ढेर सारी अंगूठियाँ पनाह पा गई हैं |
![]() कहो तो लौट जायेंगे मैंने कहा, "इक बार फिर से सोच लो फिर आगे जायेंगे अभी भी वक़्त है कहो तो लौट जायेंगे... इश्क अपना बस चंद दिनों पुराना है अभी सालों की उमर बाकी है अभी तो बस चले हैं हम अभी पूरा सफ़र बाकी है | हिमानी जी कह रही हैं कि दिल में ख्वाहिशें , ख्वाब न जाने क्या क्या ..भरा है कचरे के समान --- दिल का कचराबेशर्म ख्वाब बेअदब ख्वाइशें बगावती ख्याल ख़ाली से इस दिल में कितना कचरा भरा है |
![]() देवेन्द्र कुमार जी इस बार अपनी बेचैन आत्मा को जंगल ले जा कर वहाँ की शिक्षा व्यवस्था देख आये हैं …व्यंगात्मक शैली में उनकी यह रचना बहुत सशक्त बन पड़ी है … जंगल राज में शिक्षा व्यवस्थाकीचड़ में फूल खिला जंगल में स्कूल खुला चिडि़यों ने किया प्रचार आज का ताजा समाचार हम दो पायों से क्या कम ! स्कूल चलें हम, स्कूल चलें हम। |
![]() डा० नीरव का काव्य संग्रह है और इस कविता का शीर्षक भी .. मुझे ईर्ष्या है समुद्र सेमैं नहीं छीन रहा हूँ तुम्हारे अंदर निहित संभावनाओं को, तुम्हारी आशाओं आकांक्षाओं या महत्वाकांक्षाओं को | ![]() पंख पसार कर हौसले का विस्तार तोड़ कर हर बंधन छूने चली वो विशाल गगन परों में समेटे दूरियां, आसमान छू आयी वो, कल्पनाओं से परे, अपने हौसले के संग |
सुनील मिश्र जी एक सुन्दर नज़्म लाये हैं .. सपने और सुवासतुम खुली आँखों की सचाईबंद आँखों का एहसास दोनों ही ओर बड़ी पास.... |
![]() डा० गणेश अपने ब्लॉग रेगज़ार पर ( वैसे मुझे इस शब्द का अर्थ नहीं मालूम , यदि कोई बताने में मेरी मदद करे तो आभारी होऊँगी ) बहुत सशक्त कविता लाये हैं ….जीने का एक जज़्बा देती हुई , सोचने पर मजबूर करती हुई ..आप भी पढ़ें .. " अभी बंद न करो ये आवाज़ "अभी बंद न करो ये आवाज़, के अभी तो बाँहों में दर्द संभाले अधमुंदी ज़िन्दगी जाग रही है के अभी बुझा नहीं है आखरी चराग़ के अभी तो पलकों में बाक़ी है नमी के अभी तो आँखों में बाक़ी है खून के अभी तो हमारा पासे-जब्त ज़िंदा है के अभी तो कुछ ज़ख्मों की जगह बाक़ी है | |
![]() वीरेंद्र सिंह चौहान लाये हैं राजनीति पर व्यंग करती एक समसामयिक रचना -- 'भगवा' आतंकवाद का प्रलाप ..सत्ता में बने रहने के लिए.....सत्तासीन..... और सत्ता पाने के लिए.... सत्ताविहीन...... साथ में कुछ .... तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पत्रकार.... | ![]() पंकज शुक्ला एक चित्र को देख जो अनुभव करते हैं , उसी को बहुत सुन्दर शब्द में लिखा है .. वे हाथ सूत कात रहे हैं..वे हाथ सूत कात रहे हैं...सूत कातने वाले हाथ घर सँवारते हैं आँगन बुहारते हैं रोटियाँ बेलते हैं ... |
![]() दिगंबर नासवा जी आज एक बहुत मर्म स्पर्शी रचना ले कर आये हैं …कभी कभी यादों के दंश मन को इतना घायल कर देते हैं कि खामोशियाँ अच्छी लगने लगती हैं … मेरा शून्यनही में नही चाहता सन्नाटों से बाहर आना इक नयी शुरुआत करना ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते लाहुलुहान हो गया हूँ गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ |
और चर्चा के अंत में समीर लाल जी की कल्पनाओं को पंख मिल गए हैं ….चाँद को निहारते हुए कह रहे हैं कि --- अक्सर दिल करता है मेराअक्सर दिल करता है मेरा चलूँ, बादलों के पार चलूँ देखूँ, कहाँ रहता है वो चाँद जो झाँकता है अपनी खिड़की से मेरी खिड़की में सारी रात |
आज बस इतना ही ….आपकी प्रतिक्रिया हमारा मनोबल बढ़ाती है ….चर्चा की सार्थकता आपके हाथ में है ..नए लोगों का उत्साह बढ़ाएं यही गुज़ारिश है ….मिलते हैं अगले मंगलवार को नयी पेशकश के साथ …नमस्कार .. |
संगीता स्वरूप जी!
ReplyDeleteआज की चर्चा में आपने वास्तव में वो ही सीप खोजी हैं जिनमें मोती है!
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शानदार चर्चा के लिए बहुत-बहुत बधाई!
बहुत महनत करती हैं आप चर्चा मंच सजाने में बहुत अच्छी चर्चा |बधाई
ReplyDeleteआशा
चर्चा मंच की खूबसूतर झलकियां
ReplyDeletebahut sundar charcha..!
ReplyDeleteaabhar..!
मुझे "अदम्य" बहुत पसंद आई...:)
ReplyDeleteमन के पंख देखने हों तो कोई यहाँ आकर देखे , क्या खूब सजा है काव्य मंच , बधाई संगीता स्वरूप जी एवम सभी रचनाकारों को । -आशुतोष मिश्र
ReplyDeleteढेर सारे लिंक्स। अनेक रचनाकारो से परिचय कराया आपने। बहुत ही मेहनत और लगन से तैयार की गई चर्चा।
ReplyDeleteहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
बहुत सुन्दर, बहुत मेहनत की गई है लिंक ढूँढ़ने के लिए। बहुत सारे रचनाकारों से परिचय हुआ। धन्यवाद
ReplyDeleteचर्चा मन्च मे समीक्श ब्लोग को देखकर बहुत अच्छा लगा………आपने वास्तव मे बहुत मेहनत कर इन मोतियों को ढूंढ निकाला……………॥बधाई
ReplyDeleteइतनी सुन्दर चर्चा के लिए बहुत बहुत बधाई संगीता जी ! मुझे याद रखने के लिए शुक्रिया ! आपकी विस्तृत चर्चा सदैव मन को लुभाती है ! धन्यवाद !
ReplyDeleteवाह, संगीता जी, बहुत बढिया।
ReplyDeleteविशिष्ट चर्चा के लिए आभार
बहुत बढिया .. कमाल की चर्चा !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeletedidi
ReplyDeleteaapke madhyam se bhut sare umda vicharo bhavnao se ru-b-ru hone ka mouka mila , dimagi khurak mili . aapke beshkimti pnno pe meri chnd pnktiyo ko jagah bhi mili ,hriday se aabhari hu .
kvita ravat ji ki ''sngti ka prbhav''bhut umda vichar hai . uchch vichar to smndar hai jisme tmam buraiya bhi aakr apna astitv smapt kr deti hai lekin smndar smndar hi rhta hai , nishklnk our mryadit.
llit ji ne smst vivahit purush jno ke antrdvnd ko apni kvita me bkhoobi ubhara hai .is anyrdvnd me sntan bhut adhik prbhavit hoti hai lekin smvad bnaye rkhne me nhsndeh vo pul ki mhtvpurn bhumika nibhati hai .antrdvnd shbdbdh ho kr pnnoo pe utr aaya hai . bhut khoob !
is sarthk chrchmnch ke liye didi aapko hardik bdhai .
आदरणीय संगीता जी!
ReplyDeleteसादर नमस्ते!
चर्चा मंच मेरी चनिंदा रचनाओं को विशेष स्थान देकर चर्चा हेतु प्रस्तुत करने के लिए मैं आपकी तहेदिल से आभारी हूँ. समयाभाव और दौड़-भाग के बीच यूँ ही राह चलते, सोचते, और अपने आस-पास जो भी दैनिक दिनचर्या के बीच घटित होता है, बस उसे ही टुकड़ों-टुकड़ों में रचकर आपके सामने प्रस्तुत कर लेती हूँ. यह तो आप जैसे सभी वरिष्ठ लेखकों और पाठकों का अपनापन और प्रोत्साहन का ही नतीजा है कि मैं ब्लॉग पर लिखने हेतु उत्सुक रह पाती हूँ. समाचार पत्रों में लेख- कविता आदि छपने पर जितनी ख़ुशी होती है उससे कई अधिक मुझे ब्लॉग पर चर्चा व कमेन्ट देखकर होती है. इसका एक और कारण भी है कि मैं ब्लॉग पर खुलकर किसी भी बात को अभिव्यक्त कर पाती हूँ, जबकि समाचार पत्र अपने अनुसार सामाजिक या समसामयिक बात को तोड़ मरोड़ लेते हैं, जो शायद मन को अच्छा नहीं लगता.
..आप जैसे सभी चर्चा मंच से जुड़े लेखकों के सार्थक प्रयास को देखकर मैं अभिभूत हूँ. इसके लिए हम सबके आभारी हैं ...
चर्चा मंच के सभी लिंक्स व रचनाओं की सुन्दर प्रस्तुति हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
कुछ पुराना कुछ नए का यह संगम भी बेजोड़ रहा संगीता जी !
ReplyDeletenice links
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteबहुत मेहनत से सजाया है आपने आज की चर्चा मंच को। शुरु के रचनाकारों का परिचय और उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का चयन लाजवाब है।
साथ ऐसे-ऐसे लिंक्स यहां मौज़ूद है जो हमें पता ही नहीं था। और उनकी रचनाएं आपके श्रेष्ठ चयन की रुचि को परिलक्षित करती है। मेरे लिए तो एकाध को छोड़कर सभी पर जाना मज़बूरी बन गई।
अंत में, मेरी रचना को सम्मान देने के लिए आभार।
हरीश गुप्त की लघुकथा इज़्ज़त, “मनोज” पर, ... पढिए...ना!
क्या बात है बहुत ही नायाब लिंक्स मिले इस बार तो ..बेहतरीन चर्चा.
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब चर्चा ... अच्छे लिंक हैं पूरी पोस्ट में .... मुझे भी शामिल करने का शुक्रिया ....
ReplyDeleteहमेशा की तरह चर्चा बहुत अच्छी लगी .................मेरी कविता लेने के लिये शुक्रिया.......
ReplyDeleteस्थापित के साथ साथ कई नए ब्लॉग सामने लाईं आप.. सुन्दर समागम.. आभार..
ReplyDeleteदी नमस्ते
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ढंग से सजाया है आज चर्चा मंच को .....
महत्वापूर्ण लिंक के लिए भी सुक्रिया ...
आप का बहुत बहुत आभार की आपने मेरी रचना को सहारा और इस विशिष्ट स्थान पर जगह दी ....
बहुत सुन्दरता से सभी कविताओं के लिंक सजाये हैं. आनन्द आ गया. आपका आभार.
ReplyDeleteसंगीता जी
ReplyDeleteबहुत बढिया है आज की चर्चा |अभी तो शीर्षक देखे है पर बहुत सरे नये ब्लाग पढने को मिलेंगे आपकी इस निस्वार्थ श्रम से |
आभार
हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब चर्चा पुरानी पोस्ट को शामिल करने का विचार अच्छा लगा कई बार छूट जाती हैं
ReplyDeleteआपकी महनत दर्शाती लाजवाब चर्चा...जो कभी भी निराश नहीं करती क्युकी हमेशा ही इतना अच्छे अच्छे और नए लिंक्स पढ़ने को मिलते हैं. सच में आप का कहा सच सिद्ध होता है की ...सीप में मोती ही मिले हैं.
ReplyDeleteआभार इस भव्य चर्चा के लिए.
मैराथान चर्चा.
ReplyDeleteरामराम.
मैराथान चर्चा.
ReplyDeleteरामराम.
एक बेहद खूबसूरत गुलदस्ता , जिसमे अलग अलग रंग और खुशबू वाले फूल शामिल किये हैं आपने . मेरा सौभाग्य की मेरी रचना को भी आपने इस गुलदस्ते में सजाया . आप बहुत मेहनत से समय लगा कर चुनती हैं अपने पुष्पों को ; बहुत बधाई संगीता स्वरुप जी !
ReplyDeleteसंगीता जी, बहुत अच्छी शैली में की गई है चर्चा...
ReplyDeleteकाव्य मंच में कई नए लिंक्स को जगह देने के लिए शुक्रिया...
एक गुज़ारिश है आपसे, काव्य चर्चा में उर्दू शायरी को पर्याप्त स्थान नहीं मिल पा रहा है...
क्या ग़ज़लों के ब्लॉग्स को भी इस चर्चा का हिस्सा बनाया जा सकता है?
आशा है इस सुझाव पर गौर करने की इनायत होगी.
सभी पाठकों का आभार ...आपकी प्रतिक्रिया हमारा मनोबल बढ़ाती है ..
ReplyDelete@@ शाहिद जी ,
आभार ..आपके सुझाव को ध्यान में रखा जायेगा ...यदि हो सके तो कुछ उर्दू के अन्य ब्लोग्स से परिचित भी कराएं ..
आपकी सुरुचि और यत्नपूर्वक चुने गए फूलों के गुलदस्ते में प्रयुक्त घास भी शोभनीय हो उठती है !
ReplyDeleteSangeeta ji,
ReplyDeleteApki ye charcha nischit roop se bahut achchhi hai.Apni charcha me meri rachna ko shamil karne ka shukriya...
संगीता जी, चिट्ठा चर्चा तो वाकई काबिले तारीफ़ है। बहुत से नये चिट्ठो तक पहुंचाया है आपने जिन्हे मै अब तक जान नही पाई थी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसंगीता जी ...आपकी मेहनत की जितनी भी तारीफ करी जाए ,कम है ...
ReplyDeleteसंगीता जी,मेरी नज़्म को आप ने यहाँ स्थान दिया,इस के लिए साधुवाद | लगे हाथों दो बातें और | पहली तो यह कि मेरा पूरा नाम काम दें,आधा-अधूरा नहीं | दूसरी बात यह कि रचना भी पूरी ही दें,कटी नहीं | कटी रचना से बात कट कर रह जाती है | तीसरी बात सब से आखिर में,'रेगज़ार' का अर्थ है---'मरुस्थल' | हाँ,इस बहुत ही प्यारे मंच के लिए आप को हार्दिक बधाई | इस मंच की उत्तरोत्तर प्रगति के लिए सदैव शुभकामना | धन्यवाद...
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteआपने आज की चर्चा मंच को बहुत मेहनत से सजाया है। रचनाकारों का परिचय और रचनाओं का चयन श्रेष्ठ है। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए धन्यवाद।
संगीता जी,
ReplyDeleteआपने आज की चर्चा मंच को बहुत मेहनत से सजाया है। रचनाकारों का परिचय और रचनाओं का चयन श्रेष्ठ है। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए धन्यवाद।
सभी पाठकों का आभार ...
ReplyDelete@@ डा० कुमार गणेश जी ,
आपने रेगज़ार शब्द का अर्थ बताया ..इसके लिए शुक्रिया ...
इस मंच पर हम नए ब्लोग्स यानि कि जिनको कम लोग पढते हैं और साथ में ही अच्छी रचनाओं का चयन करते हैं .... यह मंच एक जरिया है जहाँ लोग आते हैं और नए लिंक्स देख कर उनके ब्लॉग तक जाने का प्रयास करते हैं ...और ब्लॉग तक जा कर परिचय स्वयं ही मिल जाता है ...यदि हम यहाँ पूरी रचना प्रकाशित कर देंगे तो आपके ब्लॉग तक कोई नहीं जायेगा ..सब यहीं पढ़ लेंगे ...अत: हमारा प्रयास रहता है कि हम अच्छे और साथ में नए रचनाकारों तक लोगों को पहुँचने के लिए प्रेरित कर सकें ...आशा है आपको इस मंच कि उपयोगिता का महत्त्व पता चल गया होगा ...आभार
इस चर्चा मंच में चुनी गई रचनाए
ReplyDeleteबहुत अच्छी है. साफ़ पता चलता है कि
इसके लिए आपने काफ़ी मेहनत
की है . इसलिए आप बधाई की पात्र हैं
मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के
लिए आपका आभार.
आप काफ़ी मेहनत करती हैं जो परिलक्षित होती है…………………।एक से बढकर एक लिंक लगाये हैं……………आभार्।
ReplyDeleteमैं यह कल्पना कर के ही दंग हूँ कि कितनी मेहनत की है आपने इस पोस्ट के लिए। एक-एक ब्लॉग में जाना और उस पर लिखने लायक पढ़ना ही कमाल है जबकि मैं कल से तीन बार इस ब्लॉग को खोल चुका मगर अभी तक सभी दिए गए लिंक तक नहीं पहुंच पाया हूँ।
ReplyDelete..मेरी कविता को चर्चा में शामिल करने के लिए आभार।
संगीता जी क्षमा चाहूंगा देर से लिखने को | माता जी के देहांत की वजह से ब्लॉग से दूर रहा और कुछ अभी मन भी हटा हुआ है| मेरी रचना शामिल करने का आभार |
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