स्नेहिल अभिवादन।
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शहर आजकल हादसों के गढ़ हो गये हैं।
दिल्ली के मोरी गेट इलाक़े में ट्रक से रिसे केमिकल पर बाइक से फिसलकर गिरे तीन युवकों की दर्दनाक मौत हो गयी. पुलिस जाँच में इसे फिनोल बताया जा रहा है। फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट का इंतज़ार है।
शहर में किसे क्या हो जाय कुछ पता नहीं। महानगरीय जीवन में आये आधुनिक बदलाव आये दिन भयंकर हादसों के चलते गंभीर चिंता का विषय बन गये हैं।
आइये पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
-अनीता सैनी
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शहर आजकल हादसों के गढ़ हो गये हैं।
दिल्ली के मोरी गेट इलाक़े में ट्रक से रिसे केमिकल पर बाइक से फिसलकर गिरे तीन युवकों की दर्दनाक मौत हो गयी. पुलिस जाँच में इसे फिनोल बताया जा रहा है। फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट का इंतज़ार है।
शहर में किसे क्या हो जाय कुछ पता नहीं। महानगरीय जीवन में आये आधुनिक बदलाव आये दिन भयंकर हादसों के चलते गंभीर चिंता का विषय बन गये हैं।
आइये पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
-अनीता सैनी
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उन दिनों मेरे दोनों पुत्र बहुत छोटे थे।
तब अक्सर पिकनिक का कार्यक्रम बन जाता था
कभी हम लोग पहाड़ पर श्यामलाताल चले जाते थे,
कभी माता पूर्णागिरि देवी के मन्दिर में माथा टेकने चले जाते थे
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बदली हैं ज़माने की हवाएँ
हमारे दरमियाँ
बदलीं हैं ज़माने की हवाएँ,
लोकतंत्र है अब तो
राजा-रानी की
हो गयी कहानी पुरानी।
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लगता है
सब फ़ासले मिट गये हमारे दरमियाँ
बदलीं हैं ज़माने की हवाएँ,
लोकतंत्र है अब तो
राजा-रानी की
हो गयी कहानी पुरानी।
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मैंने कविता का नहीं
कविता ने मेरा चुनाव किया था
अब सरे राह नारी नर भक्षी घूमने लगे |
अकेली अबला आबरू निर्भय लूटने लगे |
सुना था जंगलो मे जानवर हिंसक रहते है |
लूट आबरूअबला बोटियाँ काटने लगे |
उपहार
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है और ही कारोबार-ए-मस्ती
जी लेना तो ज़िंदगी नहीं है
सौ मिलीं ज़िंदगी से सौग़ातें
हम को आवारगी ही रास आई
बंद कमरे में उनकी सिसकियों को किसी नहीं सुना ..
अंततः उनके हृदय में सुलगती यह आग दावानल बन गयी..
जिसमें उनके अपने ही प्रियजन एक-एक भस्म होते गये..
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और कितनी दरिंदगी बाकी है
इंसानी भेड़ियों क्यों तुम्हारी ज़िंदगी बाकी है…?
वासना के लिजलिजे कीड़ों
वहशियत और कितनी गंदगी बाकी है?
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खुशी होती थी उसे
अपने वजूद परमूक जानवरों की पीड़ा समझती थी वो
स्नेह से दुलारती भी थी शायद
लेकिन नहीं जानती थी वो, कि
जानवर तो मूक होता है
स्नेह की भाषा समझ जाता है
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गाँव मेरे तू शहर न बनना।।
कोलाहल का घर न बनना।।
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कह दिया सादगी से , हमारी कमी ?
उम्र बस जा रही है, जारी कमी !
आहटें दर पे रोज़ देती हैं
खटखटाती हैं बारी बारी कमी!
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कल का पन्ना कोरा ही रह गया है,
स्वास्थ्य ठीक न हो तो उत्पादक क्षमता कितनी घट जाती है.
डायरी में आज भी कल की तरह नासिका में विचित्र सी गंध आ रही है .
कल दिन भर मन में अनुत्तरित प्रश्न चलते रहे,
आज सुबह तक सन्देह का सा वातावरण था.
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अपने उत्तरप्रदेश में नवंबर महीने को यातायात माह के रूप में जाना जाता है। कल ही इसका समापन हुआ है। पुलिस के अनुसार इस दौरान विशेष अभियान चलाकर न सिर्फ लोगों को जागरूक किया गया, बल्कि नियम तोड़ने वालों पर जुर्माना भी लगाया गया। यातायात माह के दौरान जीवन रक्षा हेलमेट, शीट बेल्ट, प्रदूषण प्रमाणपत्र से जुड़े नियम तोड़ने वालों पर कार्रवाई हुई।
जवाब देंहटाएंपरंतु हर वर्ष मैं अपने समाचारपत्र के माध्यम से यही सवाल उठाता रहा हूँ कि यातायात माह में ‘सड़क सुरक्षा, जीवन रक्षा’ जैसा स्लोगन कितना सार्थक हुआ.. ?
क्या नवंबर महीने में सड़क दुर्घटनाओं में पुलिस के इस विशेष अभियान से किसी तरह की कमी आई..?
सच तो यह है कि बीते माह भी सड़कें पूर्व की तरह रक्तरंजित होती रहीं । दुर्घटनाओं में किसी प्रकार की कमी नहीं आई। इसके सबसे अधिक शिकार बाइक सवार हुये। जानते हैं क्यों..?
वह इसलिए क्यों कि पुलिस इनके वाहन का कागज जाँच रही थी, परंतु इन मोटर साइकिलों की " अनियंत्रित गति " की जाँच उन्होंने नहीं की ..।
वाहनों की अनियंत्रित गति ही सवारों के लिये मौत का पैगाम है।
समसामयिक भूमिका और सुंदर रचनाओं के मध्य मुझे भी स्थान देने के लिये अनीता बहन आपको धन्यवाद, आभार..।
सभी को प्रणाम।
मन, वाणी और वाहन इन तीनों का अनियंत्रित होना मानव जीवन के लिए अत्यंत घातक है..। अतः मनुष्य को इनकी गति पर ध्यान देना चाहिए ।
हटाएंहैप्पी बर्थडे
जवाब देंहटाएंहैप्पी दीवाली
मेरी क्रिसमस
हैप्पी तीज त्योहार
देखो स्त्रियों के जिस्म से अतिशबाजी हो रही है
इनसे कितना रोशन है हमारा समाज
मजे की बात है इससे न ध्वनि प्रदूषण होता हैं
और न ही किसी की आंखे जल रही है।
सब मजे में।
हम पोत डाले स्याही को
रगड़ डाले कलम को खुशियों के गीतों में।
लाशों के अंगारों पर हम पका सकें
अपनी समझ को
ठंडी पड़ी राख पर कुरेद सकें कुछ पंक्तियां
या फिर कीलें उगा लेनी चाहिए
जूतों के तलवो में
और हकीकत के दर्द से रूबरू हो सके
और ठोकरों को भी ठोकर जैसी पीड़ा दे सकें।
ये जाड़े का मौसम है
बूढ़ों की तरह हाथ सेकने के लिए
या दर्द अनुभव करने के लिए
इससे बढ़िया वक्त ना मिलना।
-रोहित
बढ़िया लिंक्स
बहुत सुंदर अंक ।सभी रचनाएँ सुंदर और शिक्षाप्रद।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। मेरी रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए सादर धन्यबाद।जी नमस्ते।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स.... मेरी रचना का चयन करने के लिये दिल से आपका आभार
जवाब देंहटाएंशहर गांव घर बाहर हर जगह जीवन में अनिश्चितता बढ़ गई है.. आने वाले पल में क्या होगा कुछ भी पता नहीं रहता है। लेकिन एक्सीडेंट जैसे मामलों में थोड़ी सी सतर्कता बरत कर बचा जा सकता है विचारणीय भूमिका रखी है। आपने सभी चयनित लिंक हमेशा की तरह आपने बहुत ही अच्छे चुने बस अब पढ़ना शुरू करूंगी..!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित भूमिका के साथ बहुरंगी रचनाओं का सराहनीय संकलन है आज की चर्चा में। सुघढ़,सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति प्रिय अनु आपकी।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए सादर शुक्रिया आपका बहुत आभारी हूँ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति विचारणीय भूमिका के साथ. शहरों में दर्दनाक हादसों का सिलसिला ख़तरनाक मोड़ पर है. प्रशासनिक लापरवाही और पुलिस इंतज़ाम की सड़ी-गली व्यवस्था निंदनीय हालत में है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन.
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
आभार
जवाब देंहटाएंबिचारणीय भूमिका के साथ बेहतरीन चर्चा अंक ,सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति प्रिय सखी अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, सुंदर प्रस्तुति, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएं