स्नेहिल अभिवादन।
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गत 29 नवंबर को हैदराबाद में हुआ महिला चिकित्सक का सामूहिक बलात्कार और जघन्य क़त्ल देश को झकझोर गया। कल सुबह ख़बर आयी कि पुलिस जब इस केस के चारों आरोपियों को रात 3 बजे अपराध स्थल पर घटना के सूत्र एकत्र करने ले गयी जहाँ पुलिस के अनुसार आरोपियों ने उनके हथियार छीनकर पुलिस पर हमला करने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया।
अब इस काँड पर देश में एक ओर जश्न मनाया जा रहा है, मिठाइयाँ बाँटीं जा रही हैं तो दूसरी ओर पुलिस की करतूत पर सख़्त ऐतराज़ भी किया जा रहा है। किसी भी आरोपी को अपराधी न्याय-तंत्र के द्वारा घोषित किया जाता है। पुलिस की थ्योरी अक्सर अदालतों में नकार दी जाती है। कई बार आरोपी बदल जाते हैं जैसा कि गुरुग्राम (गुड़गाँव ) के एक निजी विद्यालय में 2017 में एक मासूम बालक की गला काटकर निर्मम हत्या कर दी थी तब बस कंडक्टर को पुलिस ने षड्यंत्र के तहत आरोपी बनाया जबकि सीबीआई जाँच में असली अपराधी तो उस विद्यालय का ही एक किशोर निकला। मुठभेड़ को तर्कसंगत मानना तभी सही होता है जब अपराधी की स्पष्ट पहचान अदालत द्वारा कर ली जाय या सामने वाला सुरक्षा बल पर हमला करने की स्थिति में सक्षम हो। यहाँ त्वरित न्याय का सवाल विवादों के घेरे में आ गया है।
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-अनीता सैनी
हमको भावना के रेले में बहना नहीं चाहिए. कैसी भी स्थिति हो,
पुलिस को क़ानून को अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए.
जया बच्चन ने संसद में बलात्कार के अपराधियों को भीड़ के हवाले किए जाने का सुझाव दिया था.
हैदराबाद में पुलिस द्वारा कुछ-कुछ मॉब-लिंचिंग जैसा ही किया गया है.
मैं झूठ के इस पुलिंदे की घोर भर्त्सना करता हूँ.
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एक गीत -कैक्टस का युग
कैक्टस का
युग कहाँ
अब बात शतदल की ?
हो गयी
कैसे विषैली
हवा जंगल की
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अपने-अपने दर्द....
शाम ढले सागर में नैया किसे खोजने जाती है,
बियावान में दर्दभरी धुन किसके गीत सुनाती है ?
अट्टहास करता है कोई दीवाना मयखाने में,
मध्य निशा में गा उठता है, इक पागल वीराने में,
बंदी अहसासों के सपने कौन चुरा ले जाता है ?
शब्दों के शिल्पी चोरी से किसकी मूरत गढ़ते हैं ?
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हालात पर कुंडलियां
सारा देश उबल रहा, बड़े बुरे हालात।
कैसा ये अधर्म हुआ,लगा बहुत आघात।
लगा बहुत आघात,समय कैसा है आया।
बना युवा उद्दंड,देख के मन घबराया।
नहीं रहा संस्कार,चढ़ा रहता है पारा।
बाल-वृद्ध लाचार,देखा खेल जो सारा
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हालात
कैसा ये अधर्म हुआ,लगा बहुत आघात।
लगा बहुत आघात,समय कैसा है आया।
बना युवा उद्दंड,देख के मन घबराया।
नहीं रहा संस्कार,चढ़ा रहता है पारा।
बाल-वृद्ध लाचार,देखा खेल जो सारा
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हालात
बिगड़े हालात कुछ ऐसे
कि,संभल ना पाए
जालिम जमानें के आगे
हम तो कुछ न कर पाए
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कभी सोच के देखा जाए तो ऐसा क्या हुआ
जो देश की आजादी के बाद से ही हिंदुओं,
खासकर ब्राह्मणों के खिलाफ दलित मोर्चा खोला गया !
उसके पहले हजार साल तक ऐसी बात क्यों नहीं उठी ?
क्या इन्हीं तीस-चालीस सालों में ही ब्राह्मणों के द्वारा ज्यादतियां हुईं
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मत खोज लिखे से लिखने वाले का पता
कोई
नहीं लिखता है
अपना पता
अपने लिखे पर
शब्द
बहुत होते हैं
सबके पास
अलग बात है
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मेथी का विवाह
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
**
सौंदर्य-बोध
दृष्टिभ
प्रकृति का सम्मोहन
निःशब्द नाद
मौन रागिनियों का
आरोहण-अवरोहण
कोमल स्फुरण,स्निग्धता
रंग,स्पंदन,उत्तेजना,
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"कुंडलियां"
नहीं लिखता है
अपना पता
अपने लिखे पर
शब्द
बहुत होते हैं
सबके पास
अलग बात है
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मेथी का विवाह
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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सौंदर्य-बोध
दृष्टिभ
प्रकृति का सम्मोहन
निःशब्द नाद
मौन रागिनियों का
आरोहण-अवरोहण
कोमल स्फुरण,स्निग्धता
रंग,स्पंदन,उत्तेजना,
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"कुंडलियां"
बेटी घर का मान है, मन उपवन का फूल । मात-पिता की लाडली , यह मत जाओ भूल ।। यह मत जाओ भूल , याद रखना नर-नारी । रखती सब का मान , मान की वह अधिकारी ।। कह 'मीना' यह बात, करो मत यूं अनदेखी । बेटों सम अधिकार , हम से मांगती बेटी ** संगीता गुप्ता : शब्द और चित्र
हरसिंगार इस उम्मीद में
रात भर झरता है कि
किसी सुबह जब तुम आओ तो
तुम्हारी राहें महकती रहें
बेमौसम भी बादल बरसते हैं कि
कभी तो तुम्हें भिगा सकें
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आज का सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे
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- अनीता सैनी
जवाब देंहटाएंजब राष्ट्र के संविधान द्वारा तय न्याय व्यवस्था से इतर यदि " दरोगा ही न्यायाधीश " बन जाए और किसी के जीवन-मृत्यु का निर्णय लेने लगे , तो यह व्यवस्था लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक साबित हो होगी ।
यह भीड़तंत्र आज भले ही ऐसे त्वरित न्याय पर "जय हो " का उद्घोष कर रहा है, लेकिन भविष्य में इसके गंभीर परिणाम सम्भव है।खाकी वाले फिर तो परम स्वतंत्र हो जाएँगे।
इनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम पर महिला पशु चिकित्सक के साथ दुष्कर्म और निर्मम हत्या से उद्वेलित लोगों द्वारा की गई पुष्प वर्षा के बावजूद इस तथाकथित मुठभेड़ को लेकर अनेक प्रश्न किए जा रहे हैं
उल्लेखनीय है कि हैदराबाद में जिस पुलिस कमिशनर के नेतृत्व में इनकाउन्टर किया गया है। उन्हें पहले भी 2008 में वारंगल में एसिड अटैक करने वाले तीन आरोपियों के इनकाउन्टर को लेकर वाहवाही मिल चुकी है।
इनकाउन्टर प्रबुद्धजनों ने तमाम सवाल किये हैं। पहला यह कि क्या जिन आरोपियों को पकड़ा गया वही बलात्कारी थे? दूसरा ,सैकड़ों पुलिसवालों के साथ मुंह ढांककर हथकड़ी लगाकर जिन आरोपियों को हिरासत के सात दिन बाद घटनास्थल पर ले जाया गया क्या उनके पास कोई हथियार थे? क्या उन्होंने बंद गाड़ी में पुलिस वालों पर हमला किया था? तीसरा आरोपियों को रात के तीन बजे पुलिस को घटना स्थल पर ले जाने की क्या जरूरत थी? चौथा क्या इनकाउन्टर सुनियोजित था तथा तेलंगाना पुलिस के मुखिया एवं मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रायोजित किया गया था? पांचवां महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पीयूसीएल वेर्सेस स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र, सीडीजे 2014 एससी 831 प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुलिस इनकाउन्टर को लेकर जो 16 गाइडलाइन दी गई थी, उनका पालन किया गया है या नहीं?
वैसे, हाईकोर्ट ने इस मामले को संज्ञान में लिया है और पोस्टमार्टम का वीडियो मांगा है। 9दिसंबर तक चारों शव सुरक्षित रखने का आदेश भी दिया है। तेलंगाना मुठभेड़ की जाँच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की विशेष टीम भी करेगी।
आजकी प्रस्तुत में विविध प्रकार की रचनाएँ तो हैं ही, आपकी भूमिका भी विचारोत्तेजक है अनीता बहन।
आपसभी को प्रणाम।
बहुत-बहुत आभार शशि भाई प्रस्तुति और भूमिका की व्याख्या और सराहना के लिये. आपका विषय को विश्लेषण करने का तरीक़ा बहुत प्रभावशाली है.
हटाएंसुप्रभात.
सादर.
जी , इन उत्साहवर्धक शब्दों के लिए आपको हृदय से धन्यवाद। प्रयास करता हूँँ कि चर्चा मंच पर आप सभी के माध्यम से अपनी भी उपस्थिति दर्ज करा सकूँँ।
हटाएंमेरी साधारण- सी रचनाओं को भी इस मंच पर आप चर्चाकारों ने अत्यधिक सम्मान दिया है। अतः मैं इस मंच का ऋणी हूँ।
प्रणाम।
बहुत सुन्दर और संवेदनशील चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
सुप्रभात आदरणीय
हटाएंप्रणाम
सादर
गंभीर और संवेदनशील भूमिका के साथ बेहतरीन सूत्र संकलन । मेरी रचना को मंच प्रदान करने के लिए बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंआभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति |आपका हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंफ़ेसबुक पर पुलिस-एनकाउंटर पर पोस्ट किए गए मेरे आलेख को पढ़कर बहुतों ने मेरी आलोचना की है, उस से अधिक लोगों ने मुझे धिक्कारा है और उस से भी ज़्यादा लोगों ने मुझे फटकारा है. लेकिन फिर भी मैं कहूँगा कि इस एनकाउंटर रूपी दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है.
जवाब देंहटाएंकोई बात नहीं सर फिर भी आपके विचार से देश की अधिकांश जनता सहमत है. त्वरित न्याय का हिंसक विचार समाज में तात्कालिक ख़ौफ़ तो पैदा करेगा किंतु इसके दूरगामी परिणाम बहुत बुरे हो सकते हैं जिस ओर आपने समाज को चेताया है जो आज के बहके हुए समाज के लिये बहुत ज़रूरी है. भीड़ के साथ हो जाना सरल है और उसे नियंत्रण में रखने के उपाय सोचना कठिन है.
हटाएंहम आपके विचार के साथ हैं.
सादर प्रणाम आदरणीय सर.
संवेदनशील भूमिका के साथ खूबसूरत प्रस्तुति प्रिय सखी । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएं. बहुत ही प्रभावशाली भूमिका आपने लिखी है अगर गहराई से इस घटना की और देखा जाए तो कुछ ना कुछ नया मिलने की संभावना हो सकती है न जाने किन सफेदपोशो को छुपाने के लिए यह सारी कहानी गढ़ी गई हो यह संभावना हो सकती है
जवाब देंहटाएंकई बार सब कुछ हो जाने के बाद अपराधियों को चेहरा बदल जाता है.. बहुत ही अच्छा लगता है जब चर्चामंच के मंच पर इस तरह की संवेदनशील मुद्दों पर हम अपने विचार व्यक्त करते हैं..
हमेशा की तरह ही आपने बहुत ही सुंदर लिंक्स का चयन किया है
मैं अनीता जी के विचार से सहमत हूँ क्योंकि न्याय दिलाने की इतनी भी क्या जल्दी मची थी हमारी सुपरमैन पुलिस को कि फोरेंसिक जाँच की रिपोर्ट आने का इंतज़ार तक नहीं किया। और दूसरी बात रात में कौन-सा मार्च पास करा रहे थे कि सुबह का इंतज़ार तक नहीं किया और बिना कुल्ला-बुख़ारी किये ही पिकनिक स्पॉट पर बिना पिज्जा-बर्गर के ही पहुँच गए। और तीसरी बात लड़की की शिनाख़्त अभी भी अधूरी है। चौथी बात कि इन चारों आरोपियों के मरने की वज़ह से हो सकता है कोई रसूखदार व्यक्ति जो इस सारे मामले के पीछे असली भूमिका में छिपा बैठा हो और नेतानगरी में पहुँच रखने के कारण पुलिस पर दबाव बना रहा हो ! पुलिस की लीपा-पोती की वज़ह से वह ऐसे ही निकल जायेगा और हम लम्पट लोग केवल जिन्दाबाद और मुर्दाबाद ही करते नज़र आयेंगे।
जवाब देंहटाएंहमारा प्यारा संविधान कहता है कि "दस आरोपी छूट जायें परन्तु एक निर्दोष को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए।" यहाँ मुझे एक ही बात नहीं समझ आ रही है कि केवल बयान के आधार पर यह एनकाउंटर का फ़ैसला लिया कैसे गया ! जबकि उनकी डी एन ए फ्रोफाइलिंग भी अभी तक नहीं हुई थी जिससे कि कोई अंतिम निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके। न्याय तक तो ठीक परन्तु यदि बाद में यह ज्ञात हो कि असली मुज़रिम कोई और है तो मरने वाले तथाकथित अपराधियों के साथ हमारा समाज और कोर्ट कौन-सा न्याय करेगा ! और बात रही कि वैदिक हिंसा हिंसा न भवति तो तब फिर इसे किस श्रेणी में आप रखेंगे। सत्य मेव जयते !
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय एकलव्य जी. आपने विस्तार से भूमिका की सराहना करते हुए अपने सार्थक एवं विचारणीय विचार जोड़े हैं.जिसकी सराहना शब्दों से परे है.
हटाएंआपका सहयोग हमेशा बना रहे.
सादर
विचारणीय भूमिका , बेहतरीन प्रस्तुति, सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर 🙏🌹
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चाअंक ,सभी रचनाकारों को सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा अंक। समसामयिक विषय पर शीर्षक और भूमिका लिखकर अनीताजी ने अपनी साहित्यिक के साथ सामाजिक जिम्मेदारी का वहन किया।साधुवाद।
जवाब देंहटाएंमैं अपनी रचना को चर्चामंच पर देखकर प्रसन्न हूँ । आपका हार्दिक धन्यवाद अनिताजी।