स्वागत है इस फूलों के गुलदस्ते के साथ ................जिसमे अलग -अलग रंग और किस्म के फूल सजे हैं ..........हर फूल की गंध जुदा है ..........कोई चमेली है तो कोई गुलाब, कोई रात की रानी है तो कोई रजनीगंधा मगर अस्तित्व सबका अलग .........आइये इस गुलशन में और अपने पसंद के फूलों को देखिये और सराहिये
“आसमान के आँसू” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
काश कोई जान पता आसमान का दर्द तो इतने आँसू तो ना रोता
उलझन !
कुछ उलझनों को कितना ही सुलझाओ उलझती ही जाती हैं
सुभाषितं-------(संडे ज्ञान)
मीठे बोल ही तो पराये को अपना कर लेते हैं
लिव-इन-रिलेशनशिप
अब तो यही ज़माना आ रहा है मगर .....................
रोने के लिए हमेशा बची रहे जगह
हाय ! रोने के लिए भी अब जगह बचानी पड़ेगी शायद तभी ख़ुशी का महत्त्व समझ आये
लम्हा लम्हा : मीनाकुमारी के नाम
ये तो नाम ही अपनी पहचान अपने आप है
दु:ख
बस यही तो संसार है .........
.दुःख और सुख के जोड़े बिना दूजे का महत्त्व कब पता चलता है
हम कहानियों का सहारा क्यूँ लें ?
चाहता तो कोई नहीं लेना मगर फिर भी .............
आखिर मर ही गया बुधना
जीवित रहता तो कौन सा सुखी रहता ..........
उसे तो एक ना एक दिन मरना ही पड़ता है
यमराज की मौत
जब यमराज भी मौत से घबराने लगे
मरने की फुरसत न पाने लगे
एक शाम उधार दे दो
काश! ऐसा हो पाता
संदेसे आते हैं, हमें फुसलाते हैं!
बच के रहना इन संदेशों से ...........
एक बार बहके तो .................टाँय -टाँय फिस्स
ये ब्लागदुनिया है ............ इसका दस्तूर निराला है !!!
हर दुनिया का अपना ही दस्तूर होता है ..........
बस वो ही सुखी होता है जो समय के साथ चलता है
राजेश विद्रोही की ग़ज़लें
वक्त वक्त की बात होती है
ग़ज़ल भी इक राज़ होती है
टिप्पणियों का खेल ही निराला है।
बिना प्रैक्टीकल के तो सबकुछ अधूरा है।
मगर श्वासों पर किसी का बस नही है।
उत्तर देने का समय कल सायं 7 बजे तक है।
पढ़ए तो सही, ज्ञानवर्धन जरूर होगा।
कहने का तरीका तो जरूर अलग ही होगा।
अवश्य सुनिएगा।
आज की चर्चा मजबूरीवश छोटी लगानी पड़ रही है क्योंकि मेरे यहाँ लिंक्स खुल नहीं रहे हैं ..........नेटवर्क में कोई खराबी है इसलिए आज इसी से काम चलाइए...........अगले सोमवार फिर मिलती हूँ तब तक इसी गुलदस्ते की सुगंध से दिल बहलाइए .......
वन्दना जी!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच रूपी गुलदस्ते को आपने सुन्दर व सुवासित
पुष्पों से सजाया है! जिसकी महक का आभास हो रहा है!
पूरे मनोयोग से की गई सुदर चर्चा ।
जवाब देंहटाएंbahut hi acchi charcha...
जवाब देंहटाएंaabhaar..
चर्चा मंच पर रचनाओं की कमी तो नहीं झलकी लेकिन गुल्दस्ते की महक ने सराबोर कर दिया...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलीं
धन्यवाद
चर्चा मंच पर रचनाओं की कमी तो नहीं झलकी लेकिन गुल्दस्ते की महक ने सराबोर कर दिया...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलीं
धन्यवाद
Vandana ji
जवाब देंहटाएंachha laga , aapne kafi mehnat se is guldaste me chun chun ke sundar suandr pushpm sajaye hain
badhai]
इतनी सुवासित और महकती हुई चर्चा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार वन्दना जी ! सारे लिंक्स बहुत अच्छे हैं !
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi charcha vandana ji......
जवाब देंहटाएंdhanyawaad...
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मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ..
* कोई जरूरी तो नहीं कि बगीचे में खूब सारे फूल खिलें !
जवाब देंहटाएं*संक्षिप्त और सुन्दर !
*few good and new links too!
आपको लग रहा है कि चर्चा संक्षिप्त है पर पड़ने के लिए कुछ कम नहीं मिला |अच्छी चर्चा के लिए बधाई मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
vandana ji
जवाब देंहटाएंmere post ko aapki charcha me shaamil karne ke liye dhanywaad .
main aapka aabhaari hoon
वंदना ,
जवाब देंहटाएंबहुत करीने से सजाया है गुलदस्ता ...हर फूल सुन्दर अपने स्थान पर ..बहुत अच्छी चर्चा ...अच्छे लिंक्स मिले ..
चर्चायोग्य चर्चा! शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंवंदना जी ,
जवाब देंहटाएंसर्व प्रथम मेरी रचना को चर्च-मंच पर स्थान देने के लिए मेरा आभार स्वीकार करें.आगे,आपके हाथों सजा ये साहित्य सरोवर से जुटाए गए फूलों का गुलदस्ता बेहद ख़ूबसूरत एवं खुशबु भरा है.
गुलदस्ते में पुष्पों की कमी कभी न रहेगी..
जवाब देंहटाएंमनोयोग से जुटाई खुशबू स्वयं अपनी कथा कहेगी!
वन्दनीय वह आँगन होगा जहाँ पुष्प सुवासित होंगे..
आने जाने वाले रही निश्चित प्रभावित होंगे!
thanks for including me too, in ur garden of thoughts!
best wishes,vandana ji!
आने जाने वाले राही निश्चित प्रभावित होंगे!
जवाब देंहटाएं(spelling error rectified)
वन्दना जी सुन्दर गुलदस्ता तैयार किया है आप्ने.. और इस गुल्दस्ते के एक फूल के रूप मे स्वयम को पाकर अच्छा लगा... कुछ और भी रच्नाये अच्छी लगी.. उनमे.. "आस्मान के आन्सू"... राजेश विद्रोही की ग़ज़लें, "काव्यशास्त्र (भाग-2) काव्य के हेतु (कारण अथवा साधन", उलझन !... प्रमुख है.. सोमवार के इन्त्जार मे...
जवाब देंहटाएंवन्दना जी!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच रूपी गुलदस्ते को आपने सुन्दर
पुष्पों से सजाया है!अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलीं
धन्यवाद
छोटी पर सधी हुई चर्चा.काफी अच्छे लिंक्स मिले.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसमझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें
अच्छे लिँक ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
waah !
जवाब देंहटाएंbahut umda links !
achchhe links ke liye dhanyawad!!
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा !!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा वंदना जी.
जवाब देंहटाएंबहुत से लिंक पढ़ चुकी हू...कुछ रह गए हैं..
विजय कुमार सप्पत्ति जी के लिए कहना चाहूंगी की इनके ब्लॉग पर कमेन्ट बॉक्स नहीं मिल रहा. क्रप्या उन तक ये मेसेज पहुंचा दे.
आभार.
नए ब्लागों से परिचय कराने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे चर्चा............
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा। हमारे ब्लॉग को शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंवंदना जी ,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए मेरा आभार स्वीकार करें ! आपका फूलों का गुलदस्ता बेहद ख़ूबसूरत एवं खुशबु भरा है ! इन फूलों की खुशबू से सारा चर्चा मंच खुशनूमा हो गया ! बहुत से अच्छे लिनक्स मिले पढने के लिए, आपका बहुत बहुत धन्यवाद !