नमस्कार मित्रों!
शास्त्री जी किन्हीं अपरिहार्य कारणों से आज की चर्चा करने में असमर्थ थे, तो उन्होंने आदेश दिया और उनका आदेश सर माथे पर लेकर मैं हाज़िर हूं।
शिखा वार्ष्णेय ने काफ़ी भावपूर्ण पोस्ट लगाई है। कहती हैं कहाँ बुढापा ज्यादा .! कहती हैं
“उन्हें बस जरा सा सर दर्द हुआ है ..बच्चे आयेंगे अभी स्कूल से उनसे बातें कर ठीक हो जायेगा .पोते - नातिओं के साथ अपनी उम्र का आभास ही नहीं रहता... अपना बचपन फिर जी लेते हैं एक बार ..और जीने की ख्वाहिश बनी रहती है ..भले ही समय बुदबुदाते बीते या बहु बेटे की खुन्खुनाहट सुनकर, पर मजे में कट जाता है .आस पास की चहल पहल, बच्चों का शोरगुल और जवानों की कार्यशक्ति , कभी बुड्ढा होने ही नहीं देती उन्हें .”
यह पोस्ट सोचने पर मजबूर करती है ...संयुक्त परिवार की परम्परा टूट रही है ...भले ही ऐसा लगता हो कि बुजुर्ग अकेलेपन का एहसास नहीं करते पर कभी कभी भीड़ में भी अकेलापन महसूस करते देखा जा सकता है ...पश्चिम देशों की तो संस्कृति में है अलग रहना लेकिन भारत में ऐसा नहीं है ..ज़रूरत है उम्र के साथ सामंजस्य की!
मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं... अनामिका की सदायें ... पर अनामिका की सदायें ...... प्रस्तुत करती हैं
अशांत सागर है ये पत्थर ना फैंको ए हमनशीं
दर्द की लहरें हैं, ना खेलो, दर्द ना मिल जाए कहीं
छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.
प्यास बुझाने को मयखाने भी कहाँ बचे साकी
छू भी लें तो वो एहसास कहाँ बचे बाकी.
टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.
हिंदी कंप्यूटरीकरण की राह होगी आसान
भाषा,शिक्षा और रोज़गार पर शिक्षामित्र
हिंदी में कंप्यूटर का उपयोग करने वालों की ब़ढ़ती संख्या और संभावित ग्रामीण बाजार को देखते हुए विश्व की तमाम ब़ड़ी कंपनियां तेजी से इस बाजार पर अपना कब्जा करने की दिशा में प्रयास कर रही हैं। दुनिया के अन्य देशों में अब कोई विशेष मांग और इतना ब़ड़ा बाजार न होने से इन सभी कंपनियों की आशा भारतीय बाजार से ही है।
हिन्दी - अंग्रेजी का युद्ध ...
कुमाउँनी चेली पर शेफाली पाण्डे की प्रस्तुति
अंग्रेजी ................................
तू हो गयी है आउट ऑफ़ डेट,
मार्केट में तेरा नहीं है कोई रेट |
तू जो मुँह से निकल जाए,
लडकी भी नहीं होती सेट |
हिन्दी .........................................
मेरे बच्चे तेरी रोटी भले ही खा लें,
तेरी सभ्यता को गले से लगा लें,
सांस लेने को उन्हें मेरी ही हवा चाहिए|
सोने से पहले मेरी ही गोद चाहिए|
मेला देखने जाऊंगा!
My Open Space पर Rachana की प्रस्तुति
माँ, मैं भी मेला देखने जाऊंगा
तमाशे, रंग बिरंगे गुब्बारे
इनसे अपना मन बहलाऊंगा!
हाँ माँ, आज तो मैं मेला देखने जाऊंगा!
नाम अमर करने की चाह
सम्वेदना के स्वर पर सम्वेदना के स्वर की प्रस्तुति
कभी सोचा न था कि रोशनी और आवाज़ का जादू ऐसा भी होता है.एकबारगी सैकड़ों साल पीछे चली गई ज़िंदगी और टाइम मशीन पर सवार हम भी साथ साथ.हम यानि मेरा और चैतन्य जी का परिवार. जगह, दिल्ली का लाल किला और जिस बारे में मैं बात कर रहा हूँ, वो है लाइट एण्ड साउण्ड का प्रोग्राम. रोशनी और आवाज़ का ऐसा संगम कि मानो मुग़ल सल्तनत का हिस्सा हों हम सब. घंटे भर का प्रोग्राम बाँध लेता है सारे दर्शकों को.
लागोस से ई-मेल पर मिली एक मार्मिक घटना का ब्योरा. एक नजर जरूर डाल लें
Alag sa पर Gagan Sharma, Kuchh Alag sa की प्रस्तुति
शनिवार का दिन था। मैं कुछ सामान लेने ‘बिग बाजार’ गया हुआ था।वहीं एक खिलौने की दुकान पर दुकानदार और एक 6-7 साल के बच्चे की बातचीत सुन कर ठिठक गया। दुकानदार बच्चे से कह रहा था कि बेटा तुम्हारे पास इस गुड़िया को लेने के लिए प्रयाप्त पैसे नहीं हैं। बच्चा उदास खड़ा था। तभी मुझे वहां देख वह मेरे पास आया और अपने पैसे मुझे दिखा पूछने लगा, अंकल क्या यह पैसे कम हैं? मैंने उसके पैसे गिने और उसके हाथ में पकड़ी गुड़िया की कीमत देख उससे कहा, हां बेटा पैसे तो कम हैं। फिर उससे पूछा तुम यह गुड़िया किस के लिए लेना चाहते हो? उसने जवाब दिया इसे मैं अपनी बहन को उसके जन्म दिन पर देना चाहता हूं।
पहेली से परेशान राजा और बुद्धिमान ताऊ
Gyan Darpan ज्ञान दर्पण पर Ratan Singh Shekhawat की प्रस्तुति
रामपुर का राजा गांव के भोले भाले ताउओं से बड़ा प्रभावित था, वह अक्सर शिकार खेलने जाते समय गांवों में भेष बदलकर गांवों की चौपाल पर पहुँच जाया करता और वहां चौपाल पर जुटी ताऊ लोगों की हथाइयां (बातचीत) सुनकर बड़ा प्रसन्न होता था | एक बार ऐसे ही राजा का वास्ता अपने ताऊ से पड़ गया ,ताऊ के किस्से व बातचीत सुनकर राजा को लगा कि ये ताऊ वाकई काम का आदमी है इसलिए उसने ताऊ को अलग लेकर अपना परिचय दे ताऊ को राजमहल चलने को आमंत्रित किया पर ताऊ का मन राजमहल में कैसे लगता इसलिए ताऊ ने राजमहल चलने से मना कर दिया पर राजा को उसने आश्वस्त कर दिया कि राजा पर जब भी कोई मुसीबत आये ताऊ को याद कर लेना |
तिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना ....
काव्य मंजूषा पर 'अदा' की प्रस्तुति
किस्मत की वीरानियों का, मेरा वो मंजर, देखना
हैराँ हूँ घर की दीवार के, उतरे हैं सब रंग, देखना
उड़ता रहा आँधियों में वो, जाने कितना दर-ब-दर
तिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना
सोया रहा यहीं पास में, इक फ़रिश्ता हर रात को
ख़ुशबू सी उसकी बस गई, महका है बिस्तर, देखना
हाइपोपिट्यूटेरिज्मः स्थायी बौनेपन की बीमारी
स्वास्थ्य-सबके लिए पर कुमार राधारमण की प्रस्तुति
शारीरिक विकास न होना असामान्य विकृति है, इसके बावजूद 40 प्रतिशत मामलों में बच्चे पढ़ने और अन्य गतिविधियों में तेज होते हैं। इसलिए वह समाज की मुख्यधारा में ही शामिल होते हैं। हालांकि लोगों के बीच केवल यह धारणा बढ़ाना जरूरी है कि यह बच्चों भी अन्य बच्चों की तरह बेहतर कर सकते हैं।
ऐसी उदासी बैठी है दिल पे...
सोचालय... पर सागर की प्रस्तुति
कैमरा घूमता हुआ पर्देदार बाथरूम को दिखता है, जहां शुरू में अँधेरा है पर आसपास चंद मोमबत्तियाँ जलने के बायस पीली रौशनी ने घेरा बना रखा है और इसी के वज़ह से देख पाने लायक उजाला है... यह देख कर देखने कि जिज्ञासा और बढ़ जाती है ठीक वैसे ही जैसे थोडा दिखाना और बहुत छिपाना
टिकट दीजिए, हमहूं लड़ेंगे चुनाव
do patan ke bich पर रंजीत की प्रस्तुति
शत्रुघ्न बाबू अपनी पंचायत के मुखिया हैं। माफ कीजिए, मुखिया नहीं, मुखिया-पति हैं, लेकिन उनके समर्थक उन्हें मुखिया जी कहकर ही बुलाते हैं। पूर्णिया जिले की कसबा सीट से राजधानी पटना पहुंचे हैं। उन्हें टिकट चाहिए। उमाशंकर बाबू, जिला पार्षद हैं, वे भी पिछले पांच दिनों से पांच बोलेरो गाड़ी के साथ पटना में कैंप कर रहे हैं। उमाशंकर बाबू को भी टिकट चाहिए।
सितम के जहान और भी हैं...
नीलाभ का मोर्चा neelabh ka morcha पर Hirawal Morcha की प्रस्तुति
सितम के जहान और भी हैं...
मृणाल वल्लरी के इस सात साल पहले लिखे गये लेख को माओवादियों के खिलाफ़ उनके भ्रान्त धारणाओं से भरे लेख को छापने, माफ़ कीजिए ब्लौग पर प्रसारित करने, के बाद एक भावुकता भरी टिप्पणी के साथ प्रसारित करने का क्या उद्देश्य है, यह समझ में नहीं आया सिवा इसके कि उन्हें और मोहल्ला ब्लौग को अपने रुझान का औचित्य ठहराने की ज़रूरत महसूस हुई होगी, विश्वस्नीयता को भी साबित करने की. वजह यह कि ब्लौग पर प्रसारित सामग्री को पढ़ने और उस पर त्वरित टिप्पणी करने वाले अधिकांश लोग स्वभावत: भावुक होते हैं और अर्चना पर लिखी मृणाल वल्लरी की टिप्पणी के एकांगी दृष्टिकोण से बहुत जल्दी प्रभावित भी हो जाते हैं. इस सिलसिले में दो तीन बातें कहनी हैं.
तुम किस के लिए,क्या,क्यूं, और किस भाषा में लिखते हो?
kavyalok पर डा.राजेंद्र तेला "निरंतर" की प्रस्तुति
मेरे मित्र ने पूछा
तुम किस के लिए,क्या,क्यूं,
और किस भाषा में लिखते हो?
मैंने जवाब दिया
एक आम आदमी के लिए
जिसने वो ही देखा सहा
और भुगता है,जो मैंने
सिंगिंग रियल्टी शो- एक निबंध
शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग पर Shiv की प्रस्तुति
एक जमाना था जब परीक्षा का प्रश्नपत्र सेट करने वाले विद्वान् विद्यार्थियों को चैलेन्ज जैसा देते थे कि वे पोस्टमैन, मेरा गाँव, रेलयात्रा जैसे विषयों पर निबंध लिख कर दिखायें. पोस्टमैन नहीं आते तो मेरा गाँव आ जाता. मेरा गाँव नहीं आता तो रेलयात्रा आ जाता. कुल मिलाकर विकट सरल दिन थे. विद्यार्थीगण बहुत जोर रटते थे और परीक्षा की कापी रंग आते थे. अब चूंकि ज़माना हर ज़माने में बदलता है इसलिए अब ऐसे पुराने विषयों पर निबंध लिखने के लिए नहीं कहा जाता. और कारण यह भी हो सकता है कि पोस्टमैन की जगह कूरियर बॉय ने ले ली है और उसके चरित्र चित्रण की बारीकियों का निर्धारण अभी तक नहीं हो पाया है.
हमारी हिन्दी बना रहे बनारस पर Rangnath Singh की प्रस्तुति
हमारी हिन्दी एक दुहाजू की नई बीबी है
बहुत बोलने वाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली
गहने गढाते जाओ
सर पर चढाते जाओ
वह मुटाती जाये
पसीने से गन्धाती जाये घर का माल मैके पहुंचाती जाये
आप विशेष हैं लेकिन पारिवारिक प्रेम आपको अतिविशेष बनाता है – अजित गुप्ता
अजित गुप्ता का कोना पर ajit gupta की प्रस्तुति
मेरी भान्जी का ढाई वर्षीय पुत्र है सम्यक। वह अभी कुछ दिन पहले ही अमेरिका से आया है, उसका जन्म भी वहीं हुआ था तो अधिकांश परिवार के सदस्यों ने उसे पहली बार देखा था। उसका नाम आने पर सभी लोग गदगद सा महसूस कर रहे थे। खैर अभी 2 सितम्बर को ही मैं भी उससे जयपुर में मिली तो वह एकदम से गोद में आ गया और कसकर चिपक गया। तब मालूम पड़ा कि वह सभी से ऐसे ही गले मिलता है या कहें तो प्यार की झप्पी देता है। जैसे केरल की अम्मा (hugging saint) सभी के गले लगती हैं। यही कारण था कि रूक्ष से रूक्ष व्यक्ति भी उससे मिलकर बेहद खुश था कि इसने हमें गले लगाया। वे अपने अन्दर के प्रेम को पाकर बेहद प्रसन्न थे। लेकिन मेरी पोस्ट के लिखने का तात्पर्य सम्यक के बारे में लिखना नहीं है, मैं इस पोस्ट के माध्यम से यह कहना चाहती हूँ कि किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व कितना भी बड़ा क्यों ना हो उसे प्रेम की चाहत हमेशा रहती है। ऐसे बच्चे या ऐसे कोई भी व्यक्ति उनके प्रेमांकुरों को विकसित करते हैं और उन्हें जीवन को जीने की कला बताते हैं।
आधुनिक मीरा {हिंदी दिवस पर विशेष} सन्तोष कुमार "प्यासा"
हिन्दी साहित्य मंच पर संतोष कुमार "प्यासा" की प्रस्तुति
महादेवी वर्मा हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की।न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया।
दम बड़ा लगता है
गीत-ग़ज़ल पर शारदा अरोरा की प्रस्तुति
उधड़े रिश्ते सिलने में वक्त तो लगता है
बिखरे तिनके चुनने में वक्त तो लगता है
उलझ गए हैं मन के धागे
सुलझाने में , रेशमी गाँठें फिर खुलने में वक्त तो लगता है
बिखरे तिनके चुनने में वक्त तो लगता है
रसवंती हिंदी
मेरे भाव पर मेरे भाव की प्रस्तुति
स्वाद प्रसार बहुत है
रसभाषा रसवंती
ऋतुओं में वासंती है यह
रागों में मधुवंती
भाषाएँ हो चाहे जितनी
यह सबकी हमजोली
स्वागत करती हिंदी सबका
बिखरा कुमकुम रोली .
गोबर
सरोकार पर arun c roy की प्रस्तुति
गोबर
हूँ मैं
कहा जाता रहा है
बचपन के दिनों से
जवानी के दिनों तक
और अब
बच्चे भी कहते हैं
उम्र के ढलान पर
हिंदी का मोल
परिकल्पना पर रवीन्द्र प्रभात की प्रस्तुति
दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी -
माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी ।
बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से -
पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।
बस।
बड़ी गहरी चोट खाईं हैं अनामिका की सदाएं , देखना कि लगे न इसे कोई बाहरी हवाएं । खूब कहा है । अच्छी शुरूवात की है चर्चा की , अच्छा सजा है मंच। निश्चित ही अनमोल है हमारी आपकी ,हम सब की प्यारी भाषा हिन्दी । बधाई स्वीकार कीजिएगा । - आशुतोष मिश्र
जवाब देंहटाएंbahut badhiya manoj ji...
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंआपका अंदाज ही निराला है..
जवाब देंहटाएंBADHIYAA CHARCHAA !
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह उत्कृष्ट चर्चा………………आज तो काफ़ी लिंक्स मिल गये……………आभार्।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा ...काफी लिंक्स मिले ..आभार
जवाब देंहटाएंsundar charcha!!!!
जवाब देंहटाएंgot many links well incorporated:)
subhkamnayen....
बहुत बढ़िया चर्चा ,काफी सारे लिंक्स मिले.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार .
Charcha me shamil karne ke liye dhanyvad , hindi divas ke liye bahut bahut shubhkaamneyen ....
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस से सराबोर है चिट्ठा जगत :)
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच ने हिंदी दिवस को साकार किया है, सारी ही प्रस्तुत की गयीं रचनाएँ प्रशंसनीय हैं और सबसे अधिक आपका प्रयास.
जवाब देंहटाएंआपको तो चिट्ठा चर्चा में महारत हासिल है, एक बार फिर मोह लिया आपने
जवाब देंहटाएंकई सुन्दर लिंक्स।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बढ़िया चर्चा काफी लिंक्स मिले आपका प्रयास प्रशंसनीय है
जवाब देंहटाएंमेहनत से तैयार की गयी और हिंदी दिवस से सराबोर ये चर्चा बहुत निराली है जो हिंदी दिवस की सार्थकता बता रही है.
जवाब देंहटाएंआभार.
भाषा,शिक्षा और रोज़गार की पोस्ट लेने के लिए हार्दिक आभार। यह एक स्वस्थ परम्परा है कि उन ब्लॉग की पोस्टों को भी चर्चा में शामिल किया जाए जो चर्चाकारों की पोस्टों के नियमित टिप्पणीकार नहीं हैं। यह भी कहना चाहूंगा कि जो लिंक आपने उपलब्ध कराए हैं वे अन्य किसी चर्चा आधारित ब्लॉग पर समेकित रूप से उपलब्ध नहीं हैं। पुनः आभार।
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य-सबके लिए ब्लॉग को उद्धृत करने के लिए धन्यवाद। पूरी चर्चा वैविध्यपूर्ण,प्रेरक और ज्ञानवर्द्धक बन पड़ी है।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह मनपसंद लिंक्स उपलब्ध कराये आपने आभार सर..
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट चर्चा, आभार।
जवाब देंहटाएंकुछ छूटे हुए लिंक्स मिल गए यहाँ ...
जवाब देंहटाएंआभार !
चर्चा मंच जो हिंदी साहित्य के लिए एक वरदान है जहा हमारे हिंदुस्तान के साहित्कारो को सम्मान ही नहीं उसे एक पहचान भी देती है.
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार!!
जवाब देंहटाएं