स्नेहिल अभिवादन
संसद से नागरिकता संशोधन बिधेयक पास हो गया है. देश इस पर एकमत नहीं है बल्कि विभक्त है क्योंकि यह विधेयक संविधान की मूलात्मा के विरुद्ध एक नई परिभाषा लेकर आया है. कुछ लोग ख़ुशियाँ मना रहे हैं और कुछ लोग विरोध में आंदोलनरत हैं. एतराज़ सिर्फ़ इतना कि शरणार्थियों को भारत की नागरिकता का आधार धर्म विशेष को अलग रखते हुए किया गया जो सांप्रदायिक विद्द्वेष बढ़ाएगा और सामाजिक सद्भाव के विरुद्ध है. यह विधेयक देश की छवि को बदलने वाला है। बहरहाल देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का तीव्र विरोध हो रहा है, वहाँ फ़ौज को तैनात किये जाने की संभावना है. कुछ लोगों की सनक का परिणाम कभी-कभी समूचा देश लम्बे समय तक भुगतता है.
आइये अब देखते है मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ.
-अनीता लागुरी 'अनु '
*****
गीत
"मुन्नी भी बदनाम हो गई"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
संसद से नागरिकता संशोधन बिधेयक पास हो गया है. देश इस पर एकमत नहीं है बल्कि विभक्त है क्योंकि यह विधेयक संविधान की मूलात्मा के विरुद्ध एक नई परिभाषा लेकर आया है. कुछ लोग ख़ुशियाँ मना रहे हैं और कुछ लोग विरोध में आंदोलनरत हैं. एतराज़ सिर्फ़ इतना कि शरणार्थियों को भारत की नागरिकता का आधार धर्म विशेष को अलग रखते हुए किया गया जो सांप्रदायिक विद्द्वेष बढ़ाएगा और सामाजिक सद्भाव के विरुद्ध है. यह विधेयक देश की छवि को बदलने वाला है। बहरहाल देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का तीव्र विरोध हो रहा है, वहाँ फ़ौज को तैनात किये जाने की संभावना है. कुछ लोगों की सनक का परिणाम कभी-कभी समूचा देश लम्बे समय तक भुगतता है.
आइये अब देखते है मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ.
-अनीता लागुरी 'अनु '
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गीत
"मुन्नी भी बदनाम हो गई"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बिल्लों ने कुर्सी को पाकर,
दूध-मलाई ही खाई है,
शीला की लुट गई जवानी,
शीला की लुट गई जवानी,
मुन्नी भी बदनाम हो गई।
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कभी मिट्टी से जिसने
पूछी ही नहीं अपनी पहचान
और न ही मिट्टी ने उससे
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ननुआ का बंदर अपनी बंदरिया को उठाने के लिये झिंझोड़ने लगा।
बंदरिया दोबारा नहीं उठी।
संभवतः उसे अपने रोज़-रोज़ के झूठ-मूठ के मरने से
सच में छुटकारा मिल चुका था।
बंदरिया दोबारा नहीं उठी।
संभवतः उसे अपने रोज़-रोज़ के झूठ-मूठ के मरने से
सच में छुटकारा मिल चुका था।
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हर पात पर,
शायद कोई पैगाम लिख रहा है,
शायद कोई पैगाम लिख रहा है,
न जाने क्या,
शाम आज लिख रहा है!
शाम आज लिख रहा है!
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सच-सच कहूँ
तो इसकी कीमत सुनकर ही
मेरी तो तलब गायब हो गई। और …
मैं अपना ध्यान बँटा कर अन्दर जाने वाले
समय का इंतज़ार करने लगा।
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आरक्षण सही तो CAB गलत कैसे?
मेरा हमेशा से ऐसा मानना रहा है
कि किसी भी सरकार के किसी भी कदम का विरोध औचित्यपूर्ण और तार्किक होना चाहिए
सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना न केवल मूर्खतापूर्ण हो सकता है
बल्कि कई बार सारी सीमाओं को पार कर सीमापार बैठे हमारे
दुश्मनों को लाभ पहुँचानेवाला भी साबित होता है.
‘कितना अद्भुत
है यह प्रेम
कि जैसे-जैसे बढ़ती है आँच
वैसे-वैसे फैलती है
पके हुए अन्न की खुशबू
महमह कर उठता है घर.
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बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता॥
सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
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निर्विकार,तटस्थ,
अंतर्मन अंतर्मुखी द्वंद्व में उलझा,
विचारों की अस्थिरता
अस्पष्ट दोलित दृश्यात्मकता
कल्पनाओं की सूखती धाराओं
गंधहीन,मरुआते
कल्पतरुओं की टहनियों से झ
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पढ़े-लिखे को फारसी क्या !
अब देख लीजिए,
प्याज बिना खुद को छिलवाए
लोगों के आंसू निकलवा रहा है
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चहरे पर मुस्कान रहती
ना कोई चिंता ना भय की
लकीरेंसर्दी चाहे जितनी हो
सहन शक्ति अपार होती
प्रातः काल जला अलाव
चारो ओर गोला बनासर्दी से लोहा लेते
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कुंडलियां छंद। नेता
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आज का सफ़र यहीं तक
अनीता लागुरी (अनु )
अपने देश की राजनीति ऐसा तंत्र है जो राष्ट्र की पूरी सृजनात्मक उर्जा को गलत मार्ग पर बांट रहा है, क्योंकि राजनीतिक लोगों को बांट करें सत्ता में पहुँचता है। ऐसे लोग राजनीति की नीति को भूल छल से सफलता अवश्य प्राप्त करते हैं । लेकिन , जिन्होंने उन्हें शीर्ष पर बैठाया है, उसका विश्वास खो बैठते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति देश की राजनीति की इन दिनों है।
जवाब देंहटाएंपरंतु सवाल यह है कि हमने राजनीति को जीवन के केंद्र में क्यों बैठा रखा है। सारा मान-सम्मान इसे ही क्यों दे रखा है। समाज में सृजन के और भी मंच है ,जिनकी हम उपेक्षा कर रहे हैं और इनके कमजोर होने का ही यह घातक परिणाम है कि सत्ता में बैठे राजनेता निहित स्वार्थ में फैसले कर रहे हैं ।
लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं, जिनमें से शेष तीन स्तंभ को भी मजबूती प्रदान करने की जरूरत है। जिससे वह मजबूती से प्रतिकार कर सकें।
ताकि राजनीति देश के प्राण के पद से नीचे उतारा जा सके। उसकी स्वच्छंदता पर अंकुश लग सके।
अनु जी आपने अपनी भूमिका के माध्यम से समसामयिक विषय को मंच पर चर्चा के लिए रखा है साथ ही सुंदर लिंक्स का चयन भी आज की प्रस्तुति में किया है।
आपसभी को मेरा प्रणाम।
जी बहुत-बहुत धन्यवाद शशि जी... सहमत हूं आपकी बातों से वर्तमान राजनीतिक उथल-पुथल ने पूरे देश में अव्यवस्था की लहर चला दी है यह सोचकर ही अजीब लग रहा है ऐसी नीतियां क्यों बनाई जा रही है जिनसे लोगों को तकलीफ हो रही है अल्पसंख्यक समुदायों को तकलीफ हो रही है परेशानी हो रही है यह तो आप सभी आप सभी देख रहे हैं कि देश के पूर्वोत्तर राज्यों में किस तरह से हालात बिगड़ रहे हैं यह सब चीजें क्या है इन सब की जिम्मेदारी कौन लेगा शायद कोई नहीं नेट इंटरनेट बंद कर देना वहां के लोगों को दुनिया से काट देना यह कोई समस्या का हल नहीं है..।
हटाएंयह आशा करती हूं कि इस तरह की घटनाओं से जान माल की हानि ना हो और कुछ ऐसा रास्ता निकले कि सब कुछ सुलझ जाए आप अपने विचार रखते हैं मुझे बहुत अच्छा लगता है ऐसे ही साथ बनाए रखिएगा बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
जी धन्यवाद आपको भी
हटाएंबहुत सुन्दर और उपयोगी पठनीय लिंक।
जवाब देंहटाएंआपका आभार, अनीता लागुरी जी।
आपका दिन मंगलमय हो।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय आपका दिन भी शुभ हो
हटाएंआदरणीया अनु जी नमस्कार ! आह्लादित हूँ अपनी रचनाओं को इस प्रतिष्ठित मंच पर पाकर ! आपकी भूमिका निसंदेह सत्ता में बैठे बीमार मानसिकता वाले राजनीतिज्ञों के कलुषित उद्देश्यों का अनावरण करती है। मुझे खेद है कि, साहित्यरूपी क्रांति भी इन लोगों की केवल अब ग़ुलाममात्र बनकर रह गई है। आज ये साहित्य से भय नहीं खाते क्योंकि इन्होंने यहाँ भी अपने छुटभइये बैठा रखे हैं जो समय-समय पर इनका महिमामंडन करते रहते हैं। इंदिरा जी के समय आपातकाल होने के बावजूद कभी यही साहित्यकार क्रांति की बात करता था, परन्तु आज इन नये लेखकों की लंगड़ी फ़सल उन चंद अमीर तबकों को स्वयं आगे बढ़ाने में भाव-विभोर है। साहित्य के इन काले पहरेदारों का इतिहास समय आने पर अवश्य लिखा जायेगा क्योंकि काग़ज़ों पर लिखा प्रमाण मिटाया नहीं जा सकता ! सादर 'एकलव्य'
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद सुशील सर जी
हटाएंबहुत दुःख हो रहा है मुझे यह कहते हुए कि आदरणीय मुंशी प्रेमचंद जी की कहानियों के प्रशंसकों के रुप में आज भले ही भारी संख्या में अपनी-अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने में लोग लगे हैं परन्तु यह कोई भी नहीं चाहता कि दूसरा प्रेमचंद इस साहित्यजगत में दोबारा आये और सामंतवादी सोच रखने वाले लेखकों को सत्य का आईना दिखाये! यह केवल आज की परिस्थिति नहीं है यह उस समय भी थी जब मुंशी जी अपनी शाख को ताख पर रखकर उन सामंतवादी विचारों के लेखकों के विपरीत धारा में अपनी कलम चलाते थे तब उस समय यही परंपरा और साहित्य की अस्मिता की दुहाई देने वाले लेखकों ने, मुंशी जी की कहानियों को उदंडी,समाज को बाँटने वाला एवं घृणायुक्त बताकर सिरे से खारिज़ किया था, जो आज आप सभी लेखकों को देखने में आ रहा है। मैं लिखूँगा ! निरंतर लिखूँगा ! क्योंकि मुझे उस महान लेखक की विरासत को आगे आने वाली पीढ़ियों को बताना है और सौंपना है। यही मेरा मूल कर्तव्य है और धर्म भी ! सादर 'एकलव्य'
हटाएंजी सहमत हूं एकलव्य जी वर्तमान परिस्थितियों पूरी तरह से साहित्य के अनुरूप नहीं है कुछ समझौते तो हमें भी करने पड़ते हैं बहुत विस्तृत रूप से अपने अपने विचार रखे हैं इसकी में सराहना करती हूं
हटाएंआदरणीय ध्रुव सर आपकी बात से सहमत हूँ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवैचारिकी विमर्श को आमंत्रित करती भूमिका और सुरुचिपूर्ण लिंकों से सजी सुंदर प्रस्तुति। बहुत अच्छा लग रहा आपकी सक्रियता और सहभागिता देखकर यूँ ही सफलता और सार्थकता का सुंदर सफ़र तय करती रहें मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना सम्मिलित करने के लिए बहुत शुक्रिया। सस्नेह।
बहुत-बहुत आभार श्वेता दी आपको संकलन पसंद आया इसकी मुझे बेहद खुशी है हमेशा यूं ही साथ बनाए रखें धन्यवाद
हटाएंपहली बार आपके ब्लॉग से परिचय हुआ। बहुत विविधता पूर्ण और सुरुचिपूर्ण सामग्री है। आपने समालोचन में मेरे कविता संग्रह 'वह औरत नहीं महानद थी' की समीक्षा अपने ब्लॉग पर जोड़ा है। इसके लिए शुक्रिया, शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंजी मुझे बेहद खुशी हुई कि आप हमारे चर्चा मंच में आए और अपने विचार आपने साझा किए
हटाएंसराहनीय सूत्र, मननीय भूमिका अनीता जी ! सार्थक प्रस्तुति आज की चर्चा की ! मेरी रचना को इसमें स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आपका साधना जी आपको संकलन पसंद आया इसकी मुझे बेहद खुशी है
हटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति प्रिय अनु.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार आपका
सादर
.. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका अनीता जी
हटाएंवाह आदरणीया दीदी जी लाजावाब प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक। सभी को ढेरों शुभकामनाएँ।
भूमिका में आपने नागरिकता संशोधन विधेयक के पास होने की बात की....सच कहें तो राजनीति ने जो हलचल देश में मचा रखी है और जो सनक के चलते देश में हो रहा हमे एक भयावह भविष्य दिख रहा है।अफ़सोस कि हम कुछ कर भी नही पा रहे।
सादर प्रणाम 🙏
शुभ रात्रि