मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
--
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी जी लिखते हैं-
आओ बोयें
कल के लिये
आज कुछ इतिहास
जो
सच है
बस
उसे
छोड़कर
कुछ भी
चलेगा
होनी चाहिये
मगर
कुछ ना कुछ
शुद्ध
बिना मिलावट
की...
--
हिन्दी-आभा*भारत पर
Ravindra Singh Yadav जी की पोस्ट-
फासले

Ravindra Singh Yadav जी की पोस्ट-
फासले

फ़ासले
क़ुर्बतों में बदलेंगे
एक रोज़,
होने नहीं देंगे
हम
इंसानियत को
ज़मीं-दोज़...
क़ुर्बतों में बदलेंगे
एक रोज़,
होने नहीं देंगे
हम
इंसानियत को
ज़मीं-दोज़...
--
--
तिरछी नज़र पर गोपेश मोहन जैसवाल जी ने
भारत रत्न के औचित्य पर अपने विचार व्यक्त किये हैं-
वीर सावरकर को भारत रत्न दिए जाने के
औचित्य-अनौचित्य पर बहस
...सावरकर को गाँधी जी की हत्या की साज़िश में शामिल होने या न होने की बात पर उन्हें भारत रत्न दिया जाना या न दिया जाना तो समझ में आता है लेकिन सावरकर के माफ़ीनामे को लेकर जो शोर मचाया जाता है. उसकी पृष्ठभूमि जानना बहुत ज़रूरी है. सावरकर यह मान रहे थे कि वो जेल में पड़े-पड़े देश के लिए कुछ भी नहीं कर पाएंगे. उन्होंने अपने माफ़ीेनामे के पीछे अपना उद्देश्य यह बताया था कि वो राजनीतिक गतिविधयों से सन्यास लेकर भारत-जागरण अभियान को सफल बनाएँगे. 1924 में जेल से छूटने के बाद वो सक्रिय य राजनीति से दूर ही रहे. लेकिन उनके माफ़ीनामे को लेकर उन्हें कायर सिद्ध करना किसी को शोभा नहीं देता है...
--
आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल दे रही हैं
कुछ कारगर टिप्स-
कुछ कारगर टिप्स-
आजमाइए,
छोटे-छोटे लेकिन बड़े काम के टिप्स:
भाग 5

--
स्वप्न मेरे पर दिगंबर नासवा जी की पोस्ट-
एक पन्ना -
कोशिश, माँ को समेटने की
आज अचानक ही उस दिन की याद हो आई जैसे मेरी अपनी फिल्म चल रही हो और मैं दूर खड़ा उसे देख रहा हूँ. दुबई से जॉब का मैसेज आया था और अपनी ही धुन में इतना खुश था, की समझ ही नहीं पाया तू क्या सोचने लगी. लगा तो था की तू उदास है, पर शायद देख नहीं सका ...
मेरे लिए खुशी का दिन
ओर तुम्हारे लिए ...
--
बंजारा बस्ती के बाशिंदे पर
Subodh Sinha जी लिखते हैं-

था सुनता आया बचपन से
अक़्सर .. बस यूँ ही ...
गाने कई और कविताएँ भी
जिनमें ज़िक्र की गई थी कि
गाती है कोयलिया
और नाचती है मोरनी भी
पर सच में था ऐसा नहीं ...
Subodh Sinha जी लिखते हैं-
एक ऊहापोह ...

था सुनता आया बचपन से
अक़्सर .. बस यूँ ही ...
गाने कई और कविताएँ भी
जिनमें ज़िक्र की गई थी कि
गाती है कोयलिया
और नाचती है मोरनी भी
पर सच में था ऐसा नहीं ...
--
समालोचन पर arun dev जी ने पोस्ट की हैं
दक्षिणायन की पाँच कहानियाँ-

दक्षिणायन की पाँच कहानियाँ-
दक्षिणायन (प्रचण्ड प्रवीर) :
वागीश शुक्ल

--
अन्त में Flax Awareness Society पर
देखिए विज्ञान की यह पोस्ट-

- यह एक ओमेगा-3 फैट है क्योंकि इसमें पहला डबल बांड ओमेगा कार्बन से तीसरे कार्बन के बाद बना है
- जहां भी चेन में डबल बांड बनता है चेन कमजोर पड़ जाती है, इसलिए मुड़ जाती है
- अल्फा लिनोलेनिक एसिड (ALA) की क्वांटम साइंसइस मोड़ में डिलोकेलाइज्ड इलेक्ट्रोन्स इकट्ठे हो जाते हैं। हल्के होने के कारण ये इलेक्ट्रोन्स ऊपर उठकर बादल की तरह तैरते हुए दिखाई दिए इसलिए बडविग ने इन्हें इलेक्ट्रोन्स क्लाउड या पाई- इलेक्ट्रोन्स की संज्ञा दी है। बडविग ने पेपरक्रोमेटोग्राफी से यह सब स्पष्ट देखा...
--
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपाधापी की दुनिया में,
ऐसे मीत-स्वजन देखे हैं।
बुरे वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई सुमन देखे हैं।।
जी गुरुजी ,ऐसे मीत,स्वजन एवं सुमन की पहचना निश्चित ही विपत्ति पड़ने पर हो जाती है। इसकी अनुभूति मुझे भी है, इसलिए तो कहा गया है कि विपत्ति आने पर ही जीवन में निखार आता है। कठिनाई और संघर्ष से आगे बढ़कर ही किसी भी संबंध अथवा वस्तु का हम सही मूल्यांकन कर पाते हैं।
इसी तिक्त और मधुर क्षण का नाम जीवन है। हर किसी को पहचानते हुये, डगमगाने- लड़खड़ाने के बावजूद भी एक दार्शनिक की तरह हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ते रहें।
मार्ग में बड़ी-बड़ी लच्छेदार , कवित्वभरी और आदर्शात्मक बातें हमें सुनने को मिलेंगी ,परंतु ऐसा कुछ है नहीं।
*****
मंच सदैव की तरह आज भी निखरा हुआ है। विविध विषयों पर रचनाओं को यहाँ पढ़ा जा सकता है। इन्हीं शब्दों के साथ सभी को प्रणाम।
आभार आदरणीय। सुन्दर अंक में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुंदर आज का चर्चा मंच सजा है बहुत ही सुंदर रचनाओं का समावेश
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को 'चर्चा मंच' में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंपठनीय रचनाओं की खबर देती सुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा है ...