सादर अभिवादन।
महाराष्ट्र की नई सरकार ने सत्ता संभालते ही एक महत्त्वपूर्ण फ़ैसला लिया कि आरे के जंगल अब नहीं काटे जायेंगे जिसे मेट्रो कार शेड बनाने के लिये रात के अँधेरे में काटा जा रहा था। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद भी पेड़ों की कटाई अवैध तरीक़ों से जारी थी। यह पूँजीवाद का वीभत्स रूप है। पर्यावरण के प्रति हमारा उपेक्षित रबैया भविष्य के लिये भयानक ख़तरों की नींव रख चुका है जिसे आने वाली पीढ़ियों को अपने कंधों पर ढोना है।
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
-रवीन्द्र सिंह यादव
महाराष्ट्र की नई सरकार ने सत्ता संभालते ही एक महत्त्वपूर्ण फ़ैसला लिया कि आरे के जंगल अब नहीं काटे जायेंगे जिसे मेट्रो कार शेड बनाने के लिये रात के अँधेरे में काटा जा रहा था। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद भी पेड़ों की कटाई अवैध तरीक़ों से जारी थी। यह पूँजीवाद का वीभत्स रूप है। पर्यावरण के प्रति हमारा उपेक्षित रबैया भविष्य के लिये भयानक ख़तरों की नींव रख चुका है जिसे आने वाली पीढ़ियों को अपने कंधों पर ढोना है।
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
-रवीन्द्र सिंह यादव
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सत्य, त्याग औ नैतिकता को,
नहीं भूल कर अपनाना,
इर्द-गिर्द, कुर्सी के, बुन लो,
जीवन का, ताना-बाना,
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बोरे में बंद क़ानून
घुटन से तिलमिलाता रहा
पहरे में कुछ
राजनेताओं की आत्मा
राजनीति का खड़ग लिये
वहीं खड़ी थी |
*****
भोर जा रही परदेस पिया
रथ-रश्मि चढ़ तू आता है
कुएँ पर घिरनी खींच रही
तू मंद-मंद मुस्काता है।
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३८९. अमृत
मन पर लगाम कस के,
कई दिनों की कोशिशों से
उस लड़की ने जुटाए हैं
एक कप कॉफ़ी के पैसे.
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वह विवश उसको देखता रह गया …
अब वहाँ कुछ आवाजें गूँज रहीं थीं …
इसका रंग कितना प्यारा था …
खुशबू कितनी अच्छी आ रही थी …
शाम के साढ़े चार बजे हैं.
मन बुद्धमय हो गया है.
उनकी मंजुल मूर्ति तथा सुंदर देशना भीतर तक छू जाती है.
उनके उपदेश सरल हैं और अनुभव से उपजे हैं.
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बंद ठण्डे कमरों में बैठी सरकार
नीति निर्धारित करती
पालनार्थ आदेश पारित करती
पर अर्थ का अनर्थ ही होता
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ना शत्रु बन प्रहार करो --कविता [ एक वृक्ष की व्यथा -]
ना शत्रु बन प्रहार करो -
सुनो मित्र ! निवेदन मेरा भी -
मैं मिटा तुम भी ना रहोगे -
जुडा तुमसे यूँ जीवन मेरा भी !
ना शत्रु बन प्रहार करो --कविता [ एक वृक्ष की व्यथा -]
ना शत्रु बन प्रहार करो -
सुनो मित्र ! निवेदन मेरा भी -
मैं मिटा तुम भी ना रहोगे -
जुडा तुमसे यूँ जीवन मेरा भी !
*****
तेरे जज्बातों के साये में काटनी थी
ताउम्र
पर एक उम्र के बाद
तेरे ख्यालात बदल गए
मुझे लेकर
*****
छैनी-हथौड़े से
ठोक-पीटकर
कविता कभी बनते
हुए देखी है तुमने?
*****
मैं कान्हा तोरी प्रेम दिवानी,
तुम जानत मोरे मन की वाणी
गिरधर गिरधर तोहे पुकारूँ,
नारायण तोरा रस्ता निहारूँ,
बस एक चुप सी लगी है…
जो मिली वज़ा थी
जो मिली बहुत मिली है,
बस एक बेनाम सा दर्द गुज़र कर
हर लम्हो को अपने नाम कर जाता,
सुकूत हि रिज़क बनी है
*****
इस तरह औरतों के साथ होते पुरुष-अत्याचार का कुछ दिखता नहीं
और इसे हिंसा नहीं कहा जा सकता- जैसा बखाना है
मिस्टर बोर्डे ने. और इस पिटाई-दृश्य की प्रयुक्ति में तो हिंसा दिखाने से बचने के अलावा
इस भितरघाव का बेहद सृजनात्मक उपयोग भी है,
जिसका खुलासा यथास्थान होगा….
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहद खुशी हुई ये जानकर की अब आरे के जंगल नही कटेंगे जो काट दिए जा चुके है उनके लिए सिर्फ अफ़सोस ही कर सकते है पर्यावरण है तो हम है, लेकिन जीती जागती कन्या पेड़ों को काटा जा रहा है इसकी सुधि ना जाने कब सरकार लेगी ....माता-पिता कितने जतन से कन्या रूपी पेड़ को बड़ा करते हैं लेकिन एक दिन वह अचानक ऐसे ही काट दी जाती है कितनी दुखद घटना हुई है ! हमेशा की तरह ही खूबसूरत लिंक्स का चयन आपने किया है.. मेरी रचना को भी मान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअवैध तरीकों से वृक्षों का काटा जाना कोई नयी बात नहीं है। अतः.महाराष्ट्र सरकार का निर्णय सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंआखिर कबतक प्रकृति द्वारा प्रदत्त सामग्रियों का अधिकाधिक दोहन हम यूँ करते रहेंगे। हमारे विंध्यक्षेत्र में पहाड़ों पर फैली हरियाली अवैध खनन के कारण नष्ट होती जा रही है।
यह कैसी विडंबना है कि जिस प्रकृति की गोद में हम सभी पले-बढ़े हैं , जो श्रम एवं अनुशासन की कठोर पाठशाला में हमें प्रशिक्षण देती रहती है।
बदले में वह मनुष्य से कुछ भी नहीं लेती है । फिर भी यह सभ्य संसार उसे ही नष्ट करने को तैयार है।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रति हमें सजग रहना है और इसके लिए देश और प्रदेश की सरकारों को
कठोर से कठोर दंड का प्रावधान करना चाहिए
हाँ , रक्षक ही भक्षक न बन जाए।
सदैव की तरह चर्चा हेतु विचारोत्तेजक भूमिका और रचनाओं को संग लिए आप एक बार फिर मंच पर दिखें।
आपसभी को प्रणाम।
बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुप्रभात |उम्दा लिंक्स|
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
लाजवाब अंक।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स|
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जंगल बचेंगे तो जीवन भी सुरक्षित रहेगा, पठनीय रचनाओं से सजा आज का चर्चा मंच,आभार !
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये सहृदय आभार आदरणीय.
सादर
विचारपूर्ण भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति.. मेरी को स्थान देने के लिए तहेदिल से आभार।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
आदरणीय रवीन्द्र भाई , आजके विचारपरक सूत्रों के साथ अपनी रचना देखकर बहुत अच्छा लगा जिसके लिए कोटि आभार | सभी सूत्र हमेशा की तरह सराहनीय हैं | भूमिका से ज्ञात हुआ , सरकार ने आरे के जंगलों को जीवनदान दे दो बहुत ख़ुशी हुई | निश्चित रूप से जंगल हर लिहाज से मानव को खूब दे रहे हैं | कहीं फल तो कहीं फूल तो ताज़ी हवा | पर इंसान कृतघ्न होकर हर चीज भुला बैठा है |पर्यावरण पर अब नहीं जागे तो बहुत देर हो जायेगी | सभी रचनाकारों को मेरी शुभकामनायें |आपको अपनी विशिष्ट शैली वाले प्रस्तुतीकरण पर ढेरों शुभकामनाएं और बधाई |
जवाब देंहटाएंसभी आदरणीय जनों को सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंप्रथम तो देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ। आदरणीय सर सुंदर रचनाओं के साथ आपकी प्रस्तुति हमेशा की तरह लाजावाब रही। सभी रचनाकारों को खूब बधाई 👏👏
आदरणीय सर भूमिका में पर्यावरण की ओर आपकी जायज़ चिंता ने जो सबको सावधान करने का प्रयास किया है उस हेतु हार्दिक आभार आपका।
पर्यावरण की आज चिंता सबको है पर इस ओर जितनी चिंता है उतने प्रयास नही हो पा रहे। जंगल के पेड़ों को ये सूचना ज़रा भी राहत नही दे रही होगी क्योंकि शायद वो भी जानते हैं कि हम बचे तो क्या? इंसानों की सुविधाओं की पूर्ति हेतु हम नही तो कहीं और का कोई पेड़.... पर कटना तो है,बिल्कुल है। अगर नही कटे तो बिचारे इंसानों को अपनी सुविधाओं में कटौती करनी पड़ेगी।
सच कहें तो आज हम जिस ओर बढ़ रहे हैं हम उसे तरक्की तो बिल्कुल नही कह सकते हाँ पतन कह सकते हैं निःसंदेह।
वो वक़्त वो दौर उसे गुज़रे कोई बहुत अधिक समय नही हुआ जब नदियों,नहरों का पानी निर्मल था और आने जाने के लिए बैल गाड़ी थी। वो पगडंडियाँ,वो बागीचे इन सब को छोड़ हम बड़े तेज़ी से आगे बढ़े और लीजिए अब सड़क हमारा अपना कूड़ादान हो गया और पानी की बर्बादी का तो पूछिए मत। ये जो हम दिनों दिन बड़े शहरी बन रहे हैं सच कहें तो हम सब अपना अस्तित्व खो रहे हैं। हमे सबकुछ चाहिये,हम पर्यावरण की चिंता सोशल मीडिया पर कर आए तो हमारा फर्ज पूरा हुआ अब पेड़ कटे या बचे जो भी हो हमे उससे क्या? हम तो नए प्लॉट खरीदेंगे फिर वहाँ के पेड़ काट कर विकास के नाम पर ऊँची इमारते खड़ी करेंगे। हो सकता है हमारा कहना गलत हो पर विकास के नाम पर यदि प्रकृति को नुकसान हो तो ऐसा विकास किस काम का। विकास ही होना है तो कुदरत का हो तो हम सबका स्वयं हो जाएगा। हम तो यही कहेंगे कि बहुत हुआ शहर बसाना चलिए अब गाँव बसाते हैं नया भारत बनाते हैं।
छोड़ कर ये अंधेर नगरी
चलो फिर गाँव बसाते हैं
नदी,नहर,सरोवर हैं सूखते
इन्हें मिलकर बचाते हैं
उजड़े चमन सजाते हैं
खेत खलिहानों में जाते हैं
श्रम बो कर आते हैं
ठंडी छाव और निर्मल श्वास को
चलो फिर पेड़ लगाते हैं
नए बागीचे लगाते हैं
हरे युग को लाते हैं
धरती को स्वर्ग बनाते हैं
चलो फिर गाँव बसाते हैं
#आँचल
कान्हा जी के लिए लिखी मेरी पंक्तियों को चर्चा मंच पर स्थान देकर उत्साह बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर।
हटाएंआप सभी को पुनः प्रणाम 🙏
शुभ रात्रि।