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शनिवार, दिसंबर 21, 2019

"यह विनाश की लीला"(चर्चा अंक-3556)

स्नेहिल अभिवादन। 
नागरिकता संशोधन क़ानून संसद से पास क्या हुआ. देशभर में इसका विरोध किया जा रहा है. विरोध की वजह इस क़ानून में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक रूप से प्रताड़ित हो रहे अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है. इन देशों से आये ऐसे अल्पसंख्यक शरणार्थी जो दिसंबर 2014 तक भारत में शरण के लिये आये हैं उन्हें भारत का नागरिक बना दिया जाय.इसमें वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं. प्रावधान में इस्लाम का ज़िक्र न  करने पर भारत में विरोध के स्वर उभर आये हैं. विरोध केवल मुस्लिम नहीं कर रहे हैं बल्कि इनके साथ धर्मनिरपेक्ष विचार के लोग भी शामिल हैं. 
लोकतान्त्रिक देश में सरकार की नीतियों और पक्षपाती क़ानून का विरोध करना जनता का अधिकार है लेकिन यह हिंसक हो जाय तो इसकी निंदा भी होनी चाहिए. क़ानून अपने हाथ में लेना, उसकी अवहेलना करना, राष्ट्रीय सम्पत्ति को क्षति पहुँचाना, सुरक्षा बलों पर हमला करना कैसे जाएज़ ठहराया जा सकता है? 
चूंकि भारत सरकार ने घोषणा की है कि इस क़ानून के बाद राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी क़ानून लाया जायेगा. लोगों की आशंकाओं का सरकार ने जवाब दिया है फिर भी लोग संतुष्ट नहीं हैं और सीएए क़ानून को सरकार से लागू न करने की मांग कर रहे हैं आख़िर क्यों ? आपत्ति कहाँ है. 
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हम लोगों से शांति की अपील करते हैं कि विरोध में रैलियों का आयोजन करने वाले राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान होने से बचाएँ और हिंसक आंदोलन को हवा न दें.
- अनीता सैनी 
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"सीख रहा हूँ दुनियादारी" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

उच्चारण  

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यूकेलिप्टस 

My Photo

तुमने पूछा 
क्या होता है शिलालेख 
मैने निकाली तुम्हारे बालों से 
हेयरपिन
लिखा यूकेलिप्टस के तने पर 
तुम्हारा नाम----

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कि दाग अच्छे होते हैं 


हमेशा
ढलती शाम
के
चाँद की
बात करना


और

खो जाना
चाँदनी में
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यह विनाश की लीला
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नारी सशक्तिकरण! ( लघुकथा )

"छोड़ यार!"
"इधर मन लगा!"
"देख तू फिर से हार जायेगी!"
"नहीं तो!"
"चल, अपने ताश के पत्ते संभाल!
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prayasi
प्रभाव  एक 14 साल का लड़का है 
जो पोकेमॉन को प्यार करता है।
 वह परिवेश से सीखना पसंद करते हैं।
एक बग प्रकार का कैटरपी उसका पहला पोकेमॉन है
उसका दूसरा पोकेमाॅन वायनट है, 
जो एक सायकिक प्रकार है। 
उसका तीसरा पोकेमाॅन स्नीजल है,
 जो डार्क और आइस प्रकार का है। 
**

पलायन की धै 

My Photo

भैर शहरु मा धै लगाणु च
मन्खिअपरु हल्ला मचाणु
बल रोका रे रोका रे रोका
तै पलायन तै रोका .....!
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अभी नहीं तो कभी नहीं 

अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को।
डर कर कहीं रुक न जाना,
बढ़ा हौसले की उडान को।
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संवरी हूं मैं 

मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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क्रोध…
Kavita, krodh, anger management, chandan, vandan 
क्रोध कहो, या कह लो गुस्सा
या फिर इसे कहो तुम रोष
नहीं किसी भी और का,
इसमें  है बस अपना दोष
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मुमताज़ नाम से ही हिट हो जाती थी फिल्में :)

 बॉलीवुड ऐसी दुनिया है 
जहाँ जब इंसान का सिक्का चलता है 
तो तमाम बुलंदियां उसके आगे छोटी दिखाई देती है
 आज हम आपको ऐसी ही एक अभिनेत्री के बारे में  जो कभी अपनी मधुर मुस्कान 
और नटखट अदाओं के लिए इतनी मशहूर थी की फिल्म 
**
आज का सफ़र यहीं तक 
कल फिर मिलेंगे।  
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- अनीता सैनी

18 टिप्‍पणियां:

  1. तब बन जाऊँगा व्यापारी...
    सच कहा गुरुजी आपने , एक कुशल व्यापारी में दुनियादारी के अनेक गुण होते हैं। उसे इसकी परख होती है कि किस ग्राहक संग किस तरह का व्यवहार करना है, परंतु क्या ऐसा ही व्यापार वह अपने घर में भी अपनों संग करता है ?
    सच्चाई तो यह है कि हम सभी दो नावों पर सवार हैं । यह हमारी विवशता भी है और दुःख का कारण भी ।
    हाँ, व्यापारी को यह समझ निश्चित ही होती है कि औषधि के समान अनुचित स्थान पर प्रयुक्त होने पर सत्य भी विष हो जाता है।
    हमारी समाजिक व्यवस्था बड़ी ही विचित्र है, क्यों कि यहाँ " सत्य " अधिकतर स्थानों पर " विष " का कार्य करता है।
    *******
    अनीता बहन, सदैव की तरह समसामयिक विषय पर आपकी भूमिका प्रस्तुति को निखारती है।
    इस तरह की हिंसा से मानवता का कोई सरोकार नहीं है। इसमें स्वार्थ निहित है । ऐसे लोग अपनों को ही प्रताड़ित करते हैं। ऐसे तत्व जनता के भोलेपन का लाभ उठा उसे बरगलाते हैं और सियासत की बिसात पर अपनी रोटी सेकते हैं।
    मंच पर विविध विषयों पर रचनाएँ पढ़ने को मिली सभी को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय शशि भाई अपने विचार व्यक्त करने हेतु.
      सादर

      हटाएं
  2. *नागरिकता कानून (Citizenship Act) में 2004* किए गए संशोधनों (Amendments) के मुताबिक, असम (Assam) को छोड़कर शेष देश में अगर किसी के माता-पिता में कोई भी एक भारत का नागरिक है और अवैध अप्रवासी (Illegal Immigrant) नहीं है तो ऐसे बच्‍चों को भारतीय नागरिक माना जाएगा. *यह स्‍पष्‍टीकरण देश भर में नागरिकता कानून 2019 के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों के बीच आया है.* अधिकारी ने कहा कि कानून को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की बातें हो रही हैं. इनमें ज्‍यादातर गलत हैं.

    *कानून के मुताबिक उन्हें प्राकृतिक तौर पर भारतीय माना जाएगा जो खुद या जिनके माता-पिता 1987 से पहले देश में पैदा हुए हैं, उन्‍हें कानून के मुताबिक प्राकृतिक तौर (Naturalisation) पर भारतीय (Indian) ही माना जाएगा* वहीं, असम (Assam) में पहचान और नागरिकता (Citizenship) साबित करने की कट ऑफ डेट 1971 तय की गई है. असम में नागरिकता साबित कर एनआरसी की अंतिम सूची (Final List) में शामिल होने के लिए दस्‍तावेजों की सूची सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तय की थी.

    *कौन एनआरसी-1 में होंगे और कौन होंगे एनआरसी-2 में*
    गृह मंत्रालय ने स्‍पष्‍ट किया कि अगर आप 26 जनवरी 1950 के बाद और 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में पैदा हुए हैं तो आप एनआरसी-1 (NRC-1) में होंगे. वहीं, अगर आप 1 जुलाई 1987 से 3 दिसंबर 2004 के पहले तक भारत में पैदा हुए हैं तो आप एनआरसी-2 (NRC-2) में आएंगे. इसमें माता-पिता में किसी एक का भारतीय साबित होना जरूरी है. अगर 3 दिसंबर 2004 को या इसके बाद आप भारत में पैदा हुए हैं और आपके जन्‍म के समय आपके माता-पिता भारतीय नागरिक हैं या दोनों में कोई एक भारतीय हैं और दूसरे अवैध प्रवासी नहीं हैं तो आप भारतीय नागरिक माने जाएंगे.

    3 दिसंबर 2004 के बाद विदेश में पैदा हुए बच्‍चों के माता-पिता को करनी होगी ये घोषणा
    अगर आपके पिता जन्‍म से भारतीय नागरिक थे और आपका जन्‍म 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद लेकिन 10 दिसंबर 1992 से पहले विदेश में हुआ है तो आप एनआरसी-1 में होंगे. भारत के बाहर 3 दिसंबर 2004 को या उसके बाद पैदा हुए लोगों को भारतीय नागरिक तभी माना जाएगा जब उनके माता-पिता ये घोषित करें कि उनके पास किसी दूसरे का पासपोर्ट (Passport) नहीं है और जन्‍म के सालभर के अंदर उनके जन्‍म का पंजीकरण भारतीय दूतावास (Indian consulate) में काराया गया हो. ऐसे में कहा जा सकता है कि जन्‍म प्रमाणपत्र (Birth Certificate) या म्‍युनिसिपल सर्टिफिकेट (Municipal Certificate) नागरिकता साबित करने का अहम दस्‍तावेज होगा.

    गृह मंत्रालय (MHA) के प्रवक्‍ता (Spokesperson) ने कहा कि किसी भी भारतीय नागरिक को 1971 से पहले जन्‍म होने की स्थिति में अपने माता-पिता या दादा-दादी के पहचान पत्र, जन्‍म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज के जरिये अपने वंश को साबित करने की जरूरत नहीं होगी.

    अब सोचिए, भला इसमें गलत क्या है? क्या समाज के कथित प्रबुद्धजनों को जन चेतना जगाने का सही प्रयास नहीं करना चाहिए?
    क्या यह विरोध, आत्मसंहारक नहीं है?

    आज की प्रस्तुति में आदरणीया अनीता जी के भावनाओं से पूर्णत: सहमत हूँ और उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बेहतरीन जानकारी साजा करने के लिये. बहुत बहुत आभार आदरणीय सर.
      सादर

      हटाएं
  3. हमेशा की ही तरह खूबसूरत रचनाओं का संकलन आपने तैयार किया है..... और भूमिका के बारे में यही कहना चाहूंगी कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि आखिरकार NRC.CAA.CAB यह सारी नीतियां किसी एक आम इंसान के लिए कितनी फायदे जनक है और कितनी नुकसानदायक है जब तक उनकी ओर से पूरी तरह से स्पष्टीकरण नहीं आएगा इसी तरह से हिंसात्मक आंदोलन होते रहेंगे और लोग ना चाहते हुए भी इन सब आंदोलनों के शिकार होते होते जाएंगे. लेकिन सार्वजनिक संपत्तियों को किसी भी कीमत में क्षति नहीं पहुंचाने चाहिए यह अच्छी बात नहीं है.. विचारणीय भूमिका के साथ सुंदर सुंदर रचनाओं का संकलन..🙏

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  4. वर्तमान परिवेश को देखते हुए सार्थक चर्चा।
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

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  5. आग लगाकर 'सियासी रोटी' सेंकना लगभग सभी राजनीतिक दलों की आदत है !
    और कुछ प्रबुद्धजन भी उसे राशन -पानी देते रहते हैं।

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  6. इब बेहतरीन संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।

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  7. सार्थक चर्चा के साथ शानदार प्रस्तुति ।

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  8. हिंसा का यह दौर जल्द से जल्द खत्म हो और भारत विकास के मार्ग पर आगे बढ़े, सुंदर चर्चा !

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  9. मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
    मैं भी ब्लॉगर हूँ
    मेरे ब्लॉग पर जाने के लिए
    यहां क्लिक करें:- आजादी हमको मिली नहीं, हमने पाया बंटवारा है !

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  10. सात सौ सालों की हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य की खाई इन दिनों चौड़ी और गहरी क्यों होती जा रही है, इस पर क्या कोई विचार करेगा?
    तोड़फोड़ तो कहीं भी नहीं होनी चाहिए - न तो दिलों में, न ही संपत्तियों में और न ही विश्वास में.

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  11. श्रमसाध्य प्रस्तुति में विचारोत्तेजक भूमिका जिसमें (नये सीएए क़ानून के विरोध के चलते देश सुलग उठा है) जनता से शांति की अपील करते हुए कुछ सवाल किये गये हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून पर देश दो विचारों में बंट गया है। एक पक्ष और दूसरा विपक्ष। बेरोज़गारी में पिछले 45 साल रिकॉर्ड टूट गया है। कारोबार औंधे मुँह गिर चुका है , महँगाई सुरसा की तरह फैलती जा रही है तब यह चापलूसी का दौर, सरकार के समर्थकों की बेरहम ख़ुशियाँ पीड़ित जनता के घावों पर नमक छिड़क रहीं हैं। देश केवल सरकार के समर्थकों का नहीं है जो विकृत भाव से सरकार विरोधी विचार को देशद्रोही कह रहे हैं। देशप्रेम को प्रगाढ़ बनाने के लिये नफ़रत को हवा नहीं दी जाती है बल्कि देश की संस्कृति और सभ्यता के मर्म को आत्मसात करते हुए राष्ट्रीयता के पवित्र भाव को फलने-फूलने के अवसर उत्पन्न किये जाते हैं। धार्मिक कट्टरता जहाँ साम्प्रदायिकता की जड़ें मज़बूत कर रही है वहीं साधन संपन्न वर्ग के राष्ट्रीय संपदा पर येन केन प्रकारेण कब्ज़ा करने के यत्न अब किसी से छिपे नहीं रह गये हैं। सरकार अपने मनमाने फ़ैसलों को जनता पर थोपे और जनता की पीड़ा से आँखें मूँद ले तो यह लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाही और ढीठपना है जिसका विरोध अवश्य किया जाना चाहिए।
    सरकार ने अपनी ओर से 13 सवालों के गोलमोल जवाब दिये हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि

    एनआरसी क़ानून को शीघ्र लाने के लिये सरकार इतनी उतावली क्यों है ? देश की समस्त जनता जिस क़ानून से प्रभावित होने वाली हो उस क़ानून का सिर्फ़ इतना औचित्य है कि देश में छिपे घुसपैठियों को चिह्नित किया जा सके। इस कार्य के लिये सम्पूर्ण देश की जनता को अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिये विवश करना अलोकतांत्रिक प्रक्रिया है। इसके लागू होने के बाद क्या गारंटी है कि इस कार्य में मनमानी और बेईमानी नहीं होगी ?
    कुछ लोग परेशानी उठाने को तैयार हैं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि धर्म विशेष के लोगों को इस क़ानून (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न्स )के ज़रिये इरादतन प्रताड़ित किया जायेगा। यह क्षणिक ख़ुशी किसी देश का भला नहीं करती है बल्कि भावी पीढ़ियों के लिये काँटे बोती है, इतिहास गवाह है ऐसे उदाहरणों का।
    बहरहाल राजनीतिक दलों को देश में आये उबाल में रोटियाँ सेंकने से बचना चाहिए। विरोध करने वाले उन्माद से बचे और शांति का मार्ग चुनें और कुटिल राजनीति का हिस्सा न बनें।

    जवाब देंहटाएं
  12. आज की चर्चा का पन्ना नजर नहीं आ रहा है?

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