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मंगलवार, अप्रैल 06, 2021

"हार भी जरूरी है" (चर्चा अंक-4028)

सादर अभिवादन 

(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से )

आज बिना  किसी भूमिका के चलते हैं, 

आज की रचनाओं की ओर......

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 ग़ज़ल "हार भी जरूरी है" 

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

जीत को पचाने को, हार भी जरूरी है
प्यार को मनाने को, रार भी जरूरी है
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घूमते हैं मनचले अलिन्द बाग में बहुत
फूल को बचाने को, ख़ार भी जरूरी है
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खट्टे- मीठे एहसास 

अल्लाह पर ऐतबार रहा

 अल्लाह ही मददगार हुआ

 आदमी की जात से तो 

ये दिल बस बेजार हुआ 

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सुब्रत रॉय -  सुख के सब साथी, दुख में न कोय 
दिलीप कुमार और सायरा बानू अभिनीत पुरानी हिन्दी
 फ़िल्म 'गोपी' (१९७०) का एक अमर भक्ति-गीत है - 'सुख के सब साथीदुख में न कोयजिसे राजेन्द्र कृष्ण ने लिखा थाकल्याणजी आनंदजी ने संगीतबद्ध किया था और मोहम्मद रफ़ी ने गाया था । आज भी इस गीत को चाहे सुना जाए या फ़िल्म के दृश्य में देखा जाए,

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कितनी मिठास है ना --- इस घर शब्द में 
र यूं ही तो नहीं बन जाता। हरेक  मन के किसी कोने में अपना घर और उसकी तस्वीर रखता है। इसकी पहली झलक जीवन के कई वसंत बाद नज़र आती है। मन का घर, विचारों का घर, अहसासों का घर, सपनों का घर, अपनों का घर---। कितनी मिठास है ना ---
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परिवार अलग हो गए....!!! 
परिवार एक था... बच्चो के लिए माता-पिता का प्यार एक था.... घर एक था... घर का द्वार एक था..... ना जाने कैसे सबकी चौखटे अलग हो गई.... देहरी अलग हो गयी.... रिश्तों में खटास आ गयी, एक ही माता-पिता के बच्चो के परिवार अलग हो गए...कुछ वक़्त तो त्योहार एक हुआ करते है.. समय भी बदल गया अब तो त्योहार अलग हो गए...------------
वो न समझा है, न समझेगा... 
सुबह में ढेर सारी रात अब तक घुली हुई है. शुष्क मौसम सुर्ख लिबास में दाखिल हुआ है. उसकी हथेलियों पर इन्द्रधनुष खिला हुआ है. जैसे फूलों में कोई होड़ हो खिलने की. रास्तों से गुजरते हुए मालूम होता है -------------गुलाब का फूल 
खिला गुलाब 

चल कदमी करता   

 सोचता रहा

 स्वयं  के  जीवन की

कहानी पर 

आज खिला   सुमन   

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विलुप्त प्रतिबिम्ब 
जाएगा एक दिन,
कांच के पृष्ठ
पर चाहे
जितनी ख़ूबसूरत तुम ग़ज़ल लिखो,
हर एक आह लेकिन असली
शलभ नहीं होता, काग़ज़ी
फूलों की भीड़ में
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डॉ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में युगीन चेतना के स्वर | ग़ज़ल संग्रह | डॉ. वर्षा सिंह | पुस्तक समीक्षा | समीक्षक
ग़ज़ल पर बात करते हुए यदि इसके इतिहास पर दृष्टि डालें तो इसकी ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि यह है कि कसीदह, कसीदा मूल रुप से अरबी साहित्य की महत्वपूर्ण काव्य विधा है। जिसे युद्ध के मैदान में अपने कुल के बुजुर्गों के यशगान के तौर पर  पढ़़ा जाता है। -------------
आज का सफर यही तक ,
अब आज्ञा दे 
आप  सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें 
कामिनी सिन्हा --

13 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक और ज्ञानवर्धक पठनीय सामग्री से भरी- पूरी चर्चा... आपके श्रम को तहेदिल से सलाम 🙏
    अनुगृहीत हूंं, यह आपका औदार्य है, आपके प्रति हार्दिक आभार प्रिय कामिनी सिन्हा जी.🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
    आपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरे लेख को स्थान देने हेतु आपका आभारी हूं कामिनी जी । आपका चयन प्रशंसनीय है ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति । सभी लिंक्स बहुत सुन्दर,चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत आभार कामिनी जी...। सभी रचनाएं गहरी हैं...।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर शानदार अंक सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही खूबसूरत चर्चा संकलन

    जवाब देंहटाएं
  8. आप सभी स्नेहीजनों का तहेदिल से शुक्रिया, मंच पर आप सभी की उपस्थिति से हम चर्चाकारों की भी हौसला अफजाई होती है, आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही सुंदर चर्चा मंच की पोस्ट और इसमें मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद कामिनी जी

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुंदर लिंक संजोए हैं
    सभी रचनाकारों को बधाई
    आपका आभार

    जवाब देंहटाएं

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