स्नेहिल अभिवादन।
सर्द हवा के झोंके लहर बनकर आयें तो जनजीवन ठिठुर जाता है। जलता हुआ अलाव सहारा बनता है उनका जो सहते हैं ठंड का प्रकोप। सियाचिन के शून्य से नीचे कभी-कभी 50 डिग्री तक गिरे तापमान को झेलते हुए जाँबाज़ सैनिक सरहदों की रक्षा में अपनी सर्वश्रेष्ठ कार्यक्षमता का प्रदर्शन करते हैं। सर्दियाँ आती हैं अपना असर दिखाकर चली जातीं हैं, छोड़ जातीं हैं कुछेक यादें जो रिकॉर्ड बन जाती हैं। बदलते हुए मौसम का मुक़ाबला करने के लिये आजकल अलाव की चर्चा
होना लाज़मी है।
-अनीता सैनी
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद के कुछ लिंक -
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हिमयुग-सी बर्फीली
सर्दियों में
सियाचिन के
बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों
और सँकरें दर्रों की
धवल पगडंडियों पर
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हो नहीं सकता ये रिश्ता
बादलों से नेक,
कुएँ की नालियों से पेटभर
पानी पिलाना तुम!
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
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शिक्षा अथवा स्किल डेवलपमेंट
"सा विद्या या विमुक्तये"
विद्या वह है जो मनुष्य को मुक्ति दिलाये,
अब मुक्ति क्या है ?
यह प्रश्न विचारणीय है
आत्मा को परमात्मा से जोड़ना यानी
प्रकृति अथवा परमेष्ठी,
वह शिक्षा जिसमें पशु-पक्षी
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बहिष्कृत
दो दिनों से गीदड़ों ने, माँद, छोड़ी भी नहीं थी।
वनबिलावों के घरों में, एक कौड़ी भी नहीं थी।।
बिलबिलाते चेहरों पर, थी मगर यह बात अंकित।
भंग है इंसानियत की, साख कुछ ही जातियों से।।
दुश्मनी, वनराज को थी…
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कौन यहाँ अब आएगा
उम्मीदों का सूरज डूबा,
अब ना फ़िर से निकलेगा
अँधियारा फैला गलियों में,
रस्ता कौन दिखाएगा
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( जीवन की पाठशाला)
मेरे लिये यह उद्धरण इसलिए मायने रखता है
कि मैं भी सिर्फ उँगलियों से बेलन संभालना सीख लूँ।
विपरीत परिस्थितियों में ही आत्मबल की परीक्षा होती है।
यह आत्मबल ही है जो हमसे कहता है-
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"विचार"
वे …,
चले आ रहे हैं
सदियों से…
आज इसके साथ
तो कल उसके
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जलने लगे अलाव
जगह-जगह जलते अलाव
घेर कर बैठे लोग।
शीत ऋतु का प्रबल प्रकोप
भोग रहें हैं लोग।
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जब प्रकृति वैभव की बात होती है
तो तुरंत मानस पटल पर सुखी समृद्ध जीवन का बिम्ब उभरता है
और दिखता है उस जहाँ में हँसते गाते कलरव करते
जीवों का संसार और जीवन के लिए प्रकृति की साझेदारी।
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डेटा संरक्षण बिल क्या है?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार 4 दिसम्बर को
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक-2019 को अपनी मंजूरी दे दी.
यह विधेयक संसद में पेश किया जाएगा. संभव है
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परख : माटी पानी (सदानन्द शाही) :
रोहिणी अग्रवाल
“चींटियां
प्रभुता पर लघुता की विजय का
आख्यान लिख गई
और वे ताकते रह गए.”
परख : माटी पानी (सदानन्द शाही) :
रोहिणी अग्रवाल
“चींटियां
प्रभुता पर लघुता की विजय का
आख्यान लिख गई
और वे ताकते रह गए.”
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आज का सफ़र बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
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- अनीता सैनी
आज का सफ़र बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
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- अनीता सैनी
जी अनीता बहन , पिछले दो दिनों की बरसात ने ठंड को बढ़ा दिया है। ठिठुरन से श्रमिक वर्ग परेशान है।
जवाब देंहटाएंरही बात अलाव की तो वह या तो सरकारी कागजों.पर जल रहे हैं अथवा फिर कवियों की रचनाओं में.. ?
जरा घर से बाहर निकल कर देखें तो सही किसी चट्टी चौराहे पर नगरपालिका परिषद अथवा प्रशासन ने अलाव जलवाया है क्या या फिर किसी सामाजिक संगठन में यह पुण्य कार्य कर रखा है.. ??
वैसे तो पूस-माघ का महीना बहुतों को 'महानुभाव' 'प्रख्यात समाजसेवी', 'उदारमना' आदि से अलंकृत होने का महीना होता है । वे सौ रुपए से भी कम का थोक में कम्बल जुटातेे हैं । इसके बाद बड़ा सा जलसा, महोत्सव, सेवा कैम्प आदि लगता है । बड़ा सा मंच शोभायमान होता है । क्लास वन और क्लास टू श्रेणी के लोग बुला लिए जाते हैं तथा फोर्थ श्रेणी का यह कम्बल बांटा जाता है । खूब तालियाँ बजती हैं ।
सभ्य समाज के ऐसे जेंटलमैनों को मेरा प्रणाम।
मंच पर सुंदर चर्चा के मध्य मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार।
अलाव की हकीकत आपने खूब बयां की, जब तक सेेवाभाव में भी राजनैतिक रंग घुलता रहेगा तब तक इससे पीछा छुड़ा पाना आसान नहीं, पथिक जी
हटाएंजी आभार आपका
हटाएंअब सेवाभाव रह कहा गया है, हम पत्रकारों की कलम भी बिकाऊ है यूँँ कहें कि बिक चुकी है
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका अनु,उन सैनिकों के कठिन जीवन की कल्पनाभर कर सकते हैं हम। जिन विषम परिस्थितियों में हमारी ख़ातिर
जवाब देंहटाएंकर्तव्य निभाते हैं उनकी वीरता,कर्मठता और समर्पण को जितना भी नमन करेंं कम है।
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं। सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना को शामिल करने के लिए सस्नेह शुक्रिया।
इंजेक्शन ऐसे भी हैं
जवाब देंहटाएंकि लगा दो
तो गाय दूध के बजाए
वोट देने लगती हैं.”.... सदानंद शाही जी की रचनाओं से हमें अवगत कराने के लिए आपका आभार डा. रांहिणी जी, बहुत दिनों बाद ऐसी बेसाख्ता रचना से रूबरू हुई। धन्यवाद
शीत ऋतु अपने चरम पर है और उस पर उत्तराखण्ड , हिमाचल और जम्मू कश्मीर की बर्फबारी..., ठिठुरते मौसम में सरहद प्रहरियों की कार्य क्षमता की सराहना करती भूमिका के साथ बेहतरीन सूत्र संयोजन । आभार मेरे सृजन को स्थान देने के लिए अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंबहतु सुन्दर और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंअनीता सैनी जी आपके श्रम को सलाम।
साधुवाद
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