सादर अभिवादन।
इस वर्ष का बस एक दिन और शेष है अर्थात 31 दिसंबर को रात्रि के 12 बजते ही सर्वप्रथम न्यूज़ीलैंड में तारीख़ बदलेगी और दुनिया में वहाँ से जश्न मनाये जाने का सिलसिला आरम्भ होगा।
2020 का स्वागत
बेशक उमंग और जोश से
किया जाना चाहिए
बस इतना ध्यान रहे
बहुत कुछ नहीं
बस एक कलेंडर
बदलने जा रहा है
शेष सब वैसा ही रहेगा।
पृथ्वी अपनी धुरी पर
चक्कर लगाती रहेगी
और सूर्य स्थिर रहकर
हमें ऊष्मा देता रहेगा।
नियति-चक्र अपनी गति से
नियमित अनवरत चलता रहेगा
वर्ष के बाद एक और वर्ष
यों ही आता रहेगा।
इस सप्ताह का "शब्द-सृजन" का विषय है-
'विहान'
इस विषय पर
आप अपनी रचना का लिंक आज से आगामी शुक्रवार तक की प्रस्तुति (शाम 5 बजे तक ) में प्रकाशित कर सकते हैं.
शब्द आधारित रचनाओं को आगामी शनिवारीय प्रस्तुति में प्रस्तुत किया जायेगा.
वर्ष 2019 की अंतिम प्रस्तुति के ज़रिये आपको नव वर्ष 2020 की अग्रिम हार्दिक मंगलकामनाएँ।
-रवीन्द्र सिंह यादव
इस वर्ष का बस एक दिन और शेष है अर्थात 31 दिसंबर को रात्रि के 12 बजते ही सर्वप्रथम न्यूज़ीलैंड में तारीख़ बदलेगी और दुनिया में वहाँ से जश्न मनाये जाने का सिलसिला आरम्भ होगा।
2020 का स्वागत
बेशक उमंग और जोश से
किया जाना चाहिए
बस इतना ध्यान रहे
बहुत कुछ नहीं
बस एक कलेंडर
बदलने जा रहा है
शेष सब वैसा ही रहेगा।
पृथ्वी अपनी धुरी पर
चक्कर लगाती रहेगी
और सूर्य स्थिर रहकर
हमें ऊष्मा देता रहेगा।
नियति-चक्र अपनी गति से
नियमित अनवरत चलता रहेगा
वर्ष के बाद एक और वर्ष
यों ही आता रहेगा।
इस सप्ताह का "शब्द-सृजन" का विषय है-
'विहान'
इस विषय पर
आप अपनी रचना का लिंक आज से आगामी शुक्रवार तक की प्रस्तुति (शाम 5 बजे तक ) में प्रकाशित कर सकते हैं.
शब्द आधारित रचनाओं को आगामी शनिवारीय प्रस्तुति में प्रस्तुत किया जायेगा.
वर्ष 2019 की अंतिम प्रस्तुति के ज़रिये आपको नव वर्ष 2020 की अग्रिम हार्दिक मंगलकामनाएँ।
-रवीन्द्र सिंह यादव
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आइये अब पढ़ते हैं मेरी पसंदीदा रचनाएँ -
आइये अब पढ़ते हैं मेरी पसंदीदा रचनाएँ -
गीत
"कब चमकेंगें नभ में तारे"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उच्चारण
इन दिनों
उबलते देश में
गिर रही है बर्फ
दौड़ रही है शीत लहर
जानता हूँ
तुम्हारी भी तासीर
बहुत गरम है
**
एक साल बेमिसाल और फिर
बिना जले बिना सुलगे धुआँ हो गया
मुँह
में दबी
सिगरेट से
जैसे
झड़ती
रही राख
पूरे
पूरे दिन
पूरी रात
**
नाम औक़ात रख गया
गूँगी गुड़िया
**
"स्वागत"
आवरण बद्ध कल बस , अपने खोल से निकलने ही वाला है । हर बार की तरह आज , बस कल में बदलने ही वाला है ।।
**
एक ओस बूंद का आत्म बोध
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
**
ब्रह्माण्ड की बिसात में …
बंजारा बस्ती के बाशिंदे
**
कोशिश माँ को समेटने की

मेरी ही नज़्म से किरदार मेरा घढ़ लेंगे
कभी छपेंगे तो हमको भी लोग पढ़ लेंगे….
**
ग़ज़ल : 283 - आशिक़ी
मुझको लगता है ये ज़ह्र खा ,
ख़ुदकुशी कर ना जाऊँ कहीं ?
अगले दिन की करूँ बात क्या ,
आज ही कर ना जाऊँ कहीं ?
**
नए साल में मिलना,
हम फिर से प्यार करेंगे।
2019 अब बस चंद दिनों का मेहमान है।
एक और साल बीत गया ।
**
अनु की कुण्डलियाँ--
बहना अपने भ्रात से,माँगे ऐसा दान
नारी के सम्मान का,रखना होगा मान।
रखना होगा मान,सदा देवी सम पूजा।
उसकी हो पहचान,नहीं कुछ माँगू दूजा।

इश्क में चोट सदा खाई है
बात से बात निकल आई है
हिज्र की कैसी ये रुसवाई है
जाँ मेरी बहुत ही घबराई है
**
३९३.घर
मुझे लगता है
कि जब मैं घर पर नहीं होता,
मेरे घर की दीवारें
आपस में ख़ूब बातें करती हैं.
**
ढीठ बन नागफनी जी उठी!
मरुस्थल चीत्कार उठा
प्रसव वेदना से कराह उठा
धूल-धूसरित रेतीली मरूभूमि में
नागफनी का पौधा
ढीठ बन उग उठा
**
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे 2020 के पहले सोमवार।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजी भाई साहब, बहुत सुंदर ,ज्ञानवर्धक और सशक्त भूमिका एवं प्रस्तुति ..
ReplyDeleteसत्य यही है कि नियति- चक्र में किसी को विश्राम नहीं है। सभी गतिमान हैं। ब्रह्मांड में स्थिरता का अर्थ सम्भवतः मृत्यु है। अन्य तारे और सूर्य भी स्थिर नहीं हैं। सूर्य भी पूरब से पश्चिम की ओर 27 दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। वैज्ञानिकों का कथन है कि जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है।
लौकिक एवं अलौकिक जगत में कुछ भी स्थिर नहीं है। हम किसी न किसी की परिक्रमा कर रहे हैं। ध्यान कि अवस्था में मन यदि स्थिर है ,तो भी वह किसी प्रकाशपुंज की अनुभूति कर रहा है और उसकी परिक्रमा भी। शास्त्रों में वर्णित है कि हमारे त्रिदेव भी निरंतर तप करते रहते हैं।
अतः अंतर्जगत एवं बाह्य जगत में मुझे कहीं भी स्थिरता नहीं दिखाई पड़ रही है। कुछ मुखरित तो कुछ मौन धारण कर अनवरत अपने कार्य कर रहे हैं।
इसी प्रकार आज जो नववर्ष है कल वह गतवर्ष हो जाएगा, वह भी स्थिर नहीं है। इसी क्षणभंगुरता के मध्य हमें अपने जीवन को सार्थक करना है।
पृथ्वी पर यदि कुछ भी सत्य है तो वह जीवन है , फिर भी दो दिनों के जीवन में मनुष्य मनुष्य को यदि नहीं पूछता, स्नेह नहीं करता तो वह किस लिए उत्पन्न हुआ है..?
आप सभी को प्रणाम।
लाजवाब प्रस्तुति। आभार रवींद्र जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति जाते साल के आख़िरी दिन से पहले की. भूमिका में कड़वी सच्चाई को प्रभावी ढंग से लिखा गया है. सभी रचनाएँ अपने आप में बेमिसाल हैं. सभी को बधाई.
ReplyDeleteसबके लिये नया वर्ष 2020 उम्मीदों भरा हो.
मेरी रचना को इस ख़ास प्रस्तुति में शामिल करने के लिये सादर आभार आदरणीय.
बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति 🙏🌷
ReplyDeleteबहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार।
ReplyDeleteजी..नमस्कार रवीन्द्र जी ! आभार आपका मेरी रचना/विचार को मान देने के लिए ...बेहतरीन संकलन ...
ReplyDelete(सब की रचनाओं की तरह मेरी भी दो पंक्तियाँ ( शायद punch line ) संलग्न होती तो शायद बेहतर होता ..बस यूँ ही ...)
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteसशक्त भूमिका और लाजवाब सूत्र संयोजन । मेरे सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteभूमिका बहुत सुंदर और आकर्षक।
शानदार रचनाओं का शानदार संकलन।
मेरी रचना को चर्चा में लिखने के लिए हृदय तल से आभार।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सुंदर प्रस्तुति, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय
ReplyDeleteजलावाब चर्चा आज की ...
ReplyDeleteआभार मेरी पोस्ट को जगह देने के लिए ...
सुन्दर चर्चा. मेरी रचना शामिल की. आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर संयोजन
ReplyDeleteसभी मित्रों को बधाई
मुझे सम्मिलित करने का आभार
सादर