स्नेहिल अभिवादन.
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बेटियाँ असुरक्षित हैं
अब भारत में यह बात हम ही नहीं अब तो भारत भ्रमण पर आनेवाले विदेशी सैलानियों से उनके देश की सरकारें भी कहने लगीं हैं.
अब देशभर में 40000 से अधिक बलात्कार के प्रकरण दर्ज़ किये जा रहे हैं हर साल.
अब इसमें यदि उस संख्या को भी जोड़ दिया जाय जो मामले अनेक कारणों से सरकारी काग़ज़ की स्याही से मुहताज रह जाते हैं जो अक्सर समाज के कमज़ोर तबके से होते हैं तो आँकड़ा बहुत भयावह होगा.
समाजशास्त्री इन तथ्यों और परिस्थितियों का अध्ययन कर समाज की विकृत मानसिकता का समाधान सुझाएँ. समाज को नारी ज़ात के प्रति संवेदनशील बनाना हम भूल चुके हैं.
आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ.
-अनीता सैनी
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"नफरतों का सिला दिया तुमने"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उच्चारण
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दिसम्बर का एक दिन
अदरकवाली चाय की ख़ुश्बू ,
घी में सिकते हलवे की महक,
टमाटर का सूप,संतरे का रस,
मक्के की रोटी,सरसों का साग
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एक गीत -स्वर्णमृग की लालसा

स्वर्ण मृग की
लालसा
मत पालना हे राम !
दोष
मढ़ना अब नहीं
यह जानकी के नाम |
जैसे ही उन्होंने अपना वक्तव्य खत्म किया
तो पीछे से एक युवा भाई ने पूछा ,
"और नाथूराम गोडसे?"
रामप्रसाद जी और बाकी पंचायत के
सदस्य सोंच विचार में पड़ गए थे।
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तुझ बिन जिया उदास.....
एहसास अंतर्मन के
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हालात जो बदले…

हालात जो बदले मयार ए ग़म बदल गया
आयी बहार खिजाँ का मौसम बदल गया !
मन को सुकून आया और ऐतबार हो चला
पल भर में ग़म ओ दर्द का जज़्बा बदल गया !
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कानन(दोहे)

जंगल अब कंक्रीट के,लील रहे हैं गाँव ।
बूढ़े बरगद कट रहे,कहाँ मिले अब छाँव ।।
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आडवाणी जी की किताब

दोपहर के तीन बजने वाले हैं. आज मौसम गर्म है, इस मौसम का पहला गर्म दिन ! माया के अधीन होकर ही आज दीदी से फोन करते वक्त पूछ लिया कि कविता पढ़ी या नहीं, जीजाजी ने अपने स्वभाव के अनुरूप ** बंधन भी मुक्ति का द्वार है राजीव उपाध्याय


अंग्रेजों के समय में लुटेरे शासन से बचने के लिए
इस जगह को खुद और अपने लूट के सामान को छिपाने के काम में लाते थे।
इसके रास्तों का खतरनाक और बीहड़ होने के कारण वे
पुलिस से बच निकलने में कामयाब हो जाते थे।
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हाइकु

मुरलीधर
रचाओ महारास
वृन्दा पुकारे
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सजदा ( जीवन की पाठशाला )

नयना / गुड़िया या निर्भया,
बन चुकी है बेटी।
कुछ नाम याद होंगे आपको,
वैदिक साहित्य की बेटियों के-

दर्द जो भी मिला
ख़ुदा ! तेरी दुनियाँ से
कोई शिकवा न किया
बोलो,ये बंदगी क्या कम है
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बीसवीं सदी में,
प्रेमचंद की निर्मला थी बेटी,
इक्कीसवीं सदी में,नयना / गुड़िया या निर्भया,
बन चुकी है बेटी।
कुछ नाम याद होंगे आपको,
वैदिक साहित्य की बेटियों के-
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आज का सफ़र बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
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- अनीता सैनी
अनीता जी , चर्चा पटल पर भूमिका के माध्यम से आज की प्रस्तुति में आपने दुष्कर्म से जुड़े विषय पर एक बड़ा सवाल समाजशास्त्रियों से किया है , निश्चित ही इसका समाधान आधुनिक सभ्य समाज को ढूंढना होगा ।
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इसी संदर्भमें एक लेख " नारी-सम्मान पर डाका ?" अपने ब्लॉग पर पोस्ट किया हूँ।
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मेरा मानना है कि पुत्र के मामले में माता-पिता और पति के मामले में पत्नी की दृष्टि जबतक सजग नहीं होगी , पुरुषों के ऐसे पाशविक वृत्ति एवं कृत्य पर अंकुश नहीं लग सकेगा..।
इस नये पोस्ट में मेरा प्रश्न वृंदा से यह है कि यदि स्वयं का सतीत्व भंग होने पर वह अपने शरीर का त्याग कर सकती है,तो उसने अन्य स्त्रियों के साथ ऐसा ही दुष्कृत्य कर रहे अपने पति जालंधर का परित्याग क्यों नहीं किया ? इंद्र ने जब अहिल्या के साथ छल किया ,तब इंद्राणी (शची) क्यों मौन रही ?
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साथ ही बड़ी सच्चाई यह भी है कि देश में औसतन हर वर्ष पचीस से तीस हजार बलात्कार के प्रकरण दर्ज किये जाते हैं ,जिनमें से 98 प्रतिशत बलात्कारी पीड़िता के पूर्व परिचित होते हैं।
मंच को आपने सदैव की तरह विविध रचनाओं से सजाया -संवारा है । इन्हीं के मध्य मेरी भी एक रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार एवं सभी को प्रणाम।
अद्यतन लिंकों के साथ सुन्दर और सार्थक चर्चा।
ReplyDeleteआपका आभार अनीता सैनी जी।
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
ReplyDeleteसुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर सामयिक प्रस्तुति. विचारणीय भूमिका में महत्त्वपूर्ण आँकड़ों की ओर ध्यान आकृष्ट कराया गया है.देशभर में पुलिस एनकाउंटर पर लोग दो भागों में बंट गये हैं. त्वरित न्याय की चाहत वाले पुलिस को फूलमालाओं से लाद रहे हैं जो यह भूल गये कि समय रहते पुलिस ने सक्रियता दिखायी होती तो उस महिला चिकित्सक की जान बचाई जा सकती थी.
ReplyDeleteविविध विषयक सृजन के लिये रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
मेरी रचना को स्थान देने के लिये बहुत-बहुत आभार अनीता जी.
Very good Babuji Techno Life
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ReplyDeletehtml
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक एवं चिंतनीय सूत्रों का सकलन आज की चर्चा में ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबेटियां ही क्या, इस देश में तो बेटे भी असुरक्षित हैं. विदेशी पर्यटक भला क्यों आएँगे लुटने,पिटने?
ReplyDeleteVery good post Lyrics
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