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शनिवार, अगस्त 07, 2021

"नदी तुम बहती चलो" (चर्चा अंक- 4149)

सादर अभिवादन ! 

शनिवार की चर्चा में आप सभी प्रबुद्धजनों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन करती हूँ !

 आज की चर्चा का आरम्भ प्रयोगवाद के प्रवर्तक श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय जी द्वारा सृजित "नदी के द्वीप" के कवितांश से -

द्वीप हैं हम! यह नहीं है शाप। यह अपनी नियति है।

हम नदी के पुत्र हैं। बैठे नदी की क्रोड में।

वह बृहत भूखंड से हम को मिलाती है।

और वह भूखंड अपना पितर है।

नदी तुम बहती चलो।

भूखंड से जो दाय हमको मिला है, मिलता रहा है,

माँजती, संस्कार देती चलो।

 

【आज की चर्चा का शीर्षक है- "नदी तुम बहती चलो"】


गीतिका - "मन्द समीर बहाते हैं" 

धरा सुसज्जित होती जिनसे, वो ही वृक्ष कहाते हैं,

जो गौरव और मान बढ़ाते, वो ही दक्ष कहाते हैं।


हरित क्रान्ति के संवाहक, ये जन,गण के रखवाले,

प्राण प्रवाहित करने वाली, मन्द समीर बहाते हैं।


पत्ते, फूल, मूल, फल जिनके, जीवन देने वाले हैं,

देते हैं ये अन्न और अमृत सा जल बरसाते हैं।

***

रहमतें

हफ्ते भर पहले आँखों की कैटरेक्ट की लेजर-सर्जरी करवाई। कुल पन्द्रह मिनिट में हो गई। न कट, न इंजेक्शन , न दर्द, न हरी पट्टी, न काला चश्मा । बस आधा घन्टा बैठा कर चैक किया और जाओ घर…भई वाह ! दुनिया कुछ और  ज़्यादा रंगीन व रौशन सी नजर आई।अपनी ही बनाई पेन्टिंग के रंग कितने खुशनुमा लगे।

***

जन्मदिन

मुझे अपना जन्मदिन अच्छा लगता है,

क्योंकि उस दिन तुमसे बात होती है. 


यूँ  तो तुम फ़ोन कर लेते हो कभी भी,

होली-दिवाली या उसके बिना भी,

पर मेरे जन्मदिन की शुरुआत 

तुम्हारे फ़ोन से ही होती है.

***

मेरी फितरत

देख मेरा हौसला

कभी नहीं तोड़ पायेगी तू

मेरा विश्वास और 

मेरी जिजीविषा 

क्योंकि जीतना ही 

मेरी फितरत है !

***

सरसी नागफणी

व्याकुल होकर मोर नाचता

आशा अटकी व्योम छोर

आके नेह घटाएं बरसो

है धरा का निर्जल पोर

अकुलाहट पर पौध रोप दे

दृग रहे दरस के भूखे।।

***

...हां क्रोध ऐसा ही तो होता है

क्रोध केवल क्रोध है

अपलक धधकता हुआ समय।

विचारों की शिराओं में

सुर्ख सा एक चिलचिलाता प्रवाहवान द्रव्य।

बेनतीजतन इरादों का गुबार

एक बेतरतीब सी जिद।

***

झरनों का संगीत

कितने प्रस्तर कितने कंटक राह में आए

सबके सम्मुख अपना मस्तक सदा उठाए

बूंद बूंद से सागर की लहरों की मानिंद

हार में भी एक जीत सुना तो होगा

***

कर खुद को कौशलमंद इतना 


कर खुद को कौशलमंद इतना ,

तकनीकी ज्ञान का पहनकर चस्मा ,

प्रशिक्षण लें कौशल बढ़ाने के लिए ,

हाथों को मिले नये हुनर की क्षमता ।

***

जी चाहता है…

क्‍यों गुजर जाते है पल,

क्‍यों लौटकर नहीं आते सदियां वो कल।


 क्‍यों किसी के बस्‍ती में 

ठहर जाने को जी चाहता है।

क्‍यों किसी के पहलू में 

बिखर जाने को जी चाहता है।

***

मौन समर्पण

प्रकाश कहा नहीं जाता 

अंधकार की कहे कौन ?

असीम शब्दों में नहीं समाता 

अच्छा है रहें मौन 

 मुखर जब मौन होगा 

सुवास बन खुद बहेगा

***

वेदना के शब्द गहरे

रंग सारे दूर भागे

जब कलम ने फिर छुआ था।

झूठ दर्पण बोलता कब

चित्र ही धुँधला हुआ था।

पूछती है रात बैरन

ढूँढती किसकी निशानी।

***

टोक्यो ओलंपिक: इंटरनेट पर पीवी सिंधु की जाति खोज कर क्या मिला भारतीयों को?

सिंधु की जीत के बाद इंटरनेट पर उनकी

 जाति ढूंढने वालों की संख्या 700% तक बढ़ गई थी। वे (हैदराबाद) आंध्रप्रदेश से आती है इसलिए उनकी जाति सर्च करने में आंध्रप्रदेश के लोग सबसे आगे थे। बाद में तेलंगाना और झारखंड के लोग आते है। मतलब ये कि उनकी इतनी बड़ी सफलता के बाद भारत के लोगों की दिलचस्पी ये जानने में कतई नहीं थी कि उन्होंने मेडल पाने तक का सफर कैसे तय किया

***

स्वराज स्मृति

श्रीमती स्वराज कई युवा भारतीयों के लिए एक माँ की तरह थीं, जो उन्हें मानवीय भावनाओं के विभिन्न पक्षों के प्रति संवेदनशील और अपने आदर्शों के प्रति समर्पित व्यक्तित्व के रूप में देखते थे। देश उन्हें आज भी एक मज़बूत नेत्री के रूप में देखता हैं, क्योंकि वह उस संघर्षकाल से निकली नेत्री हैं, जब राजनीति में महिलाओं के भागीदारी ना-मात्र की थी।

आपका दिन मंगलमय हो…

अगले शुक्रवार फिर मिलेंगे 🙏

"मीना भारद्वाज"


 


 

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया लिंक संयोजन.
    दिल को छू गई यह पंक्तियाँ:
    रंग सारे दूर भागे

    जब कलम ने फिर छुआ था।

    झूठ दर्पण बोलता कब

    चित्र ही धुँधला हुआ था।

    पूछती है रात बैरन

    ढूँढती किसकी निशानी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरे ब्लॉग को "चर्चा मंच" पर स्थान देने के लिए आपका बहुत धन्यवाद एवं आभार आदरणीय मीना जी।🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात, अज्ञेय की कविता से सजी सुंदर भूमिका और विविधरंगी सूत्रों का संयोजन आज की चर्चा को सार्थक बना रहा है, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    आज के सहयोग हेतु दिल से आभार दी।
    समय मिलते ही सभी रचनाएँ पढूँगी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. जी बहुत बहुत आभार आपका मीना जी। मेरी रचना का सम्मान देने के लिए साधुवाद...सभी लिंक पर प्रतिक्रिया देखने के बाद...।

    जवाब देंहटाएं
  6. मन को छूती भूमिका के साथ,बहुत ही सुंदर श्रमसाध्य प्रस्तुति बनाई है आपने मीना जी ,सभी को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन

    जवाब देंहटाएं
  7. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, मीना दी।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. अज्ञेय जी की पंक्तियाँ अगवानी पर ही कह रही है , संकलन कितना सुंदर होगा, सुंदर सार्थक लिंकों से सजी मनभावन प्रस्तुति मीना जी ।
    सभी रचनाएं उत्कृष्ट,सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही सुन्दर सूत्रों का संकलन आज की चर्चा में ! मेरी रचना को स्थान दिया आपका दिल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  11. चर्चा मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी विद्वजनों का हृदयतल से असीम आभार । सादर वन्दे ।

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  12. बहुत बढियां चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत सुंदर तथा सामयिक रचनाओं से सजा बहुत ही सराहनीय तथा पठनीय अंक,आपके श्रमसाध्य कार्य को सादर नमन,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत मनभावन प्रस्तुति "" रंग सारे दूर भागे"" मर्मस्पर्शी

    जवाब देंहटाएं
  16. मीना जी बहुत-बहुत देर से पहुँची आज…अति व्यस्तता ते चलते, तो पहले क्षमायाचना 🙏…सबको पढ़ कर प्रतिक्रिया देती हूँ और मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं

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