"रूप" क़ायम रहे, सोच रक्खो बड़ी नुक्ता-चीनी में दिल क्यों लगाने लगे
इसी सन्दर्भ में बात है :एक शैर पे बड़ी गुफ्त -गु हुई -
शैर था -देख तो दिल के जाँ से उठता है ,ये धुआं सा कहाँ से उठता है .
एतराज़ उठा -दिल के जाँ के स्थान पे -दिल या जाँ से उठता है होना चाहिए था . अब साहब गजल की अपनी रवायत होती है -दिल के जाँ में "के "का अर्थ "या "ही है .
दुष्यंत कुमार जी पर भी यह आरोप लगा -
कुछ हिंदी के विशुद्ध शब्द प्रयोगों पर आलोचकों ने आपत्ति की थी .
मत कहो आकाश पे कोहरा घना है ,यह किसी की व्यक्ति गत आलोचना है . एतराज उठा था इस पर जबकि सन्दर्भ साफ था -प्रेस पे पाबंदी /आपातकाल के दौरान बढ़िया मौजू रचना .
"रूप" क़ायम रहे, सोच रक्खो बड़ी नुक्ता-चीनी में दिल क्यों लगाने लगे
इसी सन्दर्भ में बात है :एक शैर पे बड़ी गुफ्त -गु हुई -
शैर था -देख तो दिल के जाँ से उठता है ,ये धुआं सा कहाँ से उठता है .
एतराज़ उठा -दिल के जाँ के स्थान पे -दिल या जाँ से उठता है होना चाहिए था . अब साहब गजल की अपनी रवायत होती है -दिल के जाँ में "के "का अर्थ "या "ही है .
दुष्यंत कुमार जी पर भी यह आरोप लगा -
कुछ हिंदी के विशुद्ध शब्द प्रयोगों पर आलोचकों ने आपत्ति की थी .
मत कहो आकाश पे कोहरा घना है ,यह किसी की व्यक्ति गत आलोचना है . एतराज उठा था इस पर जबकि सन्दर्भ साफ था -प्रेस पे पाबंदी /आपातकाल के दौरान बढ़िया मौजू रचना .
"रूप" क़ायम रहे, सोच रक्खो बड़ी नुक्ता-चीनी में दिल क्यों लगाने लगे
इसी सन्दर्भ में बात है :एक शैर पे बड़ी गुफ्त -गु हुई -
शैर था -देख तो दिल के जाँ से उठता है ,ये धुआं सा कहाँ से उठता है .
एतराज़ उठा -दिल के जाँ के स्थान पे -दिल या जाँ से उठता है होना चाहिए था . अब साहब गजल की अपनी रवायत होती है -दिल के जाँ में "के "का अर्थ "या "ही है .
दुष्यंत कुमार जी पर भी यह आरोप लगा -
कुछ हिंदी के विशुद्ध शब्द प्रयोगों पर आलोचकों ने आपत्ति की थी .
मत कहो आकाश पे कोहरा घना है ,यह किसी की व्यक्ति गत आलोचना है . एतराज उठा था इस पर जबकि सन्दर्भ साफ था -प्रेस पे पाबंदी /आपातकाल के दौरान बढ़िया मौजू रचना .
बड़ी इनायत की इस शायर को सुनवाया .एक मर्तबा रोहतक यूनिवर्सिटी द्वारा राआयोजित कवि सम्मलेन में ज़नाब वसीम बरेलवी साहब पधारे थे तब इनके इनमें से कई एक अशआर सुने थे .
Virendra Sharma लोकप्रिय शायर प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी सम्पर्क -09412485477 जहाँ रहेगा वहीँ रौशनी लुटायेगा किसी चराग़ का अपना मकां नहीं होता ...... अपनी सूरत से ये ज़ाहिर है छुपायें कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आयें कैसे ..... वह मेरे घर नहीं आता ,मैं उसके घर नहीं जाता मगर इन एहतियातों से तअल्लुक मर नहीं जाता ....प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी
बहुत अच्छे लिंक्स मिले हैं। .. आपका ह्रदय से आभार। बस एक बात बहुत दिनों से पूछना चाहती थी ...लेकिन पूछा नहीं, शायद मैं समझ नहीं पा रही हूँ ..इनदिनों चर्चा मंच पर अक्सर एक ही टिप्पणी कई बार देखती हूँ ...इसका तात्पर्य क्या है .... कृपया कुछ प्रकाश डालें।
विदेशों में रहने वाले पाठकों की टिप्पणियाँ अक्सर स्पैम हो जाती हैं इसलिए वो वार-बार टिप्पणी को कॉपीपेस्ट करते जाते हैं। भाई वीरेन्द्र कुमार शर्मा (वीरू भाई) आजकल अमेरिका में रह रहे हैं। ज्यादातर वो ही ऐसा करते हैं।
बहुत बढ़िया चर्चा मंच एक से बढ़ कर एक चुन चुन कर कविताएँ गजल एवं आलेख सम्मलित किये गए आलेख अच्छे ज्ञान वर्धक रहे आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री जी की गजल गजब का कहन अति सवेंदन शील प्रश्न को प्रत्यक्ष लाने के लिए धन्यवाद
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।
बहुत व्यापक कलेवर है इस पोस्ट का खुसरो की पहेली बुझोवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विरासत रही है .
जवाब देंहटाएंनीहारिका (गेलेक्सी )के ऊपर -
एक थाल मोती से भरा ,सबके सिर पे औंधा ,धरा ,
चारों तरफ वह थाली फिरे मोती उससे एक न गिरा .
बताओ तो जानूँ -गेलेक्सी
बीसों का सर काट दिया ,न खून किया न मारा ...(नाखून )
हम माँ बेटी ,तुम माँ बेटी ,चले बाग़ कू जाएं ,
तीन नीम्बू तोड़ के एक एक कैसे खाएं
बोलो तो -
(बेटी ,माँ ,नानी )
आभार इस खूबसूरत पोस्ट के लिए जो संस्कृति के विविध रंग समेटे आई
बहुत व्यापक कलेवर है इस पोस्ट का खुसरो की पहेली बुझोवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विरासत रही है .
जवाब देंहटाएंनीहारिका (गेलेक्सी )के ऊपर -
एक थाल मोती से भरा ,सबके सिर पे औंधा ,धरा ,
चारों तरफ वह थाली फिरे मोती उससे एक न गिरा .
बताओ तो जानूँ -गेलेक्सी
बीसों का सर काट दिया ,न खून किया न मारा ...(नाखून )
हम माँ बेटी ,तुम माँ बेटी ,चले बाग़ कू जाएं ,
तीन नीम्बू तोड़ के एक एक कैसे खाएं
बोलो तो -
(बेटी ,माँ ,नानी )
आभार इस खूबसूरत पोस्ट के लिए जो संस्कृति के विविध रंग समेटे आई .
अदा जी आप बेशक बहुत अच्छा लिख रहीं हैं .केकड़ा वृत्ति हरेक ब्लोगर को छोडनी चाहिए .केकड़ा जब बिल से निकलता है तो दूसरा केकड़ा पीछे से
उसकी टांग
खींचता है यह आगे न बढे .दुसरे ब्लोगर को उत्साहित कीजिए आगे बढ़ाइए .उनके भी ब्लॉग पे आइये .यह ब्लोगिंग एक परिवार है .
काव्य मंजूषा
WEDNESDAY, OCTOBER 31, 2012
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके.....(Repeat)
अमीर खुसरो रचित बेशकीमती मोती
बहुत व्यापक कलेवर है इस पोस्ट का खुसरो की पहेली बुझोवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विरासत रही है .
जवाब देंहटाएंनीहारिका (गेलेक्सी )के ऊपर -
एक थाल मोती से भरा ,सबके सिर पे औंधा ,धरा ,
चारों तरफ वह थाली फिरे मोती उससे एक न गिरा .
बताओ तो जानूँ -गेलेक्सी
बीसों का सर काट दिया ,न खून किया न मारा ...(नाखून )
हम माँ बेटी ,तुम माँ बेटी ,चले बाग़ कू जाएं ,
तीन नीम्बू तोड़ के एक एक कैसे खाएं
बोलो तो -
(बेटी ,माँ ,नानी )
आभार इस खूबसूरत पोस्ट के लिए जो संस्कृति के विविध रंग समेटे आई .
अदा जी आप बेशक बहुत अच्छा लिख रहीं हैं .केकड़ा वृत्ति हरेक ब्लोगर को छोडनी चाहिए .केकड़ा जब बिल से निकलता है तो दूसरा केकड़ा पीछे से
उसकी टांग
खींचता है यह आगे न बढे .दुसरे ब्लोगर को उत्साहित कीजिए आगे बढ़ाइए .उनके भी ब्लॉग पे आइये .यह ब्लोगिंग एक परिवार है .
काव्य मंजूषा
WEDNESDAY, OCTOBER 31, 2012
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके.....(Repeat)
अमीर खुसरो रचित बेशकीमती मोती
बहुत व्यापक कलेवर है इस पोस्ट का खुसरो की पहेली बुझोवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विरासत रही है .
जवाब देंहटाएंनीहारिका (गेलेक्सी )के ऊपर -
एक थाल मोती से भरा ,सबके सिर पे औंधा ,धरा ,
चारों तरफ वह थाली फिरे मोती उससे एक न गिरा .
बताओ तो जानूँ -गेलेक्सी
बीसों का सर काट दिया ,न खून किया न मारा ...(नाखून )
हम माँ बेटी ,तुम माँ बेटी ,चले बाग़ कू जाएं ,
तीन नीम्बू तोड़ के एक एक कैसे खाएं
बोलो तो -
(बेटी ,माँ ,नानी )
आभार इस खूबसूरत पोस्ट के लिए जो संस्कृति के विविध रंग समेटे आई .
अदा जी आप बेशक बहुत अच्छा लिख रहीं हैं .केकड़ा वृत्ति हरेक ब्लोगर को छोडनी चाहिए .केकड़ा जब बिल से निकलता है तो दूसरा केकड़ा पीछे से
उसकी टांग
खींचता है यह आगे न बढे .दुसरे ब्लोगर को उत्साहित कीजिए आगे बढ़ाइए .उनके भी ब्लॉग पे आइये .यह ब्लोगिंग एक परिवार है .
काव्य मंजूषा
WEDNESDAY, OCTOBER 31, 2012
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके.....(Repeat)
अमीर खुसरो रचित बेशकीमती मोती
बहुत व्यापक कलेवर है इस पोस्ट का खुसरो की पहेली बुझोवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विरासत रही है .
जवाब देंहटाएंनीहारिका (गेलेक्सी )के ऊपर -
एक थाल मोती से भरा ,सबके सिर पे औंधा ,धरा ,
चारों तरफ वह थाली फिरे मोती उससे एक न गिरा .
बताओ तो जानूँ -गेलेक्सी
बीसों का सर काट दिया ,न खून किया न मारा ...(नाखून )
हम माँ बेटी ,तुम माँ बेटी ,चले बाग़ कू जाएं ,
तीन नीम्बू तोड़ के एक एक कैसे खाएं
बोलो तो -
(बेटी ,माँ ,नानी )
आभार इस खूबसूरत पोस्ट के लिए जो संस्कृति के विविध रंग समेटे आई .
अदा जी आप बेशक बहुत अच्छा लिख रहीं हैं .केकड़ा वृत्ति हरेक ब्लोगर को छोडनी चाहिए .केकड़ा जब बिल से निकलता है तो दूसरा केकड़ा पीछे से
उसकी टांग
खींचता है यह आगे न बढे .दुसरे ब्लोगर को उत्साहित कीजिए आगे बढ़ाइए .उनके भी ब्लॉग पे आइये .यह ब्लोगिंग एक परिवार है .
काव्य मंजूषा
WEDNESDAY, OCTOBER 31, 2012
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके.....(Repeat)
अमीर खुसरो रचित बेशकीमती मोती
अब गजल माशूक के जलवों के काबिल न रही .
जवाब देंहटाएंअब इसे बेवा के माथे की शिकन भाने लगी .
बहुत बढ़िया शैर है गाफिल साहब .
सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंलिंकों की भरमार!
आपका आभार!!
बढ़िया चर्चा ...... अच्छे लिनक्स मिले ....
जवाब देंहटाएंबहुत व्यापक कलेवर है इस पोस्ट का खुसरो की पहेली बुझोवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विरासत रही है .
जवाब देंहटाएंनीहारिका (गेलेक्सी )के ऊपर -
एक थाल मोती से भरा ,सबके सिर पे औंधा ,धरा ,
चारों तरफ वह थाली फिरे मोती उससे एक न गिरा .
बताओ तो जानूँ -गेलेक्सी
बीसों का सर काट दिया ,न खून किया न मारा ...(नाखून )
हम माँ बेटी ,तुम माँ बेटी ,चले बाग़ कू जाएं ,
तीन नीम्बू तोड़ के एक एक कैसे खाएं
बोलो तो -
(बेटी ,माँ ,नानी )
आभार इस खूबसूरत पोस्ट के लिए जो संस्कृति के विविध रंग समेटे आई .
अदा जी आप बेशक बहुत अच्छा लिख रहीं हैं .केकड़ा वृत्ति हरेक ब्लोगर को छोडनी चाहिए .केकड़ा जब बिल से निकलता है तो दूसरा केकड़ा पीछे से
उसकी टांग
खींचता है यह आगे न बढे .दुसरे ब्लोगर को उत्साहित कीजिए आगे बढ़ाइए .उनके भी ब्लॉग पे आइये .यह ब्लोगिंग एक परिवार है .
काव्य मंजूषा
WEDNESDAY, OCTOBER 31, 2012
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके.....(Repeat)
अमीर खुसरो रचित बेशकीमती मोती
अब गजल माशूक के जलवों के काबिल न रही .
अब इसे बेवा के माथे की शिकन भाने लगी .
बहुत बढ़िया शैर है गाफिल साहब .
बुधवार, 31 अक्तूबर 2012
"फिरकों में क्यों बाँट खाने लगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरे लिक्खे तरानों को गाने लगे
वो ग़ज़लगो स्वयम् को बताने लगे
अपनी भाषा में हमने लिखे शब्द जब
ख़ामियाँ वो हमारी गिनाने लगे
क्या ग़ज़ल सिर्फ उर्दू की जागीर है
इसको फिरकों में क्यों बाँट खाने लगे
दिल को मन लिख दिया, हर्ज़ क्या हो गया
दायरा क्यों दिलों का घटाने लगे
होंगे अशआर नाजुक करेंगे असर
शैर में तल्ख़ियाँ क्यों दिखाने लगे
"रूप" क़ायम रहे, सोच रक्खो बड़ी
नुक्ता-चीनी में दिल क्यों लगाने लगे
इसी सन्दर्भ में बात है :एक शैर पे बड़ी गुफ्त -गु हुई -
शैर था -देख तो दिल के जाँ से उठता है ,ये धुआं सा कहाँ से उठता है .
एतराज़ उठा -दिल के जाँ के स्थान पे -दिल या जाँ से उठता है होना चाहिए था .
अब साहब गजल की अपनी रवायत होती है -दिल के जाँ में "के "का अर्थ "या "ही है .
दुष्यंत कुमार जी पर भी यह आरोप लगा -
कुछ हिंदी के विशुद्ध शब्द प्रयोगों पर आलोचकों ने आपत्ति की थी .
मत कहो आकाश पे कोहरा घना है ,यह किसी की व्यक्ति गत आलोचना है .
एतराज उठा था इस पर जबकि सन्दर्भ साफ था -प्रेस पे पाबंदी /आपातकाल के दौरान
बढ़िया मौजू रचना .
बुधवार, 31 अक्तूबर 2012
हटाएं"फिरकों में क्यों बाँट खाने लगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरे लिक्खे तरानों को गाने लगे
वो ग़ज़लगो स्वयम् को बताने लगे
अपनी भाषा में हमने लिखे शब्द जब
ख़ामियाँ वो हमारी गिनाने लगे
क्या ग़ज़ल सिर्फ उर्दू की जागीर है
इसको फिरकों में क्यों बाँट खाने लगे
दिल को मन लिख दिया, हर्ज़ क्या हो गया
दायरा क्यों दिलों का घटाने लगे
होंगे अशआर नाजुक करेंगे असर
शैर में तल्ख़ियाँ क्यों दिखाने लगे
"रूप" क़ायम रहे, सोच रक्खो बड़ी
नुक्ता-चीनी में दिल क्यों लगाने लगे
इसी सन्दर्भ में बात है :एक शैर पे बड़ी गुफ्त -गु हुई -
शैर था -देख तो दिल के जाँ से उठता है ,ये धुआं सा कहाँ से उठता है .
एतराज़ उठा -दिल के जाँ के स्थान पे -दिल या जाँ से उठता है होना चाहिए था .
अब साहब गजल की अपनी रवायत होती है -दिल के जाँ में "के "का अर्थ "या "ही है .
दुष्यंत कुमार जी पर भी यह आरोप लगा -
कुछ हिंदी के विशुद्ध शब्द प्रयोगों पर आलोचकों ने आपत्ति की थी .
मत कहो आकाश पे कोहरा घना है ,यह किसी की व्यक्ति गत आलोचना है .
एतराज उठा था इस पर जबकि सन्दर्भ साफ था -प्रेस पे पाबंदी /आपातकाल के दौरान
बढ़िया मौजू रचना .
बुधवार, 31 अक्तूबर 2012
जवाब देंहटाएं"फिरकों में क्यों बाँट खाने लगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरे लिक्खे तरानों को गाने लगे
वो ग़ज़लगो स्वयम् को बताने लगे
अपनी भाषा में हमने लिखे शब्द जब
ख़ामियाँ वो हमारी गिनाने लगे
क्या ग़ज़ल सिर्फ उर्दू की जागीर है
इसको फिरकों में क्यों बाँट खाने लगे
दिल को मन लिख दिया, हर्ज़ क्या हो गया
दायरा क्यों दिलों का घटाने लगे
होंगे अशआर नाजुक करेंगे असर
शैर में तल्ख़ियाँ क्यों दिखाने लगे
"रूप" क़ायम रहे, सोच रक्खो बड़ी
नुक्ता-चीनी में दिल क्यों लगाने लगे
इसी सन्दर्भ में बात है :एक शैर पे बड़ी गुफ्त -गु हुई -
शैर था -देख तो दिल के जाँ से उठता है ,ये धुआं सा कहाँ से उठता है .
एतराज़ उठा -दिल के जाँ के स्थान पे -दिल या जाँ से उठता है होना चाहिए था .
अब साहब गजल की अपनी रवायत होती है -दिल के जाँ में "के "का अर्थ "या "ही है .
दुष्यंत कुमार जी पर भी यह आरोप लगा -
कुछ हिंदी के विशुद्ध शब्द प्रयोगों पर आलोचकों ने आपत्ति की थी .
मत कहो आकाश पे कोहरा घना है ,यह किसी की व्यक्ति गत आलोचना है .
एतराज उठा था इस पर जबकि सन्दर्भ साफ था -प्रेस पे पाबंदी /आपातकाल के दौरान
बढ़िया मौजू रचना .
प्रबुद्ध पाठक आदरणीय वीरेन्द्र कुमार शर्मा (वीरू भाई) का आभार!
जवाब देंहटाएंचर्चा बढ़िया है |वीरू भाई का कमेन्ट भी
जवाब देंहटाएंआशा
जवाब देंहटाएंबड़ी इनायत की इस शायर को सुनवाया .एक मर्तबा रोहतक यूनिवर्सिटी द्वारा राआयोजित कवि सम्मलेन में ज़नाब वसीम बरेलवी साहब पधारे थे तब इनके इनमें से कई एक अशआर सुने थे .
Virendra Sharma
लोकप्रिय शायर प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी
सम्पर्क -09412485477
जहाँ रहेगा वहीँ रौशनी लुटायेगा
किसी चराग़ का अपना मकां नहीं होता
......
अपनी सूरत से ये ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आयें कैसे
.....
वह मेरे घर नहीं आता ,मैं उसके घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक मर नहीं जाता ....प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी
सहज सरल सुन्दर छोटी बहर में खूबसूरत रचना .
जवाब देंहटाएंमाँ के चरणों में
माँ के चरणों में भेजा है,
मैंने एक संदेश,
या तो मेरे घर आओ,
या मुझको दो आदेश,
मन का दरवाजा खोला,
माँ कर लो ना प्रवेश,
सेवा करने की खातिर,
मैं खिदमत में हूँ पेश,
न्योछावर जीवन करना,
अब मेरा है उद्देश्य,
चलना सच्ची राहों पे,
माँ देती हैं उपदेश।।।।
Posted by "अनंत" अरुन शर्मा
आदरणीय वीरेंद्र सर तहे दिल से आभार, आपकी टिप्पणियां मुझे सदैव प्रेरणा देती हैं, अपना आशीष मुझपर यूँ ही बनाये रखें।
हटाएं
जवाब देंहटाएंसुन्दरम मनोहरं .पूरी ललित कला है यह तो .
त्योहारों का मौसम चल रहा है सुहागिनों की करवा चौथ की थाली सजनी शुरू हो गई, सीखिए थाली सजाने के गुर ।
रश्मि तारिका जी इंतज़ार रहेगा आपके चिठ्ठे (ब्लॉग )का .
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजन हित की इस जानकारी के लिए आभार .
डेंगू बुखार से बचने के नुस्खे
वह बढ़िया चर्चा मंच सजाया है
जवाब देंहटाएंअनूठी चर्चा-
जवाब देंहटाएंनए ब्लॉग भी नजर आये -
आभार भाई दिलबाग जी ||
बहुत अच्छे लिंक्स मिले हैं। .. आपका ह्रदय से आभार।
जवाब देंहटाएंबस एक बात बहुत दिनों से पूछना चाहती थी ...लेकिन पूछा नहीं, शायद मैं समझ नहीं पा रही हूँ ..इनदिनों चर्चा मंच पर अक्सर एक ही टिप्पणी कई बार देखती हूँ ...इसका तात्पर्य क्या है ....
कृपया कुछ प्रकाश डालें।
Shastri ji ne email se kaha :
हटाएंविदेशों में रहने वाले पाठकों की टिप्पणियाँ अक्सर स्पैम हो जाती हैं इसलिए वो वार-बार टिप्पणी को कॉपीपेस्ट करते जाते हैं। भाई वीरेन्द्र कुमार शर्मा (वीरू भाई) आजकल अमेरिका में रह रहे हैं। ज्यादातर वो ही ऐसा करते हैं।
Jawaab ke liye aapka dhanywaad...
ada
बढ़िया लिंक्स सजाये आपने | सुंदर चर्चा | आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा बढ़िया सूत्र बढ़िया टिपण्णी
जवाब देंहटाएंbadhiya charcha...badhai
जवाब देंहटाएंइस चर्चा में कई ब्लॉगों का पता चला जो अपने आप में विशेष महत्व रखते है ...
जवाब देंहटाएंआभार.!!
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
आदरणीय दिलबाग जी बेहद सुन्दर लिंक्स सयोंजन, मेरी रचना को स्थान दिया आपका आभार।
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही अच्छे लिंक्स
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत सुंदर लिंकों का चयन,,,,मनमोहक प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्रों से सजी चर्चा..
जवाब देंहटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएंसभी ब्लॉग पोस्टों एवं टिप्पणियों का बैकअप लीजिए
सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से सजाया है आज का चर्चा मंच !
जवाब देंहटाएंचर्चा बढ़िया रही ..सभी लिंक्स एक से बढ़ कर एक ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक चुन चुन कर कविताएँ गजल एवं आलेख सम्मलित किये गए
आलेख अच्छे ज्ञान वर्धक रहे
आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री जी की गजल गजब का कहन
अति सवेंदन शील प्रश्न को प्रत्यक्ष लाने के लिए धन्यवाद