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Friday, December 27, 2019

"शब्दों का मोल" (चर्चा अंक-3562)

स्नेहिल अभिवादन
समय को भी पंख लग गए हैं कितनी तेजी से 2019 को छोड़कर 2020 के प्रवेश द्वार में हम सभो को ले कर 
दस्तक़ देने की तैयारी में है।
हम सभी के जीवन में बराबर उतार-चढ़ाव चलते रहेहै साल की शुरुआत से लेकर साल के खत्म होने तक हम सभों ने  बहुत सारी गतिविधियां देखी राजनीतिक गहमागहमी से देश में अशांति भी फैली कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो कई जगहों में अनेकता में एकता की मिसाल देखने को मिली..!!
हमारी चर्चा मंच में भी नये कवि मित्रों की रचनाओं ने शानदार एहसास कराए एवं हमारे आदरणीय सीनियर्स के तो क्या कहने उनकी रचनाओं ने साहित्य क्षेत्र में नए आयाम गढ़े.. इस साल की यह मेरी आखिरी प्रस्तुति है चर्चा मंच में, इसलिए मैं आप सभी को नए वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं दे रही हूं आप सबों का  नया साल खुशियों और सफलताओं से भरा रहे..धन्यवाद..!!
*****
कामुकता के मूल में, सुन्दरता के तार।
रूप-गन्ध के लोभ में, मधुप करें बेगार।।
ख़ुशी का बूटा उग सके हर घर के आँगन में 
आ दुनिया के ग़म, सिमट जा मेरे दामन में। 
बाल सफेद होने की बात करें जिसके लिए 
मैंने उतना महसूस कर लिया है बचपन में। 
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अमराई कोयलिया बोले। कानों में मिसरी सी घोले।। 
ऐसी गाँव की माटी मेरी जिसको तरसे संसार।। 
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कहने को तो, ढ़ेर पड़े हैं जज्बातों के,
अर्थ निकलते दो, हर बातों के,
कैसे वो, दो बात लिखूँ,
उलझाती है हर बात, कैसे वो जज्बात लिखूँ!
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शब्दों का मोल
बदली परिभाषा’
थोथे हैं बोल’
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जीवन जैसे भूल भुलैया,बीच धार में जीवन नैया।
मिला न कोई साथी ऐसा,इसका कौन खिवैया हो।
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फुर्सत 

काम से कभी फुर्सत नही माँगी
चार दिवारी सही ,छत नहीं माँगी
फूल कलियों से नजाकत नहीं माँगी
और पत्थरों से ताकत नहीं माँगी

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धूसर रंग बनाम रंग बिरंगी ...

 
एक हरी-भरी पहाड़ी की वादियों पर जाड़े की खिली धूप में 
क्रिसमस की छुट्टी के दिन दोपहर में पिकनिक मनाने आए
 कुछ सपरिवार सैलानियों को देखकर 
एक मेमना अपनी माँ यानी मादा भेड़  से ठुनकते हुए बोली -
*****
सुनहरा मौसम

बिखरी शाम सिसकता मौसम
बेकल, बेबस, तन्हा मौसम
तन्हाई को समझ रहा है
लेकर चाँद खिसकता मौसम
*****
निर्दोष लोगों को जब यूं पिटते ,
जेल जाते और मरते देख रही हूँ तो सोचती हूँ 
कि क्या वाक़ई यह निज़ाम शांतिपूर्ण विरोध की ज़ुबां समझता है 
गमला भी वही अच्छा माना जाता है 
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पागल नहीं तो क्या हैं अपने दुश्मनों को भी ,
जो मानते हैं तह-ए-दिल से ख़ैरख़्वाह हम ?
करते हैं अपने बेवफ़ाओं को भी रात-दिन ,
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‘निकले तख़्त की खातिर दर-ब-दर
सर झुका रहमत माँगने के इरादे से,
उतरे खुदाई का फर्क बताने पर,
खुदा बन गए, मुकरना ही था वादे से.’
*****

12 comments:

  1. पूर्व की भांति इसवर्ष भी ब्लॉग जगत ने हमसभी को अनेक रचनाकारों और उनकी कृतियों से अवगत करवाया। चर्चामंच ने निष्पक्ष तरीके से नवोदित रचनाकारों का उत्साह बढ़ाया। इस मंच पर अनु जी आप, अनिता बहन और वरिष्ठ साहित्यकार रवींद्र जी को प्रस्तुतिकर्ता के रूप में हम सभी ने पाया। समसामयिक विषयों पर आपकी टिप्पणी सराहनीय है।
    जहाँ तक हम सभी जानते हैं कि मातृभाषा किसी भी राष्ट्र प्रजा के लिए अभिमान का विषय है और जब तक यह भाव हमारे मन में रहेगा, कोई भी बाहरी सत्ता अपने प्रभाव से हमें मानसिक रूप से गुलाम नहीं बना सकता है। अतः वे साहित्यकार जो हिंदी में रचनाओं का सृजन करते हैं , उनकी कथनी एवं करनी एक जैसी होनी चाहिए । केवल बड़ी-बड़ी लच्छेदार, कवित्वभरी, आदर्शात्मक और छायावादी बातों से वे न तो साहित्य और न ही हिंदी का पोषण कर सकते हैं । उनमें निश्छलता होनी चाहिए। जैसा कि इस " चर्चा मंच " पर दिखता है।
    अन्य मंचों की तरह भेदभावपूर्ण व्यवहार से दूर यह मंच इसी तरह हम जैसे नए लेखकों और कवियों को भी ब्लॉग जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने का अवसर देता रहे, आप सभी से ऐसा अनुरोध करता हूँ। आप ऐसा कर भी रहे हैं। अतः इन्हीं चंद बातों के साथ आपको नव वर्ष की शुभकामनाएँ देता हूँ । भविष्य में भी आप और सशक्त भूमिका के साथ चर्चा मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँ ऐसी कामना करता हूँ।
    जय हिन्द।

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  2. अनिता दी,चर्चा मंच ये मंच हैम जैसे सभी ब्लॉगरों को इसी तरह प्रोत्साहित करता रहे और आपका योगदान भी इसी तरह रहे यही नववर्ष पर शुभकामनाएं।

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  3. आभार आपका मेरी रचना को चर्चा-मंच के इस अंक में साझा कर के उसका मान बढ़ाने के लिए ...

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  4. बहुत शानदार प्रस्तुति
    उम्दा रचनाएं

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति प्रिय अनु. भूमिका में सार्थक चर्चा के साथ गंभीर भाव का प्रतिपादन.
    बहुतेरे विषय एक चर्चा में समाहित करना सराहनीय प्रयास है. वर्तमान दौर का लेखन चर्चा मंच की प्रस्तुति में साफ़ झलकता है.
    सभी रचनाकारों को बधाई.
    सादर

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  6. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

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  7. सार्थक एवं सारगर्भित चर्चा संयोजन हेतु आपको साधुवाद, अनीता लागुरी 'अनु' जी !!!

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  8. डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी के दोहे वर्तमान सामजिक दशा एवं विचारों पर गहरा कटाक्ष करने में सक्षम हैं।
    उन्हें नमन है ऐसे उम्दा दोहों के लिए!!!

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  9. अच्छी प्रस्तुति।सभी रचनाएँ एक से एक हैं।
    बहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को चर्चा-मंच के इस अंक में साझा करने के लिए।

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  10. बहुत ही सुन्दर संकलन,सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

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  11. अनु की ओर से 2019 की अंतिम प्रस्तुति में सार्थक भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का शुमार किया गया है। अनु का प्रस्तुतीकरण सदैव रोचकतपूर्ण रहा है साथ रचनाओं के चयन का तरीक़ा बहुत ही प्रशंसनीय रहा है।
    इस अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।




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  12. सार्थक लिंकों के साथ उम्दा चर्चा।
    आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता सैनी जी।

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