नमस्कार , पिछला सप्ताह बहुत से तीज - त्योहारों के साथ बीता ..लोगों की ज़िंदगी में उल्लास आया , खुशियाँ आयीं ..कुछ ने गणपति से प्रार्थना की तो कुछ ने अल्लाह से …स्त्रियों ने तीज पर व्रत रखा तो कहीं पुरुषों के मन में भी चाह हुई कि पत्नि के लिए वो भी व्रत रखें …ऐसी सब भावनाओं के बीच यह भी विडंबना है कि अपनी ही भाषा के लिए हम हिंदी दिवस , हिंदी सप्ताह या हिंदी पखवारा मनाते हैं …..आज के काव्य मंच पर इन्ही सब मिली जुली भावनाओं से आच्छादित रचनाएँ ले कर हाज़िर हुयी हूँ …..सबसे पहले पेश कर रही हूँ वो गज़ल जो दुआ बन कर निकली है … मंच की शुरुआत करते हैं तिलक राजकपूर जी से .. |
तिलक राज कपूर जी अपने ब्लॉग रास्ते की धूल पर ईद के मुबारक मौके पर ऐसी दुआ लाये हैं जो हर इंसान की ख्वाहिश होगी …उनकी दुआ को उनकी गज़ल के रूप में पढ़िए .. ईद मुबारकनहीं कुछ और दिल को चाहिये इस बार ईदी में खुदा तू जोड़ दे इंसानियत के तार ईदी में। तेरी नज़्रे इनायत से न हो महरूम कोई भी सभी के नेक सपने तू करे साकार ईदी में। |
स्वप्न मंजूषा जी अपने ब्लॉग काव्य मंजूषा पर लायी हैं एक गज़ल …….न जाने कैसे भाव हैं जो यह कह रहे हैं कि दुश्मनों का भी खजाना बन गया है .. संजोया दुश्मनों को भी, खज़ाना ही बना डाला ..लिया इक हर्फ़ हाथों में, फ़साना ही बना डालाथे पत्थर से इन्सान वो, दीवाना ही बना डाला निभाई दुश्मनी हमने, बड़ी शिद्दत से दुनिया में संजोया दुश्मनों को भी, खज़ाना ही बना डाला |
रश्मि प्रभा जी मेरी भावनाएं पर कह रही हैं कि रोज शब्दों को उठा वो दर्द में डुबो कुछ लिखती हैं …अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए कह रही हैं कि एक दिल मेरे पास रख जाओ सपने में भी अतीत के साए मुझे डराते हैं अलग-अलग रास्तों पर दहशत बनकर खड़े रहते हैं ! चीख ..अन्दर ही घुटकर रह जाती है |
वंदना गुप्ता जी ज़िंदगी ..एक खामोश सफर पर एक भावपूर्ण रचना ले कर आई हैं ..पीड़ा का मर्म रूह पर गिरते अश्कों पर लब अपने रख दिए होते अश्को का ज़हर सारा पी लिया होता तो मेरी रूह को कुछ देर ही सही तू जी लिया होता |
अनामिका जी अनामिका की सदाएँ पर लायी हैं एक बहुत रूमानी सी नज़्म …हर पल होठो पर बसते हो .. हर पल होंठों पे बसते हो मेरे मौन को तोड़ा करते हो धूप - छाँव दे मोह -माया की अपनी महता तोला करते हो. |
राकेश कौशिक जी का हृदय पुष्प ब्लॉग है ….आज की उनकी कविता हिंदी दिवस पर एक दम सटीक है …एक सच्चे भारतवासी के मन में हिंदी के लिए ऐसी वेदना अपेक्षित है … बिंदीस्वर-व्यंजन ही नहीं मात्र यह भारत माँ की बिंदी है। तोड़ी कितनी बार बिखेरी फिर भी अब तक जिंदी है।। मातृभूमि नीचे कर आँखें पीट रही है अपना मांथा। लगता है हो गई बाबरी देख-देख अपनों की भाषा। हिमगिर भी गंभीर हो गया चिंतित है कुछ बोल न पाता। देख रहा टकटकी लगाए खंडित होती अपनी आशा। गुमसुम सरिता का जल कहता मुझको भी अब मौन सुहाता। निज भाषा को मान नही तो कैसे गाऊं कल-कल गाथा। अंग्रेजी सरपट दौड़े यहाँ हिंदी की गति मंदी है।। |
शाहिद मिर्ज़ा जी इस बार ईद के मुबारक मौके पर बहुत खूबसूरत बात कह रहे हैं .. ईद मनाछोड़ हर शिकवा गिला, दिल को मिला, ईद मना।भूल जा अपनी जफ़ा, मेरी ख़ता, ईद मना। बुग़्ज़ को छोड़ दे, नफ़रत को भुला, ईद मना। ये भी नेकी है, ये नेकी भी कमा, ईद मना। | धर्म सिंह बिन माझी की नाव पर इस बार बुजुर्ग होते लोगों की भावनाओं को ले कर आये हैं ..उनकी यह कविता बता रही है बुजुर्गों का अकेलापन …. वो अध् खुली खिड़की....घर के सामनेगली के उस पार पहली मंजिल पर वो अध् खुली खिड़की .........! हर रोज मुझे हैरत करती थी ... इक गहरी ख़ामोशी, कुछ विरानियाँ और कितने राज छुपाये लगती थी खुद में .... ॥ |
माधव नागदा जी साहित्य सुगंध पर बेटियों के द्वारा किये गए प्रश्न को रख रहे हैं …एक मार्मिक और संवेदनशील चित्रण है …और बेटियों द्वारा किये गए प्रश्नों के आप क्या उत्तर देंगे ….. ज़रा सोचिये .. बेटियांलो मां हम फिर अव्वल आयीं हैं तुम्हारे लाडले वंशधरों को पीछे छोड़ते हुए. यहीं रुकेंगे नहीं हमारे कदम अब हम अन्तरिक्ष में कुलांचें भरेंगी |
मुदिता गर्ग एहसास अंतर्मन के पर बता रही हैं कि नदी के किनारे देखा जाये तो कभी नहीं मिलते पर उनकी संवेदनाएं कैसे मिलती हैं ..जानिये उनकी कविता पढ़ कर .. किनारे....दो किनारों कोजोड़ती है संवेदनाओं की नदी .... निरन्तर बहती , उमगती , उफनती | अर्चना जी की आवाज़ तो बहुत बार सुनी है …लेकिन इस बार वो मेरे मन की पर लायी हैं शब्दों और भावों का मिलन … क्या बात ...क्या बात...क्या बातशब्द ने कहा भावों सेआया हूँ उबड़ खाबड़ राहों से कहीं भाव बिखरे पड़े हैं तो कहीं शब्द छिड़के पड़े हैं |
आशाजी अपने आकांक्षा ब्लॉग पर एक बहुत खूबसूरत रचना लायी हैं … ज्योत्सना यह ज्योत्सना चाँद से बातें कर रही है …इसे चाँद से असीम प्रेम है .. चाँद से ही तो इसका वजूद है …..चाँद ने एक प्रश्न किया ..उसका उत्तर आप पढ़ें ब्लॉग पर जा कर ..मैं जानना चाहता हूं ,क्या काले दाग हैं, मेरे चेहरे पर , वे तुमने भी कभी देखे हैं , |
रानी विशाल काव्य तरंग पर सब कुछ कह देने के बाद भी कह रही हैं कि कह न सकेगा ... अब क्या न कह सकेगा वो तो आपको खुद ही पढ़ना पड़ेगा … पलकें उठी उठ कर झुकी पल में सावल करती कई न मिली नज़र कभी कही पर नज़र में बस हरसू वही न नाम तो लिया |
राजीव जी घोंसला ब्लॉग से अपने मन के पुष्प समर्पित करते हुए कह रहे हैं कि मैं भी रखना चाहता हूँ व्रत तुम्हारे लिएपुरुषों कि सोच और मन कभी कभी कितनी कोमल होती है , विचार परिष्कृत होते हैं ..आप भी पढ़ें इस रचना को .. आज मैं भी रखना चाहता हूँ व्रत तुम्हारे लिए , तुम्हारी लम्बी आयु के लिए, रहना चाहता हूँ निर्जलाहार पूरे एक दिन ताकि, महसूस कर सकूं तुम्हारी श्रद्धा, चिंता , मेरे लिए तुम्हारा समर्पण, |
सौरभ जी मुझे कुछ कहना है ब्लॉग से एक गज़ल कह रहे हैं ..कि वक्त किस तरह ज़िंदगी से कीमत वसूल करता है - ग़ज़ल वक़्त अपने बही-खाते खोल कर फुर्सत वसूले इस तरह या उस तरह से ज़िन्दगी कीमत वसूले आसमां,धरती,बगीचे,हवा,पानी का किराया आदमी से सांस लेने की रकम कुदरत वसूले | मधु चौरसिया जी ने अपनी कविता से मिडिया के कमाल की बात कही है …वैसे तो मिडिया क्या क्या कमाल करता है सब परिचित हैं ..पर आप इनकी लेखनी से उकेरी पंक्तियाँ भी पढ़ें .. मीडिया है कमाल मीडिया...यारों चीज बड़ी है कमाल यहां बिछा है हर तरफ खबरों का ही मायाजाल... संपादक रहते हैं हमेशा बेहाल |
साखी पर इस बार डा० सुभाष राय लाये हैंअशोक रावत की गज़लें1. हाँ मिला तो मगर मुश्किलों से मिला, आइनों का पता पत्थरों से मिला. 2. हमारे हमसफर भी घर से जब बाहर निकलते हैं, हमेशा बीच में कुछ फासला रखकर निकलते हैं. 3. उसके दर पे सर झुकाने मैं तो रोजाना गया, ये अलग किस्सा है काफिर क्यों मुझे माना गया 4. जब देखो तब हाथ में खंजर रहता है, उसके मन में कोई तो डर रहता है. |
साधना वैद जी ने इस बार अपनी माँ ज्ञानवती सक्सेना जी “ किरण “ की एक बहुत सुन्दर रचना पेश की है …सच तो यह है कि मूर्ति पूजा भी इसी लिए प्रारम्भ हुई जिससे उसमें ध्यान लगाया जा सके …मन चंचल प्रवृति का होता है ..यही बात आप इस कविता में भी देखिये .. साकार बनो ओ निराकारसाकार बनो ओ निराकार !कर प्राण देह से अलग भला क्या मानव मानव रह सकता, पूजा के बिना पुजारिन का अस्तित्व न कोई रह सकता ! | श्यामल सुमन जी मनोरमा ब्लॉग पर देश कि राजनीति को दोषी मानते हैं और हिंदी भाषा के लिए चिंतित हैं …इस कविता में उनके विचार जानिए .. हिन्दी पखवाराभाषा जो सम्पर्क की हिन्दी उसमे मूल। बनी न भाषा राष्ट्र की यह दिल्ली की भूल।। राज काज के काम हित हिन्दी है स्वीकार। लेकिन विद्यालय सभी हिन्दी के बीमार।। |
वाणी गीत गीत मेरे पर एक नारी कब पूर्ण - सम्पूर्ण होती है ….बता रही हैं एक बहुत प्यारी नज़्म से …एक स्त्री जब पहली बार माँ बनती है और बच्चे को गोद में लेती है उसके मन में कैसे भाव उठते हैं उनका जिवंत वर्णन किया है ….आप भी महसूस करें … मैं पूर्ण हुई ....सम्पूर्ण हुई ..मिचमिचाती अधमुंदी पलकों में सपनीले मोती जगमगाए मेरी सूनी गोद भर आई जब यह नन्ही कली मुस्कुराई मैं अकिंचन, हुई वसुंधरा ... |
आचार्य परशुराम राय मनोज ब्लॉग पर लाये हैं शैशव शैशव वह अवस्था जिसमें दीन - दुनिया की कोई चिन्ता नहीं … इस कविता में कवि ने शैशव के अनेक चित्र खींचे हैं .. खेल-खिलौनों में डूबे शिशु खो देते सारी दुनिया केवल अपने खिलवाड़ों से भर देते सब में ख़ुशियां। |
प्रमोद कुमार कुश “तन्हा “ अपनी गज़ल में कह रहे हैं कि अमीरों को सब सुख साधन उपलब्द्ध हों पर गरीबों को भी जीने का सामान मिले . ज़िन्दगी हंसते हुए कटती रहे .ज़िन्दगी हँसते हुए कटती रहे तो ठीक हैआप जैसों की इनायत भी रहे तो ठीक है कोठियों महलों की छत पे चांदनी बिखरे मगर झोंपड़ों पे भी मेहरबानी रहे तो ठीक है | आनंद पाठक अपने ब्लॉग हँसते रहो हँसाते रहोपर एक बहुत गंभीर गज़ल कह रहे हैं …आज कहाँ रह गए हैं उसूल और सच … एक ग़ज़ल : वह उसूलों पर चला है ..वह उसूलों पर चला है उम्र भर साँस ले ले कर मरा है उम्र भर जुर्म इतना है खरा सच बोलता कटघरे में जो खड़ा है उम्र भर |
अमिताभ मीत जी फासले की बात करते हुए पूछ रहे हैं कि आखिर फासला था कितना ? ( मुझे फासिल का अर्थ फासला ही लगा ….यदि कुछ और हो तो बताइयेगा ) फ़ासिल: कितना थाफ़ासिल: कितना था ?चार पलों का ?? या ..... उतना - भी नहीं ??? मुझे तो इल्म था सब .... यक़ीन था खुद पर .... कि कहाँ जाता हूँ हश्र - तक का है इक वादा ... जो निभाता हूँ ... |
वंदना सिंह की एक गज़ल है ..बेइन्तिहाँ दर्द समेटे हुए दिल के दर्द को तुम परवाज मत देनाइन सिसकियों को कभी आवाज मत देनादिल के दर्द को तुम परवाज मत देना यहाँ अंदाज ए नजर न तुझे तेरी ही नजर में गाड़ दे भूलकर भी किसी को दिल का राज मत देना | मानव मेहता अपने ब्लॉग सारांश ..एक अंत पर दर्द भरी गज़ल लाये हैं … आज गर्दे-राह हुआ.....उम्र गुज़री थी, जिस आशियाने को सजाने में,वही आशियाना मेरा, जल कर तबाह हुआ.... न जाने किस बात की सज़ा मिली मुझको, न जाने कौन सा ऐसा, मुझसे गुनाह हुआ.... |
रौशन जी अपने मन की वेदना को शब्दों में ढाल कहते हैं कि सपने और हकीकत में जब फर्क पता चलता है तो कैसा आभास होता है … ढल रही है रात…ढल रही है रात धीरे-धीरे , सपने रहे है उड़ मेरे आस पास जैसे हो मेरे भावनाओं की परछाईया रात के ढलने में और मेरे टूटने में जैसे रहा न कोई फर्क ढल रही रात , मेरे हर एक आँसू के साथ |
सिद्ध नाथ सिंह जी इंजीनियर हैं और सरकारी सेवा में हैं …अपने इज़हार ब्लॉग पर एक गज़ल लाये हैं मिला न हमको दुबारा वो बेवफाज़मीर जिसका भी देखा, लहूलुहान मिला.हरेक रूह पर एक ज़ख्म का निशान मिला. तलाश हमने बला की तो की मगर अब तक जो झूठ बोल सके ऐसा आईना न मिला. | कुसुम ठाकुर जी का ब्लॉग है “कुसुम की यात्रा “ और आज मैं उनकी गज़ल लायी हूँ यहाँ जो उन्होंने समर्पित की है उनको जिन्होंने कुसुम जी को आज इस काबिल बनाया है दिलों जाँ से कतरा बहाया है मैंने दिलो जाँ से कतरा बहाया है मैंने लो यादों की महफिल सजाया है मैंने समेटूं मैं पलकों में चाहत थी मेरी जो मरजी थी मेरी, दिखाया है मैंने |
रिषभ जैन मैं , आप और इंडिया ब्लॉग से एक नयी जानकारी दे रहे हैं कि बिना धुले कपड़े की भी एक कहानी होती है …सच भी है बिना धुले कपड़े यह बता देते हैं कि जिसके कपड़े हैं उसके साथ क्या हादसा हुआ है … एक छुपी कहानीहर बिना धुले कपडे की एक कहानी होती हें !सिमटी हुई सी, कभी आस्तीन कभी जेब कभी महक में छुपी ! झांकते है कुछ लम्हे कुछ यादे, उन सिलवटो और निशानों से ! और सुनाते हें एक कहानी उस सफर की, जो उसके धुलने के साथ ही भुला दिया जाएगा ! |
एक ख्वाब चलेचल सके तो एक ख्वाब चले। खुदा करे आसपास शबाब चले। तेरी आँखों का तिलिस्म ठहरे, फिर कहाँ कोई रुआब चले। | स्वप्न रंजीता पर आशा जोगलेकर जी की एक भीगी भीगी सी रचना पढ़िए . बारिशकभी तो ये आंगन छिडकती है बारिशकभी पेड-पौधे धुलाती है बारिश । कभी तो झमाझम बरसती है बारिश और मोर छमाछम नचाती है बारिश |
हांलांकि मैं यह चित्र नहीं लगाना चाहती थी पर मयंक गोस्वामी के परिचय ने मुझे आकृष्ट किया ---" मैं महसूस करता था कि मैं अन्य लोगो से कुछ अलग हूँ, मेरा व्यक्तित्व अनोखा है , अद्वितीय है और समाज मुझे समझ नहीं सकता| साधारण लोग अत्यंत साधारण है, मेरी प्रतिभा के स्तर से बहुत नीचे है, मैं उन्हें जिस तरह चाहूँ, बहका सकता हूँ| मुझसे अपने व्यक्तित्व के प्रति एक अनावश्यक मोह, उसकी विकृतियों को भी प्रतिभा का तेज़ समझने का भ्रम और अपनी असामाजिकता को भी अपनी ईमानदारी समझने का अनावश्यक दंभ आ गया था | धीरे धीरे मैं अपने आप को ही इतना प्यार करने लगा की मेरे मन के चारो और ऊँची ऊँची दीवारे खड़ी हो गयी और मैं अपने स्वयं अपने अंहकार में बंदी हो गया, पर इसका नशा मुझ पर इतना तीखा था की मैं कभी अपनी असली स्थिति पहचान ही नहीं पाया |" धर्मवीर भारती जी की ये पंक्तियाँ, कुछ लोगो के लिए एक अद्वितीय रचना "सूरज का सातवां घोड़ा " का कुछ अंश हो सकती है, पर कभी कभी मेरे लिए ये एक अंतःकरण की आवाज़ है.. एक हर उस व्यक्ति के समान जो इस समाज में जी रहा है.. सान्त्व्नाओ के तले दबा हुआ, थोडा सा मार्क्सवादी और पूरी तरह अपनी ही तरह की दुनिया की कल्पना लिए हुए | हर उस व्यक्ति के लिए जिसके मन में संवेदना है पर वातावरण को समझ पाने की अक्षमता के कारण वह क़ैद हो रहा है .. अपने ही जाल में.. मेरी तरह ... आत्ममुग्ध, निर्लक्ष्य और थोडा सा अहंकारी… अब उनकी रचना अपने मित्रों के नाम -- उन सब लोगो के नाम .कुछ शामे न ढलें,तो बेहतर है, कभी कभी रौशनी भी, आँखों से सहन नहीं होती | |
डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी उच्चारण ब्लॉग पर हिंदी दिवस के उपलक्ष में अपनी हिंदी भाषा की महिमा बता रहे हैं …जितनी वैज्ञानिक भाषा हिंदी है उतनी कोई अन्य नहीं …आप भी पढ़ें और मनन करें ..अपनी भाषा हिंदी ... भारतमाता के सुहाग की, जो है पावन बिन्दी। भोली-भाली सबसे प्यारी, है अपनी भाषा हिन्दी।। भरी हुई है वैज्ञानिकता, व्यञ्जन और स्वरों में, उच्चारण में बहुत सरलता, इसके सभी अक्षरों में, ब्रज-गोकुल में बसी हुई हो, बनकर तुम कालिन्दी। भोली-भाली सबसे प्यारी, है अपनी भाषा हिन्दी।। |
न दैन्यं न पलायनम् प्रवीण पांडे जी का ब्लॉग है और ज्यदातर वो गद्य विधा में लिखते हैं …लेकिन जब कविता लिखते है तो चमत्कृत कर देते हैं ….कोमल भावों से सजी उनकी यह कवितापीड़ा कह दो ….. ऐसा ही चमत्कार कर रही है … |
विभिन्न भावों से भरा यह काव्य मंच आशा है आपको पसंद आया होगा ….आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव हमें नयी उर्जा देता है …… इन्हीं शब्दों के साथ ..फिर मिलेंगे ….अगले मंगलवार को …नमस्कार ….संगीता स्वरुप |
संगीता जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लिंक्स दी है आपने | न जाने क्यूँ ऐसा लगता है आप में इतनी प्रतिभा है कि आपसे लेखन के लिए बहुत से टिप्स मिल सकते हैं |बधाई आज कि चर्चा के लिए |मेरी रचना की जो समीक्षा आपने की है , बहुत अच्छी लगी |इसके लिए बहुत आभार |
आशा
आपकी मेहनत और प्रतिभा को सलाम ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स ...
चर्चा में शामिल करने के लिए आभार ...!
sangeeta ji ..
जवाब देंहटाएंbahut saari kai acchi rachnaye padhne ko mili ...bahut accha laga naye blogs ko padhkar ..aapki mehnat dekhkar accha laga ..mere rachna ko charcha me laane k liye behad shukriya :)
mere liye itna hi kafi hai k aapko vo rachna pasand aayi :)
संगीता स्वरूप जी!
जवाब देंहटाएंआपने आज का चर्चामंच
बहुत सुन्दर लिंकों से सजाया है!
--
बहुत-बहुत आभार!
बहुत अच्छी और मेहनत से की गई समीक्षा/चर्चा।
जवाब देंहटाएंचलिए चर्चा में शामिल न किया सही पर आज तो आप सबों को एक वचन लेना ही होगा।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
संगीता मैडम...
जवाब देंहटाएंआपने एक से बढ़कर एक रचनाओं को चर्चामंच पर बड़ी ही शिद्दत से सजाया है...
धन्यवाद
हमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर चर्चा ! सभी रचनाओं को पढ़ना चाहती हूँ ! सार्थक साहित्य का इतना सुन्दर आसमान हमारे लिए आप उपलब्ध करा देती हैं इसके लिए आपका जितना भी धन्यवाद किया जाए कम होगा ! आपका बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंसंगीता जी बहुत सुंदर मंच सजाया है आपने.. सभी प्रतुतियाँ उल्लेखनीय हैं लेकिन सौरभ जी की ग़ज़ल, राजीव जी की कविता..'ए़क व्रत रखना चाहता हूँ मैं' वंदना जी की कविता 'पीड़ा का मर्म' प्रवीण पाण्डेय जी की कविता 'पीड़ा कह दो' आदि उल्लेखनीय हैं...
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंमेरी कविता को चर्चा मंच पर रख कर मुझे जो स्थान एवं सम्मान दिया है उसके लिए आभार. शेखर एवं कपूर साहब की गजल, सुमन जी की कलम से निकला मातृभाषा प्रेम और वंदना जी के मन से निकली बातें:
"रूह पर गिरते
अश्कों पर
लब अपने
रख दिए होते".का गुलदस्ता बेहद मोहक और नैसर्गिकता से भरपूर है.
अच्छी चर्चा। बधाई॥
जवाब देंहटाएंapki mehnat saaf jhalak rahi....
जवाब देंहटाएंbahut hi achhe blogs ka pata chala
shukriya...
बहुत ही सुन्दर काव्य मंच सजाया है……………मेहनत साफ़ झलक रही है और लिंक्स भी काफ़ी मिल गये जो रह गये थे……………………आभार्।
जवाब देंहटाएंचर्चा को नया आयाम देती ये चर्चा बहुत ही उपयोगी लिंक समेटे है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
हरीश प्रकाश गुप्त की लघुकथा प्रतिबिम्ब, “मनोज” पर, पढिए!
दीदी,
जवाब देंहटाएंमेरी कविता को चर्चा मंच पर रख कर मुझे जो स्थान एवं सम्मान दिया है उसके लिए आभार.
सबसे पहले हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं एवं बधाई.............
जवाब देंहटाएंदी नमस्ते
चर्चा मंच को आज
बहुत सुन्दर लिंकों से सजाया है....
आपका बहुत बहुत आभार
की मेरी रचना आपको पसंद आई और आपने मेरी रचना को चर्चा काव्य मंच तक पहुँचाया ....
जो मेरे लिए बहुत उपलब्धि की बात है
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का आभार ..
जवाब देंहटाएं@@ गोदियाल जी ,
आपसे विनम्र निवेदन है ...
हिंदी की इतनी दुर्दशा भी नहीं है ...आप अन्य ब्लोग्स पर हिंदी की प्रगति के बारे में लेख पढ़ सकते हैं ..
यह हम स्वयं हैं जो अपनी भाषा की दुर्दशा कर रहे हैं ...
माना कि आज भी अंग्रेज़ी भाषा रोज़गार से जुडी है पर हिंदी ने अपने बलबूते पर स्वयं का विकास किया है ...
इस तरह की रचनायें टिप्पणी में सार्वजानिक रूप से न दें ..आभारी रहूँगी ..
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स का संकलन प्रस्तुत किया दी आपने ....मेरी रचना को अपनी चर्चा में स्थान दे कृतार्थ किया आपने
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाए
जय हिंद जय हिंदी
संगीता जी एवं मनोज जी , मेरी टिपण्णी से आप लोगो को दुःख पहुंचा , जिसके लिए क्षमा चाहता हूँ ! मैं अपनी टिपण्णी डिलीट कर रहा हूँ ; मनोज जी से भी निवेदन करूंगा कि अपनी उदघृत टिपण्णी को भी हटा ले तो मेहरबानी होगी !
जवाब देंहटाएंगोदियाल जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी भावनाओं का सम्मान करती हूँ ....
आपने हमारी भावनाओं को समझा ..आभारी हूँ ...
@@ सभी पाठकों से निवेदन है कि यदि हो सके तो यह लेख ज़रूर पढ़ें ...
http://hindibharat.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
गोदियाल जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ!
आपने हमारी भावनाओं को समझा ..आभारी हूँ!
बहुत ही जबर्दस्त्त चर्चा ..बेहतरीन लिंक्स मिले बहुत मेहनत करती हैं आप और वो यहाँ परिलक्षित भी होती है.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया संगीता जी एवं मनोज जी, आगे से कोशिश करूँगा की ऐसी हरकत न करू !
जवाब देंहटाएंएकबार पुनः बढ़िया लिंक लगाए आपने.. आभार..
जवाब देंहटाएंek badhiya........sankalan LINKs ke:)
जवाब देंहटाएंek badhiya........sankalan LINKs ke:)
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा मंच..एक दम छंट छंट के रचनायें इक्कठी करी हैं अपने..समयानुकूल ...:)
मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने का शुक्रिया
बहुत अच्छे लिंक्स मिलें ..... धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी , बहुत बहुत शुक्रिया, मेरी रचना इस संकलन में शामिल करने के लिए.. रही बात मेरे चित्र पर आपत्ति की तो क्षमा चाहता हूँ .. ये चित्र मैंने अपने ब्लॉग "दिल, दुनिया और ज़िन्दगी" को एक आकार देने के लिए लगाया था ... अगर इसी ब्लॉग में आप कुछ नीचे जायेंगे तो आपको एक कविता मिलेगी "मेरी खिड़की से आसमान नज़र आता है " .. बस उसी को अर्थ देने के लिए मैं ये फोटो एक बीच पर लिया था.. अगर इसमें कुछ भी आपत्तिजनक लगता है , तो मैं इसमें अवश्य बदलाव करूँगा .. पुनः बहुत बहुत धन्यवाद् |
जवाब देंहटाएंsangeeta ji..meri ghazal charcha-manch par rakhne ke liye bahut-2 shukriya. iss manch ke kaaran mujhe anek pratibhashali rachnakaaron se judne ka saubhagya prapta hua! main apni rachnaaon par aap sabhi mahanubhavon ke sujhaav aamantrit karta hoon jisse main apni lekhni mei aur sudhaar kar sakoon. thnx a lot again..sangeeta ji
जवाब देंहटाएंआभार आपका ,जो आपने इतना समय दिया,मेरे गीत सुने,और चर्चामंच पर मेरे ब्लॉग को जगह दी ....आपकी मेहनत से बहुत से लोगो से जुडने का मौका मिला ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही जबर्दस्त्त चर्चा ..बेहतरीन लिंक्स मिले..
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल करने के लिए आभार ...!
abhar bahut achhe links hai
जवाब देंहटाएंgneshji ghar me aaye hai thoda smy kam pad rha hai blag padhne ko
Sangita ji,
जवाब देंहटाएंIs show-room ko apane itani sundar rachanon sajaya hai ki kya kahun. Bahut achha laga. Sadhuvad.
PATHAKON KO HINDI DIVAS KI HARDIK
BADHAI
आपकी चर्चा में हर बार आपकी मेहनत और प्रतिभा का आईना मिलता है. बहुत ही अच्छे लिंक्स से सुसज्जित करती हैं आप अपनी चर्चा.
जवाब देंहटाएंचर्चा में मेरी रचना को लेने के लिए आभारी हूँ.
हिंदी दिवस की आप सब को शुभकामनाएं एवं बधाई.
सुन्दर संकलन, पठनीय पोस्टें।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंस्वयं की रचना ब्लॉग पर लगाना सहज है लेकिन सप्ताह भर विभिन्न ब्लॉग्स से सामग्री का चयन कर सार तैयार करना और पूर्ण साज-सज्जा के साथ इस सहजता से प्रस्तुत करना एक साधक के लिये ही साध्य हो सकता है।
जवाब देंहटाएंईमानदारी से कहूँ तो आज पहली बार चर्चामंच पर आया लेकिन निराश नहीं हुआ। बहुत से नये ब्लॉग्स की जानकारी भी मिली और उन्हें पढने का अवसर भी। देखा कि किस कुशलता से आपने संगत अंशों का चयन कर प्रस्तुत किया है।
मेरी जो चार पंक्तियॉं आपने प्रस्तुत कीं वो वस्तुत: एक कत्अ के रूप में पृथक से भी पढी जा सकती हैं और यह गजल वस्तुत: एक दुआ ही है जो अवसर विशेष के लिये मेरे माध्यम से प्रस्तुत हो गयी।
हार्दिक बधाई और आभार।
संगीता दीदी ... मुझ जैसे बालक की कविता "एक छुपी कहानी" को आपने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर मुझे सच में एक सम्मान प्रदान किया हें ...
जवाब देंहटाएंमें इन्जिनिरिंग विद्यार्थी हूँ और मात्र शौक के लिए कविताये लिखता हू ... अतः उत्साह वर्धन का बहुत बहुत आभार!!
संगीता दीदी ... मुझ जैसे बालक की कविता "एक छुपी कहानी" को आपने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर मुझे सच में एक सम्मान प्रदान किया हें ...
जवाब देंहटाएंमें इन्जिनिरिंग विद्यार्थी हूँ और मात्र शौक के लिए कविताये लिखता हू ... अतः उत्साह वर्धन का बहुत बहुत आभार!!
Achchi charcha in links par jaoongi jaroor. Meri rachna aapko pasand aaee aur use charch amen shamil kiya, bahut dhanyawad. Hindi font aaj available nahee hai jab ki aaj hee hindidiwas hai .Shubh kamnaen.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ...सार्थक चर्चा !
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जवाब देंहटाएंसंगीता जी, बहुत कामयाब चर्चा पेश की है...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचानाओं के लिंक देने के लिए शुक्रिया...
’ईद मना’ को शामिल करने के लिए आभार...
और हां...
देर से हाज़िरी के लिए मुआफ़ी.